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राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा गंवाने के बाद चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने की तैयारी में तृणमूल कांग्रेस

देश में अब छह दलों भाजपा, कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और आम आदमी पार्टी (आप) को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा है.

राष्ट्रीय दल का दर्जा गंवाने के बाद तृणमूल कांग्रेस निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने के लिए कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही है. पार्टी के एक सूत्र ने यह जानकारी दी है. चुनाव आयोग ने सोमवार को तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) का राष्ट्रीय दल का दर्जा वापस ले लिया था. तृणमूल सूत्रों के अनुसार, पार्टी अब चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने के लिए कानूनी विकल्पों पर गौर कर रही है. हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली इस पार्टी ने अभी तक उपरोक्त मामले को लेकर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया जारी नहीं की है.

इधर, पश्चिम बंगाल में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस घटनाक्रम के बाद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का उपहास उड़ाया है. प्रदेश भाजपा प्रमुख सुकांत मजूमदार ने ट्विटर पर कहा था कि तृणमूल ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खो दिया और इसे एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी जायेगी. तृणमूल को बढ़ाने की ‘दीदी’ की आकांक्षा के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि लोग जानते हैं कि तृणमूल सबसे भ्रष्ट, तुष्टिकरण और आतंक से भरी सरकार चलाती है.

इस सरकार का गिरना भी निश्चित है, क्योंकि पश्चिम बंगाल के लोग इस सरकार को लंबे समय तक बर्दाश्त नहीं करेंगे. गत सोमवार को जारी आदेश में चुनाव आयोग ने कहा कि राकांपा और तृणमूल को हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में उनके प्रदर्शन के आधार पर क्रमशः नगालैंड और मेघालय में राज्य स्तर के दलों के रूप में मान्यता दी जायेगी. कांग्रेस छोड़ने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक जनवरी, 1998 में तृणमूल कांग्रेस नामक पार्टी का गठन किया था.

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वर्ष 2001 और 2006 के विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखने के बाद, आखिरकार तृणमूल ने वर्ष 2011 के चुनाव में वाममोर्चा की सरकार को सत्ता से बेदखल करने में कामयाबी हासिल की. पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सीधी चुनौती देने के लिए हाल के वर्षों में पूरे देश में अपना विस्तार करने की कोशिश की. हालांकि इसका ज्यादा असर हुआ नहीं. देश में अब छह दलों भाजपा, कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और आम आदमी पार्टी (आप) को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा है.

बंगाल व मेघालय के अलावा दूसरे राज्यों में छाप छोड़ने में नाकाम रही तृणमूल कांग्रेस

पश्चिम बंगाल में तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही तृणमूल कांग्रेस दूसरे राज्यों में भी अपनी सांगठनिक ताकत के विस्तार में जुटी रही. लेकिन चुनाव आयोग द्वारा तृणमूल की राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता रद्द करने से पार्टी को काफी धक्का लगा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2016 में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल और मेघालय के अलावा अन्य राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने में नाकामयाब रही.

इलेक्शन सिंबल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर 1968 के पैरा 6बी के मुताबिक किसी भी पार्टी को तभी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है, जब उस दल को कम से कम चार राज्यों में क्षेत्रीय दल का दर्जा मिला हो. इसके अलावा एक राजनीतिक पार्टी अगर कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों को मिला कर लोकसभा की कुल सीटों में से दो फीसदी सीटें जीतती है या कम से कम 11 सीटें जीते, तो राष्ट्रीय दल का दर्जा मिल सकता है, लेकिन यहां जरूरी यह है कि ये 11 सीटें किसी एक राज्य से न होकर तीन अलग-अलग राज्यों से होनी चाहिए. तृणमूल कांग्रेस के पास कुल लोकसभा सीटों का दो प्रतिशत से अधिक है, लेकिन वे सभी एक ही राज्य पश्चिम बंगाल से हैं.

एक और शर्त यह भी है कि राष्ट्रीय दर्जा पाने के लिए किसी पार्टी को कम से कम चार भारतीय राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त होना चाहिए. अब क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करने के लिए, संबंधित राजनीतिक दल के पास संबंधित राज्य विधानसभा में कम से कम तीन निर्वाचित प्रतिनिधि होने चाहिए और उस राज्य में पिछले चुनाव में मतदान का छह प्रतिशत वोट हासिल होना चाहिए. तृणमूल कांग्रेस के मामले में, पश्चिम बंगाल के अलावा, यह केवल मेघालय में है, जहां तृणमूल के पांच निर्वाचित विधायक हैं और वहां उसने इस वर्ष मार्च में हुए चुनाव में कुल मतदान का 13.78 प्रतिशत वोट हासिल किया था. पश्चिम बंगाल में तृणमूल सत्तारूढ़ पार्टी है.

तृणमूल कांग्रेस के गोवा और त्रिपुरा में एक भी उम्मीदवार निर्वाचित नहीं हुआ और न ही उसे अपेक्षित मत ही प्राप्त हुआ. 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में तृणमूल अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर से चुनाव नहीं लड़ी थी. बंगाल में उसे 44.91 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि त्रिपुरा में 0.40 प्रतिशत. वर्ष 2016 से 2018 के अंतराल में बंगाल में विधानसभा चुनाव में तृणमूल को 44.91 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि मणिपुर में उसे 1.41 प्रतिशत वोट और त्रिपुरा में 0.30 प्रतिशत वोट मिले थे. 2021 में बंगाल में विधानसभा चुनाव में तृणमूल को 48.02 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि इस साल मणिपुर में हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल मैदान में नहीं उतरी थी. अब, राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने के बाद तृणमूल कांग्रेस अपने पंजीकृत पार्टी चिन्ह के साथ केवल पश्चिम बंगाल और मेघालय में ही चुनाव लड़ सकेग.

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