झारखंड के साथ धोखा
केंद्र सरकार ने सीमांध्र को पांच साल के लिए विशेष राज्य का दरजा देने की घोषणा की है. आंध्रप्रदेश से तेलंगाना के अलग होते ही रातोरात केंद्र की यूपीए सरकार ने यह निर्णय कर दिया, जबकि झारखंड और बिहार भी यही मांग कई साल से करते रहे हैं, किसी ने आवाज नहीं सुनी. देश के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी तटीय राज्य को यह दरजा मिला.
केंद्र का काम देश के हर राज्य को एक नजर से देखना है, सबको साथ लेकर चलना है, लेकिन सीमांध्र में कांग्रेस का अपना हित दिखा और उसने अन्य राज्यों को नजरअंदाज कर यह निर्णय लिया. केंद्र ने पिछड़े राज्यों के पैमाने तय करने के लिए जिस रघुराम राजन कमेटी का गठन किया था, उसने जिन राज्यों को पिछड़े राज्यों की सूची में शामिल किया था, उनमें झारखंड था, बिहार था. कमेटी ने आंध्रप्रदेश को विकसित राज्य बताया था. केंद्र की यह घोषणा आनेवाले दिनों में निर्णायक होनेवाली है.
रांची: केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा देने की घोषणा के बाद यह सवाल उठ रहा है कि झारखंड को विशेष राज्य का दरजा क्यों नहीं दिया गया. खनिज संपदा से भरे होने के बावजूद झारखंड एक पिछड़ा राज्य है, जहां की बड़ी आबादी (40}) गरीबी रेखा के नीचे जी रही है. यहां की प्रति व्यक्ति आय सीमांध्र की प्रति व्यक्ति आय से कम है. झारखंड का बड़ा हिस्सा नक्सल बहुल है. राज्य में इंफ्रास्ट्रर की कमी है. यहां की प्रति व्यक्ति आय 40158 रुपये है, जो सीमांध्र से कम है. राज्य की औसत विकास दर 7.1% है, जो अन्य राज्यों से काफी कम है. झारखंड पिछड़े राज्यों की श्रेणी में आने के लिए निर्धारित सभी मापदंडों को पूरा करता है. केंद्र द्वारा गठित रघुराम राजन कमेटी ने झारखंड को ओड़िशा व बिहार के साथ पिछड़े राज्यों की श्रेणी में रखते हुए उसे विशेष सहायता देने की अनुशंसा की थी.
लेकिन केंद्र सरकार ने कमेटी की अनुशंसा को दरकिनार कर दिया. राज्य गठन होने के समय भी झारखंड को कोई विशेष पैकेज नहीं दिया गया. स्थिति यह है कि झारखंड की आर्थिक स्थिति चरमरा गयी है.
झारखंड में जब अर्जुनमुंडा की सरकार थी, उस समय भी झारखंड को विशेष राज्य का दरजा देने की केंद्र से मांग की गयी थी. अनेक राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया था. आजसू पार्टी ने सुदेश महतो के नेतृत्व में इसे बड़ा मुद्दा बनाया था. दिल्ली तक जाकर धरना-प्रदर्शन किया था. जेवीएम नेता बाबूलाल मरांडी ने भी केंद्र से झारखंड को विशेष राज्य का दरजा/विशेष पैकेज की मांग की थी. तमाम प्रयास के बावजूद झारखंड की मांग को किनारे कर दिया गया है. केंद्र की इस दोहरी नीति के खिलाफ पूरे झारखंड में आक्रोश दिखने लगा है और एक बड़े आंदोलन की संभावना है.
केंद्र का सौतेलापन
।। शैबाल गुप्ता ।।
झारखंड को विशेष राज्य का दरजा नहीं मिलना, केंद्र के सौतेलेपन का ताजा उदाहरण है. इसे किसी भी तरह से सपोर्ट नहीं किया जा सकता. झारखंड को विशेष राज्य का दरजा नहीं देना बेइमानी है. राज्य सभी पैमाने पर फिट बैठता है. इसके बाद भी दरजा नहीं मिलने का कोई औचित्य नहीं है. जबकि सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा दिये जाने का कोई औचित्य नहीं दिखता. सीमांध्र क्षेत्र पूरे भारत का एक विकसित प्रदेश है.
यह आजादी के पहले भी विकसित था और आजादी के बाद भी. यदि किसी राज्य ने विकास किया, तो यह सीमांध्र का ही इलाका था. 1930 के दशक में कृषि में कैपिटलिज्म ट्रांसफॉर्मेंशन हुआ. बाद में टूबेको, सिनेमा और नॉलेज इंडस्ट्री भी वृहत रूप से डेवलप हुए. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि बिल गेट्स की माइक्रोसॉफ्ट कंपनी का ग्लोबल चीफ भी सीमांध्र क्षेत्र से ही आते हैं. भारत में यही एक राज्य है, जहां फर्स्ट और सेकेंड जेनरेशन इंडस्ट्रीयलिस्ट न केवल भारत में, बल्कि ग्लोबल लेवल पर अपना पैठ बना रहे हैं.
सीमांध्र क्षेत्र का जीएमआर जो फर्स्ट जेनरेशन इंटरपेन्योर है, न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी एयरपोर्ट बनाने के ठेके हासिल कर रहे हैं. इस परिप्रेक्ष्य में भी सीमांध्र को विशेष राज्य का दरजा दिये जाने का कोई औचित्य नहीं दिखता. इसके अलावा भी प्राइवेट सेक्टर, राष्ट्रीय और ग्लोबल लेवल पर बड़े पैमाने पर निवेश किये गये. विशेष राज्य का दरजा मिलने से विशेषत: प्राइवेट सेक्टर आकर्षित होता है. सीमांध्र में प्राइवेट सेक्टर न केवल मजबूत हैं. मगर उसका विकास निर्णायक दौर तक पहुंच चुका है.
झारखंड जैसे राज्य को रघुराम राजन कमेटी का दिया हुआ संज्ञा लिस्ट डेवलप्ड स्टेट जिसमें सात गैर विशेष राज्य दरजा प्राप्त राज्य है, देना जरूरी था. इसमें बिहार और झारखंड सबसे ज्यादा क्लमेंट था. यहां न केवल मैन्यूफैक्चरिंग सबसे कम है. बल्कि प्राइवेट कैपिटल एंड पूंजीपति डेवलप्ड में सबसे लिस्ट है. रघुराम राजन कमेटी बनाने का मुख्य उद्देश्य था सिर्फ इंडिया से एक डेवलप्ड इंडेक्स तैयार करना नहीं, बल्कि अंडर डेवलप्ड स्टेट का मौलिक ढंग से बैकवर्डनेस खत्म करने की स्ट्रैटजी भी थी. इस दिशा में रघुराम राजन कमेटी ने विशेष राज्य का दरजा के लिए सिफारिश भले ही नहीं की हो, मगर उस दिशा में इंगित किया था. इसकी अनुशंसा लागू नहीं कर केंद्र ने एक ऐतिहासिक अवसर खो दिया है. कमेटी की सिफारिश यदि लागू होती, तो केंद्र प्रायोजित योजनाओं में 70:30 के अनुपात 90:10 में बदल जायेगा. इससे बिहार और झारखंड को कई हजार करोड़ रुपये की बचत होती.
झारखंड राज्य बनने के बाद इसे कोई विशेष पैकेज नहीं दिया गया.
इस कारण पिछले 14 साल में जिस गति से इस राज्य को बढ़ना चाहिए था, नहीं बढ़ पाया. विशेष राज्य का दरजा मिल जाने से यहां निवेश की संभावना बढ़ जाती. भाड़ा समानीकरण के मामले में सबसे ज्यादा झारखंड ही प्रभावित हुआ. टाटा के आरंभिक निवेश के बाद भी उस पैमाने पर प्राइवेट सेक्टर में निवेश नहीं हो पाया. विशेष राज्य का दरजा मिलने से झारखंड का तेज गति से का विकास होता.