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मायने रखती है ग्राहकों की पसंद

ऑटो इंडस्ट्री में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने एक नये चलन को जन्म दे दिया है. आज अधिकतर कंपनियां छोटी-बड़ी गाड़ियों के निर्माण से पहले ग्राहकों की पसंद जानना जरूरी समझ रही हैं. इसके लिए कंपनियां कई सर्वे करा रही हैं, जिसमें वे यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि वक्त के साथ ग्राहकों की पसंद […]

ऑटो इंडस्ट्री में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने एक नये चलन को जन्म दे दिया है. आज अधिकतर कंपनियां छोटी-बड़ी गाड़ियों के निर्माण से पहले ग्राहकों की पसंद जानना जरूरी समझ रही हैं. इसके लिए कंपनियां कई सर्वे करा रही हैं, जिसमें वे यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि वक्त के साथ ग्राहकों की पसंद और जरूरत कितनी बदली है और अब ग्राहक कैसी गाड़ी खरीदना चाहते हैं..

मैंने कहीं पढ़ा है कि स्टीव जॉब्स का मानना था कि ग्राहकों से उनकी पसंद पूछ कर प्रोडक्ट नहीं तैयार करने चाहिए, क्योंकि जितने दिनों में आप प्रोडक्ट को तैयार करेंगे, डिजाइन से लेकर प्रोडक्शन तक का वक्त गुजरेगा और तब तक ग्राहकों की पसंद बदल जायेगी. तब आप क्या करेंगे? इसका विकल्प दिया गया था, एक उल्टी प्रक्रिया के रूप में. आप ग्राहकों को बताइए की उन्हें क्या चाहिए. वक्त के साथ ग्राहकों की पसंद बदलने की कला को सीखिए और ग्राहकों के हाथ में सामान थमा दीजिए. यह फिलासफी मोबाइल फोन और लैपटॉप के लिए कारगर हो सकती है. लेकिन, कई तजुर्बे ऐसे हैं, जो बताते हैं कि ऐसे कई तरीके कारगर साबित हुए हैं, लेकिन वक्त और समाज ने दिलचस्प करवट ली है.

कुछ दिनों पहले अमेरिका में न्यूज इंडस्ट्री में एक प्रयोग के बारे में सुना था. अखबार के संपादक अपने पाठकों को अपनी न्यूज मीटिंग में शरीक कर रहे थे. कोशिश थी कि ये समझा जाये कि पाठक किन खबरों के बारे में जानना चाहते थे. उस मीटिंग में पाठक अपनी राय देते थे. वे बताते थे कि उनके लिए कौन-सी खबर अहम है, कौन-सी नहीं. किस मुद्दे पर उन्हें कितनी जानकारी चाहिए और कितना ज्ञान.. हालांकि, यह प्रक्रिया छोटी और आसान लगती है, लेकिन होती जटिल है और यह केवल एक क्षेत्र की बात नहीं है. कुल मिला कर अब वक्त सोशल मीडिया का हो गया है, जहां हर इनसान अपनी पसंद और नापंसद के बारे में कहीं ज्यादा जागरुक है. वह न सिर्फ एक धारणा रखने लगा है, बल्कि वह अपना विचार जिसे चाहे उस तक तुरंत पहुंचाना चाहता है और पहुंचा भी देता है. इसी बदलाव को हमने गाड़ी कंपनियों को अपनाते हुए देखा है.

टोक्यो मोटरशो में कार कंपनियों से जब बातें हुईं, तो लगा कि सभी कंपनियां अब आम ग्राहकों से कहीं ज्यादा नजदीक से जुड़ने की कोशिश में लगी हुई हैं. कंपनी अपनी गाड़ियों की डिजाइन और फीचर या टेक्नोलॉजी के मामलात में आम ग्राहकों को पहले से ज्यादा जगह दे रही हैं. ग्राहकों को क्या चाहिए, किस तरीके की गाड़ी चाहिए और कब चाहिए, इन सवालों से कार कंपनियां रोज सामना करती हैं.

जैसे निसान के प्रेस कांफ्रेंस में अपनी कांसेप्ट कारों को उतारते वक्त कंपनी के मुखिया कालरेस गोहन ने साफ कहा कि यह वक्त उन डिजिटल नेटिव्स का है, जिनका जन्म ही डिजिटल क्रांति के बाद हुआ था. इनकी दुनिया अलग है और इनकी पसंद अलग है. कंपनी ने अपनी कारों को विकसित करने के दौरान ऐसे ही आम युवा कार प्रेमियों को अपनी प्रक्रिया में शामिल किया था. अब कंपनियां साफ तौर पर ग्राहकों की पसंद को बिलकुल नजदीक से जानने में लगी हैं. यह इसलिए भी आश्चर्यजनक बात लगती है, क्योंकि मैंने अपने पिता के स्कूटर बुकिंग की कहानियां सुनी हैं, कि कैसे उन्हें स्कूटर के लिए वर्षो इंतजार करना पड़ा था. उस वक्त किसी के पास विकल्प नहीं था और कंपनियां निश्चिंत थीं. लेकिन अब कांपटीशन ऐसा हो गया है कि कंपनियों की पूरी सोच ही पलट गयी है.

जैसे हार्ली डेविडसन के नये लांच की बात याद आ रही है, जब कंपनी ने अब तक की सबसे छोटी 500-सीसी लिक्विड कूल्ड इंजनवाली मोटरसाइकिलें बना दी. कई लोगों को आश्चर्य हुआ, क्योंकि लोगों को लगता था कि अपने ब्रांड को लेकर हार्ली डेविडसन भारी भरकमवाले सेगमेंट से बाहर नहीं जायेगी, लेकिन ऐसा हुआ. इसके पीछे कंपनी ने सीधे कहा कि दुनिया भर के तीन हजार ग्राहकों से सर्वे करने के बाद कंपनी को पता चला कि ग्राहक छोटी बाइक्स चाहते हैं. छोटे शहरों के सफर में इंजन गरम न हो, इसके लिए कंपनी ने लिक्विड कूल्ड इंजन बनाया.

आज से कुछ साल पहले ग्राहकों की पसंद और उनकी नापसंद के हिसाब से प्रोडक्ट इतनी जल्दी नहीं बनते थे. हां, कुछ कंपनियों द्वारा छोटे-मोटे सर्वे किये जाते थे, यह जानने के लिए कि ग्राहकों को क्या पसंद है. उनमें से कुछ लागू होते थे, लेकिन वे आमतौर पर देश से बाहर बनी गाड़ियों में होनेवाली छोटी-छोटी तब्दीलियां थीं. वो बदलाव भी ऐसे होते थे, जिन्हें देश के बाहर डेवलप और बननेवाली कारों में शामिल किया जाता था. यानी बदलाव बहुत बाहरी होते थे, लेकिन अब यह फीडबैक बहुत गहराता जा रहा है. इस भागीदारी को हम आगे भी बढ़ते ही देखेंगे, क्योंकि कांपटीशन भी बढ़ता जा रहा है.
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