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जयंती पर विशेष: जब डॉ लोहिया आधी रात को हुए नजरबंद

श्रीकांत, वरिष्ठ पत्रकार नौ अगस्त, 1965 को डॉ लोहिया पटना के सर्किट हाऊस में ठहरे हुए थे. उस दिन विधानसभा पर प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने गोलियां चलायी थीं. सर्किट हाऊस के बगल में इंद्रदीप सिन्हा का आवास था. गोलियों की आवाज सुनकर वे छत पर और उसके बाद डॉ. लोहिया के पास सर्किट हाऊस […]

श्रीकांत, वरिष्ठ पत्रकार
नौ अगस्त, 1965 को डॉ लोहिया पटना के सर्किट हाऊस में ठहरे हुए थे. उस दिन विधानसभा पर प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने गोलियां चलायी थीं. सर्किट हाऊस के बगल में इंद्रदीप सिन्हा का आवास था. गोलियों की आवाज सुनकर वे छत पर और उसके बाद डॉ. लोहिया के पास सर्किट हाऊस गये. गोलियों की आवाज आ रही थी. चारों ओर से धुआं उठ रहा था.
इंद्रदीप सिन्हा ने डॉ लोहिया से कहा- यह हालत है, क्या करना चाहिए? तो उन्होंने कहा-देखो, क्या होता है!… हमलोगों को इस पर बयान नहीं देना चाहिए. डॉ लोहिया उसी सुबह जमशेदपुर से पटना पहुंचे थे. उस रात सर्किट हाउस के कमरा नंबर आठ में वह सोये थे.
जब पुलिस पहुंची, तो डॉ लोहिया ने कर्पूरी ठाकुर और रामानंद तिवारी को फोन किया. वे दोनों वहां पहुंचे, तो डॉ लोहिया ने उनसे कहा कि कल दमन विरोधी सभा का आयोजन करिये. वहीं से आधी रात को उन्हें गिरफ्तार किया गया.
पटना में नौ अगस्त को भारी हंगामा हुआ था. विधानसभा के समक्ष फीस कम करने की मांग को लेकर छात्रों पर पुलिस ने गोलियां चलायी थीं. 17 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. शहर में आगजनी और लूट-पाट की वारदात हुईं.
विधानसभा में विरोधी दलों ने काम रोको प्रस्ताव पेश किया. गांधी मैदान में शाम को सभा कर रहे नेताओं पर पुलिस ने जमकर लाठियां चलायीं. आंदोलनकारी अराजपत्रित कर्मचारियों के कई नेता गिरफ्तार किये गये. पटना के जिलाधिकारी जेएन साहू ने बाजाप्ता निर्देश दे दिया था कि संसोपा, भाकपा, आरएसपी तथा कुख्यात गुंडों को रात में गिरफ्तार किया जाये.
डॉ लोहिया ने अपनी गिरफ्तारी को लेकर लोकसभा के अध्यक्ष को भेजे गये पत्र में आरोप लगाया कि बारह बजे आधी रात को गिरफ्तार कर, पुलिस स्टेशन में कुर्सी
पर छह बजे सुबह तक बैठाये रखा गया! उसके बाद 150 किलोमीटर दूर ले जाया गया. अधिकारियों के मुताबिक उन्हें आगजनी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने आरोप लगाया कि बाद में नजरबंदी आदेश दिया गया और इस तरह अलग अपराध के लिए उनकी गिरफ्तारी निवारक नजरबंदी में बदल गयी. उनके नजरबंदी आदेश में बांकीपुर जेल का नाम बदल कर सेंट्रल जेल हजारीबाग कर दिया गया.
पटना के जिलाधिकारी जेएन साहू ने 18 अगस्त को डॉ लोहिया के आरोपों के संबंध में सरकार को जवाब भेजा. उन्होंने लिखा कि डॉ लोहिया के आरोप सही नहीं है. वहां प्रतिनियुक्त वरीय पुलिस अधिकारी ने डॉ लोहिया को गिरफ्तार किया और मेरे द्वारा जारी नजरबंदी के आदेश पर उन्हें ले जाया गया. गिरफ्तारी के वक्त नजरबंदी आदेश की एक प्रति डॉ लोहिया को उपलब्ध करा दी गयी थी.
लोहिया पर सरकार के आरोप
पटना के सीनियर एसपी ने नौ अगस्त को पटना के जिलाधिकारी को लिखा कि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, आरएसपी, भाकपा (वाम एवं दक्षिण) ने पटना बंद का आयोजन किया था. उनका आयोजन खाद्यान्न की कीमतें कम करने, कच्छ समझौता रद्द करने की मांग को लेकर था. उसी दिन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (भाकपा से जुड़ा संगठन) ने विधानसभा के समक्ष स्कूल फीस कम करने के लिए प्रदर्शन करने का एलान किया था.
प्रदर्शनकारी राज्य ट्रांसपोर्ट की बसों और कारों पर पथराव कर रहे थे. वे एसेंबली गेट पर पहुंचे और गेट के अंदर घुस जाना चाहते थे. जुलूस एसेंबली की तरफ बढ़ा. प्रदर्शनकारी परिसर में प्रवेश कर इसकी कार्यवाही को बाधित करना चाहते थे व एसेंबली और सचिवालय भवनों को क्षतिग्रस्त करना चाहते थे. उन्हें ऐसा करने से रोका गया तो भीड़ हिंसा पर उतारू हो गयी. इनकी हानिकारक कार्रवाई से लोगों में बहुत भय और चिंता घर कर गयी.
धारा 144 लागू किया गया और रात में कर्फ्यू लगा दिया गया. जांच में खुलासा हुआ कि इस अभियान को संगठित करने और अराजकता के लिए मुख्यतः निम्न लोग उत्तरदायी थे- डॉ. राम मनोहर लोहिया, एमपी, विधायक सुनील मुखर्जी, भोला प्रसाद सिंह, इंद्रदीप सिंह, गया सिंह, राज कुमार पूर्वे, कपिलदेव सिंह, तेज नारायण झा, कृष्णा चंद्र चौधरी, योगेन्द्र ठाकुर, राम अवतार शास्त्री, कर्पूरी ठाकुर, रामानन्द तिवारी, शेखर गांगुली, बसुता सोरेन, सूरज प्रसाद, रामचंद्र सिंह और चंद्रशेखर सिंह .
पटना के वरीय आरक्षी अधीक्षक ने नौ अगस्त को ही जिलाधिकारी को एक और पत्र भेजा, जिसमें शाम को डॉ लोहिया समेत अन्य नेताओं के भाषण का उल्लेख किया. उन्होंने लिखा कि नेताओं ने गांधी मैदान में उत्तेजक भाषण दिये. उनका भाषण सार्वजनिक व्यवस्था के लिए घातक था. पुलिस ने आधी रात को लोहिया को उठाया और कोतवाली पुलिस स्टेशन में रात भर बैठाये रखा. पुलिस, उस रात विपक्षी नेताओं के घर को घेरती रही और नेताओं को पकड़ती रही.
लोहिया की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन
डॉ लोहिया की गिरफ्तारी के खिलाफ 11 अगस्त को दिल्ली में गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा के आवास पर सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया. उसी दिन लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रों ने केबी सहाय का पुतला दहन किया. सोशलिस्ट पार्टी ने 16 अगस्त को देश भर में लोहिया दिवस मनाने का फैसला किया. उसी दिन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के आवास पर हजारों संसोपा कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया. वे संसद भवन में प्रवेश करना चाहते थे. पुलिस ने 144 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया.
राजनारायण जिला बदर
लोहिया कि गिरफ्तारी के बाद सोशलिस्ट नेता राजनारायण 12 अगस्त को पटना पहुंचे. इसकी सूचना जैसे ही जिला प्रशासन को मिली कमिश्नर, पुलिस के जवान प्लेटफार्म पर धमक गये.
उन्होंने राजनारायण को पश्चिम की ओर जाने वाली गाड़ी में बैठा दिया. उन्हें कहा गया कि आप पटना शहर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं. बनारस में राजनारायण ने पत्रकारों को यह जानकारी दी और कहा बिहार में जंगलराज है. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष एसएम जोशी बंबई (अब मुंबई)से पटना के लिए रवाना हुए थे. पुलिस द्वारा उन्हें मुगलसराय में रोक दिया गया. उन्हें पुणे जाने पर मजबूर होना पड़ा.
संपादक पर हुआ डीआइआर
डॉ राम मनोहर लोहिया की गिरफ्तारी के बाद उसी दिन 10 अगस्त को प्रकाशित सर्चलाइट की खबर-‘पटना बंद टर्नस ब्लडी’, पर पटना के वरीय आरक्षी अधीक्षक फहीम अहमद ने जिलाधिकारी को पत्र भेजकर बताया कि ‘‘द सर्चलाइट’’ ने अपने 10 अगस्त, 1965 के अंक में ‘खूनी पटना बंद’, ‘पुलिस ने जनता को बौखलाया’ जैसे मुख्य शीर्षक देकर ‘पटना बंद’ की खबर को काफी तोड़-मरोड़ कर पेश किया. तोड़-मरोड़ कर खबरों को प्रकाशित करने के कारण मिस्टर टीजेएस जॉर्ज के विरूद्ध डीआइआर के तहत कार्रवाई की गयी.
अगले दिन 11 अगस्त को टीजेएस जॉर्ज को उनके पाटलिपुत्र आवास से गिरफ्तार कर लिया गया और बांकीपुर जेल भेज दिया गया. बाद में उन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया.
जार्ज की पत्नी अमू जार्ज ने पटना हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की. जार्ज की ओर से मॉरीशस के वकील मदन मोहन गजाधर के साथ वीके कृष्ण मेनन आये. मुख्य न्यायधीश और जस्टिस आरजे बहादुर ने जार्ज को एक हजार रुपये के मुचलके पर बेल देने का आदेश दिया, लेकिन सरकार इस मामले को सर्वोच्च न्यायलय ले गयी. और इस तरह जार्ज का केस डॉ लोहिया के केस के साथ जुड़ गया.

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