2011 में महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने नदियों के खनन के खिलाफ आदेश जारी किया. उस आदेश के मुताबिक नदियों से दो मीटर से ज्यादा बालू निकालने की इजाजत नहीं है. पर बिहार की नदियों से 7-8 मीटर की गहराई तक बालू निकाली जाती रही है. बिहार नदियों का प्रदेश रहा है. नदियों ने यहां के लोगों को पाला-पोसा है. लोगों के जीवन से घुली-मिली रही हैं. फिर क्या वजह है कि सदियों से बहने वाली यहां की नदियां अपना रास्ता बदलने लगी हैं. वे कहीं या तो सूख रही हैं या फिर विकराल रूप लेकर गांव के गांव हर साल नष्ट कर देती हैं. फल्गु हो या पुनपुन, दरधा हो या मंगुरा या महाने, दुर्गावती हो, सोन हो या गंडक, इन नदियों में पानी की सतहें रेत में बदल गई हैं.
अन्य नदियों के पानी का रंग मटमैला हो गया है. तमाम दिशाओं से आने वाली नदियों ने अपनी आंखें मूंद ली हैं. जिन नदियों में बारहो माह पानी का साम्राज्य रहता था, टाल के गांव टापुओं की तरह दिखते थे वहां अब पानी का नामोनिशान नहीं है. बस्तियां सूखी पड़ी हैं. भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि बिहार की नदियों से अंधाधुंध बालू निकालने के कारण नदियों का अस्तित्व खतरे में पड. गया है. हाल ही में महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने नदियों के खनन के खिलाफ आदेश जारी किया. उस आदेश के मुताबिक नदियों से दो मीटर से ज्यादा बालू निकालने की इजाजत नहीं है पर बिहार की नदियों से 7-8 मीटर की गहराई तक बालू निकाली जा रही है. नदियों से बालू निकालने के लिए जिन मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है उनसे पर्यावरण पर खतरा बढ. गया है. सवाल सिर्फ पर्यावरण का नहीं है बल्किनदियों पर निर्भर जीव-जंतु समेत सभ्यता के बचे रहने का भी है. जो हालात हैं उनसे यह खतरा है कि आने वाले दिनों में नदियां कहीं मरु भूमि में तब्दील न हो जाएं.
गंगा की बलुई मिट्टी पर उगी फसलें
बिहार की सूखती इन नदियों से कई जीवन प्रभावित हो रहे हैं. मछुआरों का काम बंद हो गया. बालू खनन के लिए मशीनों के उपयोग ने मजदूरों की रोजी-रोटी छीन ली. वे पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं. पर्यावरणविद् प्रो आरके सिन्हा का मानना है नदियों से बड़ी मात्रा में बालू खनन के कारण नदी का प्रवाह बाधित हुआ. गंगा पहले उत्तर से दक्षिण की ओर बहती थी अब वह पश्चिम से पूरब की ओर बहने लगी है. वे मानते हैं कि बालू के अत्यधिक खनन के कारण उत्तर बिहार से लेकर पूर्वी सोन नदी का मुहाना गहरा हो गया है. जिसने नदी की दिशा बदल दी है. आहार श्रृंखला को नुकसान पहुंचा है. इससे नदियों का भरा-पूरा संसार खत्म हो रहा है. नदियों के तट पर बसने वाली सैकड़ो प्रजातियां नष्ट हो गई हैं. मछलियां, घोंघा, डॉल्फिन के अलावा छोटे-छोटे जीव-जंतु भी प्रभावित हुए हैं. इसके अलावा नदियों के आस-पास स्थापित बडे.-बडे. ईंट भट्ठों से निकलने वाले मलबे ने उनका प्रवाह बाधित किया है.
पटना से गंगा के दूर होते जाने की यह एक बड़ी वजह के बारे में भू-वैज्ञानिक अतुल पांडेय का कहना है कि जब नदियों को उसकी स्वाभाविक प्रक्रि या से रोका जाएगा तो उससे प्रकृति संतुलन के बिगड.ने का खतरा रहता है. आमतौर पर नदियां स्वाभाविक रूप से बालू बाहर निकालती हैं. जरूरत से ज्यादा बालू निकालने से नदियों और उसमें रहने वाले जीवों पर असर होगा. नदियों का जल प्रबंधन प्रभावित हो सकता है. उसकी इकोलॉजी बिगडे.गी तो आस-पास के इलाके भी प्रभावित होंगे. इसके अलावा बालू ढुलाई के लिए बडे.-बडे. ट्रक नदी के छोर तक जाते हैं. ट्रकों से निकलने वाले रसायन भी नदियों को नुकसान पहुंचाते हैं. देश के दूसरे राज्यों में बालू खनन की सीमा निर्धारित है. गोवा में पर्यावरण असंतुलन देखते हुए वहां की तीन नदियों के खनन पर रोक लगा दी गई है. बिहार में हर वर्ष बालू खनन के लिए नदियों की नीलामी होती है.
सूखी पड़ी एक धारा
वर्ष 2011 में सरकार ने भोजपुर, पटना व छपरा जिला की सभी नदियां मात्र 53 करोड. में ठेके पर दी. एक अनुमान के तहत प्रति वर्ष सिर्फ सोन नदी से सात अरब की लागत की बालू निकलती है. तीन वर्ष में सिर्फ सोन नदी से 21 अरब रु पए का बालू बेची जा रही है. सोन नदी की बालू विश्वस्तर की मानी जाती है. इन तीनों जिलों में गंगा, पुनपुन, सरयू, गंडक, फल्गु जैसी बड.ी नदियों के अलावा अनेक छोटी नदियां भी मौजूद हैं जिनसे बालू निकाली जाती है. हर रोज 18 से 22 करोड. रु पए तक की बालू निकाली जाती है. इस धंधे में राज्य के बडे.-बडे. माफियाओं का कब्जा है. खनन विभाग के आदेश के बावजूद बालू निकालने के लिए 20 फुट तक गड्ढा किया जाता है. नियम के अनुसार नदी की ऊपरी सतह में मौजूद बालू उठाने का प्रावधान है. पटना जिले में 50 ऐसे घाट हैं जहां बालू खनन होता है. कोईलवर नदी से बालू खनन के कारण उस इलाके के पुल खतरे में हैं. नदी के आस-पास से जाने वाली रेलवे लाइनों पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे हैं.
खनन एवं भूतत्व विभाग के पूर्व प्रधान सचिव फूल सिंह ने बताया कि फिलहाल सरकार ने दिन में मशीनों से खुदाई पर रोक लगा दी है. यह आकलन किया जा रहा है कि कौन-कौन नदियां खतरे के घेरे में है. रिपोर्ट आने के बाद हमलोग उस मसले पर निर्णय लेंगे. बालू मजदूर एवं नाविक कल्याण संघ का कहना है कि बालू माफियाओं ने उनसे उनका रोजगार छीन लिया है. लोग आज भी यकीन करते हैं कि गंगा समेत सभी नदियां लौट आएंगी पर यह तभी होगा जब नदियों को बालू माफियाओं के चंगुल से मुक्ति मिलेगी. (संडे नई दुनिया से साभार)