कपड़ा उद्योग में अपने तीन दशक के करियर में स्वपन दासगुप्ता ने मज़दूरों की हड़ताल देखी, बिजली की कटौती झेली; और बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के दौर भी व्यापार के सहेजने में कामयाब रहे.
लेकिन पिछले दो माह में हुए दो बड़े चरमपंथी हमलों ने उनका भरोसा डगमगा दिया है.
स्वपन सुबह-शाम ख़बरों पर निगाह रखते हैं, ज़ेहन में 28 अरब डॉलर गारमेंट-टेक्सटाइल सेक्टर के भविष्य की चिंता है.
डेढ़ करोड़ डॉलर सालाना का बिज़नेस करने वाले स्वपन को दो फैक्ट्रियों और अपने 400 कर्मचारियों के भविष्य की भी फ़िक्र है.
उन्होंने कहा, "बड़े ऑर्डर देने वाले हमें अपने देशों में बुलाकर बात कर रहे हैं. पहले वे यहाँ आते थे, हमारी फैक्ट्रियां देखते थे, माल की क्वालिटी देखते थे और वापस जाते थे. तमाम बड़े कस्टमरों ने सुरक्षा की चिंता के चलते यात्राएं रद्द कर दीं हैं."
पिछले सालों में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था ने क़रीब सात फ़ीसदी सालाना की बढ़ोत्तरी दर्ज की थी.
लेकिन दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा तेज़ी से बढ़ने वाली इस अर्थव्यवस्था पर अब अल्पसंख्यकों, ब्लॉगरों, नास्तिकों और विदेशियों की हत्याओं के साए में कम होते विदेशी निवेश का ख़तरा मंडरा रहा है.
वजह साफ़ है. देश से होने वाले निर्यात में बांग्लादेश की गारमेंट इंडस्ट्री का हिस्सा अस्सी फ़ीसदी है.
40 लाख से ज़्यादा लोगों का रोज़गार इस पर निर्भर है. चीन के बाद बांग्लादेश अमरीका और यूरोप में सबसे अधिक रेडीमेड कपड़ों की सप्लाई करता है.
2013 में राना प्लाज़ा बिल्डिंग – गारमेंट फैक्ट्रियों का कॉम्पलेक्स; के गिरने से देश की इंडस्ट्री की साख को धक्का लगा था. हाल के चरमपंथी हमलों ने इस चोट को और गहरा कर दिया है.
बांग्लादेश गारमेंट्स बायर्स एसोशिएसन के सचिव अमीनुल इस्लाम देश में कम हो रहे गारमेंट्स ऑर्डर का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं.
उन्होंने बताया, "इस बात पर गहरी नज़र रखनी पड़ेगी की गारमेंट्स के ऑर्डर धीमे या रद्द तो नहीं हो रहे हैं. अगर हाँ, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर गुलशन कैफ़े जैसा एक और हमला हो जाता है और निवेशक अपनी फैक्ट्रियां दिल्ली या हांगकांग में शिफ्ट कर देगा."
पिछले एक दशक में बांग्लादेश में विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ा है जिससे देश की प्रति व्यक्ति आय में भी इज़ाफ़ा हुआ. लेकिन दो चरमपंथी घटनाओं के बाद प्राथमिकताएं बदल रही हैं.
देश के पूर्व विदेश मंत्री कमाल होसैन को लगता है कि हमलों के पीछे चंद भटके हुए लोग हैं.
उन्होंने कहा, "विकास रुक जाएगा और प्रगति के बजाय लोग हिंसा पर बात करने लगेंगे. मेरी समझ से परे है ये सब. कितनी मेहनत के बाद बनी थी हमारे देश की ये साख."
बहरहाल, बांग्लादेश सरकार के सामने चुनौती इस बात की भी है कि आशंकाओं के इस माहौल में पुराने वादे भी निभाए जाएं.
लेकिन ढाका के सेंटर फॉर पॉलिसी डायलॉग के मुस्तफिज़ुर रहमान के मुताबिक़ मुश्किल होती चली जाएगी.
उन्होंने बताया, "बाहर के देशों में बांग्लादेश की छवि अभी भी बिज़नेस के अच्छे माहौल की है. हम लोग अभी तक ऑर्डर सही समय में डिलीवर कर पा रहे हैं. लेकिन ये एक मुश्किल घड़ी है जिसमें मुसीबतें बढ़ रही हैं. अगर हिंसा की घटनाएं आगे भी होती रहीं तो इतने सालों की मशक्कत से कमाई गई साख और भरोसा, सब पर पानी फिर जाएगा."
ढाका में रेडीमेड गारमेंट्स की भरमार पहले भी रहती थी, आज भी है.
लेकिन बांग्लादश की 5000 से भी ज़्यादा गारमेंट फैक्ट्रियों में काम की रफ़्तार कैसी रहेगी, ये इस पर निर्भर है कि देश में शांति कितनी बनी रहती है.
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