।। दक्षा वैदकर ।।
हम सभी पैसे के पीछे भागते हैं. पैसा कमाते-कमाते, खुशी तलाशते-तलाशते हुए हम उन चीजों को भूल जाते हैं, जिन्हें हम पैसे से भी नहीं खरीद सकते हैं. हमें लगता है कि हम पैसों से खुशी खरीद रहे हैं, लेकिन यह गलत है. हम पैसों से केवल दो-चार चीजें खरीद रहे हैं और उन चीजों का उपयोग कर खुश हो रहे हैं. इस परिस्थिति में यह कहना कि हमने पैसों से खुशी खरीदी, गलत होगा.
हमें जीवन का समीकरण सही करना होगा. वरना पूरा जीवन नकली खुशियां बटोरने में बीत जायेगा. हम बच्चे को वीडियोगेम दिला देते हैं और पूछते हैं कि अब तो तुम खुश हो न? हमें कोई बात परेशान करती है और हम मूड ठीक करने के लिए टीवी देखते हैं, फिल्म देखने चले जाते हैं या लंबी छुट्टी लेकर परिवार के साथ घूमने चले जाते हैं. हमें लगता है कि ऐसा करने से हमने खुशी को पा लिया है. हमारी समस्या खत्म हो गयी है, लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है. हम रुपये खर्च कर के बस कुछ समय के लिए परेशानी से अपना ध्यान हटाते हैं. जब रुपये खत्म हो जाते हैं, फिल्म खत्म हो जाती है, शॉपिंग से मन भर जाता है, छुट्टी खत्म हो जाती है, तो हम दोबारा परेशानियों से घिर जाते हैं. दुख व परेशानी से निकलने का यह तरीका ठीक नहीं है. हमें उसका भीतर से इलाज करना होगा.
सोचने वाली बात है कि यदि आपके पेट में दर्द है और आप टीवी पर अपना पसंदीदा सीरियल देखने लगते हैं, तो आपका ध्यान पेट दर्द पर नहीं जाता. ध्यान तो तब जायेगा, जब सीरियल खत्म हो जायेगा. यदि आप चाहते हैं कि आप जीवनभर खुश रहें, तो आप जीवन भर टीवी नहीं देख सकते. इसके लिए आपको पेट दर्द का इलाज करना होगा. टीवी, शॉपिंग, मूवी, हॉलीडे में खुशियां तलाशना तो एक तरह से ठीक भी है. कोई बहुत बुरी बात नहीं है, लेकिन वे लोग जो परेशानियों से दूर भागने के लिए स्मोकिंग व अल्कोहल का सहारा लेते हैं, उन्हें इस समस्या पर विचार करना होगा. ये कहना और मानना सरासर गलत है कि ‘यार आज बहुत थका हुआ हूं, बहुत टेंशन में हूं, सिगरेट पीने से ठीक हो जाऊंगा.’ इस तरह आप केवल अपना नुकसान कर रहे हैं.
बात पते की..
जब भी आप दुखी हों, इसकी वजह तलाशें और उस समस्या को सबसे पहले हल करें. बेवजह रुपये खर्च कर के खुशियां तलाशना बंद करें.
खुशियां बाहर की चीजों से नहीं बल्कि अंदर की संतुष्टि से आती है. अपने मन को शांत करने के लिए सुख-सुविधाएं नहीं, बल्कि दोस्त बनाएं.