।। अरविंद मोहन ।।
अर्थशास्त्री लखनऊ यूनिवर्सिटी
किसी भी बजट में दो बातें प्रमुख होती हैं. पहला, बजट से पार्टी के आर्थिक और राजनीतिक सोच का पता चलता है और दूसरा, देश की वित्तीय नीतियों के बारे में पता चलता है. बजट के प्रावधानों से पता चल जाता है कि केंद्र सरकार की आर्थिक नीति कैसी होगी.
यह साफ है कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा पेश अंतरिम बजट लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. हमें ध्यान रखना चाहिए कि ‘वोट ऑन एकाउंट’ में करों से संबंधित विशेष प्रावधान नहीं किये जाते हैं. चुनाव से पहले सरकारी खर्च के लिए ही अंतरित बजट पेश किया जाता है.
2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार और 2009 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी अंतरिम बजट में करों का कोई नया प्रावधान नहीं किया था, लेकिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इस बार ऐसा कर दिया. यह संसदीय परंपराओं के खिलाफ है.
कुछ महीने बाद आम चुनाव होनेवाले हैं और मई, 2014 तक नयी सरकार का गठन हो जायेगा. नयी सरकार अपना पूर्ण बजट पेश करेगी. अगर यूपीए की सरकार फिर बनती है और पी चिदंबरम ही फिर वित्त मंत्री बनते हैं, तब भी अंतरिम बजट में की गयी घोषणाओं को लागू करना मुश्किल होगा. नियमों के तहत चिदंबरम यूपीए सरकार की दस साल की उपलब्धियों के बारे में बखान करते.
हालांकि इस बात के लिए भी उनकी आलोचना होती, लेकिन चुनावी साल में अमूमन सभी ऐसा करते हैं. अंतरिम बजट में चिदंबरम द्वारा की गयी कुछ घोषणाओं को वास्तविकता में लागू नहीं किया जा सकता है. अब देश की जनता जागरूक हो गयी है. चुनावी साल में लोक लुभावन घोषणाओं से उसे बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है. आर्थिक लिहाज से भी इन घोषणाओं का कोई खास मतलब नहीं है.
यह ध्यान देने की बात है कि 2008-09 की आर्थिक मंदी का सामना करने में भारत इसलिए सफल हो पाया था, क्योंकि उसकी बुनियाद मजबूत थी. वर्ष 2008 के बाद निवेश 65 फीसदी, जबकि घरेलू बचत का हिस्सा 35 फीसदी था. वर्ष 2014 में निवेश 34 फीसदी हो गया है. पिछले पांच साल में भारत की आर्थिक बुनियाद काफी कमजोर हो गयी है. आज भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कमजोर और संकटग्रस्त है. भारतीय अर्थव्यस्था संस्थागत चुनौती का सामना कर रही है. यूपीए-2 सरकार ने इस चुनौती का ख्याल नहीं रखा. महंगाई को कम करने पर ध्यान नहीं दिया गया. महंगाई रिजर्व बैंक की नीतियों से नियंत्रित नहीं हो सकती है.
रिजर्व बैंक सिर्फ रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट को घटाने और बढ़ाने जैसे छोटे कदम उठा सकता है. महंगाई को कम करने के लिए सरकार को व्यापक कदम उठाने की जरूरत है. इसके लिए सरकार को पीडीएस व्यवस्था को दुरुस्त करने की कोशिश करनी चाहिए थी, लेकिन विभिन्न सेक्टरों में महंगाई को काबू में करने की कोशिश नहीं हुई. यह कोशिश न तो पिछले दस साल में दिखी, और न ही अंतरिम बजट में कोई प्रावधान किया गया. आज देश के सामने आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाने और महंगाई को कम करने की विकराल चुनौती है. यह आगे भी बनी रहेगी.
यूपीए सरकार के कार्यकाल में इंफ्रास्ट्रर के विकास की गति काफी धीमी हो गयी. इससे रोजगार के अवसर भी कम हुए हैं. बड़ी परियोजनाएं कानूनी अड़चनों के कारण परवान नहीं चढ़ पायी. घोटालों के कारण नीतिगत स्तर पर ठहराव आ गया. इस कारण दूसरे दौर की सुधार प्रक्रियाओं को लागू करने में सरकार विफल रही. सरकार की इस नाकामी का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा और आर्थिक विकास दर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. अंतरिम बजट में आर्थिक विकास दर को बढ़ाने की कोई ठोस घोषणा नहीं की गयी. कुल मिला कर यह यूपीए सरकार का अंतरिम बजट नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी का अंतरिम घोषणापत्र है.
सामाजिक क्षेत्र के बजट में अभूतपूर्व कटौती
।। अनिंदो बनर्जी ।।
निदेशक, कार्यक्रम प्रभाग, प्रैक्सिस
पी चिदंबरम द्वारा वर्ष 2013-14 के अंतरिम बजट को देखा जाए तो यह बजट अप्रत्याशित नहीं दिखता. दो साल पहले जिस रास्ते पर यूपीए-2 की सरकार ने चलना शुरू किया था, उसी रास्ते पर आगे चलते रहने के इरादे को वित्त मंत्री ने अपने बजटीय भाषण में प्रस्तुत किया है.
उनका मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था को गति देना है और इस लिहाज से यह बजट राजकोषीय घाटे को कम करने के इरादे को प्रदर्शित करता हुआ दिखता है. लेकिन इन सब के बीच सरकार ने अपनी प्राथमिकता भी जाहिर कर दी है और आम आदमी के करीब पहुंचने का दावा करनेवाली इस सरकार ने अपनी आर्थिक नीतियों के निर्धारण के क्रम में सामाजिक क्षेत्र को बलि का बकरा बनाया है और इस क्षेत्र के अलग-अलग मदों में अभूतपूर्व कटौती की है.
सामाजिक क्षेत्रों पर पिछले वर्ष कुल योजनाकार (प्लान आउटले) का 26.8 फीसदी आवंटित किया गया था, जो कि इस वर्ष के अंतरिम बजट में इसे घटाकर मात्र 16.2 फीसदी रखा गया है. इतना ही नहीं, सामाजिक क्षेत्र के आधार माने जाने वाले मुख्य मंत्रालयों के बजट के आवंटन में भारी कटौती की गयी है. पिछले वर्ष मानव संसाधन मंत्रालय ने 61,862 करोड़ रुपये आवंटित किया था, जोकि इस वर्ष घटकर 16,777 करोड़ हो गया है, अर्थात यह 10.1 फीसदी से घटकर 3.6 फीसदी हो गया.
इसी स्वास्थ्य मंत्रालय का आवंटन पिछले वर्ष 25,990 करोड़ रुपया था, जो इस वर्ष के बजट में 7,726 करोड़ रुपया हो गया है, अर्थात यह 4.2 फीसदी से घटकर मात्र 1.2 फीसदी रह गया. इसी तरह, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को पिछले वर्ष 18,200 करोड़ रुपये दिये गये थे, जबकि इस वर्ष महज 889 करोड़ रुपये दिये जायेंगे. अर्थात यह तीन फीसदी से घटकर 0.2 फीसदी हो गया है. पेयजल एवं स्वच्छता के लिए पिछले वर्ष 12,000 करोड़ रुपये आवंटित कि ये गये थे, जो घटकर 231 करोड़ रुपया हो गया है.
इतना ही नहीं, ग्रामीण विकास विभाग के आवंटन में भारी कटौती हुई है. पिछले वर्ष इस विभाग का बजट 61,810 करोड़ रुपया था, जो इस वर्ष घटकर 7,614 करोड़ रुपये का हो गया है. यानी यह 10.1 फीसदी से घटकर 1.6 फीसदी हो गया है. कृषि के क्षेत्र में आवंटन 2.9 फीसदी से घटाकर 2.1 फीसदी किया गया है. पंचायतों के विकास के लिए आवंटित बजट को घटाकर 94 करोड़ कर दिया गया है. कुल योजना मद का अनुसूचित जाति उपयोजना के लिए 48,638 रखा गया है, जो मात्र 10.46 फीसदी है, जबकी जनसंख्या के हिसाब से यह आवंटन 16.6 फीसदी होना चाहिए.
इस बजट की अच्छी बात यह है कि सब्सिडी से ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की गयी है. इसमें हलकी बढ़ोतरी ही हुई है. पिछले साल 2,45,452 करोड़ रुपया आवंटित किया गया था, जो बढ़कर इस वर्ष 2,46,397 करोड़ रुपया हो गया है. सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के लिए 1,15,000 हजार करोड़ रुपया सब्सिडी देने का प्रावधान किया है.
इसके साथ ही, अनुसूचित जाति के उद्यमियों को रोजगार स्थापित करने के लिए 200 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी है.
इंफ्रास्ट्रक्चर को तेजी देने की कोशिश की गयी है. जैसे ट्रांसपोर्टेशन के लिए पहले 17.8 फीसदी का बजट था, जिसे बढ़ाकर 23.9 फीसदी किया गया है. ग्रामीण सड़कों को भी इसी के तहत शामिल किया गया है. महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाये गये ‘निर्भया फंड’ को 1,000 करोड़ की राशि आवंटित की गयी है. नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल का बजट पहले की भांति 1,000 करोड़ रखा गया है. डिफेंस पेंशन प्लान के तहत 500 करोड़ रुपये की राशि दी गयी है. लेकिन सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत दिये जाने वाले पेंशन के विषय में कुछ खास नहीं कहा गया है.
इस तरह से देखा जाए तो सरकार ने कई वस्तुओं में लगनेवाले एक्साइज डय़ूटी में बड़ी छूट देकर उपभोक्ता को राहत देने की कोशिश की है. लेकिन दूसरी तरफ सरकार ने सामाजिक क्षेत्रों के बजट में कटौती कर, विशेष रूप से मनरेगा और ग्रामीण विकास विभाग के बजट में कटौती कर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ाने में कोई रुचि नहीं दिखायी है. यह आम चुनाव के ठीक पहले प्रस्तुत किया गया बजट था, इसलिए यह उम्मीद थी कि सरकार बुनियादी सेवा के विकास पर ध्यान देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उम्मीद है चुनाव के बाद जो भी नयी सरकार आयेगी, वह सामाजिक क्षेत्र पर विशेष ध्यान देकर आर्थिक असमानता को कम करने की दिशा में कदम उठायेगी.
(बातचीत : संतोष कुमार सिंह)
मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को फायदा होने की उम्मीद
।। राणा कपूर ।।
प्रेसिडेंट, एसोचैम
चुनावी साल में उम्मीदों के मुताबिक अंतरिम बजट में भले ही अहम घोषणाएं नहीं है, लेकिन मैन्यूफैरिंग क्षेत्र के लिहाज से इसे अच्छा कहा जा सकता है. पिछले कुछ सालों से मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की स्थिति काफी खराब है. एक्साइज ड्यूटी में कमी से ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर डयूरेबल गुडस की मांग में तेजी आने की संभावना है. इससे इस क्षेत्र की स्थिति में सुधार आने की पूरी संभावना है. हालांकि उद्योग जगत को उम्मीद है कि नयी सरकार मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को पटरी पर लाने के लिए बड़े कदम उठायेगी.
वित्त मंत्री पी चिदंबरम को सरकारी खजाने को अच्छी स्थिति में पहुंचाने के लिए बधाई दी जानी चाहिए. वित्त मंत्री द्वारा उठाये गये कदमों के कारण ही आज भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद अच्छी दिख रही है. आयात और निर्यात के मोरचे पर भी हालात बेहतर हुए है. मौजूदा समय में निर्यात बढ़ रहा है और चालू बचत घाटा 45 बिलियन डॉलर पर आ गया है, जो 2012-13 में 88 बिलियन डॉलर के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था.
इसके अलावा राजस्व घाटा भी 4.6 फीसदी है, हालांकि इसके लिए वित्त मंत्री को योजनागत खर्च में कटौती करनी पड़ी, लेकिन वित्त मंत्री के सामने इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था.
मेरा मानना है कि सरकार को गैर योजनागत खर्च में भी कटौती करनी चाहिए. मौजूदा समय में यह 12 लाख करोड़ रुपये है. इसे कम करना चाहिए, ताकि विकास के लिए सरकार के पास अतिरिक्त संसाधन बचा रहे. ध्यान देनेवाली बात है कि लोकलुभावन नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है और चुनावी साल में इसकी बाढ़ आ जाती है.
लेकिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम इसके दबाव में नहीं आये. हालांकि मौजूदा समय में इसकी गुंजाइश भी नहीं थी. आज भी 2.46 लाख करोड़ की सब्सिडी का बोझ चिंता का विषय है, इसे कम करने की जरूरत है.
वोट ऑन एकाउंट होने के बावजूद स्किल डेवलपमेंट पर जोर देना अच्छा कदम है. उद्योग जगत को उम्मीद थी कि करों में सुधार होगा और जीएसटी को लागू किया जायेगा. हमें उम्मीद है कि अगली सरकार जीएसटी को लागू करेगी. देश को एक स्थिर और निर्णायक सरकार की जरूरत है, ताकि देश की विकास दर एक बार फिर 8-9 फीसदी तक पहुंचे. देश के लिए तेज गति से विकास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, चाहे केंद्र में किसी दल की सरकार बने.
छोटा बजट, बड़ी राजनीति
।। अरविंद मोहन ।।
आर्थिक मामलों के जानकार
चार महीने के लेखानुदान मांगों के क्रम में वित्त मंत्री कोई चमत्कार कर दें या बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला दें, यह संभव न था. लेकिन अगले चार महीनों का बजट पेश करते हुए चिदंबरम ने जो कुछ किया, उसे चमत्कार ही मानना चाहिए. उन्होंने सबसे पहला काम तो यही किया कि पूरे दस सालों की समीक्षा पेश करके कांग्रेसियों को जुबान दे दी.
विपक्ष के हमलों से घबराये कांग्रेसी आजकल मुंह खोलने से बच रहे थे. लेकिन जब चिदंबरम ने एक या दो साल की आर्थिक बदहाली और बेहिसाब महंगाई वाले दौर का हिसाब पेश करने की जगह सीधे दस साल के यूपीए शासन का हिसाब दिया और इसमें 6.6 फीसदी विकास दर समेत कई अच्छी बातें बतायीं, तो सबको तसवीर हरी दिखने लगी. विकास दर 6.6 फीसदी का मतलब किसी भी दशक का सबसे तेज विकास है. फिर उन्होंने चालू खाते के घाटे और राजकोषीय घाटे को लक्ष्य से नीचे लाने में सफल होने का दावा करने के साथ विदेशी निवेश में कमी न आने की बात की, तो यह सबको विश्वसनीय भी लगने लगी.
अब अर्थव्यवस्था की यह तसवीर विदेशी व्यापार घाटे में कमी और महंगाई की दर में गिरावट से जोड़ी जाये, तो जाहिर तौर पर आगे के लिए गुंजाइश भी दिखने लगेगी. उस हिसाब से उन्होंने कुछ बड़े कदम भी उठाये और अगले चुनाव के लिए दावा भी पेश किया. संभव है कि महंगाई थोड़ी और कम हो और रिजर्व बैंक के लिए ऋण की दरें कम करने का अवसर हो जाये, पर उतने से कांग्रेस और यूपीए की नैया पार हो जायेगी, यह उम्मीद शायद चिदंबरम को भी नहीं होगी. पर इससे मुंह छिपाने वाली स्थिति तो नहीं रहेगी.
और राहुल गांधी के प्रभाव के चलते फौजियों को ‘एक रैंक एक पेंशन’ का भारी फैसला करके उन्होंने वोट-बैंक पोलिटिक्स भी की है. पहले यह कहकर फौजियों की मांग नहीं मानी जाती थी कि इस पर पांच हजार करोड़ का अतिरिक्त खर्च आयेगा. पर चिदंबरम ने जाहिर किया कि यह काम सिर्फ पांच सौ करोड़ रुपये में ही हो जायेगा. यह बात काफी समय से लटकी थी और पिछले दिनों नरेंद्र मोदी द्वारा इसे उठाने के बाद इसका नफा-नुकसान सबको समझ में आ गया था.
पर चिदंबरम अंतरिम बजट की मुख्य बात ऑटो क्षेत्र को दी गयी भारी रियायत ही है. यह उद्योग काफी समय से मंदी की चपेट में था. दुनियाभर की सारी कंपनियां हमारे यहां पहुंच गयी हैं और अब बाजार गिरता जा रहा था. इस बार मोटरसाइकिल. एसयूवी और छोटी कारों के साथ ही कैपिटल गुड्स उद्योग को राहत देकर वित्त मंत्री ने उपभोक्ताओं, उत्पादकों और काम करनेवाले, तीनों ही जमातों को लाभ दिया है.
इसे देखते हुए यह लग रहा है कि वे चाहते तो कुछ और क्षेत्रों को ऐसी मदद कर सकते थे. देशी मोबाइल कंपनियों और रेफ्रिजरेटर बनानेवाली कंपनियों को भी उन्होंने राहत दी है, क्योंकि इनमें भी मंदी छा रही थी. साबुन समेत कुछ और उपयोगी आइटम सस्ते होंगे. पर वित्त मंत्री ने सेवा क्षेत्र को पूरी तरह छोड़ कर कुछ निराश किया.
बहुत लोग मानते हैं कि सर्विस टैक्स की वसूली बढ़ी है, उसके बाद कर की दर बारह की जगह दस फीसदी करने से लाभ होता. अंतरिम बजट होने से आय कर समेत सभी तरह के प्रत्यक्ष करों की दरों में बदलाव संभव नहीं था, पर सरकार सीमा शुल्क को भी पूरी तरह छोड़ दे, यह कुछ हैरान करनेवाली बात है.
अब अगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार निराश हैं, तो उनकी निराशा भी वास्तविक है. आखिर इसी सरकार ने केंद्र राज्य आर्थिक संबंधों की स्थिति जांचने के लिए रघुराम राजन कमेटी गठित की थी और चिदंबरम उसे सही बताते रहे हैं. पिछले बजट में उसका जिक्र था. इस बार रिपोर्ट आने पर भी चुप्पी साधना राजनीति है, पर इससे गरीब राज्यों को निराशा हुई होगी.
लेकिन जिन लोगों को अर्थव्यवस्था की चिंता है, उन्हें जीएसटी और डीटीसी अर्थात गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स और डाइरेक्ट टैक्स कोड के बारे में वित्त मंत्री के मुंह से कुछ भी न सुनने से निराशा हुई. ये दोनों प्रस्ताव कब से अटके पड़े हैं और कायदे से इन्हें कब का पास हो जाना चाहिए था. देश के सभी राज्यों में सामान और सेवाएं एक ही दर पर उपलब्ध हों और कर की चोरी स्वत: रुके, इसे ध्यान में रखकर लाया जा रहा जीएसटी लटका पड़ा है.
भाजपा शासित कई राज्य इसका विरोध कर रहे हैं. इसी तरह प्रत्यक्ष करों की व्यवस्था को सरल और व्यापक बनाने की मंशा से लाया जानेवाला बिल भी सात साल से अटका पड़ा है. कई लोगों को लगता है कि अगर सरकार को छात्रों के कर्ज पर सूद माफ करने की चिंता थी, तो जमाने से चल रहे होम लोन पर कर में मिलनेवाली छूट को क्यों नहीं बढ़ाया गया है.
होने को तो और भी कई चीजों की सख्त जरूरत है, पर सरकार ने जो कुछ किया है उसी से उसकी प्राथमिकताओं और रुझानों को समझना चाहिए.
इसलिए चिदंबरम क्या कर सकते थे, या उन्हें क्या करना चाहिए था, पर बात केंद्रित न करके यही देखना ज्यादा अच्छा होगा कि वे क्या और क्यों कर गए. चिदंबरम की अर्थनीति में अगर यूपीए के लिए राजनीति के सूत्र भी छिपे थे, तो खुद उनके दावे को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. हम जानते हैं कि उन्होंने बड़ी तैयारी से गृह मंत्रालय लिया था, पर जैसे ही प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बने, वे उछल कर वित्त मंत्रालय में आ गये थे.
यहां आकर और प्रणब मुखर्जी के प्रत्यक्ष दखल से मुक्ति हो जाने के बाद उन्होंने उदारीकरण के दूसरे दौर के अनेक बड़े फैसले लिये. अब उन्हीं के समय सोनिया गांधी जैसे नेताओं के दबाव के चलते खाद्य सुरक्षा कानून बनाने जैसा काम भी हुआ और महंगाई ने सरकार समेत सभी के नाक में दम कर दिया.
अब आम बजट से या रेल बजट से सरकार को कुछ लाभ होगा या नहीं, अगले आम चुनाव में यूपीए के भविष्य पर इसका क्या असर होगा, यह सबकी चिंता का विषय है और आगे भी दिलचस्पी रहेगी. पर जिस तेजी से यूपीए की साख गिर रही है, उसमें भले ही थोड़ी कमी आये, पर सत्ता में उसका वापस आना बहुत मुश्किल लग रहा है. यह काम तो कोई नियमित बजट और बहुत बड़ी-बड़ी घोषणाएं भी नहीं कर सकती हैं. और अगर सरकार और वित्त मंत्री के हाथ की बात होती, तो चुनाव हराने वाला ऐसा काम ही क्यों होता. लेकिन जिन कारणों से हमारी बदहाली हुई है, उनकी तरफ वित्त मंत्री भी पूरा ध्यान देते दिखाई नहीं दे रहे हैं.
अर्थनीति के परिणामों के साथ नीतियों में जरूरी बदलाव करके ही हम इससे मुक्त हो सकते हैं. अभी भी हम बचे हैं तो सोशल सेक्टर के विकास के चलते ही. अब अगर उस पर भी हम बढ़ावे के कदम न उठायें, तो आप बाकी जो कुछ भी कर लीजिए, इससे अच्छा बजट पेश करनेवाला नहीं मिलेगा.
संतुलित है अंतरिम बजट
।। प्रभाकर साहू ।।
एसोसिएट प्रोफेसर, इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोनॉमिक डेवलपमेंट
यह अंतरिम बजट है. इस बजट में सरकार की जो योजनाएं पहले से चल रही हैं, उसे जारी रखने पर ध्यान दिया गया है. अंतरिम बजट से न ही आम जनता को ज्यादा अपेक्षा होती है और न ही सरकार पर ज्यादा देने का दबाव. सरकार ने अपने जरूरी खर्चे के लिए इस बजट में प्रावधान रखा है.
कुछ चीजों पर रियायत दी गयी है, जिसका फायदा निश्चित रूप से आम आदमी को मिलेगा. लेकिन देखने वाली बात यह है कि सरकार के पास रिसोर्सेज का अभाव है. ग्रोथ रेट कम है. इसलिए ऐसी स्थिति में सरकार से ज्यादा कुछ उम्मीद भी करना अच्छा नहीं है. ऐसी परिस्थिति में वित्त मंत्री ने लोक लुभावन वादा न कर जरूरत के हिसाब से इस बजट को पेश किया है.
उत्पाद शुल्क कम किया गया है. इससे टीवी, फ्रीज, वाहन सहित आम आदमी के जरूरत के सामान सस्ते होंगे. ऑटोमोबाइल उद्योग को थोड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि यह उद्योग पिछड़ता जा रहा था.
रक्षा बजट में 10 फीसदी का इजाफा किया गया है. यह देखने में ज्यादा लग सकता है, लेकिन सरकार द्वारा ‘एक रैंक और एक पेंशन’ पॉलिसी की मंजूरी देने से इस इजाफा का ज्यादा खर्च इसी योजना में हो जायेगा.
वैसे भी पहले जहां 100 रुपया खर्च होता था उसके लिए 110 रुपये का प्रावधान किया गया है. लेकिन इसमें पेंशन पर होनेवाली राशि को मिला दिया जाए, तो कुछ ज्यादा नहीं है. इस अंतरिम बजट में सरकार की ओर से भी ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश नहीं थी. जब तीन-चार महीने के बाद पूरा बजट आयेगा, तब नयी सरकार नये तरह के फैसले लेगी या कोई नयी पॉलिसी की घोषणा कर सकती है. सरकार ने बैंकों की 10 हजार नयी शाखाएं खोलने की भी घोषणा की है. लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह लागू होता है या नहीं.
यह एक चुनौती है, क्योंकि प्राइवेट बैंक पर तो सरकार का जोर है नहीं. इसमें सरकारी बैंक ही आयेंगे. और सभी सरकारी बैंक स्टॉक एक्सचेंज से जुड़े हुए हैं. बैंक वहीं पर अपना शाखा खोलना चाहती है, जहां ट्रांजेक्शन ज्यादा हो तथा मुनाफा मिले. आज भी गांवों में पांच से दस किमी की दूरी पर बैंक हैं. देखना होगा कि सरकार बैंकों को उन जगहों पर ले जाने में कितना सफल हो पाती है. ऐसा संभव होता है, तो आम जनता को इससे फायदा पहुंच सकता है.
सरकार पहले ही भारी भरकम कई योजनाएं लागू कर चुकी है. मनरेगा, खाद्य सुरक्षा कानून, शिक्षा का अधिकार जैसी कई योजनाएं हैं, जिन्हें सिर्फ सफलतापूर्वक जारी रखा गया, तो सरकार की उपलब्धि कही जायेगी. क्योंकि आज ग्रोथ रेट डाउन है. रिसोर्सेज नहीं हैं. ऐसी स्थिति में पुरानी योजनाओं को जारी रखना सरकार की उपलब्धि के रूप में गिना जायेगा. निश्चित रूप से इस अंतरिम बजट को सरकार ने जरूरत के हिसाब से पेश किया है.
क्योंकि इस अंतरिम बजट से न ही किसी को ज्यादा अपेक्षा थी और न ही सरकार को ज्यादा देने की जरूरत थी. अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में किसी तरह के बड़े फैसले का अधिकार नयी सरकार पर छोड़कर पुरानी योजनाओं को जारी रखने का प्रयास वित्त मंत्री ने किया है, जिसे सही दिशा में उठाया गया कदम कहा जा सकता है.
मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का मजबूत होना जरूरी
।। क्रिस गोपालकृष्णन ।।
प्रेसिडेंट, सीआइआइ
वित्त मंत्री द्वारा पेश किये गये अंतरिम बजट की दृष्टि सीआइआइ की सोच से मेल खाती है. पी चिदंबरम ने मैन्युफैरिंग क्षेत्र की अहमियत को तवज्जो दी है, जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जरूरी है. पिछले एक साल से मैन्युफैरिंग क्षेत्र का प्रदर्शन लगातार काफी खराब रहा है और सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत थी. इसे ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने प्रभावित क्षेत्रों में एक्साइज डयूटी कम करने का अच्छा फैसला लिया है.
ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर कर कम करने से एक बार फिर इन क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद है.
चूंकि वित्त मंत्री ने इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र के लिए एक नयी नीति बनाने की बात कही है, तो हमें उम्मीद है कि बजट में एसएडी को खत्म करने और सीएसटी की दरों को कम करने जैसे फैसले लिये जायेंगे. यह महत्वपूर्ण होगा क्योंकि आइएटीआइ के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में कोई कर नहीं होना चाहिए. मोबाइल हैंडसेट पर सेनवेट हटाने से भारत में इसके निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आयेगी. अंतरिम बजट में पेश वित्तीय आंकड़े भी उत्साहवर्धक हैं.
सरकार को राजस्व घाटा 4.6 फीसदी के स्तर पर लाना एक बड़ी उपलब्धि है. अगले वित्तीय वर्ष में सरकार ने राजस्व घाटा 4.1 फीसदी हासिल करने का लक्ष्य रखा है और अगर ऐसा होता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति निवेशकों का भरोसा हासिल करने में आसानी होगी.
अंतरिम बजट में सरकार का खर्च अभी भी काफी है, इसके बावजूद वित्त मंत्री ने कई अहम आवंटन किया है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पूंजीगत आधार को मजबूती देने के लिए 11,300 करोड़ का आवंटन सराहनीय कदम है. वित्त मंत्री द्वारा पेश 10 सूत्री विजन दस्तावेज में राजस्व घाटा और चालू बचत घाटा कम करने के लिए नियंत्रित मौद्रिक नीति अपनाने, इंफ्रास्ट्रर योजनाओं के क्रियान्वयन और शहरों के विकास पर जोर देने की बात कही गयी है. हमें उम्मीद है कि नयी सरकार उद्योग को मजबूत करने के लिए मदद देने के साथ ही जीएसटी के क्रियान्वयन को तरजीह देगी.