मित्रों,
सब को न्याय और समय पर न्याय के सिद्धांत के तहत भारत की न्याय व्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया लगातार चल रही है. स्वतंत्रता के बाद भी देश का एक बड़ा वर्ग इसलिए न्याय पाने से वंचित रह गया कि या तो उसमें खर्चीली न्याय प्रणाली के आगे टिकने की ताकत नहीं थी यानी उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह मुकदमा लड़ सकें या फिर इसलिए कि उसका विपक्षी ताकतवर था. यह हमारे संविधान की भावनाओं और सभी प्रावधानों को झुठलाने वाली स्थिति थी. इस स्थिति को समाज, न्यायालय, संसद और सरकार सबने स्वीकार किया और ऐसे रास्ते निकालने का प्रयास शुरू हुआ, जो सब को न्याय सुलभ करा सके. इसके तहत कई तरह की पहल शुरू हुई और कई सुधार किये गये. इन्हें दो वर्गो में हम रख सकते हैं. एक कि लोगों को उनके कानूनी अधिकारों और उनकी बारीकियों का जानकारी देने की व्यवस्था की गयी. इसके लिए कानून बनाया गया और शहर से लेकर गांव-देहात में समाज के सभी वर्गो के बीच विधिक जागरूकता का अभियान चलाना शुरू किया गया. यह सिलसिला अब भी जारी है. दूसरा कि अदालत में मुकदमा आने पर कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय पाने में विधिक सहायता देना. अदालतों पर मुकदमों के बोझ को कम करने तथा लोगों को कम-से-कम समय में सुविधाजनक ढंग से न्याय दिलाने की व्यवस्था भी इसके तहत हुई. फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर गंभीर प्रकृति के मुकदमों के शीघ्र निष्पादन की व्यवस्था को भी इससे जोड़ा गया. इन सब न्यायिक सुधार का लाभ उन नागरिकों के लिए, जो न्याय व्यवस्था से किसी-न-किसी रूप में अपने हित और अधिकार की हिफाजत चाहते हैं. चाहे उनके खिलाफ कोई अपराध हुआ हो या फिर आपराधिक सोच के तहत उन्हें किसी मुकदमे में फंसाया गया है. न्यायिक सुधार की इस मुहिम का एक बड़ा हिस्सा है विधिक सहायता है. यह वैसे लोगों के लिए है, जो सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर हैं और इस वजह से मुकदमा नहीं लड़ सकते. इसके लिए कानून है और हर साल लाखों लोग इस सहायता का भल ले सकते हैं. यह सहायता उच्च न्यायालय से लेकर अनुमंडल स्तर तक के न्यायालयों में चल रहे मुकदमों में दी जाती है. क्या है विधिक सहायता और इसे कैसे प्राप्त किया जाता है? इस अंक में इसकी चर्चा कर रहे हैं. साथ ही स्थायी लोक अदालत के उस पक्ष की भी चर्चा कर रहे हैं, जो मुकदमों के आर्थिक बोझ को कम करता है. हम यह भी बता रहे हैं कि विधिक सहायता सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आती है और इस मामले में लिये गये निर्णयों की जानकारी प्राप्त करने का जनता को पूरा-पूरा अधिकार है.
आरके नीरद
विधिक सहायता ऐसी न्यायिक व्यवस्था है, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर व्यक्ति को मुकदमा लड़ने और मुकदमे की पैरवी करने के लिए मदद देती है. इसका मकसद यह है कि कोई व्यक्ति केवल इसलिए न्याय पाने या अपने संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को न्यायिक प्रक्रिया के तहत हासिल करने से वंचित न रहे कि उसके पास मुकदमा लड़ने के पैसे नहीं हैं. सन 1976 में संविधान का 42वां संशोधन हुआ. इस संशोधन में इसे सुनिश्चित करने की पहल की गयी. इसके द्वारा संविधान में 39वां अनुच्छेद जोड़ा गया और सरकार को यह तय करने कहा गया कि कोई नागरिक आर्थिक या किसी अन्य कमजोरी के कारण न्याय पाने से वंचित न रहे. इसी आधार पर 1980 में पूरे देश में कानूनी सहायता बोर्ड की गठन किया गया तथा 1987 में केंद्र सरकार ने विधिक सेवा प्राधिकार कानून बनाया. इस कानून ने विधिक सहायता और लोक अदालत की व्यवस्था करने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया. हालांकि इस कानून को नवंबर 1995 में लागू किया गया. अविभाजित बिहार में 1997 में राज्य व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन हुआ.
विधिक सहायता किसे मिलता
इसके लिए राज्य विधिक सेवा प्राधिकार विनियम 1998 में प्रावधान है. इसके तहत इन व्यक्ति को विधिक सहायता मिलती है :
व्यक्ति को राज्य का मूल निवासी होना चाहिए तथा वह किसी अदालत में चल रहे मुकदमे का पक्षकार हो.
उस व्यक्ति की सालाना आय 25,000 रुपये से अधिक नहीं हो.
वह व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य हो.
वह मानव र्दुव्यवहार से पीड़ित हो अथवा संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार भिखारी हो.
18 वर्ष से कम आयु की बच्ची और 16 वर्ष से कम आयु का बच्चा इसका लाभ हासिल कर सकता है.
प्राकृतिक आपदा, सजातीय हिंसा या औद्योगिक दुर्घटना से पीड़ित को भी इसका लाभ मिलता है.
औद्योगिक कर्मकार भी इसका लाभ प्राप्त कर सकते है.
विधिक सहायक का स्वरूप
विधिक सहायता किस रूप में मिलेगी, यह तय है. इसके अनुरूप ही कोई व्यक्ति विधिक सहायता हासिल कर सकता है. ये हैं :
अदालती कार्रवाई में होने वाले सभी तरह के खर्च.
अदालत में पैरवी के लिए वकील की सेवा.
अदालती कार्रवाई में सभी तरह के आदेश और दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने की सुविधा.
अदालती कार्रवाई के लिए दस्तावेज तैयार करने के लिए फोटो स्टेट, अनुवाद और टाइपिंग का खर्च.
इसके अलावा ऐसा कोई खर्च, जिसे विधिक सेवा प्राधिकार उचित समङो.
कैसे प्राप्त की जाती है विधिक सहायता
विधिक सहायता प्राप्त करने के लिए इसकी शर्तो (जिनकी चर्चा ऊपर की गयी है) को पूरा करने वाला व्यक्ति लिखित रूप में आवेदन देगा. अगर मामला हाई कोर्ट से जुड़ा है, तो उच्च न्यायालय की विधिक सेवा समिति के सचिव को आवेदन देना है. मामला अगर जिले के न्यायालय से जुड़ा है, तो आवेदन जिला विधिक सेवा समिति के सचिव को और अनुमंडल से जुड़ा है, तो अनुमंडल विधिक सेवा समिति के सचिव को दिया जाता है. अगर व्यक्ति निरक्षर है या पूरा विवरण खुद से तैयार करने में अक्षम है, तो ऐसे व्यक्ति को समिति मदद करती है. उसे आवेदन तैयार करने में या तो सचिव स्वयं मदद करेगा या किसी अन्य पदाधिकारी की सहायता उपलब्ध करायेगा. समितियों के पास ऐसे वकीलों की सूची होती है, जो विधिक सहायता देने के लिए चुने जाते हैं. समिति वैसी वकील से भी मदद दिला सकती है. यह काम समिति का सचिव करता है. आवेदन तैयार करने के बाद पढ़ कर सुनाया जाता है. जब आवेदन करने वाला व्यक्ति आवेदन में कही गयी बातों से सहमत हो जाता है, तब उससे उस पर अंगूठे का निशान लगाने को कहा जाता है. व्यक्ति अगर हस्ताक्षर कर सकता है, तो उसका हस्ताक्षर लिया जाता है.
आवेदन-पत्र के साथ शपथ-पत्र भी देना होता है. इसका प्रारूप समिति के पास है.
आवेदन-पत्र का प्ररूप
(देखें विनिमय संख्या 20)
अनुसूची -‘ क ’
विधिक सहायता के लिए आवेदन-पत्र
1. आवेदक का नाम –
2. आवेदक के पिता/पति का नाम –
3. क्या आवेदक अनुसूचित जाति/अनुसूचित
जनजाति का है? यदि हां, तो उपजाति का लिखें-
4. आवेदक का पेशा –
5. आवेदक का पता –
6. आवेदक की वार्षिक आय –
7. उस न्यायालय/अधिकरण का नाम, जिसमें मामला चल
रहा है-
8. प्रतिवादी का नाम और पता –
9. विवाद की विषय – वस्तु –
10. उस अधिवक्ता का नाम, जिसकी सेवा आवेदक लेना
चाहेगा-
11. इसी विषय-वस्तु से संबंधित कोई कार्रवाई किसी
न्यायालय/अधिकरण में दायर की गयी थी,
यदि ऐसा हो तो उसका परिणाम –
12. किसी पूर्व अवसर पर किसी विधिक सहायता के लिए आवेदन दिया गया, प्राप्त हुआ या इनकार किया गया था, यदि हां, तो कार्यवाही और उसमें प्राप्त विधिक सहायता की विशिष्टियां-
स्थान –
तारीख – आवेदक का हस्ताक्षर
इन मामलों में विधिक सहायता नहीं
मुकदमों की प्रकृति को विधिक सहायता का आधार बनाया गया है. इसके तहत वैसे मुकदमों की भी सूची तय है, जिनमें किसी पक्षकार को विधिक सहायता नहीं दी जाती है. ये हैं :
मानहानि.
दुर्भावना से लाया गया मुकदमा.
ऐसे मुकदमे, जिनमें न्यायालय की अवमानना का आरोप हो.
किसी भी तरह के चुनाव की कार्रवाई से जुड़ा मुकदमा.
ऐसा अपराध, जिसमें केवल 1000 रुपये तक के जुर्माने की सजा तय हो.
ऐसा अपराध, जो आर्थिक मामलों (यानी घोटाला आदि) से या समाज कल्याण से जुड़े कानून के खिलाफ हो या फिर ऐसा अपराध, जो अनैतिक कर्म से जुड़ा हो.
ऐसा मामला, जिसमें कोई व्यक्ति केवल इसलिए अभियुक्त हो कि वह संबंधित पद पर आसीन था और औपचारिक रूप से उसका नाम मुकदमे में आया है.