ब्रजेश कुमार सिंह, संपादक, गुजरात, एबीपी न्यूज
एक बार फिर केजरीवाल की गुजरात यात्रा की तरफ लौटते हैं. राधनपुर में आधे घंटे चला केजरीवाल से जुड़ा ड्रामा. उसके बाद केजरीवाल सांथलपुर होते हुए आगे बढ़ गये और समाखयाली गांव पहुंचने के साथ ही कच्छ की सीमा में प्रवेश कर गये. भचाऊ के पास खारोही गांव गये. यहां केजरीवाल समर्थक और विरोधी दोनों जमा हो गये. किसी के हाथ में काला झंडेवाला डंडा था, उसकी चोट से केजरीवाल की इनोवा कार का शीशा चटख गया. इसने केजरीवाल और उनके समर्थकों को मोदी और गुजरात सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया. केजरीवाल ने कहा कि वे गुजरात के विकास के मोदी के दावे की कलई खोल रहे हैं, इसलिए उन पर हमला हो रहा है.
इस घटना के बाद पुलिस ने केजरीवाल की सुरक्षा बढ़ा दी. कार के आगे-पीछे पुलिस की गाड़ियां चलने लगीं. पुलिस की गाड़ियों में रात में लाल बत्ती जगमगा रही थी. कच्छ के जिला मुख्यालय भुज के बाहरी हिस्से शेखपीर में केजरीवाल से घटनाक्र म के बारे में जानने की कोशिश की गयी, तो उनकी तरफ से बताया गया कि रात नौ बजे इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे.
भुज की तरफ बढ़ते-बढ़ते काफिला रु का. लगा कि किसी ने कार पर हमला तो नहीं कर दिया. पता चला कि केजरीवाल पुलिसवालों से कह रहे हैं कि वे अपनी गाड़ियों की लाल बत्ती बुझा दें. वह भुज की आम जनता के बीच खुद को वीआइपी के तौर पर पेश नहीं करना चाहते थे. आखिर उनकी पूरी राजनीति घोषित तौर पर वीआइपी कल्चर के खिलाफ है.
भुज शहर में प्रवेश करने के बाद पता चला कि केजरीवाल अपने एक पुराने समर्थक डॉक्टर नेहल वैद्य के घर रुकने वाले हैं, जो उनका अस्पताल सह आवास है. वहां पहुंचते ही वे एक कुरसी पर बैठ गये. लगा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस होगी, लेकिन उनके एक पसंदीदा चैनल का प्रतिनिधि नहीं आया, तो कॉन्फ्रेंस रात 10 बजे तक स्थगित कर खाना खाने चले गये. रात 10 बजे केजरीवाल मीडिया से मुखातिब हुए. मोदी सरकार पर आरोपों की बौछार कर दी. कहा कि मोदी के शासन में गुजरात में विकास नहीं, विनाश हुआ है. मीडिया के जरिये देश को बताया कि मोदी उनके दौरे से घबरा गये हैं. इसलिए उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करवा रहे हैं.
इस दौरान केजरीवाल ने स्वीकार किया कि राधनपुर में जब उनकी यात्रा रोकी गयी, तो काफिले में 10-15 गाड़ियां थीं. हालांकि, तर्क दिया कि उनकी गुजरात यात्रा राजनीतिक नहीं, निजी थी. केजरीवाल को शायद याद नहीं आया कि चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार केजे राव ने कहा था कि आचार संहिता लागू होने के बाद किसी पार्टी के नेता की यात्रा निजी नहीं हो सकती, जिसमें तीन से ज्यादा गाड़ियां हों, जिसमें सियासी बयानबाजी हो.
खैर, केजरीवाल प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद आराम करने चले गये. गुरुवार सुबह आठ बजे डॉक्टर वैद्य के घर के बाहर फिर मीडियाकर्मी और समर्थक जुट गये. सुबह-सुबह सिख किसानों से मिलने का मन बनाया था, केजरीवाल ने. हालांकि, ये किसान मोदी के उन वादों से संतुष्ट थे, जिसमें कहा गया था कि किसी सिख किसान से उसकी जमीन नहीं छीनी जायेगी. लेकिन, केजरीवाल समर्थकों ने तैयारी कर रखी थी, सो मुलाकात हुई. इनके बाद केजरीवाल भुज स्थित अपनी पार्टी कार्यालय गये. इस बार इनोवा कार की जगह मारुति आर्टिगा में बैठे. पार्टी ऑफिस से निकले, तो कभी अपनी ट्रेडमार्क खांसी के साथ लोगों से बातचीत करते दिखे, तो किसी अच्छे नोट पैड और पेन की जगह कागज के चीथड़े और प्लास्टिक की मामूली बॉल पेन के साथ.
केजरीवाल भुज के जीके जनरल अस्पताल को देखने गये, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी विशेष निधि से 100 करोड़ रुपये से अधिक रकम खर्च कर रिकॉर्ड समय में बनवाया था. केजरीवाल का इरादा यहां मोदी और अडाणी समूह पर हमला बोलने का था, जो अस्पताल का मैनेजमेंट संभाल रहा है. लेकिन, कार से उतरते ही उनका मुंह कसैला हो गया, जब एक नि:शक्त युवक सहित चार-पांच लोगों ने उनके खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिये. वह चिल्ला रहा था कि केजरीवाल नि:शक्तों को विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के सामने क्यों खड़ा नहीं कर रहे हैं, जिसका उन्होंने वादा किया था.
अस्पताल से निकलने के बाद केजरीवाल का काफिले को मुंद्रा की तरफ मुड़ा, जहां अडाणी समूह का निजी बंदरगाह और स्पेशल इकोनॉमिक जोन है. गुजरात पुलिस ने बुधवार की घटना से सबक लेते हुए केजरीवाल की कार के आगे और पीछे चार-चार गाड़ियां लगा दी. रास्ते में हर मोड़ पर जवान तैनात थे, ताकि कोई केजरीवाल को काला झंडा न दिखा सके, पत्थर न मार सके. केजरीवाल को इस वीआइपी ट्रीटमेंट से कोई ऐतराज नहीं था. हालांकि, मन की दुविधा मुंद्रा में तब सामने आयी, जब किसी ने पूछ लिया कि आखिर पुलिस के आगे-पीछे रहने पर उनका क्या कहना है. केजरीवाल ने एक बार कहा कि पुलिसवालों ने अस्पताल के अंदर जाने से उनके साथवाले लोगों को नहीं रोका, तो दूसरी बार कहा कि वे उनकी राह में बाधा बन रहे हैं. पुलिसवालों को भी समझ में नहीं आ रहा था कि करें, तो क्या करें.
मुंद्रा में केजरीवाल करीब आधा दर्जन उन किसानों से मिले, जिन्हें उनके समर्थकों ने पहले से ही फाइल और दस्तावेजों के साथ तैयार रखा था. किसान अपनी व्यथा और राज्य सरकार और अडाणी समूह के नकारात्मक रवैये का केस मजबूती से रखें. इसी बीच एक ऐसा किसान आ गया, जो मुंद्रा के विकास की तारीफ के कसीदे पढ़ने लगा. केजरीवाल को समझ नहीं आया कि इस किसान का क्या करें, समर्थकों ने धीरे से उसे पीछे कर दिया. मीडियाकर्मी उम्मीद कर रहे थे कि अडाणी पोर्ट के सामने जाकर केजरीवाल कहीं धरने पर बैठ न जायें, लेकिन उनकी आशा पूरी नहीं हुई.
मुंद्रा के बाद केजरीवाल पहले भद्रेश्वर गांव गये. वहां से उस पतली सड़क पर उनका काफिला आगे गया, जो सीधे समुद्र के किनारे रंध बंदर तक जाता था. यह जगह मछुआरों का अस्थायी आवास है. केजरीवाल के कार्यकर्ता पहले से मौजूद थे. यहां केजरीवाल ने मछुआरों की बातें और आरोपों को सुना. मछुआरों का कहना था कि बगल के एक पावर प्लांट से समुद्र में छूटनेवाले गर्म पानी के कारण उनकी आजीविका खतरे में है. समुद्र के इस किनारे तक केजरीवाल की गाड़ी और ओबी वैन पहुंचे थे. केजरीवाल सड़कों की खराब हालत पर सवाल उठा रहे थे. बाकी आरोप तो एक तरफ, यह समझना मुश्किल था कि अगर सड़कें इतनी ही खराब हैं, तो दो दिन के अंदर भला एक हजार किलोमीटर की यात्रा कैसे पूरा कर पायेंगे केजरीवाल.
जारी..
(ये लेखक के निजी विचार हैं)