13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बहुआयामी व्यक्तित्व था शंकर दयाल जी का

-हरिवंश- 26 नवंबर को साप्ताहिक कारोबार कलकत्ता में फोन से सूचना मिली कि ‘शंकर दयाल जी‘ नहीं रहे. सूचना दिल्ली से आयी थी. अविश्वास की कोई गुंजाइश नहीं थी. यह खबर इतनी आहत करनेवाली थी कि यकीन नहीं हुआ. अब भी मन नहीं मानता. 28 नवंबर को उनसे रांची में ही पुन: मुलाकात की संभावना […]

-हरिवंश-

26 नवंबर को साप्ताहिक कारोबार कलकत्ता में फोन से सूचना मिली कि ‘शंकर दयाल जी‘ नहीं रहे. सूचना दिल्ली से आयी थी. अविश्वास की कोई गुंजाइश नहीं थी. यह खबर इतनी आहत करनेवाली थी कि यकीन नहीं हुआ. अब भी मन नहीं मानता. 28 नवंबर को उनसे रांची में ही पुन: मुलाकात की संभावना थी. महीने भर पहले रांची आये, तो नोट छोड़ गये कि अगली बार अवश्य मुलाकात होनी चाहिए, तब मैं रांची से बाहर था.

उस दिन से ही मन में यह सवाल लगातार उठ रहा है कि 58 साल की उम्र में ही शंकर दयाल जी चले गये? क्या यह कहावत सही है कि अच्छे लोग प्रभु को प्यारे होते हैं? इसलिए जल्द गुजर जाते हैं. शंकर दयाल जी में संभावना थी. सृजनबोध था. लोगों के प्रति अपनत्व था. बौद्धिक प्रखरता थी. रचनात्मक मन था. निजी रिश्ते में अद्भुत अपनत्व-गरमाहट. जिसकी उपस्थिति का हमेशा भान होता था. अंगरेजी में कहें, तो उनके ‘प्रजेंस‘ (उपस्थिति) का एहसास होता था. हिंदी के सवाल पर, सेठ गोविंददास, प्रकाशवीर शास्त्री और बाबू गंगाशरण जी की परंपरा से जो अंतिम राजनेता थे.

जिनके ठहाके उन्मुक्त व्यक्तित्व का बोध कराते थे. जिनमें पुरानी संस्कृति के स्वस्थ मूल्यों और आधुनिक दृष्टि का अद्भुत व्यावहारिक समागम था. वह शंकर दयाल जी नहीं रहे, यह अब भी नहीं लगता. 1970 में पहली बार मैंने एक सगे की मौत देखी. तब मैं हाईस्कूल का विद्यार्थी था. रिश्ते में चाचा थे. हम उन्हें ‘लाला‘ कहते थे. 1940-50 के दौर में टीएनबी कॉलेज भागलपुर से वह प़ढ कर निकले. सीधे डीएसपी पद पर नियुक्ति हो रही थी. उनके साथी आइजी होकर रिटायर हुए. पर उन्होंने नौकरी छो़ड दी. गांव में रहते थे.

गृहस्थ सन्यासी. अपने बाल-बच्चों से भी अधिक दूसरों को स्नेह करते थे. रोज त़डके सुबह पराती (भजन) गाते थे. सूरदास के भजन उन्हें प्रिय थे. उद्धव प्रसंग उन्हें रूचता था. अक्सर गाते, उद्धवर कौन देस को बासी. उनकी वह आवाज कहीं मेरे अंदर डूब गयी है, जो अक्सर अकेले में मन-स्कृतियों पर छा जाती है. उनका शव जलाते हुए अजीब बोध हुआ. आगे चल कर जाना कि लोग, उस बोध को ही ‘श्मशान वैराग्य‘ कहते हैं. बाद में ऐसे अनेक अनुभवों से गुजरना पड़ा.पर शंकर दयाल जी की मौत से लगता है कि यह अपने अंश का अंत है.

उनसे मुलाकात-अपनत्व की स्मृतियों का लंबा सिलसिला है. 17 वर्षों पुराना, धर्मयुग कार्यालय (बंबई) में उनसे पहली मुलाकात हुई. 1977 में. उन दिनों उत्तप्रदेश-बिहार के लोग बंबई में मिलते, तो लगता विदेश में किसी सगे से मुलाकात हुई. फिर शंकर दयाल जी, उनमें तो अपना बनाने की दैवी प्रतिभा थी. इसके बाद बंबई, कलकत्ता, दिल्ली, रांची, पटना वगैरह में न जाने कितनी बार उनसे मिलना हुआ. उनकी आदत थी, वह आने के पहले खत लिख देते थे.

हर मुलाकात में वह बताते कि क्या पढ़-लिख रहा हूं. कभी निजी पीड़ा नहीं. संसद में रहे हों या संसद से बाहर, हमेशा सार्वजनिक चर्चा. साहित्य से सरोकार, साहित्यिक प्रतिभाओं को आगे ले जाने की योजना, गुजरे पुराने साहित्यकारों को युवा मानस में रचाने-बसाने की बेचैनी. राजनीति के साफ-सुधरे लोगों से आत्मीय लगाव. 1988-89 की घटना होगी. कलकत्ता (रविवार के दिनों में) से पटना आया था. शंकर दयाल जी ले गये विधायक क्लब देखा, कर्पूरी जी की स्मृति में समारोह आयोजित किया है. कभी रेणु जी, कभी बेनीपुरी जी, कभी राजा राधिकारमण जी पर, तो कभी किसी पर वह कार्यक्रम करते ही रहते थे. कभी अज्ञेय जी को न्योता, तो कभी विद्यानिवास जी को बुलाया. उनका पूरा जीवन सार्वजनिक था.

घर ले जातें, तो एक-एक सदस्य से मिलाते. लगता, अपने ही परिवार में आना हुआ है. जब भी मिलते, कोई न कोई पुस्तक-पत्रिका देते. सुरूचिपूर्ण ढंग से. अच्छी कलमों और साफ-सुथरे कागजों पर लिखने का उन्हें शौक था. एक बार कलकत्ता की एक दुकान में एक लेखक मित्र को कलम भेंट देने के लिए उन्होंने घंटों कलम चुनने में समय लगाया. मैंने टिप्पणी कर दी. कोई कलम ले लीजिए. उन्होंने कहा कि लेखक के लिए कलम सबसे खूबसूरत चीज होती है. उसे तो पसंद से ही देना चाहिए. शायद ही किसी राजनेता के पास इतनी समृद्ध लाइब्रेरी होगी.

राजेंद्र बाबू से लेकर इंदिरा जी, अज्ञेय, हजारीप्रसाद द्विवेदी सबकी पुस्तकें उनके हस्ताक्षार के साथ उनके पास थीं. गांधी पर तो उन्होंने अद्भुत संग्रह-लेखन किया है. गांधी युग के महान नेताओं और खुद गांधीजी के हाथों की पांडुलिपि उनके पास थी. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय को उन्होंने बहुत सी चीजें भेंट दे दी हैं. राष्ट्रपति के साथ लंबा विदेश प्रवास कर वह रांची आये, प्रभात खबर में उन्हें संस्मरण सुनाने के लिए न्योता गया. तीन घंटे तक सहज, सरल और मुग्ध करनेवाली शैली में वह बतियाते रहे, फिर कहा कि प्रभात खबर में लाइब्रेरी बनाइए, अनेक पुरानी-महत्वपूर्ण सामग्री दूंगा.

दो महीने पहले दिल्ली में उनसे मुलाकात हुई. सुबह-सुबह उन्होंने घर बुलाया. वहां पहले से जीतेंद्र बाबू मौजूद थे. घंटों अपनी भावी लेखकीय योजनाएं बतायीं. ‘गांधी‘ पर पुस्तकें दीं. ‘गांधी‘ उनके सबसे प्रिय थे. गांधी जी पर वह एक लंबा उपन्यास लिख रहे थे. मृत्युंजय की शैली में. उन्होंने उसके दो अध्याय सुनाये. जीवंत-रोचक. गांधीजी पहली बार बिहार कैसे आये. राजेंद्र बाबू के घर कैसे पहुंचे. चंपारण में क्या देखा कुछ अन्य लेख भी दिये थे (जो आगे प्रभात खबर में छपेंगे) राजनीति में होकर भी वह राजनीतिज्ञ नहीं हुए. जबक भी वह बंबई जाते, डॉ धर्मवीर भारती से मिलने जाते.

अक्सर भारती जी उनके बारे में या डॉ भारती के बारे में वे सूचनाएं देतें. इतना ही नहीं, विदेश-देश के जिस शहर में वह जाते थे, वहां के लेखकों-कवियों-ऐतिहासिक स्थलों पर पहले जाते थे. राजेनता उनकी दूसरी प्राथमिकता थे. साल भर पहले दिल्ली में अपने घर पर भारत के बारे में लंदन से लायीं एक पुस्तक दिखायी. वह तक भारत तक नहीं पहुंची थी. उसी विशेषताएं दिखायीं.

जिस जीवंतता और अपनत्व से वह हर किसी से मिलते थे, वह शायद ही दिखें. संसद में मिलेंगे, तो वहां आवभगत करके कहेंगे, ‘घर’ के लिए कुछ नहीं दिया. मेरी ओर से संसद में मिलनेवाली चाय की पत्ती ले जाइए. दूसरों को अपना अंश समझने की समृद्ध परंपरा भारतीय संस्कृति की रही है. और शंकर दयाल जी इस संस्कृति के जीवंत प्रतीक थे. इस सहज रिश्ते के कारण उनके मित्रों की दुनिया बहुत ब़डी थी, समय के सदुपयोग की अदभुत साधना उन्होंने की थी.

प्लेन में, यात्रा में खाली बैठे हुए वह लिखते-प़ढते रहते थे.उनके असंख्य प्रसंग दिलोदिमाग पर छाये हैं. उन्होंने बिहार की रचनात्मकता को बढ़ाया. बिहार की राजनीति में पुराने वसूलों को जिंदा रखा. आज जब सांसदों के अन्य सरोकार बढ़ गये हैं, तब उनका नैतिक और साहित्यिक व्यक्तित्व उन्हें विशिष्ट बनाता था. आजादी की पी़ढी के स्वस्थ-रचनात्मक मूल्य थे. शंकर दयाल जी उन मूल्यों की एक सशक्त कड़ी थे. उनके निधन से अनेक लोगों की नीजि क्षति हुई है. असली क्षति तो सार्वजनिक है. उनकी स्मृति को प्रणाम.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें