जिनका हाथ उज्जवल चंद्रहास (तलवार) से सुशोभित होता है तथा सिंहप्रवर जिनका वाहन है, वे दानव संहारिणी दुर्गा देवी कात्यायनी मंगल प्रदान करें.
सम्पूर्ण जगत देवीमय है-6
नवरात्र के षष्ठी तिथि को भगवती दुर्गा के स्वरूप कात्यायनी देवी की पूजा की जाती है. नैवेद्य में शक्कर, गुड़ और शहद अर्पण करें. इससे सुंदर रूप-काया और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है. वे ही आद्याशक्ति इस अखिल ब्रह्मांड को उत्पन्न करती हैं,
पालन करती हैं और इच्छा होने पर इस चराचर जगत का संहार भी कर लेने में संलग्न रहती हैं. सभी देवता अपने कार्य में तब सफल होते हैं, जब आद्याशक्ति उन्हें सहयोग पहुंचाती है. बहुत से विद्वान इसे भगवान् की ह्लादिनी शक्ति मानते हैं. महेश्वरी, जगदीश्वरी, परमेश्वरी भी इन्हीं को कहते हैं. लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, राधा, सीता आदि सभी इस शक्ति के ही रूप हैं.
माया, महामाया, मूल प्रकृति, विद्या, अविद्या आदि भी इसी के रूप हैं.
परमेश्वर शक्तिमान है और भगवती परमेश्वरी उसकी शक्ति हैं. शक्तिमान से शक्ति अलग होने पर भी अलग नहीं समझी जाती. जैसे अग्निकी दाहिका शक्ति अग्नि से भिन्न नहीं है. यह सारा संसार शक्ति और शक्तिमान से परिपूर्ण है और उसी से इसकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होते हैं.
इस आद्याशक्ति की उपासना लोग नाना प्रकार से करते हैं. कोई तो इस महेश्वरी को ईश्वर से भिन्न समझते हैं और कोई अभिन्न मानते हैं. श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहासादि शास्त्रों में इस गुणमयी विद्या-अविद्या रूपा मायाशक्ति को प्रकृति, मूल-प्रकृति, महामाया, योगमाया आदि अनेक नामों से कहा है.
उस मायाशक्ति की व्यक्त और अव्यक्त अर्थात साम्यावस्था तथा विकृतावस्था-दो अवस्थाएं हैं. उसे कार्य, कारण एवं व्याकृत, अव्याकृत भी कहते हैं. 23 तत्वों के विस्तारवाला यह सारा संसार तो उसका व्यक्त स्वरूप है, जिससे सारा संसार उत्पन्न होता है और जिसमें यह लीन हो जाता है. (क्रमशः)
प्रस्तुतिः डॉ एन के बेरा