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आकांक्षाओं पर खरा उतरे नया साल

नूतन उल्लास के साथ नववर्ष से देश को अनेक नयी उम्मीदें भी बावस्ता हैं. अर्थव्यवस्था, रोजगार आदि में नयी संभावनाओं के साथ महिलाओं, किसानों, युवाओं समेत विभिन्न वर्गों की विशेष आशाएं भी हैं. अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय देश के जाने-माने विद्वानों, विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में नये साल की अपनी-अपनी […]

नूतन उल्लास के साथ नववर्ष से देश को अनेक नयी उम्मीदें भी बावस्ता हैं. अर्थव्यवस्था, रोजगार आदि में नयी संभावनाओं के साथ महिलाओं, किसानों, युवाओं समेत विभिन्न वर्गों की विशेष आशाएं भी हैं.

अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय देश के जाने-माने विद्वानों, विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में नये साल की अपनी-अपनी पांच प्रमुख आकांक्षाओं को सूचीबद्ध किया है. वर्ष 2016 की शुभकामनाओं के साथ नववर्ष की यह विशेष प्रस्तुति…

विकास दर बढ़ेगी, नौकरियां आयेंगी

1 विकास दर में वृद्धि : भारतीय अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ ली है और इस नये साल में जीडीपी ग्रोथ रेट यानी विकास दर में वृद्धि होने के प्रबल आसार हैं. विकास दर में वृद्धि आधा प्रतिशत से लेकर पौना प्रतिशत होने की पूरी संभावना है इस नये साल में.

2 नयी नौकरियों का सृजन : विकास दर में बढ़ोतरी से नौकरियां आयेंगी. एक प्रतिशत विकास दर बढ़ने से देश में 15 लाख नौकरियों का सृजन होता है. और जब एक नौकरी किसी को मिलती है, तो उसके साथ तीन और नौकरियों का सृजन आसानी से हो जाता है.

यानी विकास दर में एक प्रतिशत की वृद्धि से देश में 60 लाख नौकरियों का सृजन हो जाता है. ऐसे में अगर विकास दर में पौना प्रतिशत तक की भी वृद्धि होती है, तो 45 लाख नौकरियों का सृजन हो जायेगा. और इस नये साल में इसकी पूरी संभावना है.

3 महंगाई पर नियंत्रण : इस साल महंगाई कुछ नियंत्रण में आयेगी. लेकिन हां, इस महंगाई में स्थानीय समस्याएं कहीं-कहीं मुंह उठायेंगी. मसलन, किसी राज्य में प्याज की कीमत ज्यादा हो गयी, तो किसी राज्य में दूसरी खाद्य वस्तु की कीमत ज्यादा हो गयी. यह समस्या वस्तुओं की आपूर्ति की बाधा के कारण उत्पन्न होती है.

4 प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि : जहां तक वित्तीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट) का सवाल है, इसके इस साल नियंत्रण में रहने की पूरी उम्मीद है. हमारी अर्थव्यवस्था जैसे ही आगे बढ़ेगी, देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों की आवक तेज होगी, यानी एफडीआइ आयेगी. एफडीआइ के आने से रोजगार में वृद्धि होती है. ऐसे में जाहिर है कि हमें एफडीआइ लाने के लिए अच्छी अर्थनीति बनाने की जरूरत होगी.

5 घाटे की कंपनियों पर हो पुनर्विचार : एक बहुत महत्वपूर्ण बात मैं यह कहना चाहता हूं कि देश में जितनी भी सरकारी कंपनियां घाटे में चल रही हैं, उन्हें बेच देना चाहिए. उनका निजीकरण कर देना चाहिए, क्योंकि इनके घाटे में चलने से सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है. इस आर्थिक बोझ से कई तरह के नुकसान हैं.

मसलन, एयर इंडिया को बेच देना चाहिए. इसके घाटे में चलने से हमारे टैक्स का पांच हजार करोड़ रुपये एयर इंडिया को चलाने में लगते हैं. अर्थव्यवस्था के लिहाज से ऐसे घाटे ठीक नहीं होते.

– गुरचरण दास

अर्थशास्त्री व लेखक

इस साल ओलिंपिक से उम्मीदें बहुत

-जी राजारमन

वरिष्ठ खेल पत्रकार

1 आयेंगे अधिक पदक : नया साल 2016 ओलिंपिक का साल है. इस साल से हमें सबसे बड़ी उम्मीद यह है कि पिछले आेलिंपिक के मुकाबले इस बार हमार खिलाड़ी ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करेंगे और ज्यादा मेडल भी ले आयेंगे.

2 हॉकी टीम चमके : हॉकी इंडिया अगर टॉप सिक्स फिनिश में आ जाये, तो हमारे लिए बहुत बढ़िया होगा, क्योंकि कई बार से ओलिंपिक में हॉकी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है.

3 जोड़ी जल्द बनाएं : रियो ओलिंपिक में मिक्स डबल टेनिस के लिए अगर सानिया मिर्जा के साथ रोहन बोपन्ना खेलते हैं, तो हम इस जोड़ी से एक मेडल की उम्मीद कर सकते हैं. वैसे सानिया के साथ लिएंडर पेस की जोड़ी को लेकर हम इमोशनल रहते हैं. अभी ओलिंपिक में छह महीने बाकी हैं. टेनिस इंडिया को जल्दी ही फैसला कर लेना चाहिए कि जोड़ी किसकी बनेगी. इसके साथ ही हम यह कह सकते हैं कि शूटर, बैडमिंटन, तीरंदाजी में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है.

4 खिलाड़ियों पर न हो दबाव : पिछले ओलिंपिक में सायना नेहवाल ने मेडल जीता था, लेकिन हमें उस पर यह दबाव नहीं बनाना चाहिए. किसी खिलाड़ी पर मेडल जीतने के लिए दबाव नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि हर खिलाड़ी बहुत मेहनत करता है. सायना ही नहीं, बल्कि तीरंदाज दीपिका कुमारी, पहलवान सुशील कुमार, नरसिंह यादव, बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू, मुक्केबाज विजेंदर कुमार और साथ ही अन्य कई भारतीय खिलाड़ियों से हमें बहुत उम्मीदें हैं, लेकिन उन पर दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए. उन्हें फ्री दिमाग से अपना खेल खेलने देना चाहिए. मेडल और रिकॉर्ड खुद ब खुद बनते जायेंगे.

5 प्रशासनिक व्यवस्था सुधरे : मौजूदा भारतीय क्रिकेट में हर स्तर पर सुधार की जरूरत है, सिर्फ बीसीसीआइ में ही नहीं. खास तौर से इसकी प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार इस खेल के लिए बहुत जरूरी है. टीम इंडिया को हर फॉर्मेट में एक सतत प्रदर्शन की जरूरत है, चाहे घरेलू मैदान हो या बाहरी, हर जगह उसे बराबर प्रदर्शन करना होगा, तभी संभव है कि इस साल वह कई कीर्तिमान स्थापित कर पायेगी.

प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करें

– प्रोफेसर यशपाल

शिक्षाविद

1 प्राथमिक शिक्षा पर हो फोकस : हमारे बेहतर समाज के लिए हमारे बच्चों की शिक्षा एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है. अगर वह कमजोर हुई, तो समझिए कि उनकी उच्च शिक्षा में ठोस मजबूती नहीं आयेगी. प्राथमिक शिक्षा हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था का आधार स्तंभ है, इसलिए इस स्तर पर हमें सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. यही वह स्तर है, जहां से बच्चे के बेहतर भविष्य की बुनियाद पड़ती है. यह शिक्षा तय करती है कि वह आगे चल कर क्या कुछ कर पायेगा. जाहिर है, इस स्तर को मजबूत बनाने के लिए हमें प्राथमिक शिक्षकों का स्तर भी मजबूत करना होगा. पिछले कुछ बरसों में भारत की बुनियादी शिक्षा में यह स्तर थोड़ा कमजोर हुआ है.

2 अच्छे शिक्षकों की कमी दूर हो : अच्छे शिक्षकों की कमी से हम जूझ रहे हैं. इसलिए जरूरी है कि हम अच्छे प्राथमिक शिक्षकों के लिए अच्छा और ईमानदारी भरा प्रयास करें और अपनी शिक्षा नीति में इन बुनियादी तत्वों को शामिल करें.

3 छात्र-शिक्षक तालमेल बढ़े: बच्चे एक-दूसरे के साथ सिर्फ पढ़ते ही नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे को पढ़ाते भी हैं. साथ ही शिक्षकों को भी बच्चों की संवेदना के साथ घुलने-मिलने का मौका मिलता है. बच्चों और शिक्षकों में बेहतरीन तालमेल और शिक्षा काे लेकर जागरुकता ही हमारी प्राथमिक शिक्षा को एक नया आयाम दे सकती है.

4 नयी पीढ़ी को संवारें : आज जो कुछ भी हम कर पाये हैं, जो कुछ भी हम बना पाये हैं, चाहे वह ज्ञान की बात हो या विज्ञान की, यह सब बच्चों की वजह से ही हो पायी है, क्योंकि उन्होंने ही अपनी बुनियादी शिक्षा के वक्त वैसा करने का संकल्प लिया और बड़ा होकर उस संकल्प को पूरा किया. आप सोचिए, क्या कोई ऐसा व्यक्ति है, जिसे कोई शिक्षा न मिले और वह बड़ा होकर ज्ञान-विज्ञान का बड़ा पारखी बन जाये. ऐसा कोई नहीं कर सकता.

5 रुचिकर पाठ्यक्रम : जहां तक पाठ्यक्रमों को बेहतर बनाने की बात है, तो मेरा मानना है कि जब तक हम पढ़ाने का स्तर नहीं सुधारेंगे, तब तक पाठ्यक्रम बदलने से कुछ भी फर्क नहीं आयेगा. इससे पहले भी कई बार पाठ्यक्रम बदले हैं, लेकिन कुछ हुआ क्या? वही पाठ्यक्रम अच्छा है, जो बच्चों को पसंद आये और आसानी से जिसे बच्चों को पढ़ाया जा सके.

गांवों की यात्रा भी करें प्रधानमंत्री

– देविंदर शर्मा

कृषि अर्थशास्त्री

1 किसानों की समस्या समझें पीएम : वर्ष 2015 और 2014 के दौरान किसान लगातार दो साल भयावह सूखे से प्रभावित रहे हैं. 2015 के आखिरी एक महीने (दिसंबर) में ही मराठवाड़ा में 112 किसानों ने आत्महत्या की है. भविष्य में इसमें सुधार के लिए मेरी इच्छा है कि प्रधानमंत्री को इस समस्या को समझना होगा. विदेश यात्राओं की तरह प्रधानमंत्री यदि गांवों की भी यात्रा करें, तो मुझे उम्मीद है कि इससे सभी सेक्टर का ध्यान खेती की ओर मुड़ेगा. इससे खेती की दशा में व्यापक बदलाव आ सकता है.

2 स्मार्ट गांव भी बनाएं : मौजूदा समय में देशभर में स्मार्ट सिटी की बात हो रही है. सरकार का मकसद शायद ज्यादा से ज्यादा श्रम बल पैदा करना है. लेकिन खेती का स्वरूप बदलने के लिए हमें स्मार्ट गांव बनाने चाहिए. ऐसा गांव जो पूरी तरह से खेती पर निर्भर होने के साथ वहां स्थापित तमाम उद्योगों को जरूरी सामग्री मुहैया करा सके.

3 किसानों को बेलआउट पैकेज: अर्थव्यवस्था की स्थिति कमजोर होने या उद्योग-धंधों को व्यापक नुकसान होने की दशा में सरकार काॅरपोरेट को विशेष पैकेज मुहैया कराती है. पिछले दो सालों से लगातार किसानों को सूखे के कारण फसलों का नुकसान हो रहा है. ऐसे में 2016 में किसानों की दशा सुधारने के लिए उन्हें भी कम-से-कम तीन हजार करोड़ा का इकाॅनोमिक बेलआउट पैकेज दिया जाना चाहिए.

4 मुनाफे की गारंटी हो : सातवां वेतन आयोग लागू होने पर सरकारी कर्मचारियों के वेतन में व्यापक वृद्धि होगी. लेकिन किसानों को दिये जानेवाले गेहूं और धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में महज 50 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गयी. मोदीजी ने कहा था कि किसानों को करीब 50 फीसदी मुनाफा दिया जायेगा. जब तक किसानों को यह 50 फीसदी मुनाफा नहीं मुहैया कराया जाता, तब तक सातवें वेतन आयोग को नहीं लागू किया जाये.

5 नाॅन-केमिकल एग्रीकल्चर सिस्टम : देश में खेती के मौजूदा संकट का बड़ा कारण ‘इंटेंसिव फार्मिंग’ से जुड़ा है. इसमें केमिकल खाद, पेस्टीसाइड, मशीनरी, हाइब्रिड बीजों, जीएम फसलों आदि पर जोर दिया जाता है. माना जा रहा है कि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारणों में खेती का यह पैटर्न भी 18 फीसदी तक योगदान देता है. इसलिए सरकार को नान-केमिकल एग्रीकल्चर सिस्टम को बढ़ावा देना चाहिए.

स्थापित हो उच्च राजनीतिक मानदंड

– परंजॉय गुहा ठकुरता

राजनीतिक विश्लेषक

1 सत्ताधारी दल का रवैया सुधरे : इस साल केंद्र की सत्ता में विराजमान भाजपा को अपने अंदर कुछ बदलाव लाने होंगे. मसलन, जिस तरह से कीर्ति आजाद को निकाला गया, उससे यह लगता है कि भाजपा भ्रष्टाचार को लेकर पारदर्शी नहीं है, जिसका वह दावा करती रही है. और भी भाजपा में ऐसे नेता हैं, जो पार्टी के भ्रष्टाचार को उजागर करते रहते हैं, उन्हें भी निकाल देना चाहिए, लेकिन भाजपा ऐसा नहीं कर रही है. यानी जो अच्छा नेता भ्रष्टाचार का खुलासा करेगा, उसे हटा दिया जायेगा, यह भाजपा की अपनी तथाकथित नीति के विरुद्ध है.

2 नकारात्मक प्रचार से बचें : इस साल जिन राज्यों में चुनाव हैं, वहां पार्टियों को बिहार और दिल्ली की तरह से चुनाव लड़ने से बचना होगा, नकारात्मक प्रचार से बचना होगा, तभी संभव है कि उच्च राजनीतिक मानदंड स्थापित हो पायेंगे. चुनाव में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण भी कई तरह की बुराइयां जन्म लेती हैं, हमें इनसे बचना होगा.

3 कट्टरता को रोकें : केंद्र में कुछ मंत्री और कुछ सांसद हैं, जो हमेशा गलबयानी करते रहते हैं, जो कट्टर हिंदुत्व में विश्वास करते हैं, भाजपा के नेतृत्व को इन सबका मुंह बंद करना जरूरी है, नहीं तो आगे ये पार्टी के लिए नुकसान साबित होनेवाले हैं.

4 गलतबयानी पर लगे लगाम : कुछ मंत्रियों-सांसदों ने पिछले साल जो कुछ भी गलतबयानियां की हैं, उनमें से किसी भी बयान का खंडन हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने नहीं किया, जो कि परिपक्व राजनीतिक रूप से सही नहीं है. प्रधानमंत्री को न सिर्फ उन बयानों का खंडन करना चाहिए, बल्कि उनको आगे से ऐसा न करने से भी रोकने की कोशिश करनी चाहिए.

5 नेपाल पर दें ध्यान : बीते साल हमारे प्रधानमंत्री ने कई देशों की यात्राएं की हैं. अच्छी बात है. हाल ही में पाकिस्तान का औचक दौरा भी किया. लेकिन नेपाल में संविधान बनने और उसे आत्मार्पित करने के दौरान भारत-नेपाल में जो भी खटास पैदा हुआ है, उसकी भरपाई के लिए प्रधानमंत्री को चाहिए कि इस नये साल में सबसे पहले नेपाल की यात्रा करनी चाहिए, ताकि एक पड़ोसी देश के साथ अच्छे संबंध स्थापित हो सकें और चीन से उसकी निकटता को भी कम किया जा सके.

महिलाओं को मुख्यधारा में लाने की जरूरत

– रंजना कुमारी

महिला अिधकार कार्यकर्ता

1 सुरक्षा और अस्मिता की रक्षा : महिलाओं की सुरक्षा का मसला इसलिए अहम है, क्योंकि यह न केवल देश के समग्र विकास में बाधा डालती है, बल्कि इससे देश की छवि भी खराब होती है. महिलाओं के साथ होनेवाले यौनशोषण की घटनाओं से जहां एक तरफ समाज भयभीत होता है, वहीं महिलाओं को आगे बढ़ने के रास्ते बंद हो जाते हैं. इसलिए सुरक्षा हर हाल में जरूरी है.

2 स्वस्थ हों महिलाएं : संयुक्त राष्ट्र के समक्ष ‘मिलेनियम डेवलपमेंट गोल’ के तहत हमने यह वादा किया था कि भारत में प्रसव के दौरान महिलाओं की मौतों की संख्या को कम करेंगे, लेकिन अब तक इस दिशा में पूरी तरह से कामयाबी नहीं मिली है. गांवों में यदि महिलाओं की सेहत के लिए बुनियादी सुविधाएं मुहैया करायी जायें, तो इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल नहीं है. साथ ही जननी सुरक्षा के तहत सभी प्रसव को अस्पतालों में होना सुनिश्चित किया जा सके. इस लिहाज से हम दुनिया में बहुत निचले पायदान (करीब 130वें) पर खड़े हैं.

3 पढी-लिखी महिलाओं को रोजगार : मध्यमवर्गीय परिवारों से महिलाएं शिक्षित तो हो रही हैं, लेकिन उन्हें सचुचित रोजगार नहीं मिल रहा. यह न केवल उनका व्यक्तिगत या पारिवारिक नुकसान है, बल्कि देश का भी नुकसान है. शिक्षित महिलाओं के बेरोजगार होने से इसका व्यापक असर होता है. ‘स्किल इंडिया’ में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए.

4 हर बच्ची को शिक्षा : महिलाओं तक शिक्षा की समुचित पहुंच कायम नहीं हो पायी है. अब भी प्रत्येक तीन में से एक बच्ची स्कूल नहीं जा पाती है. मौजूदा पीढ़ी के शिक्षित न होने से आनेवाली पीढ़ी पर भी इसका असर होगा. आनेवाली पीढ़ी सजग नहीं हो पायेगी, जिससे उन्हें आत्मनिर्भरता का मौका नहीं मिलेगा. जिस देश में महिलाएं अशिक्षित होंगी, वह देश पूरी तरह विकसित नहीं हो सकता. विकसित देशों के आंकड़े देखने से यह बात स्पष्ट होती है.

5 राजनीतिक भागीदारी बढ़े : विकास की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए विभिन्न स्तरों पर महिलाओं को प्रोत्साहित करना होगा. इसके लिए उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ानी चाहिए.

शहरों को विकसित करना होगा जलस्रोत

-हिमांशु ठक्कर

पर्यावरणविद्

1 बारिश के पानी का इस्तेमाल : बारिश का ज्यादातर पानी हमारे देश में बेकार बह जाता है. इस पानी को किस तरह ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल में लाया जा सके, इसकी मुकम्मल व्यवस्था करनी होगी. इसके लिए वाटर हार्वेस्टिंग पर जोर देना होगा.

2 भूजल संरक्षण जरूरी : भूजल हमारी जीवनरेखा है. हमें यह समझना और स्वीकार करना पड़ेगा. इसके रिचार्ज सिस्टम को संरक्षित करना होगा और इसे नियमित करते हुए इसका दायरा बढ़ाना होगा. चिंता यह है कि इस दिशा में हम कुछ कर नहीं रहे. खेती के लिए यह जीवनदायिनी है.

3 नदी को समझें : हमारे समाज और अर्थतंत्र में नदी के महत्व को समझना होगा. यदि हम नदियों का पुनर्जीवन चाहते हैं, तो उसके निरंतर बहाव के लिए उसमें पानी देना होगा. नदी हमारे लिए क्या करती है, यह समझना होगा और प्रदूषण रोकना होगा. गंगा समेत अन्य प्रमुख नदियों को पुनर्जीवित करना होगा. केंद्र और राज्य सरकारें यदि वाकई में चाहती हैं कि नदियों का भविष्य बेहतर हो, तो अभी हमें इस दिशा में बहुत कुछ बदलना होगा.

4 क्लाइमेट चेंज : इस साल देश में कम बारिश कम हुई है, पिछले साल 2014 में भी कम हुई थी. बहुत से इलाकों में इस वर्ष बाढ़ भी आयी. यह दर्शाता है कि देश में ‘क्लाइमेट चेंज’ का असर हो रहा है और इससे किसान बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. उनकी फसल को कैसे बचाया जाये, इस पर कम ध्यान दिया जा रहा है.

किसानों की आजीविका के साथ सरकार न्याय नहीं कर रही है. हमें यह सोचना होगा कि इसके असर से किसानों को कैसे बचाया जाये और उनके साथ कैसे न्याय किया जाये.

5 शहरों के लिए जल नीति : बढ़ती आबादी के बीच जल तंत्र पर शहरों का दबाव बढ़ रहा है.

बड़े शहरों को दूर से पानी लाना होता है. शहरों के लिए हमारे यहां कोई जल नीति नहीं है. इसलिए ऐसी नीति बनानी होगी ताकि शहर अपनी जरूरतों के लिए जलस्रोतों का विकास अपने स्तर से करें. शहर अपने बारिश के पानी का संरक्षण कर सकें और उसे इस्तेमाल में ला सकें.

– कन्हैया झा एवं वसीम अकरम से बातचीत पर आधािरत.

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