इस्लामाबाद : गुगल के ताजातरीन विज्ञापन में दो बुजुर्गों को दिखाया गया है जो विभाजन के बाद पहली बार मिल रहे हैं और पुरी प्रक्रिया चार मिनट से भी कम वक्त में पूरी हो जाती है. काश, हकीकत में भी यह इतना ही आसान होता.
सरहद की दोनों तरफ रहने वाले लोगों के लिए देश के नक्शे पर कागज पर खिंची लकीरें किसी पहाड़ से कम नहीं है जिसे पार करना बस सपना ही बना रह जा सकता है. और इसके पीछे वीजा के कठिन कठोर नियम कायदे हैं जो दोनों देशों ने एक दूसरे पर लाद रखे हैं. कहने को तो दोनों देश उदार वीजा कानून बना कर और बुजुर्गों के लिए ‘पहुंचने पर वीजा’ जैसे प्रावधान कर इस दिशा में अनेक कदम उठा चुके हैं, हकीकत बिल्कुल उलटी है. आम अवाम के लिए वीजा अब भी एक टेढ़ी खीर ही है.
अब, मिसाल के तौर पर 98 साल के सरदार मोहम्मद हबीब खान का ही मामला लें. खान पाकिस्तान सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी रह चुके हैं. पाक अधिकृत कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले खान वन अधिकारी के रुप में 1940 दशक में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर और बारामुला में काम कर चुके हैं. वह इन शहरों की यात्र के लिए तीन बार आवेदन कर चुके हैं. लेकिन वह कामयाब नहीं हो सके.