छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में रह कर काम करने वाली महिला पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम ने कहा है कि वे पुलिस और पुलिस नियोजित प्रताड़ना से तंग आकर जगदलपुर छोड़ रही हैं.
उधर पिछले कई सालों से आदिवासियों की मुफ़्त क़ानूनी मदद करने वाली संस्था जगदलपुर लीगल एड की महिला वकीलों ने भी कहा है कि वो बस्तर पुलिस की प्रताड़ना के कारण जगदलपुर छोड़ने के लिए मजबूर हैं.
इससे पहले पूर्व विधायक और आदिवासी महासभा के अध्यक्ष मनीष कुंजाम ने पुलिस पर अपनी हत्या की साज़िश रचने का आरोप लगा कर भूमकाल दिवस पर आयोजित अपने सारे कार्यक्रम रद्द कर दिए थे.
पिछले पांच साल से बस्तर में रह रहीं मालिनी सुब्रमण्यम अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसायटी के लिए काम करती रही हैं. बाद में उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की.
उनका दावा है कि बस्तर में कई फ़र्ज़ी मुठभेड़ की ख़बरें प्रकाशित करने के कारण इसी महीने सामाजिक एकता मंच के सदस्यों ने उन पर माओवादियों का समर्थक होने का आरोप लगा कर उनके घर पर नारेबाज़ी की, अपशब्द कहे और पत्थरबाज़ी भी की थी.
बीबीसी से बातचीत में मालिनी ने बताया, "इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद मुझसे जुड़े लोगों को पुलिस ने पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित करना शुरू किया. मेरे घर की नौकरानी को रात-बिरात कई बार पुलिस अपने साथ ले गई. मुझसे तुरंत मकान ख़ाली कराने के लिए पुलिस ने मेरे मकान मालिक पर दबाव बनाया."
मालिनी ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनकी रिपोर्ट पर कार्रवाई करने की बजाए उन्हें ही अपराधी साबित करने की कोशिश की और इसके लिए कई हथकंडे अपनाए.
स्थानीय नागरिकों को उनके ख़िलाफ़ बयान देने के लिए डराया-धमकाया गया.
मालिनी ने कहा कि वे असुरक्षित महसूस कर रही हैं, इसलिए उन्होंने बस्तर ज़िला मुख्यालय जगदलपुर को छोड़ने का फ़ैसला किया है.
उधर जगदलपुर लीगल एड ग्रुप की महिला वकीलों को भी पिछले साल अक्तूबर में बार एसोसिएशन ने ये कहते हुए मुक़दमें की पैरवी करने से रोक दिया कि वे स्थानीय बार एसोसिएशन की सदस्य नहीं हैं.
ग्रुप की सदस्य शालिनी गेरा ने बीबीसी को बताया कि जिस मकान में उनका घर और दफ़्तर था उस मकान के मालिक पर पुलिस ने दबाव बनाया कि वो उनसे एक हफ़्ते के भीतर घर ख़ाली करवाए.
सामाजिक एकता मंच के सदस्यों ने भी उन पर माओवादी होने का आरोप लगाते हुए नारे बाज़ी की.
हालांकि सामाजिक एकता मंच के सदस्यों का कहना है कि वो क़ानूनी तौर पर ऐसे लोगों का विरोध जारी रखेंगे जो बाहर से आकर इस जगह का माहौल ख़राब कर रहे हैं.
इस बीच मानवाधिकार संगठन एम्नेस्टी इंटरनेशनल समेत कई संस्थाओं ने पुलिस की आलोचना करते हुए कहा है कि बस्तर में पुलिस और पुलिस द्वारा तैयार किए गए कथित सामाजिक संगठन निजी सेनाओं की तरह बर्ताव कर रहे हैं. भारत सरकार को इस पर तत्काल रोक लगानी चाहिए.
इस सिलसिले में पुलिस का पक्ष जानने के लिए बीबीसी ने बस्तर के आईजी एसआरपी कल्लुरी और ज़िले के एसपी आरएन दास से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
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