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एशियन ह्यूमन राइट कमिशन ने पीओके में पाकिस्तान के अत्चायारों की पोल खोली

नयी दिल्ली : एशियन ह्यूमन राइट कमिशन ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान की पुलिस के जुल्म की कहानी की पोल खोली है. एशियन ह्यूमन राइट कमिशन ने पुलिस अत्याचारों के तसवीरें भी जारी की है, जिससे पाकिस्तान पुलिस की इस इलाके में बर्बरता का अनुमान लगाया जा सकता है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित […]

नयी दिल्ली : एशियन ह्यूमन राइट कमिशन ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान की पुलिस के जुल्म की कहानी की पोल खोली है. एशियन ह्यूमन राइट कमिशन ने पुलिस अत्याचारों के तसवीरें भी जारी की है, जिससे पाकिस्तान पुलिस की इस इलाके में बर्बरता का अनुमान लगाया जा सकता है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित बलिचिस्तान इलाके के चलत बाला जिला में पुलिस ने एक बेकसूर की सिर्फ इसलिए पिटाई कर दी कि उसने स्थानीय पंचायत के भेदभाव पूर्ण उस फैसले को मानने से इनकार कर दिया. शब्बीर हुसैन नामक शख्स को बिना एफआइआर, बिना वारंट के पुलिस थाने ले आयी और उसकी इतनी बेरहमी से पिटाई की कि उसके शरीर पर उसके गहरे दाग पड़ गये.एशियन ह्यूमन राइट कमिशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभियोजन का काम भी वहां पुलिस ही नियंत्रित करती है, इसलिए वह किसी पर भी जुल्म ढाहने के लिए आजाद है.

एशियन ह्यूमन राइट कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि स्थानीय अखबारों में वहां की पुलिस की हैवानियत की कहानियां छापी है. इसके आधार पर कमिशन ने कहा है कि पुलिस वहां के ग्रामीण व शहरी इलाकों में लोगों का उत्पीड़न करती है और उनसे अवैध वसूली करती है.

कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शब्बीन हुसैन का अपने चचेरे भाई से घर-जमीन को लेकर विवाद था. इस मामले में पंचायत ने जो फैसला सुनाया उसके अनुसार, शब्बीर को अपने घर में बड़े बदलाव करने पड़ते, जिससे उसे दिक्कत होती. इसलिए उसने उस भेदभाव पूर्ण फैसले को नहीं माना. इस पर थाने में उसकी शिकायत की गयी. पुलिस ने बिना कोई एफआइआर लिखे या बिना वारंट के 26 जून को उसके घर पर छापा मारा और उसे उठा ले गयी. थाने में उसे अवैध तरीके से रोका गया और एसएचओ इकबाल व कांस्टेबल इफ्तिकार ने उसकी बेरहमी से पिटाई की.

एशियन ह्यूमन राइट कमिशन ने कहा है कि गिलगित-बलिचिस्तान इलाके में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है. दंड प्रक्रिया के नियमों का पालन नहीं किया जाता है. न प्राथमिकी दर्ज की जाती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बाबा जान नाम के एक एक्टिविस्ट को पुलिस ने दो साल तक लगातार परेशान किया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि गिलगित-बलिचिस्तान इलाके को संविधान में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है. वहां के लोगों को पास विधायी आवाज भी नहीं है. क्षेत्र के लोगों का नेशनल असेंबली में प्रतिनिधित्व नहीं है. इस कारण उनकी बातें-उनका दर्द अनसुना रह जाता है.

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