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निराला को याद करने का निराला तरीका

समीरात्मज मिश्र बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए इलाहाबाद में दारागंज चौराहे से बख्शी बांध जाने वाली लगभग दो किलोमीटर लंबी गलीनुमा सड़क एक मामले में दूसरी गलियों से कुछ अलग है. यहां के कई घरों के बाहर छोटे कट आउट्स लगे हैं और उन पर कुछ कविताएं लिखी हैं. निराला यहीं रहा करते थे, […]

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इलाहाबाद में दारागंज चौराहे से बख्शी बांध जाने वाली लगभग दो किलोमीटर लंबी गलीनुमा सड़क एक मामले में दूसरी गलियों से कुछ अलग है.

यहां के कई घरों के बाहर छोटे कट आउट्स लगे हैं और उन पर कुछ कविताएं लिखी हैं. निराला यहीं रहा करते थे, साहित्य लिखते थे और यहीं से अपनी रचनाओं के पात्र चुनते थे. आज इस सड़क का नाम निराला मार्ग है.

निराला को दुनिया से विदा हुए पचास साल से ज़्यादा हो चुके हैं और उनकी पीढ़ी के कुछ ही लोग बचे हैं, लेकिन आज भी यहां निराला से जुड़े संस्मरण सुनाने वालों की कोई कमी नहीं है.

घर के बाहर कविता टाँगने के शौक के बारे में जब मैंने लोगों से जानना चाहा तो पता चला कि बसंत पंचमी पर निराला के जन्म दिन को यहां लोग हमेशा से मनाते आए हैं. हर बार इस दिन कई साहित्यकार और कलाकार जुटते हैं लेकिन इस बार का आयोजन अनोखा था.

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मोहल्ले के लोगों ने तय किया कि वो अपने घरों के बाहर निराला की कविताएं लिखकर टाँगेंगे ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी पता चले कि ये महान साहित्यकार यहीं रहते थे.

निराला मार्ग पर ही फ़ोटोग्राफी की दुकान चलाने वाले अतुल कुशवाहा ने भी दो कविताएँ अपने घर के बाहर टाँगी हैं.

वो बताते हैं कि साहित्य और कविताओं से तो उनका कोई ख़ास वास्ता नहीं है लेकिन निराला से जुड़े कई संस्मरण उनके दादाजी सुनाया करते थे.

अतुल कुशवाहा बताते हैं कि उनके दादाजी की इसी गली में मिठाई की दुकान थी. निराला अक्सर वहां आकर रबड़ी खाते थे.

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अतुल बताते हैं, “पैसा न तो निराला जी के पास हमेशा रहता था और न ही दादाजी कभी मांगते थे क्योंकि उन्हें भी पता था कि जब उनके पास होगा तो बिना किसी हिसाब के ढेर सारे पैसे दे देंगे. किसी की उनसे पैसे माँगने की हिम्मत नहीं थी. ठीक उसी तरह जब वो ज़्यादा पैसे देते तो किसी की लौटाने की भी हिम्मत नहीं थी.”

वहीं मेडिकल स्टोर चलाने वाले तीर्थराज पांडे कहते हैं कि निराला की प्रसिद्ध कविता ‘तोड़ती पत्थर’ इसी इलाके पर लिखी गई है और उनकी कविता की जीवंतता आज भी बनी हुई है.

तीर्थराज पांडे बताते हैं कि उस ज़माने का कोई भी बड़ा साहित्यकार, कलाकार या नेता ऐसा नहीं था जो कि पैदल चलकर निराला के छोटे से घर में न आया हो.

महादेवी वर्मा का निराला के घर राखी बांधने के लिए आना, सुमित्रानंदन पंत को एक लीटर के पीतल के गिलास में जबरन लस्सी पिलाया जाना और आनंद भवन से जवाहरलाल नेहरू का उनके लिए अक्सर संदेश भेजना, ऐसे क़िस्से हैं जो यहाँ के लोग सुनाते हैं.

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निराला की रचनाओं से अधिक चर्चा यहाँ उनके पहलवानी के शौक की होती है. एक स्कूली छात्र ने निराला के बारे में पूछने पर कहा कि निराला की चिट्ठी पर पता नहीं लिखा रहता था, लिफ़ाफ़े पर सिर्फ़ उनका नाम लिखा होना काफ़ी था.

घरों के बाहर कविताएं टाँगने का प्रस्ताव ‘महाकवि निराला सांस्कृतिक संस्थान’ नाम की संस्था ने रखा. लेकिन अतुल कुशवाहा बताते हैं कि इसके लिए इलाके के सभी लोग एकमत थे और सभी लोगों ने अपने ख़र्च पर कट आउट घरों के बाहर लगवाए हैं.

राम की शक्ति पूजा, तुलसी दास, कुकुरमुत्ता, सरोज स्मृति जैसी कविताओं के रचयिता निराला गद्य लेखन में भी उतने ही सिद्धहस्त थे.

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निराला ने बिल्लेसुर बकरिहा, चतुरी चमार जैसे उपन्यास और ढेरों कहानियाँ भी लिखी थी.

कट आउट्स पर अंकित कविताओं की एक ख़ास बात और है. इनमें ‘वर दे, वीणावादिनि वर दे’ जैसी बेहद मशहूर कविता तो कई लोगों ने लिखा रखी है, लेकिन ‘कुकुरमुत्ता’, ‘तोड़ती पत्थर’, ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘सरोज स्मृति’ जैसी कविताओं की पंक्तियां देखने को नहीं मिलीं.

इस बारे में लोगों का कहना था कि ये अपनी पसंद की बात है. निराला की जिस कविता से लोग परिचित थे, उसे लिखवा दिया. ज़्यादातर लोगों का साहित्य से वास्ता नहीं है लेकिन साहित्यकार निराला के वैभव से परिचित हैं और उन्हें उन पर नाज़ है.

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