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बीमारी नहीं, बस एक दौर है वृद्धावस्था

वक्त के साथ बढ़ती उम्र का एहसास सभी को होता है. शरीर कुछ कमजाेर-सा नजर आने लगता है, चलते की गति धीमी होने लगती है और छोटे-छोटे कामों में भी थकान महसूस होने लगती है. उम्र के इस पड़ाव पर जहां लोग वृद्धावस्था की ओर बढ़ते कदमों की आहट को समझ कर स्वास्थ्य व अच्छी […]

वक्त के साथ बढ़ती उम्र का एहसास सभी को होता है. शरीर कुछ कमजाेर-सा नजर आने लगता है, चलते की गति धीमी होने लगती है और छोटे-छोटे कामों में भी थकान महसूस होने लगती है. उम्र के इस पड़ाव पर जहां लोग वृद्धावस्था की ओर बढ़ते कदमों की आहट को समझ कर स्वास्थ्य व अच्छी जीवनशैली को अपनाना शुरू कर देते हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस परिवर्तन को बीमारी समझ कर बेवजह ही परेशान रहते हैं. यदि आपको भी बढ़ती उम्र के लक्षण तनावग्रस्त कर देते हैं, तो आपको जरूरत है उम्र के इस पड़ाव के प्रति अपने नजरिये में थोड़ा-सा परिवर्तन लाने की…
वृद्धावस्था में एक ओर जहां बुजुर्गों को स्वास्थ्य प्रति पहले से ज्यादा सजद रहने की जरूरत हाेती है, वहीं कुछ बुजुर्ग सजग रहने की बजाय शकी होना शुरू कर देते हैं. छोटी-सी परेशानी भी उन्हें बड़ा तनाव दे देती है. वे अपने काम को लेकर दूसरों पर जरा भी विश्वास नहीं करते. साधारण-सी बातों पर वे खुद तो परेशान होते ही हैं, दूसरों को भी परेशान कर देते हैं. यदि आपके व्यवभाव में भी इस तरह के परिवर्तन आ रहे हैं, तो परेशान होकर नहीं, बल्कि कुछ बातों पर ध्यान देकर आप उम्र के इस पड़ाव को खुशहाली के साथ जी सकते हैं.
सजग रहें, चिंतित नहीं
पटना के 70 वर्षीय श्री गोपाल कृष्ण को शिकायत है कि वे इतने बूढ़े हो चुके हैं फिर भी उनका कोई इलाज नहीं कराया जा रहा, उन्हें कोई दवा नहीं दी जा रही. जबकि गोपाल जी को ऐसी कोई बीमारी है ही नहीं कि उन्हें दवा दी जाये. डॉक्टर उन्हें यही सलाह देते हैं कि उन्हें दवाओं पर आश्रित होने की नहीं, बल्कि सेहत को बरकरार रखनेवाली जीवनशैली को अपनाने की जरूरत है.
वृद्धावस्था में बेवजह खुद को बीमार समझने वाले गोपाल जी अकेले बुजुर्ग नहीं हैं, बल्कि ऐसे कई लोग हैं जिन्हें लगता है कि वे बूढ़े हो चुके हैं तो उन्हें कुछ दवाईयां खानी ही चाहिए. जबकि उम्र बढ़ने के साथ शरीर का कुछ कमजाेर होना एक आम परिवर्तन है. इस परिवर्तन को बीमारी समझ कर बेवजह खुद को मरीज समझना ठीक नहीं. आप खुद को बीमार समझने की बजाय बीमारी से दूर रहने का प्रयास करें, तले-भुने पदार्थों के सेवन से बचें, सर्दी-जुकाम होने पर एहतियात बरतें व कोई समस्या होने पर तुरन्त डाॅक्टरी परामर्श लें. लेकिन हर वक्त बीमार हो जाने के तनाव से ग्रसित न रहें.
भरोसा करें, अपनों को वक्त दें
पांच साल पहले रिटायर हो चुकी प्रोफेसर मनोरमा गुप्ता हमेशा से ही सेल्फ डिपेंटेंट रही हैं. अपने छोटे-बड़े हर काम वह खुद से ही करती आयी हैं. लेकिन अब उनसे पहले जितना काम नहीं हो पाता, इसी के चलते वे अपनी पोती शिखा को ड्रॉर साफ करने या कपड़ों को ठीक तरह से व्यवस्थित करने जैसे काम कह देती हैं. शिखा भी अपनी दादी का काम पूरे मन से करती है. मगर अकसर ऐसा होता है कि मनोरमा जी शिखा के काम से संतुष्टी नहीं होती और दोबारा से उस काम को करना शुरू कर देती हैं. दादी की इस बात पर शिखा बेहद नाराज हो जाती है.
यह आदत कई लोगों में देखने को मिलती है. यदि आप भी इस आदत के शिकार हैं, तो आपको जरूरत है अपनों को कुछ वक्त देने व उन पर भरोसा करने की. भले ही आपने ताउम्र हर काम को बारीकी और पूरी निपुर्णता के साथ किया हो, लेकिन यह जरूरी नहीं कि उसी काम को दूसरे लोग आपकी तरह ही करें. हर व्यक्ति के काम करने का अपना तरीका होता है. ऐसे में आप अपने अनुभवों के आधार पर दूसरों को सलीके से काम करने के गुण ताे सिखा सकती हैं, लेकिन उनके द्वारा किये गये काम को बेकार बताना ठीक नहीं.
न पालें लोगों से घिरे रहने का शौक
कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें बढ़ती उम्र के साथ यह डर सताने लगता है कि उनके बच्चे अपनी-अपनी लाइफ में सेटेल होने के बाद उन्हें वक्त देना बंद कर देंगे. वे उनकी परवाह नहीं करेंगे. इसी के चलते कुछ लोग छोटी-सी बात या परेशानी कोभी बड़ा बनाना शुरू कर देते हैं, ताकि उनकी चिंता करनेवाले लोग हर वक्त उनकी देखभाल करें और उनके इर्द-गिर्द बनें रहें.
यदि आपके मन में भी इस तरह कर इनसिक्योरिटी रहती है, तो अापको जरूरत है अपने नजरिये को बदलने की. हां, यह सच है कि बच्चों के बड़े होने के बाद उनकी एक पर्सनल लाइफ हो जाती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं होता उन्होंने आपको अकेला छोड़ दिया है. उन्हें थोड़ा स्पेस दें और इस नकारात्मकता को दिल से निकाल कर उम्र के इस पड़ाव का आनंद लेने के बारे में सोचें. पूरी उम्र आपने दूसरों के बारे में सोचने में बिता दी, अब वक्त अपने बारे में सोचने व उन शौकों को पूरा करने का जिन्हें आप वक्त की कमी के चलते पूरा नहीं कर पाये.
-प्राची खरे
लंबी उम्र के लिए जरूरी है सोशल लिंक बनाना
यदि आप लंबी उम्र तक जीना चाहते हैं तो रिटयरमेंट के बाद अपने आस-पास के लोगों से मेल-जोल बढ़ाना, बुक क्लब या फिर चर्च ग्रुप से जुड़ना शुरू कर दें. हाल में हुए एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है कि लंबी उम्र पाने के लिए रिटायरमेंट के बाद सोशल लिंक्स बनाना फिटनेस पर ध्यान देने से भी ज्यादा आवश्यक है.
ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी द्वारा किये गये इस सर्वेक्षण में वैज्ञानिकों ने छह वर्ष पहले रिटायर हो चुके अंगरेजी पुरुषों और महिलाओं के एक समुह को शामिल किया, जिसमें विशेषज्ञों ने पाया कि रिटायरमेंट के बाद अधिक लोगों से लिंक रखनेवाले लोगों में अकास्मिक मौत का खतरा काफी कम होता है.
रिटायर हो चुके वृद्धों पर किये गये पहले के सर्वेक्षणों में यह तथ्य सामने अा चुके हैं कि लगभग 25 प्रतिशत नव-सेवानिवृत्तों में काम छोड़ देने के बाद स्वास्थ्य में गिरावट देखने को मिलती है. इसका कारण सामाजिक अलगाव का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ना है. वहीं जो लोग रिटायरमेंट के बाद बुक क्लब, चर्च ग्रुप या स्पाेर्ट्स क्लब जैसे सोशल लिंक्स रखते हैं उनकी उम्र अकेलेपन के घिरे रहनेवाले वृद्धों से ज्यादा लंबी होती है.
इस सर्वेक्षण में पाया गया कि सोशल लिंक्स न रखनेवाले 6.6 सेवानिवृत्त वृद्धों की रिटायरमेंट के पहले छह साल में ही मौत हो जाती है. वहीं सोशल ग्रुप से जुड़े वृद्धों में रिटायरमेंट के पहले छह साल में मौत का खतरा मात्र दो प्रतिशत ही पाया गया.

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