शिक्षित एवं नौकरीपेशा युवाओं का राजनीति में आना तभी सार्थक होगा जब ये राजनीति के बुनियादी चरित्र को बदलने और राजनीति को जनोन्मुखी बनाने में सफल होते हैं. मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को जो चीजें खास बनाती हैं, उनमें अहम है विभिन्न राजनीतिक दलों के रास्ते राजनीति में दाखिल होने का नौकरीपेशा युवाओं में बढ़ता उत्साह.
बीते वर्षो में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और आम आदमी पार्टी में उच्च शिक्षित युवाओं और नौकरीपेशा लोगों की बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी से इसकी शुरुआत मानी जा सकती है. पिछले कुछ वर्षो में भारतीय राजनीति काफी तेजी से बदली है. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और उससे पैदा हुई आम आदमी पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों की तमाम आलोचनाओं के बावजूद उनका महत्व यह है कि रुचिहीन आलोचना की वस्तु बन चुकी राजनीति में लोगों की दिलचस्पी पैदा हुई है. इससे तमाम जाति, धर्म, आयु, लिंग, पेशे के पढ़े-लिखे समझदार लोगों की राजनीति में सक्रिय हिस्सेदारी का रास्ता खुला है. फलस्वरूप तमाम राजनीतिक दल पुराने नेताओं की छुट्टी कर इन्हें जगह दे रहे हैं.
भारतीय राजनीतिक इतिहास में दो बार पहले भी ऐसा हुआ- पहली बार गांधी के असहयोग आंदोलन और संपूर्ण राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान और दूसरी बार जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आह्वान पर. उपयुक्त दोनों अवसरों और आज की राजनीति में गुणात्मक भिन्नता है. उस दौर में युवा और नौकरीपेशा लोग अपना कैरियर और जीवन दांव पर लगाकर राजनीति में आये थे, काफी लोगों को जेल जाना पड़ा था.
जबकि समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा कम ही दिखाई पड़ रहा है. आम चुनाव के मद्देनजर राजनीति में शामिल हो रहे अधिकतर पत्रकारों, प्रोफेसरों, पुलिसकर्मियों आदि में राजनीतिक विकल्प को लेकर समझदारी और परिपक्वता के बजाय अवसरवादिता ही अधिक दिखाई पड़ रही है. राजनीतिक क्षेत्र के नवागंतुकों में से अधिकतर का आर्थिक आधार सुरक्षित है. उनके सामने जीवन चलाने का कोई संकट नहीं है. उनके लिए राजनीति यश और सत्ता प्राप्ति का साधन मात्र है.
राजनीति या किसी भी क्षेत्र में होने पर महत्वाकांक्षा होना स्वाभाविक है, लेकिन जब तक देश और समाज की समस्याओं की गहरी जानकारी, व्यापक अनुभव, व्यक्तिगत ईमानदारी और स्पष्ट भविष्यदृष्टि नहीं होगी, राजनीति के चेहरे भले ही बदल जाएं, लेकिन न राजनीति के मूल चरित्र में कोई बदलाव आएगा और न देश ही बदल पायेगा. इन नवागंतुकों का राजनीति और बदलाव को लेकर एक तरह का रूमानी भाव है. यथार्थ की जमीन पर आते ही उसका परिवर्तित हो जाना तय है. राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे इन नये चेहरों को राजनीति को मिशन तो बनाना ही होगा, साथ ही लोगों के बीच जाकर एक सही दृष्टि का विकास भी करना होगा. जिन दलों में वे जा रहे हैं, उन दलों का आंतरिक ढांचा लोकतांत्रिक बनाने के लिए प्रयत्न करने होंगे. राजनीति को धनबल, बाहुबल के दुष्प्रभावों से मुक्त करना होगा. इन शिक्षित नौकरीपेशा युवाओं का राजनीति में आना तभी सार्थक होगा जब ये राजनीति के बुनियादी चरित्र को बदलने और राजनीति को जनोन्मुखी बनाने में सफल होते हैं. इसके लिए भ्रष्टाचार जैसे किसी एक मुद्दे से आगे जाकर तमाम गैर-बराबरियों का खात्मा और समावेशी विकास को राजनीति का लक्ष्य बनाना होगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि राजनीति में इन नवागंतुकों के आने से हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा और इसी उम्मीद के साथ इनका स्वागत किया जाना चाहिए.
गंगा सहाय मीणा
स. प्रोफेसर, जेएनयू