प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की द्विपक्षीय वार्ता के सिलसिले में पहली बार रूस जा रहे हैं.
इस यात्रा को दोनों देशों के बीच एक अहम मौक़े के रूप में देख रहे हैं रक्षा मामलों के जानकार सी. उदय भास्कर.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली रूस यात्रा के राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक मायने हैं. यह भारत और रूस के बीच सैन्य रिश्तों की समीक्षा करने का ख़ास मौक़ा है.
दोनों देशों के सैन्य और सामरिक रिश्ते इसलिए काफ़ी अहम हो जाते हैं क्योंकि भारत की तीनों फ़ौज की इंवेंटरी का सात फ़ीसद रूस से मिलता है.
भारत के पास मौजूद टैंक, लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां और आधुनिक जितने भी विध्वंसक हथियार हैं, वो सब भारत ने रूस से लिए हैं.
रूस के लिए भी भारत इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि भारत एक बड़ा हथियार आयातक देश है.
भारत और रूस के बीच जिन अहम सामरिक समझौतों पर बात हो रही है, उनमें एक फ्रिगेट पर हस्ताक्षर शामिल है. एंटी मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम पर भी बात होनी है.
परमाणु पनडुब्बी और ब्रह्मोस मिसाइल जैसी क्षमताओं के विकास में रूस के साथ भागीदारी की अहम भूमिका रही है.
बदलती दुनिया में जिस तरह अमरीका, रूस और चीन के बीच संबंध बदल रहे हैं, वैसे ही भारत को राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक संबंध इन तीनों देशों के साथ सही तरीके से सही पटरी पर रखना बहुत ज़रूरी है.
जब भारत के रिश्ते अमरीका के साथ बेहतर हो रहे हैं, चीन के साथ नए विकल्पों पर बात हो रही है तब रूस के साथ पुराने रिश्ते की समीक्षा कर उसे नए मोड़ पर लाने की ज़रूरत है.
(सोसायटी फॉर पॉलिसी स्टडीज़ के निदेशक सी. उदय भास्कर की बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय से बातचीत पर आधारित)
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