चीन के डिजिटल हथियार की खुल गई पोल, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने किया बड़ा खुलासा, बताया कैसे दबाया जाता है सच

China Digital Propaganda Harvard Study Reveal: हार्वर्ड के एक अध्ययन से पता चलता है कि चीन हर साल ऑनलाइन माहौल बदलने के लिए 448 मिलियन सोशल मीडिया पोस्ट बनाता है. यह बहस से बचता है और देशभक्ति और सकारात्मक पोस्ट के जरिए मुद्दे को भटका देता है. इससे असली विवाद दब जाता है, और यही चीन की डिजिटल रणनीति है.

By Govind Jee | November 6, 2025 6:23 PM

China Digital Propaganda Harvard Study Reveal: सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है. किसी फैक्टरी में बड़ा हादसा हुआ है, लोग गुस्से में हैं, सवाल पूछ रहे हैं. हैशटैग ट्रेंड कर रहा है. लेकिन कुछ ही मिनटों में वही हैशटैग देशभक्ति वाली बातों, खुशहाल फोटो और “हम सब मिलकर आगे बढ़ रहे हैं” जैसे स्लोगन से भर जाता है. हादसे पर सवाल करते पोस्ट गायब नहीं हुए, पर अब दिखाई नहीं देते. ऐसा लगता है जैसे किसी ने ऊपर से “पॉजिटिव एनर्जी” की बाल्टी से पानी उड़ेल दी हो. हार्वर्ड की नई स्टडी के अनुसार, यह कोई इत्तेफाक नहीं यह रणनीति है.

China Digital Propaganda Harvard Study Reveal: 448 मिलियन कमेंट हर साल

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के तीन शोधकर्ताओं गैरी किंग, जेनिफर पैन और मार्गरेट रॉबर्ट्स ने चीन की ऑनलाइन गतिविधियों की जांच करके बताया कि चीन का सिस्टम हर साल लगभग 448 मिलियन सोशल मीडिया कमेंट बनाता है. ये कमेंट बहस जीतने या आलोचकों का जवाब देने के लिए नहीं होते. उनका एक ही मकसद होता है कि ध्यान हटाना. जब कोई बड़ा मुद्दा ट्रेंड होता है, तब सरकार से जुड़े लोग जानबूझ कर ऐसी पोस्ट करते हैं, जो चर्चा को दूसरी दिशा में मोड़ देती है. यानी विवाद से फोकस हटाकर पॉजिटिव या भावनात्मक विषयों की ओर ले जाया जाता है.

‘50-Cent Army’ का मिथक और असली कहानी

कई लोग चीन की ऑनलाइन गतिविधियों को “50-Cent Army” कहते हैं. माना जाता था कि यह लोग पैसे लेकर कमेंट करते हैं. लेकिन रिसर्च बताती है कि यह काम फ्रीलांस या पार्ट टाइम कमेंट करने वाले लोग नहीं करते. बल्कि ज्यादातर पोस्ट सरकारी दफ्तरों और सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाती हैं. यह कोई ढीली-ढाली ट्रोलिंग नहीं, बल्कि एक संगठित सरकारी मशीन है, जो विवाद होने पर अचानक पोस्ट की बाढ़ ला देती है. मकसद बहस करना नहीं, बल्कि इतना कंटेंट डाल देना है कि असली मुद्दा नीचे धकेल दिया जाए और लोग दिशा बदल दें.

ट्रेंडिंग विवाद के बीच देशभक्ति और सकारात्मक पोस्ट उभरती हैं

जब कोई संवेदनशील मुद्दा ट्रेंड करता है जैसे विरोध प्रदर्शन, छंटनी, हादसा या कोई राजनैतिक विवाद तो सोशल मीडिया पर जल्द ही देशभक्ति, शहीदों की कहानियों, लोकल विकास योजनाओं और खुशहाल घटनाओं वाली पोस्ट दिखाई देने लगती हैं. यह पोस्ट जानबूझ कर ऐसे समय पर डाली जाती हैं कि गुस्से वाली पोस्ट धकेल दी जाए. यहां नीति यह है कि मुद्दे को मिटाओ नहीं, उसे डुबो दो.

AI, फेक अकाउंट और मीडिया मशीनरी 

माइक्रोसॉफ्ट की थ्रेट इंटेलिजेंस रिपोर्ट बताती है कि चीन अब सिर्फ पोस्ट नहीं, बल्कि AI से बने वीडियो, मीम और फर्जी प्रोफाइल का इस्तेमाल भी करता है. ये प्रोफाइल असली उपयोगकर्ताओं की तरह दिखते हैं और बातों को सामान्य चैट के रूप में पेश करते हैं. यह गतिविधियां सिर्फ चीन के भीतर नहीं चलतीं, बल्कि ताइवान, जापान और अमेरिका जैसे देशों तक फैलती हैं. जब नैरेटिव को ग्लोबल स्तर पर पुश करना होता है, तो चीन के पास अपने मीडिया प्लेटफॉर्म का बड़ा नेटवर्क है. सीजीटीएन डिजिटल जैसे सरकारी मीडिया प्लेटफॉर्म के यूट्यूब पर 3.3–3.4 मिलियन सब्सक्राइबर हैं और 2017 में इसकी अंग्रेजी फेसबुक पेज के 52 मिलियन से अधिक फॉलोअर थे. इस कारण किसी भी नैरेटिव को दुनिया भर में फैला पाना बेहद आसान हो जाता है.

ताइवान चुनाव में फैलाया गया मिसलीड पोस्ट और अफवाहें

2024–2025 के दौरान ताइवान चुनाव के समय कई रिपोर्ट्स और सरकारी जांचों में पता चला कि सोशल मीडिया पर लाखों मिसलीड पोस्ट, अफवाह फैलाने वाली वेबसाइटें और AI-जनरेटेड कंटेंट फैलाया गया. फर्जी अकाउंट्स ने चुनाव से जुड़े नैरेटिव को प्रभावित करने की कोशिश की. ताइवान की सुरक्षा एजेंसियों ने इस नेटवर्क को “troll army” कहा और बताया कि यह गतिविधि संगठित और लगातार थी. लक्ष्य वही कि मुद्दे पर बहस को रोकना और भ्रम पैदा करना.

एक साधारण उदाहरण देखिए. फैक्टरी में हादसा हुआ. लोग सवाल कर रहे हैं. लेकिन कुछ ही देर में उसी हैशटैग पर वॉलंटियर कार्यक्रम की तस्वीरें, देशप्रेम वाले संदेश और इवेंट की झलकियां भर जाती हैं. हादसे वाले पोस्ट वहीं होते हैं, पर अब दिखते नहीं. यही हार्वर्ड टीम का मुख्य निष्कर्ष है कि यह जानबूझकर सकारात्मक कंटेंट की बाढ़ एक रणनीतिक समय पर छोड़ी जाती है.

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