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जानिए, 41 साल बाद कैसे बदल जायेगा भारत और बांग्लादेश का नक्शा!

– मुकुंद हरि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी दो दिनों की बांग्लादेश यात्रा पर ढाका पहुंच गए हैं. वहां मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 41 साल से अटके हुए ऐतिहासिक भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौते पर दस्तखत करेंगे. इसके बाद भारत और बांग्लादेश के बीच नए सिरे से सीमांकन और कुछ बस्तियों एवं भूमि क्षेत्रों […]

– मुकुंद हरि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी दो दिनों की बांग्लादेश यात्रा पर ढाका पहुंच गए हैं. वहां मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 41 साल से अटके हुए ऐतिहासिक भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौते पर दस्तखत करेंगे. इसके बाद भारत और बांग्लादेश के बीच नए सिरे से सीमांकन और कुछ बस्तियों एवं भूमि क्षेत्रों के आदान-प्रदान का काम शुरू हो जायेगा. जाहिर तौर पर नक्शे पर अस्पष्ट दिखने वाले इलाके पर अपनी अधिकृत पहचान हासिल कर पाएंगे और दोनों देशों के रिकॉर्ड में इसे दर्ज करना होगा.
क्या है इस भूमि समझौते की पृष्ठभूमि
1971 के मुक्ति संग्राम युद्ध के पहले तक बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था क्योंकि आजादी के बाद भारत से अलग होकर बने मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के नाम से वर्तमान बांग्लादेश को भी अपना हिस्सा घोषित करवा रखा था लेकिन पाकिस्तान के राजनेताओं की पूर्वी पाकिस्तान के लोगों से दोयम नीति और व्यवहार की वजह से बांग्लादेश की जनता में पनपे असंतोष की वजह से शेख मुजीबुर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में पश्चिमी पाकिस्तान से अलग करने की मुहिम छेड़ी.
नतीजतन, पाकिस्तान ने बांग्लादेश में विद्रोह और अलगाव के दमन के लिए अपनी सेना तैनात कर दी. भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों द्वारा स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में अपनी सरकार की तरफ से पूरा समर्थन व्यक्त किया. भारत की सेना ने बांग्लादेश में नरसंहार कर रही पाकिस्तानी सेना का मुकाबला किया और उसे बुरी तरह से हराकर बांग्लादेश को आजादी दिलाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. लेकिन पाकिस्तानी सेना की तरफ से निर्मम तरीके बांग्लादेशियों का संहार करने की वजह से लाखों की संख्या में बांग्लादेशी नागरिक वहां से पलायन कर भारत के पूर्वी इलाकों में शरणार्थी बनकर आये और यहां बस गए. इसमें ऐसे इलाके भी शामिल हैं जिसे लेकर भारत-बांग्लादेश के बीच भ्रम और अस्पष्टता की स्थिति बनी हुई थी क्योंकि
1947 में हुए बंटवारे के वक्त हुई कुछ गलतियों की वजह से दोनों देशों के कुछ हिस्से ऐसे हैं जो एक-दूसरे की सीमा में चले गए हैं. इसकी वजह से से अक्सर गलतफहमियां पैदा होती हैं और बांग्लादेश के नागरिक भारत में चले आते हैं या फिर भारत के लोग बांग्लादेश की सीमा में चले जाते हैं, जिसकी वजह से घुसपैठ करने वालों पर अंकुश लगाना मुश्किल हो जाता है. भारत में भी असम और पश्चिम बंगाल में इसकी वजह से लोग अक्सर विरोध करते रहे हैं.
कब पड़ी थी इस समझौते की नींव
1974 में भारत और बांग्लादेश की तरफ से भूमि के इन हिस्सों की अदला-बदली को लेकर जरुरत महसूस की गयी थी. जिसके फलस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान ने ऐसा भूमि समझौता करने के लिए हस्ताक्षर किये थे. लेकिन इसके बाद सरकारें बदलती रहीं और कभी भारत के पूर्वी राज्यों तो कभी राजनीतिक दलों के विरोध की वजह से ये जरुरी समझौता नहीं हो सका.
वर्तमान एनडीए सरकार से पहले मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने इस समझौते पर काम करने की कोशिश की थी लेकिन तब विपक्षी दलों (जिनमें भाजपा भी शामिल है) के अलावा पश्चिम बंगाल और असम की तरफ से विरोध दर्ज किये जाने की वजह से ये संभव न हो सका.
अब नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से ये समझौता करने पर कांग्रेस ने भी आरोप लगाया है कि यूपीए सरकार यही समझौता करना चाहती थी तो मोदी उसे राष्ट्रविरोधी कहते थे. यूपीए सरकार ने सीमा समझौता पर बांग्लादेश के साथ ये बातचीत शुरू की थी अब मोदी उसका श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं.
भारत में कब पारित हुआ ये समझौता
एक महीने पहले संसद ने आम राय से इस बिल को मंजूरी दी थी. हालांकि, संसद में इस विधेयक को लाते समय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने लोकसभा और राज्यसभा में पूर्व की यूपीए सरकार को भी इसके लिए प्रयास शुरू करने का श्रेय दिया था और इसे भारत और बांग्लादेश, दोनों देशों के हितों और शांति से जुड़ा हुआ बताया था. इसके बाद भारत में संसद द्वारा इसकी पुष्टि किये जाने के लगभग तत्काल बाद बांग्लादेश की संसद ने भी इसे अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी थी. अंत में, संसद से इसके पारित होने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भूमि समझौते के इस संविधान संशोधन (100वां संशोधन) विधेयक 2015 को 28 मई को अपनी मंजूरी दे दी, इससे 1974 की भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा संधि को अमली जामा पहनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया. इस बारे में गजट अधिसूचना भी जारी कर दी गयी.
इस समझौते से क्या फायदा होगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच इस भूमि सीमा समझौता पर दस्तखत किये जायेंगे. जिसके तहत भारत और बांग्लादेश आपस में जमीनों की अदला-बदली करेंगे. दोनों देशों की सरकारों का मानना है कि इससे दोनों देश 4096 किलोमीटर लंबी अपनी सीमा का बेहतर तरीके से प्रबंधन कर सकेंगे. भूमि सीमा समझौते के तहत भारत बांग्लादेश को 17,160 एकड़ के 111 इलाके देगा जबकि बांग्लादेश 7,110 एकड़ के 51 इलाके भारत को देगा. इस समझौते के बाद दोनों देशों के रिकॉर्ड में जो इलाके अभी तक अस्पष्ट थे, वे अब आधिकारिक रूप से नक्शों में जगह पा सकेंगे यानी दोनों देशों को अब अपने-अपने नक्शे में भी सुधार करना होगा.
इसके अमल में आने के बाद पिछले 41 वर्षों से इन विवादित इलाकों में रह रहे हजारों लोगों की जिंदगी बदल जाएगी. अभी तक वे लोग स्पष्ट रूप से किसी देश के नागरिक नहीं माने जा रहे थे लेकिन इस समझौते के बाद अब उनके पास ये अधिकार होगा कि भारत में पड़ने वाले हिस्से में रहने वाले बंगलादेशी नागरिक भी चाहें तो भारतीय नागरिकता लेकर रह पायेंगे और इसी तरह बांग्लादेश के हिस्से में रह रहे भारतीय भी अपनी मर्जी की नागरिकता और पहचान पा सकेंगे. अभी तक इन इलाकों में रहने वाले करीब 51,000 लोगों के पास न राशन कार्ड हैं, न वोटर आई डी, न पासपोर्ट या अन्य कोई नागरिकता के प्रमाण. इसके अलावा इनके पास शिक्षा या स्वास्थ्य की सुविधा का भी अभाव है. इस समझौते से ये सब बदल जाएगा. इस समझौते को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक संबोधन में कहा था कि ये बर्लिन की दीवार गिरने जैसा है. इन इलाकों में रहने वाले लोग दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों को धन्यवाद दे रहे हैं और इसके समर्थन में रैलियां भी निकाली गयी हैं.
भारत में क्यों हो रहा था विरोध
इस समझौते के कुछ बिन्दुओं पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ऐतराज था. इस कारण पिछली यूपीए सरकार के समय उन्होंने इसका विरोध किया था. इस बार भी उन्होंने अपना विरोध दर्ज किया था और बांग्लादेश जाने से इंकार कर दिया था लेकिन बाद में सरकार द्वारा उनकी आपत्ति पर अनुकूल कदम उठाये जाने के बाद ममता ने इस समझौते को अपनी रजामंदी दे दी और पीएम मोदी के बांग्लादेश पहुंचने के पहले ही ममता वहां पहुंच गयी हैं.
इसके अलावा असम में भी इस समझौते का विरोध किया जा रहा था और बंगलादेशी लोगों की घुसपैठ पर विरोध-प्रदर्शन किये जा रहे थे लेकिन असम में अपने जन संबोधन में इस विवाद को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम के लोगों से भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि अदला-बदली समझौते के लिए सहमति मांगी थी और उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा था कि यह समझौता असम के लिए लाभकारी साबित होगा. प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस समझौते से वह असम में बांग्लादेश से हो रही अवैध घुसपैठ पर रोक लगाएंगे. उन्होंने कहा था कि फिलहाल, शुरुआत में यह समझौता असम के लिए घाटे का लग सकता है, लेकिन मैं इस तरह की व्यवस्था बनाऊंगा, जिससे लंबे समय तक असम को लाभ मिले.

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