12.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

‘दहेज’ के नाम पर हमें कुछ भी नहीं होना चाहिए स्वीकार्य

एक तरफ हम समय की नजाकत समझते हुए दहेज का विरोध कर रहे हैं, मगर दूसरी तरफ अपना लालच पूरी तरह से छोड़ नहीं पाये हैं. जब दहेज नहीं लेना, तो नहीं लेना. इसके समर्थन में आज के युवकों-युवतियों को आगे आना होगा. उन्हें आगे बढ़ कर अपने माता-पिता को बोलना होगा कि जहां दहेज […]

एक तरफ हम समय की नजाकत समझते हुए दहेज का विरोध कर रहे हैं, मगर दूसरी तरफ अपना लालच पूरी तरह से छोड़ नहीं पाये हैं. जब दहेज नहीं लेना, तो नहीं लेना. इसके समर्थन में आज के युवकों-युवतियों को आगे आना होगा. उन्हें आगे बढ़ कर अपने माता-पिता को बोलना होगा कि जहां दहेज लेने-देने की बात होगी, वहां वे विवाह नहीं करेंगे.

पहले भी कुछेक अभिभावकों के ई-मेल आये थे, जिन्होंने लिखा था कि मैं दहेज के खिलाफ लिख कर भी लोगों को जागरूक करूं. अभी कोलकाता और पटना से भी युवकों ने फिर इस विषय में याद दिलाया कि मुझे इस मुद्दे पर लिखना चाहिए क्योंकि आज भी यह समस्या बनी हुई है.

आज भी दहेज की वजह से न केवल जानें जाती हैं, वरन् रिश्ते भी टूट रहे हैं. लेन-देन व्यवसाय बन गया है. इसलिए मुझे इस मुद्दे पर लिखना चाहिए. कई वर्षों पूर्व जब मैं इंदौर में थी तो कुछ मित्रों के साथ इस विषय पर काफी तफसील से बात हुई थी. हालांकि, इस विषय पर अक्सर ही विचार होता रहा है. चूंकि उसमें से एक मित्र किसी संस्था के साथ जुड़ कर समाज सेवा के कार्य में लगे थे, तो इस विषय पर विस्तार से बात हुई. बातचीत काफी लम्बी चली.

उन लोगों ने इस बात पर एकमत से सहमति जतायी कि पहली बात यह कि हमें दुल्हन को ही दहेज समझना चाहिए. दूसरी बात यह कि अगर ‘माता-पिता खुशी से कुछ देते हैं तो उसमें कुछ हर्ज नहीं.’ ‘आखिर वे अपनी बेटी को ही तो दे रहे हैं’. ‘अपनी बेटी की खुशी चाहना तो गलत नहीं होना चाहिए.’ ‘अगर माता-पिता खुशी से दे रहे हैं तो इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए.’ उन लोगों का यही मानना था कि मरजी से देनेवाला सामान दहेज नहीं होता.

मित्रो, कोई भी चीज या तो होती है या नहीं होती है. धुंधली रचना का कोई महत्व नहीं. जब तक बातें और विचार हमारे दिमाग में स्पष्ट नहीं होंगे तब तक हम उन पर कोई निर्णय नहीं ले सकते. जब दहेज के विरोध में हम बात करते हैं, तो ‘दहेज’ शब्द का प्रयोग ही क्यों करना?

पहली बात जो कही गयी कि दुल्हन ही दहेज है. इसका क्या मतलब है? इसका सीधा-सा तात्पर्य है कि दहेज तो हम लेंगे, लेकिन फर्क इतना होगा कि दहेज में सामान न लेकर दुल्हन को ही दहेज समझेंगे. क्या वह सामान है? टीवी, सोफा या गाड़ी है? जो आप दहेज के विरोध में सामान तो नहीं लेंगे, लेकिन रस्म अदायगी में दुल्हन को ही दहेज समझेंगे.

यह विचार एकदम गलत है. जब हम दहेज के विरोध में स्वर मुखर करते हैं, तो हमें इस ‘शब्द’ के नाम पर कुछ भी स्वीकार नहीं होना चाहिए. हां, यह हो सकता है कि जहां रस्म अदायगी के लिए मुद्रा यानी रुपयों का प्रचलन है, वहां एक रुपये से परंपरा का निर्वाह किया जा सकता है. परंपराएं निभानी चाहिए, लेकिन जिन परंपराओं से समाज गर्त में जा रहा हो, उन्हें हमें आगे बढ़ कर रोकना होगा. आखिर ये परंपराएं किसने बनायी ? हमने ही तो बनायी हैं.

जब यह परंपरा बनी होगी, तो निश्चित रूप से इसके पीछे सोच यही होगी कि जो चीजें बेटी की पसंद की हैं, उन्हें दे दिया जाये जिससे उसे कमी न खले, क्योंकि नयी जगह उसकी पसंद कौन जानेगा? कालांतर में इसने लोगों को लोभी बना दिया. लोग मांग करने लगे. अब यहां तक नौबत है कि लोग खुलेआम कहते हैं कि फलां जगह से रिश्ते के लिए आये लोग कह रहे थे कि 15 लाख खर्च करेंगे. आप उससे आगे बढ़िये, तो आपकी बेटी के लिए ‘हां’ कर देंगे. आप तो जानते ही हैं कि हमारा बेटा कितना कमाता है.

आपकी बेटी राज करेगी. यानी, महत्व उस बेटी का नहीं, जिसका विवाह हो रहा है, महत्व है उसके पिता द्वारा दिये जा रहे रुपयों का. पिता बेचारा बेटी के सुख-चैन के लिए किसी तरह प्रापर्टी वगैरह गिरवी रखकर, उधार लेकर विवाह करता है मगर कहते हैं न एक बार शेर के मुंह आदमी का खून लग जाये तो वह आदमखोर हो जाता है.

उसी तरह लालची-लोभी व्यक्ति उसके बाद रोज एक के बाद एक नयी फरमाइश रखते हैं और पिता उसे पूरी करता है. जब नहीं कर पाता तो या तो लड़की यातना सहती है या उसे दहेज की बलिवेदी पर कुरबान कर दिया जाता है और जीवन भर का दुख मां-पिता को होता है. उसके बाद आप लाख मुकदमा करें, मगर बेटी वापस नहीं आती. मुकदमें में भी वर्षों लग जाते हैं. दूसरी तरफ लड़केवाले फिर किसी नये शिकार की तलाश में लग जाते हैं.

दूसरी बात कि यह कौन-सी दलील है कि जो आप अपनी मरजी से जो भी देंगे, वह स्वीकार हैं या घुमा-फिरा कर कहना आप अपनी बेटी की पसंद जानते ही होंगे या आप जो भी देंगे वो आपकी बेटी ही इस्तेमाल करेगी. ये सारी बातें न –न करते हुए भी दहेज के प्रति लोभ को दरसाती हैं.

एक तरफ हम समय की नजाकत समझते हुए दहेज का विरोध कर रहे हैं, मगर दूसरी तरफ अपनी लालच पूरी तरह से छोड़ नहीं पाये हैं. जब दहेज नहीं लेना तो नहीं लेना. इसके समर्थन में आज के युवकों- युवतियों को आगे आना होगा. उन्हें आगे बढ़ कर अपने माता-पिता को मना करना होगा.

लड़कों को बोलना होगा कि जहां दहेज लेने-देने की बात होगी, वहां वे विवाह नहीं करेंगे. लड़कियों को कहना होगा कि हमें जो चाहिए होगा, वह हम मेहनत करके हासिल करेंगे. यकीन मानिए, आप सब युवाओं को खुद की मेहनत से कमा कर लाये हुए सामान से दिल से लगाव होगा.

जब आप अपनी कमाई से गृहस्थी को वस्तुएं जोड़ेंगे, तो आप उनसे दिल से जुड़ जायेंगे. आप सबने अपने घर में अपने पापा-मम्मी को कहते सुना होगा कि ‘बहुत मुश्किल से गृहस्थी जमाई है. एक-एक चीज पैसा बचाकर, पेट काट कर, अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर इकट्ठा की है’ या ‘यह हमारी पहली कमाई की है.’ इसीलिए वे पुरानी चीजों का मोह नहीं त्याग पाते.

क्रमश:

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें