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अमेरिका-ईरान में तनातनी युद्ध के साये में मध्य-पूर्व!

परमाणु करार से अलग होने के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर भारी आर्थिक पाबंदियां भी लगा दी हैं. वे अन्य देशों पर भी ईरान से कारोबार न करने का दबाव बनाते रहे हैं. पिछले दिनों ईरान द्वारा अमेरिकी ड्रोन गिराने, ब्रिटिश टैंकर को जब्त करने तथा अमेरिकी जासूसों को पकड़ने के दावे, […]

परमाणु करार से अलग होने के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर भारी आर्थिक पाबंदियां भी लगा दी हैं. वे अन्य देशों पर भी ईरान से कारोबार न करने का दबाव बनाते रहे हैं. पिछले दिनों ईरान द्वारा अमेरिकी ड्रोन गिराने, ब्रिटिश टैंकर को जब्त करने तथा अमेरिकी जासूसों को पकड़ने के दावे, ब्रिटेन द्वारा ईरान का तेल ले जा रहे पनामा के टैंकर को पकड़ने, टैंकरों पर ईरानी हमलों का सऊदी अरब का आरोप आदि घटनाओं ने तनाव को बहुत बढ़ा दिया है.
हालांकि, अनेक लोगों का मानना है कि अभी युद्ध होने की आशंका बहुत कम है, परंतु ईरान और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संपर्कों के अभाव में यह भरोसे से नहीं कहा जा सकता है कि मौजूदा तनातनी आमने-सामने की लड़ाई में नहीं बदलेगी. इस प्रकरण के विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन डेप्थ….
ईरान ने सीआइए के जासूसों को दी मौत की सजा!
हाल के दिनों में वाशिंग्टन और तेहरान के बीच तनाव तेजी से बढ़ा है. दोनों तरफ से भड़काऊ बयान दिये जा रहे हैं. बीते मंगलवार को ईरान सरकार ने दावा किया कि एक वर्ष के दौरान उसने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के 17 जासूसों को गिरफ्तार किया, जिसमें से कुछ को मौत की सजा दी गयी है. ईरानी खुफिया मंत्रालय के अनुसार, जासूस सैन्य और परमाणु गतिविधियों की सूचनाएं इकट्ठा कर रहे थे. हालांकि, एेसे दावे-प्रतिदावे बीते कई महीनों से किये जा रहे हैं, लेकिन ऐसे वक्त में यह बयान गल्फ संकट को और गंभीर कर सकता है.
ईरान के दावे को ट्रंप ने बताया ‘झूठ’
ईरान के बयान के कुछ घंटों बाद ही ट्रंप ने इसे झूठ करार दिया. एक ट्वीट में ट्रंप ने कहा कि यह दावा बिल्कुल गलत है. ट्रंप ने कहा कि ड्रोन गिराने का दावे की तरह यह भी झूठा प्रचार है. ईरान का धार्मिक शासन असफल हो चुका है. उसे समझ में नहीं आ रहा है कि उसे करना क्या है. उनकी अर्थव्यवस्था सांसे गिन रही है, ईरान की स्थिति बदतर होती जा रही है.
ब्रिटेन ने की ईरान से टैंकर छोड़ने की मांग
ईरान द्वारा ब्रिटिश तेल टैंकर को कब्जे में लेने के बाद अमेरिका-ईरान तनाव सैन्य विवाद के मुहाने तक जा पहुंचा है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने ‘कोबरा’ आपातकालीन समिति के साथ बैठक की और ईरानी कमांडरों द्वारा स्टेना इंपेरो टैंकर कब्जे पर चर्चा की.
मे के प्रवक्ता ने कहा शिप और क्रू सदस्यों को गैर-कानूनी तरीके से कब्जे में लिया गया है. ईरान को रिहाई करनी होगी. अंतरराष्ट्रीय लेन में अवैध कार्रवाई पर नाराजगी जाहिर करते हुए ब्रिटेन ने इसे उकसावे वाली कार्रवाई बताया है. ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध व ईरानी वैश्विक तेल निर्यात रोक की स्थिति में ब्रिटेन ईरान के साथ वार्ता को संजीदगी के साथ आगे बढ़ा सकता है. हालांकि, अमेरिका ने ब्रिटेन समेत विभिन्न सहयोगियों को सुरक्षा वादा देते हुए आगे बढ़ने को कहा है.
ब्रिटिश टैंकर क्रू में भारतीय नागरिक भी
स्टेना इंपेरो तेल टैंकर ले जा रहे 23 चालकों में भारतीय नागरिक भी शामिल हैं. बीते शुक्रवार को ब्रिटिश स्वामित्व वाले लाइबेरिया के एक टैंकर पर भी ईरानी गार्डों ने कब्जा कर लिया था, लेकिन उसे बाद में छोड़ दिया गया. हालांकि, ब्रिटेन का कहना है कि इस मसले में सैन्य कार्रवाई की बजाय वह कूटनीति हल ढूंढना चाहता है.
जवाबी कार्रवाई से बढ़ा तनाव
बीते मई महीने में वाशिंगटन ने सभी देशों को ईरानी तेल खरीदने पर रोक लगा दी थी. उसके बाद ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को और तेज कर दिया. इस दौरान अमेरिका ने गल्फ में जहाजों पर ईरानी हमले का आरोप लगाया. बीते हफ्ते अमेरिका ने ईरानी ड्रोन को गिराने का दावा किया, जिसे तेहरान ने खारिज कर दिया.
ईरान परमाणु समझौता
जुलाई, 2015 में ईरान ने विश्व शक्तियों के समूह, जिन्हें पी5+1 के नाम से जाना जाता है, के साथ ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लॉन ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) पर हस्ताक्षर किया. समूह में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, जर्मनी और चीन शामिल थे.
समझौते के तहत ईरान अपने परमाणु कार्यक्रमों को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों द्वारा निगरानी पर सहमत हुआ था. इसके बदले संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा ईरान से आर्थिक प्रतिबंध हटा लेने की बात समझौते में कही गयी थी. दिसंबर 2015 में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के बोर्ड ऑफ गवर्नर ने भी ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के संभावित सैन्य आयामों की जांच को समाप्त करने के लिए मतदान किया था.
परमाणु समझौते से अलग हुआ अमेरिका
मई 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते को दोषपूर्ण बताते हुए अमेरिका के इससे अलग होने की घोषणा कर दी और ईरान पर नये प्रतिबंध लगा दिये. साथ ही यह धमकी भी दी कि जो देश ईरान के साथ व्यापार संबंध रखेगा, उसे भी अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा.
हालांकि, परमाणु समझौते में शामिल बाकी देश अमेरिका के इस कदम से सहमत नहीं थे और उन्होंने अमेरिका का साथ नहीं दिया. अमेरिका के इस कदम का ईरान की अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा. जवाब में ईरान ने समझौते की कुछ शर्तों का उल्लंघन किया और यूरोपीय देशों पर आरोप लगाया कि अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरानी अर्थव्यवस्था को बचाने के अपने वादे में वे विफल रहे हैं.
समझौते से अलग होने पर ट्रंप के तर्क
ईरान के साथ परमाणु समझौते से अलग होने को लेकर ट्रंप ने कहा कि ईरान के पास हथियार, आतंक और उत्पीड़न के लिए 100 बिलियन डॉलर की राशि थी, क्योंकि उससे प्रतिबंध हटा दिया गया था.
ट्रंप ने यह भी कहा कि वे इस समझौते को फिर से तैयार करना चाहते हैं, ताकि सीरिया और यमन के संघर्षों में ईरान की सैन्य योजनाओं और भागीदारी को सीमित किया जा सके. ट्रंप को इस समझाैते के कुछ हिस्सों की समाप्ति की तारीख को लेकर भी आपत्ति थी, जो सैद्धांतिक रूप से ईरान को इस कार्यक्रम को फिर से शुरू करने की अनुमति देता था
तेल कीमतों पर असर
अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार के कुछ जानकारों की राय है कि अमेरिका और ईरान के बीच मौजूदा तनातनी की गंभीरता का अंदाजा तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव से लगाना ठीक नहीं है. दोनों तरफ से हो रही तमाम बयानबाजी के बावजूद तेल कीमतें अभी स्थिर बनी हुई है तथा टैंकरों को पकड़ने और ड्रोनों को गिराने में अभी कोई मौत नहीं हुई है और न ही कोई टैंकर डुबाया गया है. यूरेनियम शोधन की ईरानी कार्रवाई भी परमाणु हथियार बनाने के स्तर से बहुत नीचे है.
लेकिन प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही है और ऐसे में कुछ छूट हासिल करने के लिए ईरान दबाव बढ़ा सकता है. तब अमेरिकी प्रतिक्रिया के हिसाब से कच्चे तेल के दामों में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है.
परंतु अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और वैश्विक मंदी की आशंकाओं ने इस साल अप्रैल में ही तेल बाजार में हलचल ला दी थी. उसके बाद से मध्य-पूर्व और ईरान की स्थिति का कोई विशेष प्रभाव कारोबार पर नहीं है, क्योंकि बाजार को लगता है कि इस तनाव का नतीजा युद्ध या लड़ाई के रूप में होने की आशंका बहुत ही कम है.
ब्रिटेन खुद करे अपने शिप की हिफाजत : पॉम्पियो
अमेरिका की फॉरेन सेक्रेटरी माईक पॉम्पियो ने कहा है कि गल्फ में अपने जहाजों को सुरक्षा और निगरानी ब्रिटेन को स्वयं करनी होगी. अमेरिका अपने स्तर पर जिम्मेदारी का निर्वाह करेगा. उन्होंने मौजूदा तनाव की वजह अमेरिकी प्रतिबंधों के बजाय ईरान के बुरे बर्तावों को बताया है. उन्होंने ईरान की शासन व्यवस्था दोषपूर्ण बताते हुए कहा कि वह जनता के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है.
समुद्री लेन की सुरक्षा के लिए ब्रिटेन की अलग पहल
ब्रिटिश फॉरेन सेक्रेटरी जेेरेमी हंट ने अपने जर्मन और फ्रेंच समकक्षों से बात कर खाड़ी में समुद्री सुरक्षा और संचालन का अंतरराष्ट्रीयकरण करने पर जोर दिया. हंट ने कहा कि ब्रिटेन जर्मनी, फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों के साथ मिलकर समुद्री सुरक्षा मिशन पर नये सिरे से काम करेगा, जिसमें अमेरिका शामिल नहीं होगा. उन्होंने कहा कि यूरोपीय देश अमेरिका के ‘अधिकतम दबाव’ वाले पर सहमत नहीं हैं.
ईरान-अमेरिका तनाव का हालिया घटनाक्रम
13 जून, 2019 : ओमान की खाड़ी में दो तेल टैंकरों पर हमला किया गया. इसके लिए अमेरिका ने ईरान को दोषी ठहराया. अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा कि यह आकलन खुफिया जानकारी पर आधारित था. लेकिन अपने दावे के समर्थन में उन्होंने कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया.
14 जून : अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि ईरान ने इसे अंजाम दिया है.
20 जून : ईरान ने एक अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया. इस घटना के बाद अमेरिका ने दावा किया कि ड्रोन अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में था, जबकि ईरान का कहना था कि ड्रोन उसके क्षेत्र में था.
20 जून की रात : ड्रोन को मार गिराये जाने की जवाबी कार्रवाई में राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान पर हमला करने के लिए अपने एक सैन्य अभियान को रोक दिया.
21 जून : ट्रंप ने ट्वीट किया कि ईरान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए अमेरिका पूरी तरह तैयार था, लेकिन इसे रोकने का निर्णय इसलिए लिया, क्योंकि इससे बहुत लोगों की जान जा सकती थी.
21 जून : फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन ने अमेरिकी एयरलाइंस को इस क्षेत्र में उड़ान भरने से रोक दिया. साथ ही कई अन्य एयरलाइंस ने कहा कि वे होरमुज जलडमरूमध्य से होकर जाने से बचेंगे.
होरमुज जलसंधि की अहमियत
ईरान पहले से कहता रहा है कि अगर उस पर हमला हुआ या दबाव बढ़ाने की कोशिश हुई, तो वह होरमुज जलसंधि में जहाजों के यातायात को रोक देगा. कुछ दिन पहले उसने ब्रिटिश तेल टैंकर को जब्त कर अपने इरादे का संकेत भी दे दिया है. जानकारों का मानना है कि इस जलसंधि पर असर पड़ने के कारण ही ईरान पर हमला करने में अमेरिका को हिचकिचाहट है.
यह जलसंधि (स्ट्रेट) ईरान के दक्षिण में फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है. अपनी सबसे संकरी जगह पर इसकी चौड़ाई 33 किलोमीटर है तथा दोनों दिशाओं में जहाजों के आने-जाने के लिए सिर्फ तीन किलोमीटर चौड़ा रास्ता बचता है. ईरान की छाया से निकलने के लिए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात काफी वक्त से दूसरे रास्तों की तलाश कर रहे हैं या पाइपलाइन बिछाने पर विचार कर रहे हैं. बहरीन में तैनात अमेरिका का पांचवा समुद्री सैन्य बेड़ा इस क्षेत्र में व्यावसायिक यातायात की सुरक्षा करता है.
दुनिया के तेल का करीब 20 फीसदी हिस्सा इस संकरे समुद्री गलियारे से गुजरता है. साल 2018 में रोजाना के कुल लगभग 100 मिलियन बैरल की खपत में से 17.4 मिलियन बैरल के आसपास तेल होरमुज से होकर जाता था. ईरान के अलावा सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और इराक अपना ज्यादातर कच्चा तेल इसी रास्ते से निर्यात करते हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा लिक्विड नेचुरल गैस (एलएनजी) का निर्यातक देश कतर अपना लगभग पूरा गैस होरमुज से ही भेजता है. ईरान-इराक युद्ध के बाद से होरमुज में कई हमले होते रहे हैं.
इस साल ब्रिटिश टैंकर पकड़ने के अलावा सऊदी टैंकरों पर हमले के आरोप भी ईरान पर लगे हैं.
ईरान-अमेरिका संबंधों में उतार-चढ़ाव
1953 : अमेरिका ने ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसियों की मदद से ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादिक की सरकार का तख्तापलट करवा दिया था. मोसादिक ने ही ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया था. इसके बाद अमेरिकी समर्थक मोहम्मद रजा पहलवी ने देश की कमान संभाली थी.
1979 : मोहम्मद रजा पहलवी के शासन के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक विरोधी सड़कों पर उतर आये. महीनों तक चले विरोध प्रदर्शन के बाद 16 जनवरी, 1979 को मोहम्मद रजा पहलवी को देश छोड़ना पड़ा. दो सप्ताह बाद निर्वासन झेल रहे धर्मगुरु अयातुल्लाह खुमैनी वापस देश लौटे. 1 अप्रैल को जनमत संग्रह के बाद इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की घोषणा हुई.
1979-81 : नवंबर,1979 में प्रदर्शनकारियों ने तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावात को कब्जे में ले लिया. इसके बाद 444 दिनों तक अमेरिकी नागिरक दूतावास में ही कैद रहे. जनवरी 1981 में 52 बंधकों को रिहा कर दिया.
1985-86 : कथित तौर पर लेबनान में हिज्जबुल्ला आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाये गये अमेरिकी नागरिकों को मुक्त कराने में तेहरान की मदद के बदले अमेरिका ने ईरान को गुप्त रूप से हथियार भेजा.
1988 : 3 जुलाई को अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस विन्सेन्स ने खाड़ी में ईरान के विमान को मार गिराया, इससे विमान में सवार सभी 290 यात्री मारे गये. अमेरिका ने कहा कि एयरबस ए300 को गलती
से उसने फाइटर जेट समझ लिया.
Prabhat Khabar Digital Desk
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