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यूरो कप फाइनल : रोनाल्डो का बड़ा इम्तिहान आज

फुटबॉल का सबसे बड़ा खिलाड़ी कौन… मेसी या रोनाल्डो? इस सवाल पर बहस अरसे से चलती रही है. चंद रोज पहले दुनिया ने कोपा अमेरिका 2016 के फाइनल में चिली से मिली हार के बाद अर्जेंटीना के कप्तान लियोनेल मेसी को आंसुओं में डूब कर यह घोषणा करते देखा कि बस, इंटरनेशनल फुटबॉल अब और […]

फुटबॉल का सबसे बड़ा खिलाड़ी कौन… मेसी या रोनाल्डो? इस सवाल पर बहस अरसे से चलती रही है. चंद रोज पहले दुनिया ने कोपा अमेरिका 2016 के फाइनल में चिली से मिली हार के बाद अर्जेंटीना के कप्तान लियोनेल मेसी को आंसुओं में डूब कर यह घोषणा करते देखा कि बस, इंटरनेशनल फुटबॉल अब और नहीं. अब आज इम्तिहान फुटबॉल के दूसरे दिग्गज, पुर्तगाली टीम के कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो का है.

आज देर रात जब रोनाल्डो की पुर्तगाल टीम यूरो कप 2016 के फाइनल में फ्रांस के साथ फाइनल खेलने उतरेगी, तो उन पर पुर्तगाल टीम के पिछले चार दशक से फ्रांस से न जीत पाने का मिथक तोड़ने का दबाव भी होगा. कह सकते हैं कि इस फाइनल मैच में रिकॉर्ड फ्रांस के साथ हैं, लेकिन रोनाल्डो पुर्तगाल के साथ. पुर्तगाल कभी यूरो चैंपियन नहीं बना है, जबकि फ्रांस के लिए यह तीसरी बार यूरो चैंपियन बनने का मौका है. हालांकि असली चैंपियन कभी इतिहास नहीं देखते, वे खुद इतिहास रचते हैं. इसलिए यह सवाल बड़ा हो जाता है कि क्या रोनाल्डो की टीम आज एक नया इतिहास रचेगी या फिर फ्रांस को ही इतिहास दोहराने का मौका देगी?

यूरो कप 2016 ने पिछले एक महीने के दौरान कई दिग्गजों को धराशायी होते देखा है, तो कई अनजान खिलाड़ियों को हीरो बन कर उभरते भी देखा है. कइयों के दिल टूटे हैं, तो कई दिलों के नये बादशाह बन गये हैं. एक महीने से जारी इस कहानी का आज क्लाइमेक्स है, जो तय करेगा कि चैंपियन रोनाल्डो का पुर्तगाल होगा या फिर एंटोनी ग्रिजमैन का फ्रांस. तो इस क्लाइमेक्स से पहले, यानी यूरो कप 2016 के फाइनल से पहले तक की पूरी कहानी और उसके अहम किरदारों के बारे में बता रहेे हैं वरिष्ठ खेल पत्रकार शैलेश चतुर्वेदी…

2016 : पुर्तगाल और फ्रांस का फाइनल तक का सफर

इस बार का यूरो कप अनेक रोमांचक दौर से गुजरा है. अब पूरी दुनिया को इसके फाइनल का इंतजार है, जो आज रात भारतीय समय के अनुसार साढ़े 12 बजे से होगा. इसमें फ्रांस और पुर्तगाल की टीमें आमने-सामने होंगी.

टूर्नामेंट में दोनों टीमों का सफर बिल्कुल अलग तरीके का रहा है. पुर्तगाल पूरे टूर्नामेंट में कभी ऐसी टीम नहीं लगी, जो चैंपियन बनने की हकदार हो. सेमीफाइनल में शानदार प्रदर्शन से पहले के सभी मैचों में वह एक औसत टीम ही नजर आ रही थी. लीग में उसने मैच नहीं जीते. क्वार्टर फाइनल भी 1-1 से बराबर रहने के बाद शूटआउट में गया. सेमीफाइनल में जरूर इस टीम ने चैंपियन की तरह प्रदर्शन किया.

खासतौर पर क्रिस्टियानो रोनाल्डो अपने नाम के मुताबिक खेले. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या दुनिया के इस महान खिलाड़ी ने आखिरी दो मुकाबलों के लिए अपना बेस्ट बचाकर रखा था? पुर्तगाल ने कभी यह टूर्नामेंट नहीं जीता है. 2004 में अपने घर में वह फाइनल तक पहुंची थी. फिर भी उसे उम्मीद होगी कि इस बार चैंपियन बनकर अपने घर जायेंगे.

दूसरे फाइनलिस्ट फ्रांस ने टूर्नामेंट में कभी प्रभावित किया है, तो कभी निराश. जीत के लिए जितना जरूरी था, इस टीम ने उतना ही किया. रचनात्मकता के मामले में फ्रेंच टीम बेहतर दिखी, लेकिन शुरुआती मुकाबलों में टीम थोड़ा भटकती दिखी. प्री-क्वार्टर से उसने शानदार खेल दिखाया.

पुर्तगाल भी फाइनल में शायद जर्मनी का होना अपने लिये बेहतर मानता. उसने फ्रांस के खिलाफ पिछले दस मैचों में एक भी नहीं जीता है. पुर्तगाल ने आखिरी बार 41 साल पहले फ्रांस को 1975 में हराया था. फ्रांस के ग्रिजमैन इस टूर्नामेंट के सबसे सफल स्कोरर बन कर उभरे हैं. अपने घर में खेलना भी फ्रांस के पक्ष में जाता है.

हालांकि, मेजबान टीम पर आरोप लगे कि उन्होंने ड्रॉ अपने पक्ष में रखा. लेकिन, जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबला जिसने भी देखा हो, वह समझ सकता है कि फ्रांस अगर चैंपियन बनता है, तो वह उसका हकदार है. फ्रांस दो बार पहले भी यूरो चैंपियन रह चुका है.

खिलाड़ी, जो उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे

जब बात निराश करनेवाले खिलाड़ियों की हो, तो सबसे पहले नजरें स्ट्राइकर पर ही जाती हैं. वह भी ऐसे स्ट्राइकर पर, जिससे सबसे ज्यादा उम्मीदें होती हैं. स्वीडन के ज्लाटान इब्राहिमोविच ऐसे ही खिलाड़ी हैं. यकीनन स्वीडन और इब्राहिमोविच से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी. भले ही इब्राहिमोविच के पक्ष में कहा जा सकता है कि उन्हें वैसा सपोर्ट नहीं मिला, जो एक टीम के तौर पर प्रदर्शन के लिए जरूरी है. लेकिन इब्राहिमोविच को दिग्गज माननेवालों की कमी नहीं है. ऐसे में गोल न कर पाना, मौके तक न बना पाना, टारगेट पर सिर्फ एक शॉट ले पाना, उन्हें इस टूर्नामेंट के सबसे बड़े फ्लॉप के तौर पर रखता है.

इंगलैंड के हैरी केन भी फ्लॉप की कैटेगरी में सबसे ऊपर रहे. रूस और वेल्स के खिलाफ उनके प्रदर्शन ने उनकी टीम को खासा नुकसान पहुंचाया. जिसे अहम खिलाड़ियों में गिना जा रहा था, उसे वेल्स के खिलाफ मैच में हाफ टाइम पर बाहर बुलाना पड़े, तो समझा जा सकता है कि प्रदर्शन किस कदर कमजोर रहा होगा. यहां तक कि स्लोवाकिया के खिलाफ मुकाबले में उन्हें बेंच पर ही बैठाये रखा गया.

पोलैंड के रॉबर्ट लेवांदोस्की को कई लोग दुनिया के दो बेहतरीन नंबर नौ खिलाड़ियों में गिनते हैं. जाहिर है, दूसरे खिलाड़ी का नाम लुइस सुआरेज है. लेवांदोस्की ने यूरो-2016 में एक बार भी ऐसा नहीं दिखाया, जहां उन पर भरोसा करनेवालों के चेहरे पर मुस्कान आये. हालांकि, टीम क्वार्टर फाइनल तक पहुंची, जहां उसे पुर्तगाल से शिकस्त खानी पड़ी. लेकिन, बायर्न म्यूनिख से खेलनेवाले लेवांदोस्की अपनी प्रतिभा और क्षमता के हिसाब से कतई खेल नहीं दिखा सके.

यूक्रेन के खिलाफ तो वह आसान सा गोल चूक गये.

क्रोएशिया के ल्यूका मोद्रिच से भी बड़ी उम्मीदें थीं. ग्रुप स्टेज के तीसरे मैच में उनको चोट की वजह से बाहर बैठना पड़ा. रेयाल मैड्रिड से खेलनेवाले मोद्रिच से उम्मीद थी कि प्री-क्वार्टर फाइनल में पुर्तगाल के खिलाफ वो रंग जमाएंगे. संभव है कि वह सौ फीसदी फिट न हों. लेकिन इस मैच में वह खिलाड़ी कम, दर्शक ज्यादा नजर आये. उन्होंने किसी भी किस्म का सहयोग अपनी टीम को नहीं किया. मैच बोरियत भरा था, जिसमें मोद्रिच के खेल ने और बोरियत ही भरी.

टीम, जिनके प्रदर्शन से हुई निराशा

हालांकि तमाम लोग इंगलैंड के प्रदर्शन को सबसे निराशाजनक मान रहे हैं. लेकिन विश्व फुटबॉल के लिहाज से स्पेन का जल्दी बाहर होना निराशाजनक रहा. स्पेन के खेल में एक खूबसूरती रही है. उनका टिकि-टाका दुनियाभर के फुटबॉल प्रेमियों को रोमांचित करता रहा है. वर्ल्डकप में भी स्पेन टीम ने निराश किया था. अब यूरो में उसका इटली के हाथों हार कर प्री- क्वार्टर फाइनल में ही बाहर हो जाना, यकीनन खेल प्रेमियों को निराश करनेवाला रहा. ग्रुप स्टेज में भी क्रोएशिया से हार की उम्मीद स्पेनिश समर्थकों ने नहीं की होगी.

एक और टीम ने निराश किया, वह इंगलैंड है. इंगलैंड के इर्द-गिर्द हमेशा एक किस्म का हाइप होता है. पूरे टूर्नामेंट में इंगलैंड ने कभी ऐसी उम्मीद नहीं जगायी, जिससे लगे कि वह नॉकआउट राउंड में आगे जा सकता है. रूस के साथ उसने बमुश्किल ड्रॉ खेला. वेल्स को हराया, लेकिन यहां भी प्रभावशाली खेल नहीं दिखा. स्लोवाकिया के खिलाफ स्कोर 0-0 रहा. आइसलैंड के खिलाफ मैच ने तो पूरे मुल्क को हिला दिया. यहां हार कर टीम बाहर हो गयी. उसके बाद से पूरे मुल्क में प्रदर्शन के पोस्टमॉर्टम का दौर जारी है, जो जल्दी रुकता नजर नहीं आ रहा.

उम्मीद रूस से भी थी. लेकिन, उसके हिस्से एक भी जीत नहीं आयी. इंगलैंड के खिलाफ पहले मैच से एक अंक लेकर यह टीम ग्रुप-बी में सबसे नीचे रही. टूर्नामेंट से पहले काफी लोग यह मान रहे थे कि इस टीम में ग्रुप की नंबर दो बनने की क्षमता है. वे पहले स्लोवाकिया से हारे, फिर वेल्स से. वेल्स से तो 0-3 से हार मिली.

निराश करनेवाली टीमों में यूक्रेन भी रही. उसका भी निशाना ग्रुप में नंबर दो होने पर था. पोलैंड और नॉर्दर्न आयरलैंड से ऊपर टीम को रहना चाहिए था. जर्मनी से उम्मीद के मुताबिक टीम पहला मैच हारी. लेकिन उसके बाद नॉर्दर्न आयरलैंड से भी हार गयी. आखिरी मैच भी हार कर टीम यूरो 2016 से विदा हो गयी.

खिलाड़ी, जो हीरो बन कर उभरे

एंटोनी ग्रिजमैन ऐसे खिलाड़ी हैं, जो स्कोरर की सूची में सबसे ऊपर हैं. फ्रांस के इस खिलाड़ी ने हर मैच में पिछले मैच के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है. शुरुआत अच्छी नहीं थी. लेकिन टूर्नामेंट जैसे-जैसे आगे बढ़ा, वो चमक लाते गये. जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल में उन्होंने जो खेल दिखाया, अगर वह फाइनल में वैसा ही प्रदर्शन करते हैं, तो इतिहास में चैंपियन टीम के चैंपियन के तौर पर अपना नाम दर्ज करा सकते हैं.

मैनुअल नॉइर की टीम भले ही सेमीफाइनल में हार गयी हो, लेकिन टूर्नामेंट में उनके प्रदर्शन पर ज्यादा लोग उंगली नहीं उठा सकते. जर्मनी के गोलकीपर ने 2014 के वर्ल्डकप में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया था. यहां भी यूरो 2016 में उनका खेल विश्व स्तरीय रहा है. पेनल्टी शूट आउट में उन्हें देख कर जर्मन समर्थकों के मन में भरोसा आता है. सेमीफाइनल तक उन्होंने ऐसी दीवार बनायी थी, जिसे विपक्षी टीम के लिए भेदना नामुमकिन था. एक ऐसे खिलाड़ी का जिक्र भी जरूरी है, जो दुनिया के लिए उतना जाना-माना नाम नहीं है. आइसलैंड के रैगनर सिगुर्डसन का खेल उनके मुल्क ही नहीं, पूरी फुटबॉल दुनिया में चर्चा का विषय बना है. इंगलैंड टीम तो खैर उन्हें कभी नहीं भूल पायेगी.

उलटफेर के दौर से भी गुजरा टूर्नामेंट

यू रो कप 2016 में कई अप्रत्याशित नतीजे भी देखने को मिले. ग्रुप ए के एक मुकाबले में जहां एक ओर अल्बानिया ने रोमानिया को हराया, तो वहीं स्लोवाकिया ने रूस को पराजित कर दिया. यह एक बड़ा उलटफेर था.

अन्य मुकाबलों में क्रोएशिया ने स्पेन को मात दी. इस हार से स्पेन ग्रुप में टॉप पर नहीं पहुंच सका. स्पेन का प्रदर्शन भले ही पिछले कुछ सालों में नीचे गिरा हो, लेकिन उसे खिताब का दावेदार माना जा रहा था.

इन सबके बावजूद टूर्नामेंट का सबसे बड़ा उलटफेर आइसलैंड का इंगलैंड को हराना था. इसमें कोई दो राय नहीं, कि इंगलैंड हमेशा जरूरत से ज्यादा अहमियत मिलती है. यह भी मार्केटिंग का हिस्सा है.

इंगलैंड का रिकॉर्ड कतई उनकी छवि के साथ नहीं जाता. हालांकि, यह उम्मीद नहीं की गयी थी कि आइसलैंड से उसे शिकस्त झेलनी पड़ेगी. मैच में वेन रूनी ने इंगलैंड को बढ़त दिलायी थी. लेकिन, आइसलैंड ने इसके बाद जो किया, वह यादगार है. 20 मिनट होते-होते दो गोल मार दिये और अगले 70 मिनट तक कोई गोल नहीं खाया. ऐसा मुल्क, जिसकी आबादी साढ़े तीन लाख भी नहीं है, उसने यह कमाल किया.

यूरो कप : लोकप्रियता के शिखर पर

यूरो कप फुटबॉल के रोमांच का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चार देशों के साथ शुरू हुआ यह टूर्नामेंट चार साल पहले ही उस मुकाम तक पहुंच गया था, जब इसका फाइनल देखनेवालों की तादाद करीब 30 करोड़ हो चुकी थी. अब टीमें चार से 24 हो गयी हैं. जाहिर है, खेल का किस तरह विस्तार करना है, यह यूरोपीय देशों को अच्छी तरह आता है. उन्होंने शानदार खेल और बेहतरीन मार्केटिंग के दम पर यूरो कप फुटबॉल को वहां तक पहुंचा दिया है, जहां यह तमाम और आयोजनों से बेहतर दिखाई देने लगा है.

ऐसा कतई नहीं है कि कोपा अमेरिका का स्तर किसी भी लिहाज से यूरो से कम है. लेकिन, आप खुद समझ सकते हैं कि हमारे देश में, जहां लोगों का इन दोनों इवेंट से सीधे तौर पर कोई जुड़ाव नहीं है, वहां भी कोपा अमेरिका के मुकाबले यूरो कप किस कदर लोकप्रिय है. यह अपने प्रोड्क्ट को बेहतर तरीके से पेश करना भी है और यूरो का समय भी भारतीय दर्शकों के लिए बेहतर है.

दो फुटबॉल विश्वकप के बीच के समय में आयोजित होनेवाले इस टूर्नामेंट की यूरोप में तो अहमियत है ही, विश्वकप के नजरिये से बाकी दुनिया भी यह देखना चाहती है कि कौन कितने पानी में है यानी दो साल बाद 2018 में कौन बड़ा खतरा साबित होनेवाला है.

कुछ टीमें, जिसने जगायी नयी उम्मीद

इस बार के यूरो कप में जिस टीम ने सबसे ज्यादा जिज्ञासा और रोमांचित पैदा किया, यकीनन वह आइसलैंड की टीम थी. उसे भले ही फ्रांस के हाथों हार ने टूर्नामेंट से बाहर कर दिया हो, लेकिन उसने दिखाया कि छोटा-सा मुल्क बड़े जज़्बे के साथ बहुत बड़ा कमाल कर सकता है. उसने इंगलैंड को टूर्नामेंट से बाहर करके क्वार्टर फाइनल में जगह बनायी थी, जहां बेहद अनुभवी फ्रांस ने उसकी अनुभवहीनता सबके सामने ला दी. लेकिन, तब तक उनका सफर परीकथा जैसा रहा.

चार सेमीफाइनलिस्ट में एक वेल्स का खेल ताजा हवा की तरह रहा. गैरेथ बेल की इस टीम ने नॉक आउट में भी नॉर्दर्न आयरलैंड और बेल्जियम को हरा कर दो बाधाएं पार कर ली थीं. यकीनन सेमीफाइनल तक देखें, तो इस टीम का खेल फाइनलिस्ट पुर्तगाल से बेहतर था. लेकिन अनुभव पुर्तगाल के पक्ष में था. जिन टीमों ने इस बार के टूर्नामेंट को रोचक बनाया, उनमें वेल्स भी थी.

जर्मन टीम हमेशा अपने मजबूत खिलाड़ियों, शानदार खेल स्ट्रक्चर के लिए जानी जाती है. इस बार उसे भले ही सेमीफाइनल में हार मिली हो, लेकिन टीम ने दिखाया है कि दो साल बाद होनेवाले वर्ल्ड कप के लिए उन्हें कम न आंका जाये. टीम मजबूत है और एक-दो खिलाड़ियों पर निर्भर नहीं है. देखना होगा कि जो कमियां यहां उन्हें फाइनल से बाहर कर गयीं, उन्हें वह कैसे दूर करते हैं. फ्रांस की शुरुआत बहुत अच्छी नहीं थी. लेकिन, टूर्नामेंट आगे बढ़ने के साथ इस टीम का खेल निखरा है. जीत के लिए भूख की कमी नहीं दिख रही. अनुभव की कमी तो फ्रांस के पास कभी नहीं थी. इस टीम ने दिखाया है कि कब कैसा प्रदर्शन करना चाहिए.

फीफा वर्ल्ड कप के लिए निकले संकेत

यूरो कप फीफा वर्ल्ड कप से दो साल पहले होता है. यह समय होता है हर टीम को समझने का कि उन्हें वर्ल्ड कप की तैयारियों के लिए क्या करना है. अगला फीफा वर्ल्ड कप-2018 में रूस में होना है.

यकीनन यूरो कप में सिर्फ यूरोपीय टीमें हैं, लेकिन अगर इस टूर्नामेंट को संकेत माना जाये, तो पुर्तगाल को फाइनल में पहुंचने के बावजूद अपनी टीम पर वर्ल्ड कप की सफलता के मद्देनजर काफी काम करने की जरूरत है. पिछली चैंपियन जर्मनी हो या फ्रांस या इटली… इन टीमों ने अपने खेल से प्रभावित किया है. यकीनन वर्ल्डकप स्तर यूरो कप से खासा अलग होगा. यह बात हर टीम और हर खिलाड़ी जानता है.

बहुचर्चित कोच, जिनकी हो गयी छुट्टी

बड़ा टूर्नामेंट हमेशा कुछ प्रशिक्षकों की बलि लेकर ही जाता है. यूरो-2016 भी इस परंपरा से अछूता नहीं रहा. खासतौर पर स्पेन के हाइ-प्रोफाइल कोच विंसेंट डेल बोस्क का इस्तीफा चर्चा का विषय रहा. स्पेन की टीम प्री-क्वार्टर में इटली से हार गयी थी. घर पहुंचने पर स्पेनिश फेडरेशन की तरफ से यही कहा गया कि बदलाव नहीं होगा. लेकिन डेल बोस्क ने इस्तीफा दे दिया. जिस दौर में स्पेन दुनिया का हर टूर्नामेंट जीत रही थी, डेल बोस्क ही कोच थे. उनके साथ ही टीम ने 2010 का वर्ल्ड कप और 2012 का यूरो जीता था.

यूरो हो या वर्ल्ड कप, इंगलैंड का कोच हमेशा हाइ-प्रोफाइल होता है और उस पर हमेशा तलवार लटकी रहती है. पूरा इंगलैंड चाहता था कि रॉय हॉजसन इस्तीफा दें. इंगलैंड के कोच इसके बाद अपने पद पर नहीं बने रह सकते थे. आइसलैंड के खिलाफ हार के साथ टीम टूर्नामेंट से बाहर हुई थी, जिसे वहां की मीडिया ने राष्ट्रीय शर्म का विषय करार दिया. हॉजसन की रणनीतियां निशाने पर रहीं. उन्हें आखिर इस्तीफा देना पड़ा.

टूर्नामेंट से पहले फेवरिट टीमों की सूची में इटली का नाम था. इटली के कोच एंतोनियो कोंते से बड़ी उम्मीदें थीं उनके देश को. टीम क्वार्टर फाइनल में पहुंची और मैराथन शूट आउट में जर्मनी से हारी. वर्ष 1954 के बाद कभी इटली को जर्मनी के खिलाफ शूट आउट में शिकस्त नहीं खानी पड़ी थी. हालांकि, माना जा रहा था कि कोंते वैसे भी यूरो के बाद टीम का साथ छोड़ देंगे. लेकिन, यकीनन वह इटली को चैंपियन बना कर चेल्सी जाना चाहते होंगे, जो नहीं हो सका.

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