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एग्रीगेटर मॉडल को कैसे कारगर बना सकते हैं भारतीय इ-कॉमर्स स्टार्टअप्स

असंगठित खुदरा क्षेत्र द्वारा मार्केटप्लेस मॉडल के जरिये भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरानअर्थव्यवस्था को अागे ले जाने में व्यापक पैमाने पर कामयाबी हासिल हुई है. इस मॉडल के जरिये इस क्षेत्र में तेजी आयी और आने वाले समय में भी ऐसा जारी रहने की उम्मीद है. फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और यहां तक कि भारत […]

असंगठित खुदरा क्षेत्र द्वारा मार्केटप्लेस मॉडल के जरिये भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरानअर्थव्यवस्था को अागे ले जाने में व्यापक पैमाने पर कामयाबी हासिल हुई है. इस मॉडल के जरिये इस क्षेत्र में तेजी आयी और आने वाले समय में भी ऐसा जारी रहने की उम्मीद है.
फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और यहां तक कि भारत में देर से दस्तक देने वाली अमेजन जैसी कंपनियों ने कैपिटल इनवेंटरी को कम करने के लिए बाजार मॉडल अपनाया है और न्यूनतम मार्जिन को बढ़ावा दिया. लेकिन, अब यह मॉडल उतने प्रभावी तरीके से काम नहीं कर रहा है. शोपिफाइ समेत कुछ अन्य स्टार्टअप्स ने मुश्किलों का सामना करने वाले टेक उद्यमियों को कारोबार बंद करने के बजाय उसे बेचने का विकल्प मुहैया कराया है. भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में इस संबंध में क्या संभावित बदलाव किये जा सकते हैं, ताकि इनके अस्तित्व को बचाये रखा जा सके, समेत इससे जुड़े विविध पहलुओं को फोकस कर रहा है आज का स्टार्टअप पेज …
बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का स्वरूप दिन-ब-दिन बदल रहा है. हाल के वर्षों में इ-कॉमर्स स्टार्टअप्स की बेशुमार कामयाबी के बाद अब इसमें कुछ स्थिरता दिखने लगी है. लिहाजा, ये संगठन अब नयी रणनीति की ओर ध्यान दे रहे हैं. इसी क्रम में अमेजन ने प्राइवेट लेबल के तौर पर अपना सिंबॉल तैयार किया है. फ्लिपकार्ट ने हाल ही में अपना प्राइवेट फैशन ब्रांड दिवास्त्री लॉन्च किया है. वास्तविक रूप में देखा जाये, तो स्नैपडील के कारोबार में नाटकीय रूप से कमी आने के बाद एग्रीगेटर मॉडल में बदलाव आया है.
संबंधित इकोसिस्टम में पनपे इस बाजार मॉडल की असफलता से इ-कॉमर्स कंपनियों में वेंचर कैपिटल फंडिंग में कमी आयी है. साथ ही अब इनका तौर-तरीका भी बदल रहा है. भारत में उबर की प्रतिद्वंद्वी ओला स्वयं का वाहनों का बेड़ा तैयार करने में निवेश कर रहा है. होटल एग्रीगेटर आेयो अपने कारोबारी मॉडल में बदलाव ला रहा है और फ्लैगशिप प्रोग्राम के तहत होटल लीज पर ले रहा है.
तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि एग्रीगेटर मॉडल के रूप में मार्केटप्लेस के इस्तेमाल के दिन अब लद रहे हैं? वास्तव में ऐसा नहीं है. लेकिन, जो देखा जा रहा है, वह यह कि बतौर बिजनेस मॉडल एग्रीगेटर की भी सीमाएं होती हैं. विशुद्ध रूप से एग्रीगेशन का मतलब उत्पाद की गुणवत्ता और पूंजी का नियंत्रण तीसरा पक्ष करता है. अब इसमें दो समस्याएं आ चुकी हैं. पहला, इसने फ्लिपकार्ट या अमेजन जैसे अंतिम विक्रेता के लिए नियंत्रण के लिए इस बात के बहुत कम मौके छोड़े हैं कि क्या बेचना है और मार्जिन कितना हो. दूसरा, विविधता के लिए इसमें बहुत कम गुंजाइश है. ग्राहक जब सभी प्रमुख इकॉमर्स प्लेटफॉर्म पर समान ब्रांड और इनवेंटरी देखते हैं, तो केवल कीमत ही ऐसी चीज है, जो इसमें फर्क पैदा करती है. टेक स्टार्टअप्स के संदर्भ में प्रतिस्पर्धी कीमत मददगार साबित नहीं हुई है.
गैप कम करने की जरूरत
बाजार के पास व्यापार मॉडल के कुछ फायदे हैं. उदाहरण के लिए, परिमाण के संदर्भ में इनमें व्यापक मौके छिपे हैं, जिसे सामान्य तौर पर स्टार्टअप बिजनेस के लिए सोचा नहीं जा सकता है. इसमें बहुत कम पूंजीगत खर्च की जरूरत है, जो एक स्टार्टअप के लिए बहुत आकर्षक है. जब तक भारतीय इ-कॉमर्स में कुछ बड़ा बदलाव हो, स्टार्टअप इस एग्रीगेटर मॉडल का फायदा उठा सकते हैं.
मार्केटप्लेस मॉडल बेहतर तरीके से काम करे, इसके लिए स्टार्टअप्स को पहले एग्रीगेशन को समझना होगा, ताकि इसमें विविध पक्षों के बीच गैप को कम किया जा सके. ओला जैसे उद्यमों ने दक्षता के साथ इस रणनीति को लागू किया है और यह सुनिश्चित किया है कि विशुद्ध एग्रीगेशन के बिना ये चीजें बाजार के लिए वहनीय नहीं हो सकती हैं.
बिजनेस पूरक रणनीति
मार्केटप्लेस आपके प्रमुख बिजनेस के पूरक के लिए रणनीति के रूप में भी काम कर सकता है. शोपिफाइ इस रणनीति का बेहतर उदाहरण कहा जा सकता है. इस इकॉमर्स प्लेटफॉर्म डेवपलर ने हाल ही में एक्सचेंज लॉन्च किया है, जो बिजनेस के लिए एक फ्री-टू-यूज मार्केटप्लेस है. शोपिफाइ के संदर्भ में, यह मार्केटप्लेस केवल मुनाफा कमाने के लिए नहीं, बल्कि स्वयं को इकॉमर्स प्लेटफाॅर्म के लीडर के तौर पर कायम करना है.
यह मान लेना गलत नहीं है कि बड़ी संख्या में स्टार्टअप उतना आगे नहीं बढ़ पाते हैं, जितना उसके संस्थापकों को उम्मीद होती है. ऐसे में एक मार्केटप्लेस के जरिये शोपिफाइ कारोबारियों को अपने उद्यम को बंद करने के बजाय उसे बेचने का माैका मुहैया कराता है. इस लिहाज से उद्यमियों को बड़ा मौका मिल सकता है.
हालांकि, यह तय है कि यह रणनीति सभी प्रकार के बिजनेस व उद्योगों के लिए कारगर नहीं साबित हो सकती है. ऐसे में एग्रीगेशन को विकसित करने का एकमात्र तरीका इसे बड़े पैमाने पर के साधन के रूप में इस्तेमाल करने से जुड़ा होता है. इसलिए यह जरूरी नहीं कि प्रत्येक दशा में यह कारगर हो ही जाये.
(स्रोत : टेक इन एशिया डॉट कॉम)
विशेषज्ञ की राय
देखा गया है कि स्मार्ट उद्यमियों ने जानकारी हासिल करने के लिए अनेक स्रोतों का सहारा लिया है. भारत में इ-कॉमर्स स्टार्टअप्स को गति प्रदान करने के लिए गुणवत्ता, मेंटरशिप और एक्सीलेरेशन की स्पीड पर फोकस करना होगा.
संगीता गुप्ता, सीनियर वाइस प्रेसिडेंट, नैसकॉम
भारत में स्टार्टअप एप्लीकेशन में वृद्धि हुई है. लेकिन केवल कुछ में ही ऐसे लक्षण दिख रहे हैं, जिनके जरिये वे स्वयं के अस्तित्व को बनाये रखने में कामयाब हो सकते हैं.
अपूर्व शर्मा, स्टार्टअप इनवेस्टर व इनोवेशन प्लेटफॉर्म वेंचर केटेलिस्ट के सह-संस्थापक
कामयाबी की राह
ताकि निवेशक आपके कारोबार की ओर हो सकें आकर्षित
स्टार्टअप का संचालन आप अपनी जमा पूंजी और दाेस्तों, रिश्तेदारों आदि से हासिल की गयी मदद से शुरू जरूर कर सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे इसके फैलने पर आपको ज्यादा रकम की जरूरत होती है. इसके लिए आपको व्यापक पैमाने पर निवेश की दरकार होती है. निवेशक आपके स्टार्टअप की ओर रुख करें, इसके लिए इन चीजों का ध्यान रखना होगा :
अच्छे लोगों का साथ : स्टार्टअप के लिए अच्छे लोगों की मदद लेना जरूरी है. आपके आसपास केवल ऐसे ही लोग नहीं होने चाहिए, जो हर बात में हां करते हों. ऐसे लोग आपको सही सलाह कभी नहीं दे पायेंगे. आपको ज्यादा काबिल व सक्षम लोगों को साथ लेना होगा और उनके साथ नियमित रूप से संवाद बनाये रखना चाहिए.
बिजनेस पोटेंशियल की समझ : बतौर उद्यमी आपको स्वयं यह सवाल करना चाहिए कि आपने जो बिजनेस तैयार किया है, क्या उसमें पूरी क्षमता है. आपको यह भी समझना होगा कि अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आपने जो टीम तैयार की है, क्या वह इस लिहाज से सक्षम है.
साथ रहनेवालों की तलाश : उद्यमी की जीवनयात्रा कठिन होती है. इसलिए ऐसे लोगों के साथ मिल कर काम करना चाहिए, जो हमेशा आपका साथ निभा सकें.
समय और ऊर्जा का सही प्रबंधन : उद्यमी को अपने समय और ऊर्जा का सही प्रबंधन करना चाहिए. जिस कार्य के संबंध में समय और ऊर्जा खर्च की जा रही हो, उसके बारे में सही फैसले करना जरूरी है. कई बार सही कार्यों में समय लगाने का तत्काल फायदा नहीं मिलता, लेकिन आगे इसका फायदा मिलता है.
जोखिम लेने की क्षमता : हमेशा नुकसान के भय के साथ काम करना नुकसानदायक हो सकता है. आपको पूरे भरोसे के साथ काम करना होगा. इसके लिए जोखिम भी लेना होगा. कहावत भी है- नो रिस्क, नो गेन. इसलिए मुनाफा हािसल करने के लिए जोखिम तो लेना ही पड़ेगा.
स्टार्टअप क्लास
आपात सेवाओं से जुड़कर शुरू कर सकते हैं एंबुलेंस
ऋचा आनंद
बिजनेस रिसर्च व एजुकेशन की जानकार
देश में एंबुलेंस सेवा के लिए अभी तक कोई व्यापक कानून नहीं बना था. इसी वजह से किसी भी तरह की गाड़ी या टैक्सी का प्रयोग एंबुलेंस के तौर पर किया जाता रहा है. सितंबर, 2016 में भारत सरकार ने सेंट्रल मोटर वेहिकल कानून के अंतर्गत नयी अधिसूचना जारी की है, जो आगामी अप्रैल से लागू होगी. इसमें एंबुलेंस बनाने से पहले की जानकारी मिलेगी. एंबुलेंस को चार वर्गों में बांटा गया है :
(क) फर्स्ट रेस्पॉन्डर : ये दोपहिये या तिपहिये होंगे, जिनका काम आपातकाल में मरीज को मेडिकल सुविधा पहुंचाना होगा. इनके पास मरीज को लेटने या गाड़ी के अंदर लाइफ सेविंग मेडिकल सपोर्ट देने की सुविधा नहीं होगी.
(ख) पेशेंट ट्रांसपोर्ट वेहिकल : ऐसे एंबुलेंस उन मरीजों के लिए हैं, जिनको आपातकाल सुविधा नहीं चाहिए और केवल मेडिकल ट्रांसपोर्ट चाहिए.
(ग) बेसिक लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस : ऐसे एंबुलेंस बेसिक लाइफ सपोर्ट सुविधाओं से लैस होते हैं, लेकिन इसमें एडवांस तकनीक की सुविधा इनमें नहीं होती.
(घ) एडवांस्ड लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस : ये प्रोफेशनल सुविधाओं से लैस एंबुलेंस हैं, जिनमें मेडिकल इमरजेंसी के लिए उपकरण होते हैं. अलग-अलग राज्य सरकारें उपरोक्त कानून को राज्य स्तर पर लागू कर रही हैं. आप अपनी एंबुलेंस सेवा या तो निजी अस्पतालों और क्लिनिक से जुड़कर चला सकते हैं, या राज्य सरकारों द्वारा चलायी जा रही इमरजेंसी सर्विस से जुड़ सकते हैं. आप जिस वर्ग की एंबुलेंस सेवा चलाना चाहते हों, उस वर्ग के हिसाब से एंबुलेंस को तैयार कीजिए और उसके लिए जरूरी ट्रेनिंग वाले कर्मचारियों को नियुक्त कीजिये. एक हालिये रिपोर्ट के अनुसार, देश में एंबुलेंस सेवा की सख्त कमी है, और इसलिए आपके लिए इस काम में काफी संभावनाएं हैं.
जीएसटी से जुड़े खातों की देखभाल में कारोबारी मौका
जी हां. जीएसटी एक नया और जटिल विषय है, जो बड़े और छोटे कारोबारियों के लिए फिलहाल एक चुनौती बना हुआ है. इसमें कारोबारियों को अपने आमद-खर्च का लेखा जोखा न सिर्फ सरकारी नियमों के पालन के लिए रखना होता है, बल्कि अपने खर्च में भुगतान किये जीएसटी के क्रेडिट पाने के लिए भी करना पड़ता है. अक्सर छोटे कारोबारियों की इतनी कमाई नहीं होती कि वे अपने कारोबार में अलग से एक जानकार अकाउंटेंट को कर्मचारी के तौर पर नियुक्त कर सकें.
ऐसी सूरत में अगर आप खुद या किसी जानकार चार्टर्ड अकाउंटेंट के साथ मिलकर इन कारोबारियों के लिए कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर उनका अकाउंटिंग ढांचा तैयार कर सकें, तो कारोबारियों को और आपको लाभ हो सकता है. इसमें आपको उनके साथ यह तय करना है कि उनके अकाउंटिंग और जीएसटी से जुड़ी एंट्रीज के लिए आपको मासिक कितना समय लगाना होगा. तय समय के अनुसार आप उनके साथ अपनी आय नियोजित कर सकते हैं और अपनी कंपनी में कितने कर्मचारी रखने होंगे, यह तय कर सकेंगे.
कई कारोबारी चाहेंगे कि आप उन्हें लेखा-जोखा संभालने के अलावा, सरकारी तरीके से जीएसटी फाइलिंग और रीकन्सीलिएशन जैसी सुविधाएं भी दें. यह आपके आय का अतिरिक्त जरिया बन सकता है. हालांकि, इसमें आपके पास एक जानकार और एक्सपर्ट होना अनिवार्य है, क्योंकि आपकी चूक से आपके ग्राहकों को जुर्माना या नुकसान होने की संभावना बन सकती है. आप जितने ज्यादा कारोबारियों को साथ जोड़ पायेंगे, आपका खर्च उतना बंट जायेगा और आप खुद के लिए अधिक आय के साथ अपने ग्राहकों के खर्च को भी कम कर पायेंगे.

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