डॉ रवि रंजन
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आप बचा सकते हैं किसी की जिंदगी
डॉ रवि रंजन एमएस (ऑर्थो) कंसलटेंट ओर्थोपेडिक सर्जन (इंसाल ऑर्थोपेडिक हॉस्पिटल, रांची) भारत में अंगदान के प्रति लोगों का रवैया बेहद उदासीन है. एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि भारत में लगभग पांच लाख लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन अंग दाताओं की कमी के कारण इनकी मृत्यु हो जाती है.एक […]
एमएस (ऑर्थो) कंसलटेंट ओर्थोपेडिक सर्जन
(इंसाल ऑर्थोपेडिक हॉस्पिटल, रांची)
भारत में अंगदान के प्रति लोगों का रवैया बेहद उदासीन है. एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि भारत में लगभग पांच लाख लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन अंग दाताओं की कमी के कारण इनकी मृत्यु हो जाती है.एक सर्वेक्षण के अनुसार अधिकांश भारतीय अभी तक अंगदान के प्रति जागरूक ही नहीं. बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो अंगदान तो करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें सही जानकारी नहीं होती. अंगदान से जुड़े अंधविश्वासों के कारण भी लोग पीछे रह जाते हैं. इसके बिना अपने देश में अंगदान के इंतजार में कई लोग जिंदगी की जंग हार जाते हैं.
क्या है अंगदान : अंगदान वह प्रकिया है, जिसमें किसी शख्स (मृत और जीवित) से स्वस्थ अंगों और टिशूज लेकर किसी दूसरे जरूरतमंद शख्स में ट्रांसप्लांट किया जाता है. इससे उसे नया जीवन मिल जाता है. अंग या ऊत्तकों को प्रत्यारोपित करने की इस प्रक्रिया को ‘हार्वेस्टिंग’ कहते हैं.अंगदान क्यों जरूरी : आंखों को छोड़कर बाकी अंगों के मामले में यह तभी मुमकिन है जब शख्स के दिल की धड़कनें चलती रहें, भले ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया हो. अगर हॉस्पिटल में ब्रेन डेड हो चुके लोगों के अंग ही दान कर दिये जाएं, तो देश की जरूरत लगभग पूरी हो सकती हैं.
ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एक्ट (THOA) 1994, के अनुसार ब्रेन डेड दाताओं से प्रत्यारोपण के लिए अंग निकाले जा सकते हैं. ऐसे लोग अंगदान द्वारा आठ लोगों की जान बचा सकते हैं. ये ऑर्गन और टिश्यू दोनों दान कर सकते हैं, जैसे- लिवर, हृदय, किडनी, रक्त वाहिनी, हृदय के वाल्व, हड्डियां, स्नायु बंध, कार्टिलेज, त्वचा, आंत और कॉर्निया. एक मृत व्यक्ति की कॉर्निया दो लोगों के जीवन में उजाला कर सकती है.
जीवित दाता और ब्रेन डेड :
जीवित दाता : इन्हें लिविंग डोनर भी कहते हैं. अगर परिवार में किसी को अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है, तो कोई सदस्य मेडिकल रिपोर्ट्स नार्मल रहने पर अंगदान कर सकता है.
दोस्त, रिश्तेदार और अनजान लोग भी अंग दान कर सकते हैं. लेकिन पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है. जीवित दाता अपने जीवन काल में अपनी एक किडनी और फेफड़े का एक भाग दान कर सकता है. लिवर अर्थात् यकृत में पुन: निर्माण की क्षमता होती है. अग्नाशय अर्थात पेट की कार्य क्षमता को देखते हुए इसका एक भाग दान किया जा सकता है. दुर्लभ परिस्थिति में आंत का एक हिस्सा भी दान हो सकता है.
ब्रेन डेड
इसमें मनुष्य का मस्तिष्क पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, क्योंकि मस्तिष्क में ऑक्सीजन और रक्त नहीं पहुंच पाता. ब्रेन डेड स्थायी और ठीक न होने वाली स्थिति है, इसलिए इसमें ऑर्गन डोनेशन मान्य है. वेंटिलेटर पर लाइफ सपोर्ट सिस्टम से अप्राकृतिक रूप से श्वास तो चलती है, मगर दिमाग काम नहीं करता. इसके लिए परिवार की सहमति जरूरी है.
अंगदान की क्या है प्रक्रिया
अंगदान करने के इच्छुक व्यक्ति को खुद को मान्यता प्राप्त संस्था में रजिस्टर करवाना पड़ता है, जहां उन्हें पेपर वर्क के बाद डोनर कार्ड मिलता है.कुछ लोग चिकित्सकीय अनुसंधान के लिए भी मृत्यु उपरांत शरीर दान की घोषणा करते हैं.
कुछ ऐसी संस्थाएं और संगठन भी हैं, जहां आप अंगदान कर सकते है. जैसे- मोहन फाउंडेशन, शतायु, उपहार एक जीवन, NOTTO (National Organ Tissue Transplant Organisation) और गिफ्ट योर ऑर्गन फाउंडेशन आदि.
वर्तमान स्थिति और आवश्यकता को देखते हुए यह समय लोगों की मदद करने का है, क्योंकि अंत में तो यह शरीर खाक में मिल जायेगा, तो बेहतर है दूसरों को जीवन दान देना.
अंगदान से जुड़े कुछ मिथक
कुछ लोगों को लगता है कि अंगदान के बाद अगले जन्म में उस अंग के बिना पैदा होना पड़ेगा, मगर यह महज भ्रांति है. ऐसा कुछ नहीं.
कुछ लोगों के मन में यह धारणा होती है कि अगर उनकी कोई मेडिकल हिस्ट्री रही है, तो वे अंगदान नहीं कर सकते है. जबकि सच यह है कि कुछ लोग अंगदान और प्रत्यारोपण करने के लिए असमर्थ हों, लेकिन किसी के जीवन को बचाने के लिए अन्य अंगों और ऊतकों का दान किया जा सकता है, जैसे- अधिकांश कैंसर रोगी कॉर्निया दान करने के लिए योग्य हैं.
कुछ लोग मानते हैं कि अगर वे अंगदाता हैं और अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होते हैं, तो डॉक्टर उनकी जान नहीं बचाते. जबकि कोई भी ट्रांसप्लांट टीम तब तक अप्रोच नहीं करती जब तक चिकित्सकों के प्रयास विफल न हुए हो और व्यक्ति ब्रेन डेड न हुआ हो. इसमें परिवार की सहमति भी अनिवार्य है.
कुछ लोगों के मन में यह धारणा होती है कि ब्रेन डेड होने के बाद भी रिकवरी की जा सकती है, जबकि ऐसी उम्मीद सिर्फ कॉमा की स्थिति में की जा सकती है, ब्रेन डेड में नहीं.
कुछ लोगों को लगता है कि अंगदान करने के बाद शरीर विकृत हो जाता है. जबकि ऐसा होता नहीं. शरीर में केवल स्टिच मार्क के अलावा कुछ नहीं दिखता. सिर्फ कुछ मामलों में जटिलताएं होती हैं, जैसे- जीवित किडनी दाता भविष्य में उच्च रक्तचाप से ग्रसित हो सकता है.
कई लोगों को ऐसा लगता है कि अगर वह अंगदान करने की इच्छा करेंगे तो सारा खर्च उनके परिवार वालों को देना होगा, लेकिन ऐसा नहीं है. ब्रेन डेड घोषित होने के बाद अंगदान का सारा खर्च हॉस्पिटल ही उठाता है.
ब्रेन डेड में डोनेशन की प्रक्रिया
ब्रेन डेड हो चुके मरीज अमूमन वेंटिलेटर पर होते हैं. मरीज के परिवारवाले जब अंगदान का निर्णय लेते हैं, तब डॉक्टरों का पैनल पहले यह सुनिश्चित करता है कि उस शख्स की ब्रेन डेथ हो चुकी हो.
पुष्टि के लिए सबसे पहले EEG (इलेक्ट्रो इनसेफेलो ग्राम) टेस्ट द्वारा दिमाग की जांच की जाती है. यही टेस्ट दोबारा किया जाता है, ताकि कोई भ्रम न रहे.
घरवालों द्वारा कानूनी प्रक्रिया पूरी की जाती है, फिर अंगों को निकालने की प्रक्रिया शुरू होती है. डॉक्टरों की कोशिश होती है कि कम से कम समय में अंगों को निकाला जाये, ताकि फौरन ट्रांसप्लांट हो सके. इससे सफलता की संभावना अधिक रहती है.
ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने वाले हॉस्पिटल्स में अंग के इंतजार में रहने वाले मरीजों की वेटिंग लिस्ट होती है. इसमें जिसका नंबर पहले होता है, उसमें अंग दिया जाता है.
क्या कहते हैं आंकड़े
1.8 लाख लोग
देश में हर साल किडनी फेल्योर से जूझते हैं जबकि केवल 6 हजार लोग ही किडनी प्रत्यारोपण करा पाते हैं.
2 लाख मरीजों
की मौत हर साल लिवर कैंसर से हो जाती है. वहीं अगर लिवर ट्रांसप्लांट की व्यवस्था हो, तो 10-15 प्रतिशत केस में मरीज़ों की जान बचायी जा सकती है.
25-30 हजार
भारत में हर साल लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ती है, मगर केवल 1500 लोगों की ही यह जरूरत पूरी हो पाती है.
50,000 हजारलोगों को हर साल हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन सिर्फ 10-15 ट्रांसप्लांट ही हो पाते हैं. कई लोग इंतजार में मर जाते हैं.हर साल 1 लाखकॉर्निया ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है, मगर केवल 25,000 ही पूरे हो पाते हैं.
भारत में अनमोल जुनेजा के नाम सर्वाधिक ऑर्गन्स और टिश्यूज डोनेट करने का रिकॉर्ड दर्ज है. उन्होंने वर्ष 2013 में एम्स, दिल्ली में 34 ऑर्गन्स और टिश्यूज डोनेट किये थे.
देश में पहली बार वर्ष 2016 में तीन शहर इंदौर, मुंबई और दिल्ली में ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था. दिल्ली की 20 वर्षीया सोनिया चौहान को डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित किया. तब पिता ने अंगदान का फैसला लिया.
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