गरीबों को जीवन चलाने के लिए कर्ज लेना ही पड़ता है. लेकिन जब ब्याज के साथ महाजन को कर्ज चुकाने की बारी आती है, तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाती है. किसानों के लिए खुदकुशी करने की नौबत तक आ जाती है. पटना के आस-पास की कुछ महिलाएं अनूठा प्रयोग करते हुए अनाज बैंक चला रही हैं. जो महाजन के जुल्म से मुक्ति की सफल दास्तां है.
पटना: मोहनचक की रहनेवाली शांति देवी को जब चावल की जरूरत होती थी, तो वह गांव के महाजन से चावल कर्ज लेती थीं. कर्ज वापस करते समय उन्हें दोगुना चावल वापस करना पड़ता था. आज शांति खुद का अनाज बैंक चला रही हैं. अंतर यह है अब वह अनाज लेती नहीं बल्कि देती हैं. कुछ ऐसी ही कहानी राघोपुर की रामकली देवी का भी है. रामकली खेत में काम करती हैं. पहले अगर उपज नहीं होता था, तो महाजन से दोगुने दाम पर अनाज कर्ज लेती थीं. लेकिन अब अनाज बैंक होने से उनके परिवार के सामने भुखमरी की नौबत नहीं आती. अभी तक हम ऐसे बैंक के बारे में जानते थे जहां से पैसे का कर्ज मिलता है. इसके बदले में हमें कई तरह के कागजात जमा करना होता है. पैसा लौटाने समय बैंक को ब्याज भी देना पड़ता है. लेकिन अब हम ऐसे बैंक के बारे में जानेंगे, जो पैसे नहीं अनाज का सहयोग करती है. जरूरतमंद इस बैंक से अनाज लेते हैं और समय आने पर अनाज ही लौटा देते है. कुछ सालों पहले शुरू किया गया है बैंक आज हर गांव को जोड़ता जा रहा है.
20 हजार के ऊपर लोग हो चुके हैं लाभान्वित
अनाज बैंक से केवल चावल मिलता है. अक्तूबर से नवंबर तक जिसे भी जरूरत होती है, बैंक से अनाज लेता है. एक बार में पांच किलो अनाज मिलता है. अनाज लेने के लिए कोई पहचान पत्र नहीं देना पड़ता है. बस नाम लिखवा दिया जाता है. इसके बाद उस परिवार को फरवरी और मार्च में अनाज वापस करते समय एक किलो अधिक अनाज के साथ कर्ज वापस करना होता है. 10 गांव में चल रहे अनाज बैंक से अब तक लगभग 20 हजार के ऊपर लोग इसका लाभ उठा चुके हैं. महमदपुर अनाज बैंक की चांदमति देवी ने बताया कि अगर कोई पांच किलो चावल लेता है, तो उसे वापस में छह किलो चावल देना पड़ता है.
एक साल में चावल बदल दिया जाता है
अनाज बैंक में हर साल ताजा चावल रखा जाता है. साल में एक बार चावल को बदल दिया जाता है. जो पुराने चावल होते हैं, उसे उसे बाजार में बेच कर ताजा चावल रख लिया जाता है. इससे गांव के लोगों को हमेशा ताजा चावल ही मिलता है. महजपुरा गांव में चल रहे अनाज बैंक की प्रभावती देवी ने बताया कि हम अनाज के लिए महाजन के पास नहीं जाते हैं. आपात स्थिति में भी अनाज बैंक से अनाज मिल जाता है.
11 साल पहले की गयी थी शुरुआत
अनाज बैंक की शुरुआत वर्ष 2005 में किया गया. एक्सन एड के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति इसका संचालन करती है. एक गांव मंगेरतेरपा और चिरता से इसकी शुरुआत की गयी थी. आज यह 10 से अधिक गांवों में संचालित होता है. हर गांव में 20 महिलाओं का समूह अनाज बैंक के लिए काम करता है. एक अनाज बैंक के लिए पांच महिलाओं का संचालन कमेटी बनायी जाती है. महजपुरा गांव की संचालन कमेटी की प्रभावती देवी ने बताया कि हम लोग खेत में काम भी करती हैं. साथ में अनाज बैंक भी चलाते हैं. पहले एक-एक अनाज के लिए महाजन के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता था, लेकिन अब खुद का अनाज बैंक होने से कोई समस्या नहीं है.
अन्य जिलों में भी बैंक शुरू करने की योजना
अनाज बैंक अब गांव से निकल कर जिलों में भी शुरू किया जायेगा. नौबतपुर, पालीगंज, विक्रम आदि जगहों पर इसकी शुरुआत की जा रही है. इससे इन इलाके के आसपास के गांवाें में भी अनाज बैंक बनाया जा रहा है. पटना के अलावा नवादा, नालंदा और सारण आदि जिलों में भी इसे शुरू करने की योजना है.
महिला सहयोग का अनुपम उदाहरण
गांव में आज भी महाजन का काफी दबदबा है. दोगुने दाम पर अनाज कर्ज के रूप में देता है. महिलाएं मिल कर अनाज बैंक चला रही हैं. जिस परिवार को अनाज की जरूरत होती है, वो अनाज बैंक से सहयोग लेता है. पैदावार होने पर चावल लौटाना होता है.
उमेश कुमार, संस्थापक, अनाज बैंक