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वासंतिक नवरात्र पांचवां दिन : स्कंदमाता दुर्गा का ध्यान
सिंहासनगता नित्यं पद्मांचितकरद्वया । शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।। जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वे यशस्विनी दुर्गा देवी स्कन्दमाता सदा कल्याणदायिनी हो. त्रिशक्ति के स्वरूप-5 या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते उस ब्रह्मरूप चेतनशक्तिके दो स्वरूप हैं- एक निर्गुण और दूसरा सगुण. सगुण के भी […]
सिंहासनगता नित्यं पद्मांचितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।।
जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वे यशस्विनी दुर्गा देवी स्कन्दमाता सदा कल्याणदायिनी हो.
त्रिशक्ति के स्वरूप-5
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते
उस ब्रह्मरूप चेतनशक्तिके दो स्वरूप हैं- एक निर्गुण और दूसरा सगुण. सगुण के भी दो भेद हैं- एक निराकार और दूसरा साकार. इसी से सारे संसार की उत्पत्ति होती है. उपनिषदों में इसी को पराशक्ति के नाम से कहा गया है
तस्या एव ब्रह्मा अजीजनत्। विष्णुरजीजनत्। रूद्रोरजीनत्। सर्वे मरूदगणा अजीजनन्। गन्धर्वाप्सरसः किन्नरा वादित्रवादिनः समन्ताद-जीजनम्। भोग्यमजीजनत्। सर्वमजीजनत्। सर्व शाक्तमजीजनत्। अण्डजं स्वदेजमुद्रिज्जं जरायुजं यत्किच्चैतत्प्राणिस्थावरजगंमं मनुष्यमजीजनत्। सैषा पराशक्तिः।
उस पराशक्ति से ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र उत्पन्न हुए. उसी से सब मरूगण,गन्धर्व,अप्सराएं और बाजा बजानेवाले किन्नर लब और से उत्पन्न हुए. समस्त भोग्य पदार्थ और अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज, जरायुज जो कुछ भी स्थावर,जंगम, मनुष्यादि प्राणिमात्र उसी पराशक्ति से उत्पन्न हुए. ऐसी वह पराशक्ति है.
श्रीदेव्यथर्वशीर्षम् में स्वयं भगवती कहती हैं-
अहं रूद्रेभिर्वसुभिश्चरामि। अहमादित्यैरूत विश्वदेवैः। अहं मित्रावरूणावुभौ विभर्मि। अहमिन्द्राग्नी श्विनावुभौ।।
अर्थात्- मैं रूद्र,वसु,आदित्य और विश्वदेवोंके रूप में विचरन करती हूं. मैं मित्र और वरूण दोनों का, इंद्र एवं अग्नि का और दोनों अश्विनीकुमारोंका भरण-पोषण करती हूं. ब्रह्मसूत्र में भी कहा है-सर्वोंपेता तद् दर्शनात्। -वह पराशक्ति सर्वसामर्थ्यसे युक्त है, क्योंकि यह प्रत्यक्ष देखा जाता है. इसलिए महाशक्ति दुर्गा के नाम से भी ब्रह्म की उपासना की जा सकती है.
प्रस्तुतिः डॉ एन के बेरा
(मंगलवार को 5.40 तक पंचमी तिथि रहेगी. इसके बाद षष्ठी तिथि का आरंभ होगा.)
छठा दिन
कात्यायनी दुर्गा का ध्यान
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दुलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्दाद देवी दानवघातिनी ।।
जिनका हाथ उज्जवल चन्द्रहास (तलवार) से सुशोभित होता है तथा सिंहप्रवर जिनका वाहन है, वे दानव संहारिणी दुर्गा देवी कात्यायनी मंगल प्रदान करें.
त्रिशक्ति के स्वरूप-6
ब्रह्म की महाशक्ति के रूप में श्रद्धा, प्रेम और निष्काम भाव से उपासना करने से परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति होती है. बहुत से विद्वान इसे भगवान् की ह्लादिनी शक्ति मानते हैं. महेश्वरी, जगदीश्वरी, परमेश्वरी भी इसी को कहते हैं. लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, राधा, सीता आदि सभी इस शक्ति के ही रूप हैं.
माया, महामाया, मूल प्रकृति, विद्या, अविद्या आदि भी इसी के रूप हैं. परमेश्वर शक्तिमान् है और भगवती परमेश्वरी उसकी शक्ति हैं. शक्तिमान से शक्ति अलग होने पर भी अलग नहीं समझी जाती. जैसे अग्नि की दाहिका शक्ति अग्नि से भिन्न नहीं है. यह सारा संसार शक्ति और शक्तिमान से परिपूर्ण है और उसी से इसकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होते हैं.
इस महाशक्तिरूपा जगज्जननी दुर्गा की उपासना लोग नाना प्रकार से करते हैं. कोई तो इस महेश्वरी को ईश्वरसे भिन्न समझते हैं और कोई अभि्न्न मानते हैं. श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहासादि शास्त्रों में इस गुणमयी विद्या- अविद्यारूपा मायाशक्ति को प्रकृति, मूल-प्रकृति, महामाया, योगमाया आदि अनेक नामों से कहा है. उस मायाशक्ति की व्यक्त और अव्यक्त अर्थात् साम्यावस्था तथा विकृतावस्था- दो अवस्थाएं हैं. उसे कार्य, कारण एवं व्याकृत, अव्याकृत भी कहते हैं. 23 तत्वों के विस्तारवाला यह सारा संसार तो उसका व्यक्त स्वरूप है. जिससे सारा संसार उत्पन्न होता है और जिसमें यह लीन हो जाता है, वह उसका अव्यक्त स्वरूप है. गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं-
अव्यक्ताद्वव्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।।
अर्थात् -सम्पूर्ण दृश्यमात्र संपूर्ण प्राणी ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकाल में अर्थात् विद्या (दैवी सम्पद्)के प्रवेश काल में संपूर्ण प्राणी अव्यक्त बुद्धि में जागृत हो जाते हैं और रात्रि के प्रवेशकाल में उसी अव्यक्त,अदृश्य बुद्धि में जागृति के सूक्ष्म तत्व अचेत हो जाते हैं. वे प्राणी अविद्या की रात्रि में स्वरूप को स्पष्ट देख नहीं पाते, किन्तु उनका अस्तित्व रहता है.
(क्रमश:)
प्रस्तुति : डॉ एन के बेरा
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