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गोवा और कराची का वह रिश्ता, जाने कहां खो गया

अंबर शमसी बीबीसी उर्दू संवाददाता, कराची एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची की आबादी दो करोड़ से अधिक है. इस बड़े और घनी आबादी वाले शहर के अतीत का एक ख़ास हिस्सा तेज़ी से खोता जा रहा है. एक ज़माना था जब संगीत कराची की शान हुआ करता था. साल 1950 […]

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एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची की आबादी दो करोड़ से अधिक है. इस बड़े और घनी आबादी वाले शहर के अतीत का एक ख़ास हिस्सा तेज़ी से खोता जा रहा है.

एक ज़माना था जब संगीत कराची की शान हुआ करता था. साल 1950 से 1980 के दशक तक कराची में दर्जनों पॉप और जैज़ बैंड, क्लबों और होटलों में संगीत बजाया करते थे. वहां हर शाम विदेशी, पुरुषों, महिलाओं, राजनेता और व्यवसायी मनोरंजन के लिए आते थे.

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उनके बैंड में अलग-अलग धर्मों के पुरुष और महिलाएं शामिल थे, लेकिन लोगों की धड़कन में वो संगीतकार बसते थे जो भारत के गोवा राज्य से जुड़े ईसाई थे. डिसूजा, रॉड्रिगेज़, फर्नांडीज परिवारों से का यह समुदाय 19वीं सदी में गोवा से कराची आकर बसा था.

सेंट लॉरेंस, सेंट पीटर्स और फ़ातिमा चर्च कराची के कुछ ऐसे चर्च हैं, जहां से ये संगीतकार उभरे और उनके संगीत ने कराची की रातों को रोशन कर दिया. फिर जैसे-जैसे कराची और पाकिस्तान के सुर ताल बदले, मानों इन संगीतकारों को जैसे ख़ामोश कर दिया गया. इसलिए दर्जनों संगीतकारों ने 1960 के दशक से ही बेहतर मौकों की तलाश में पश्चिम का रुख़ कर लिया.

देश छोड़ने की यह सिलसिला उस समय शुरू हुआ, जब पाकिस्तान में कट्टरपंथी नीतियां लागू कर दी गईं.

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1977 में पाकिस्तान में शराब पर पाबंदी लगी, तो नाइट क्लब और इससे जुड़ा संगीत और डांस भी गुम होता चला गया. कराची कुछ यूं बदला जैसे वह बैंड, वह संगीत, यहाँ तक कि वह शहर जैसे कभी था ही नहीं. बस कुछ तस्वीरें और गिनी चुनी रिकॉर्डिंग्स के अलावा कराची का यह अतीत मिटता जा रहा है.

माइकल वर्गीस रॉड्रिगेज़ कराची को छोड़कर अमरीका के कैलिफोर्निया के सेन होज़े में एक छोटे से फ्लैट में अकेले रहते हैं. माइकल ने अपनी संगीत यात्रा कराची के फातिमा चर्च से शुरू की थी. वो बताते हैं, "हम वहां चर्च परिसर में खेलते थे. एक पादरी फादर विंसेंट स्मिथ ने हम आवारा लड़कों को संगीत सिखाया."

चर्च के बैंड में ख़ास मौको पर पियानो बजाने पर उन्हें 50 पैसे मिल जाया करते थे, जिसे वह चर्च के बाहर बाकरानी और लूसी पर खर्च करते थे. माइकल 17 साल के थे जब चर्च के बाद वो महिलाओं के एक नए बैंड में शामिल हो गए. कराची में रहने के दौरान वो सात अलग बैंडों का हिस्सा रहे और शोहरत के साथ ही पैसे भी कमाए.

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माइकल के मुताबिक उन्हें ‘सुंदर साथ’ भी मिला और वो इसमें ऐसे खो गए कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी छोड़ दी.

1978 में राजनीति और कराची के हालात बदले तो माइकल अमेरिका चले गए. वहां वो पित्ज़ा की दुकान से यात्रा शुरू कर करोड़ों के घर के मालिक बने, लेकिन किस्मत ने फिर उनका साथ छोड़ दिया. फिर भी माइकल ने संगीत का साथ नहीं छोड़ा है और वो अब भी सेन होज़े के एक स्थानीय चर्च के बैंड में हैं.

वो कहते हैं, "जब मैं चर्च से दूर हुआ तो मेरा जीवन ग़लत रास्ते पर चला गया, अब मैं इसे सुधारने की कोशिश कर रहा हूं".

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रोलैंड डिसूज़ा भी कराची के इसी मुहल्ले में रहते हैं, जो उनके दादा को हिस्से में मिला था. यह कराची के गार्डन ईस्ट का इलाक़ा है जिसे किसी समय संसीनीटस टाउन कहा जाता था.

1930 के दशक में यहां सौ से ज़्यादा गायक ईसाई परिवार थे, जो खुले, हवादार बंगलों में रहते थे. अब इन बंगलों में से तीन ही रह गए हैं और बाक़ी की जगह विशालकाय इमारतों और फ्लैट ने ले ली है. रोलैंड अब व्यापार के साथ साथ शहर की समस्याओं पर काम करते हैं, लेकिन 13 से 16 साल की उम्र के दौरान वो एक चर्च के बैंड में गिटार बजाया करते थे.

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वो बताते हैं, "मेरी मां ने जोर देकर कहा कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूं. मैं उस समय नाराज़ हुआ था लेकिन अब मैं समझता हूँ कि उन्होंने सही सलाह दी थी."

रोलैंड के लड़कपन में उनके संगीत से बना रिश्ता, दशकों बाद अब भी बरकरार है. वो अपने घर पर होने वाली दावतों और सेंट लॉरेंस चर्च में गिटार बजाते हैं.

हालांकि उनका कहना है, "कराची में माहौल बहुत बदल चुका है. बैंड अभी भी है, लेकिन बहुत कम. पहले कॉन्सर्ट, ओपेरा और कई कार्यक्रम हुआ करते थे. फिर हमारे समुदाय के सबसे प्रतिभाशाली लोग देश छोड़ कर चले गए".

लुई जे पिंटो उर्फ़ गम्बी एक ड्रमर हैं और फिलहाल पाकिस्तान के मशहूर गायक राहत फतेह अली ख़ान के साथ रिकॉर्डिंग कर रहे हैं. गम्बी ने 20 साल से देश के कई मशहूर पॉप बैंड और गायकों के साथ काम किया है. कराची के पॉश इलाक़े डिफेंस में लुई जे पिंटो का घर भी है और स्टूडियो भी.

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उनका कहना है कि वो ज्यादातर वक़्त अपने स्टूडियो में ही पाए जाते हैं. रोलांड और माइकल की तरह गम्बी का भी संगीत से लगाव चर्च सेवा से ही शुरू हुआ. 11 साल की उम्र में ही उन्हें सियालकोट से मंगवाई गई ड्रम किट भेंट की गई थी.

पिछले ईसाई बैंड को याद करते हुए लुई पिंटो का कहना है, "मुझे वह समां याद है जब नृत्य और संगीत हुआ करते थे, देखकर खुश होती थी. जब यह सब ख़त्म हुआ तो मैं सोचा करता था कि ऐसा क्यों हुआ"?

हालांकि उनके मुताबिक पाकिस्तान में संगीत कभी रुका नहीं, बल्कि बदल गयालेकिन हमारे समुदाय के लोग निराश होकर देश से बाहर चले गए.

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