फ़िल्म ‘पद्मावती’ के विरोध का झंडा थामने वाली करणी सेना राजस्थान के लिए नई नहीं है, न ही नया है उनकी कार्रवाई का ये अंदाज.
इससे पहले भी रियासत दौर के किरदारों पर फिल्म बनने पर कई बार वो इसी अंदाज में आगे आई है. उसने ‘जोधा अकबर’ फिल्म का प्रदर्शन रोकने की भी कोशिश की थी.
वैसे करणी सेना राजस्थान में अकेली नहीं है. पिछले एक दशक में और भी कई जातियों ने अपनी बिरादरी के हितों के लिए संगठन बनाए और उनके नाम के साथ सेना शब्द नत्थी कर दिया.
करणी सेना अपनी स्थापना और सक्रियता का एक दशक मुकम्मल कर चुकी है.
आरक्षण की मांग से करणी सेना की शुरुआत
सेना ने संगठन की शुरुआत राजपूतों के लिए आरक्षण की मांग से की थी. फिर धीरे-धीरे उसने अपना दायरा बढ़ाया और दूसरे मुद्दों पर भी मुखर होने लगी.
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भंसाली के समर्थन में आई ‘पद्मावती’
करणी सेना के पूर्व प्रदेश संयोजक श्याम प्रताप सिंह इटावा के मुताबिक अभी साढ़े सात लाख सदस्य संगठन में पंजीकृत हैं.
श्याम प्रताप सिंह के मुताबिक़ करणी सेना का सियासत से कोई लेना-देना नहीं है. बल्कि इसका मकसद राजपूत बिरादरी के हितों की रक्षा करना है.
करणी माता को जगदम्बा का अवतार माना जाता है और वे कुछ प्रमुख राजघरानों की कुल देवी हैं. इटावा का कहना है कि इसी आस्था और शक्ति से प्रेरित होकर संगठन का नाम करणी रखा गया.
करणी सेना ने कब- कब किया विरोध
करणी सेना पहली बार तब सुर्खियों में आई जब 2008 में फिल्म जोधा अकबर के प्रदर्शन के दौरान इसके सदस्यों ने राज्य भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किये.
जब जोधा-अकबर के प्यार को मिला अंजाम.
2013 में करणी सेना ने ‘जोधा अकबर’ टीवी सीरियल के विरोध में मोर्चे निकाले और आरोप लगाया कि इस सीरियल में इतिहास के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है.
इसके बाद फिर करणी सेना के सदस्य 2014 में जयपुर साहित्य उत्सव में विरोध करते नजर आए. तब एकता कपूर मंच पर चर्चा में भाग ले रही थीं.
सामाजिक कामों में हिस्सेदारी
करणी सेना के प्रदेश संगठन प्रभारी रहे विक्रम सिंह टापरवाड़ा कहते हैं, "संगठन ने कई सामाजिक कार्य किए हैं. रक्तदान शिविरों का आयोजन किया है. युद्ध सैनिक विधवा सम्मान समारोह आयोजित किए हैं."
विक्रम सिंह के अनुसार इस संगठन ने राजपूत युवकों का भटकाव रोका है और युवा समूह बनाए हैं. संगठन की सक्रियता से उन इलाकों में राजपूत समाज को मदद और मंच मिले हैं जहाँ उनकी संख्या कम है.
सेना के पूर्व प्रदेश संयोजक इटावा कहते हैं कि संगठन ने अपनी बिरादरी के लड़कों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया है और अनेक समारोह आयोजित किए हैं.
‘सेनाएं’ तय करेंगी फ़िल्म की कहानी
पर इस संगठन की जरूरत क्यों पड़ी? क्या राजनीतिक दल सामाजिक हितों की रक्षा के लिए सक्षम नहीं हैं.
इटावा का कहना है कि सियासी दल सिर्फ राजनीतिक भलाई के लिए काम करते हैं.
राजस्थान की सेनाएं
राजस्थान में पिछले एक दशक में करणी सेना ऐसा अकेला संगठन नहीं है जिसके नाम के साथ सेना जुड़ा हुआ है.
इससे पहले विप्र समाज के लिए परशुराम सेना सामने आई. इसने परशुराम के प्रतीक फरसे को लक्ष्य कर अपनी जाति को संगठित करने का प्रयास किया.
गुर्जर आंदोलन के दौरान देव सेना और पथिक सेना भी सतह पर दिखाई दी. इसके बरक्स मीन सेना का नारा भी गूंजा.
समाज शास्त्री डॉ. राजीव गुप्ता करणी सेना और जाति संगठनों के नाम पर इस तरह के संगठनों की आलोचना करते हैं. वे इस उभार में सामंतवाद की राजनीति का विस्तार देखते हैं.
दबी कुचली जातियां
डॉ. राजीव गुप्ता का कहना है कि सेना नाम से जुड़े करणी सेना और दूसरे संगठन प्रभावशाली जातियों के हैं क्योंकि दबी-कुचली जातियां तो अपने संगठन के साथ सेना शब्द जोड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकती हैं.
गुप्ता जी कहते हैं पूंजीवाद में यकीन रखने वाली सियासी पार्टियां इन जैसी सेनाओं को आगे बढ़ाती नजर आती हैं.
हिंदू आतंकवाद अब मिथक नहीं रहा
राजस्थान के लिए यह चलन नया है क्योंकि कोई समाज जब तरक्की करता है तो बहस के मुद्दे शास्त्र होते है, सेना और शस्त्र नहीं.
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