।। दक्षा वैदकर।।
मार्च से एग्जाम शुरू होनेवाली है. बच्चों का टेंशन दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है. कुछ परिवारों ने घर का माहौल बच्चों के मुताबिक बिलकुल बदल दिया है. टीवी बंद हो गये हैं, सभी सदस्य धीमी आवाज में बात करने लगे हैं. वहीं कुछ परिवारों में झगड़े की स्थिति बन गयी है. एक बच्चे ने अपनी समस्या बतायी है. वह लिखता है कि उसके घर में सभी लोग टीवी देख रहे हैं, शोर मचा रहे हैं, हंसी-मजाक कर रहे हैं.
मेहमानों का आना भी जारी है. जब भी मैं पैरेंट्स को कहता हूं कि प्लीज टीवी बंद कर दें या उसकी आवाज कम कर दें, पापा कहते हैं, ‘जिन बच्चों को सच में पढ़ाई करनी होती है, उन्हें आसपास के माहौल का फर्क नहीं पड़ता.’ मम्मी कहती हैं कि ‘बेटा, सिर्फ किताबों में ध्यान लगाओगे, तो तुम्हें बाकी आवाज सुनाई नहीं देगी.’ उनके यह तर्क सुन कर मुङो बहुत गुस्सा आता है, लेकिन मैं कुछ कर नहीं पाती. चिड़चिड़ाहट की वजह से पढ़ाई बिल्कुल भी नहीं हो पा रही है. आखिर मैं कहां जाऊं पढ़ने के लिए?
यह समस्या किसी एक बच्चे की नहीं है. सभी मध्यमवर्गीय परिवारों का यही हाल है. घर में पैरेंट्स या भाई-बहन अपनी दिनचर्या में जरा-सा भी बदलाव नहीं करना चाहते, फिर भले ही बच्चे या भाई-बहन फेल ही क्यों न हो जाएं. टीवी देखने के लिए वे बेतुके तर्क देते हैं. वे भूल जाते हैं कि जब वे खुद ऑफिस का काम कर रहे होते हैं, तो उन्हें भी तेज आवाज से परेशानी होती है. जब वे सोते हैं और कोई जोर से बात करता है, तो वे भी गुस्से में आ जाते हैं.
आम दिनों में यह आवाजें लोग सहन कर भी लेते हैं, लेकिन परीक्षा की घड़ी सचमुच तनाव देनेवाली होती है. ऐसे समय में छोटी आवाज भी हमें बहुत डिस्टर्ब करती है. टीवी के डायलॉग कानों में पड़ते हैं, तो ध्यान वहां जाता ही है. कोई गाना बजता है, तो हम गुनगुनाने लगते हैं. मम्मी या पापा किसी से बात करते हैं, तो जिज्ञासा होती ही है कि कौन, क्या बातें कर रहा है? बेहतर है कि घर के बड़े लोग इस बात को समङों और अगर सच में चाहते हैं कि बच्चे के मार्क्स अच्छे आएं, तो उन्हें वैसा माहौल दें.
बात पते की..
विभिन्न तरह की आवाजों से ध्यान भंग होता है. आप गूगल से व्हाइट नॉइज साउंड डाउनलोड करें, यह सूदिंग आवाज है, जो आपको सुकून देगी.
माता-पिता तो अपने बच्चों के लिए क्या-क्या त्याग नहीं करते? आप अपने बच्चे के अच्छे मार्क्स के लिए अपना टीवी त्याग नहीं सकते? सोचें.