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झारखंड स्‍थापना दिवस : राजस्व बढ़ाने के तरीके खोजने होंगे

राज्य सरकार ने अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए 12 वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित मापदंडों को करीब-करीब पूरा कर लिया है. इसके बावजूद पिछले पांच साल के आंकड़ों से यह पता चलता है कि सरकार हर साल करीब 2 हजार से 3 हजार करोड़ रुपये कर्ज ले रही है. अनुमान के मुकाबले राजस्व […]

राज्य सरकार ने अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए 12 वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित मापदंडों को करीब-करीब पूरा कर लिया है. इसके बावजूद पिछले पांच साल के आंकड़ों से यह पता चलता है कि सरकार हर साल करीब 2 हजार से 3 हजार करोड़ रुपये कर्ज ले रही है. अनुमान के मुकाबले राजस्व नहीं मिलने से सरकार को निर्धारित लक्ष्य से ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है.

वित्तीय वर्ष 2008-09 में सरकार ने अपने जरूरी खर्चों को पूरा करने के लिए 1797.45 करोड़ रुपये कर्ज लेने का लक्ष्य तय किया था. पर, अनुमान के मुकाबले राजस्व में गिरावट की वजह से 2436.56 करोड़ रुपये कर्ज लेना पड़ा, जो कर्ज के लक्ष्य का 135.56 प्रतिशत था. वर्ष 2012-13 में भी 4632.32 करोड़ के बदले 5199.00 करोड़ रुपये कर्ज लेना पड़ा. यह कर्ज के लक्ष्य का 112.23 प्रतिशत था. फिलहाल सरकार पर कर्ज का कुल बोझ बढ़ कर करीब 30 हजार करोड़ रुपये हो गया है. कर्ज के इस बोझ से छुटकारा पाने के लिए राजस्व (आमदनी) बढ़ाना जरूरी है.

।। शकील अख्तर ।।

रांची : बजट अनुमान के मुकाबले राजस्व में गिरावट की वजह से सरकार को लक्ष्य से 12-35 प्रतिशत तक अधिक कर्ज लेना पड़ रहा है. दूसरी तरफ सरकार की अपनी खामियों के वजह से हर साल करीब 3 हजार से 4 हजार करोड़ रुपये राजस्व का नुकसान हो रहा है. इस नुकसान की भरपाई करके सरकार कर्ज के बोझ को कम कर सकती है. हर साल बजट के अनुरूप पैसों की व्यवस्था करने के लिए सरकार कर्ज लेती है. इससे राज्य पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. राज्य सरकार ने अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए 12 वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित मापदंडों को करीब-करीब पूरा कर लिया है.

इसके बावजूद पिछले पांच साल के आंकड़ों से यह पता चलता है कि सरकार हर साल करीब 2 हजार से 3 हजार करोड़ रुपये कर्ज ले रही है. अनुमान के मुकाबले राजस्व नहीं मिलने से सरकार को निर्धारित लक्ष्य से ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है. वित्तीय वर्ष 2008-09 में सरकार ने अपने जरूरी खर्चो को पूरा करने के लिए 1797.45 करोड़ रुपये कर्ज लेने का लक्ष्य तय किया था. पर, अनुमान के मुकाबले राजस्व में गिरावट की वजह से 2436.56 करोड़ रुपये कर्ज लेना पड़ा, जो कर्ज के लक्ष्य का 135.56 प्रतिशत था. वर्ष 2012-13 में भी 4632.32 करोड़ के बदले 5199.00 करोड़ रुपये कर्ज लेना पड़ा. यह कर्ज के लक्ष्य का 112.23 प्रतिशत था.

फिलहाल सरकार पर कर्ज का कुल बोझ बढ़ कर करीब 30 हजार करोड़ रुपये हो गया है. कर्ज के इस बोझ से छुटकारा पाने के लिए राजस्व (आमदनी) बढ़ाना जरूरी है. इसका सबसे आसान तरीका टैक्स बढ़ाना है. टैक्स बढ़ाना अव्यावहारिक माना जाता है. इसलिए खर्च के अनुरूप राजस्व बढ़ाने के लिए दूसरे तरीकों का इस्तेमाल करना बेहतर होगा. वर्तमान परिस्थिति में आमदनी और खर्च में समन्वय बनाये रखने के लिए गैर जरूरी खर्चो को रोकना और विभिन्न कारणों से हो रहे टैक्स के नुकसान को रोकने के लिए कठोर कदम उठाना जरूरी है. महालेखाकार अपनी रिपोर्ट में अधिकारियों की लापरवाही सहित अन्य कारणों से होनेवाले राजस्व नुकसान का लगातार उल्लेख करते रहे हैं.

महालेखाकार द्वारा नमूना जांच के लिए सामान्यत: एक तिहाई राजस्व स्त्रोतों की जांच की जाती है. इसी एक तिहाई स्त्रोतों की जांच में सालाना 1100-1300 करोड़ रुपये के राजस्व के नुकसान की घटनाएं प्रकाश में आती हैं. इसका अर्थ यह है कि पूरे राजस्व स्त्रोतों से सरकार को सालाना 3 हजार से चार हजार करोड़ के राजस्व का नुकसान होता है. यह नुकसान टैक्स की चोरी, कम टैक्स लगाने सहित अन्य कारणों से होता है. अगर राजस्व को होनेवाले इस नुकसान को रोक दिया जाये, तो राजस्व में वृद्धि होगी. पर राज्य में टैक्स चोरी रोकने के लिए किये जानेवाले उपाय सरकार की इच्छा शक्ति की कमी की वजह से सफल नहीं हो सके.

– वाणिज्यकर की निगरानी शाखा निष्क्रिय

वाणिज्यकर विभाग राज्य के अपने राजस्व स्त्रोतों में सबसे बड़ा है. राज्य के अपने राजस्व का करीब 80 प्रतिशत हिस्सा वाणिज्यकर विभाग जुटाता है. व्यापारिक गतिविधियों के दौरान टैक्स की चोरी रोकने के उद्देश्य से वाणिज्यकर विभाग में आंतरिक निगरानी शाखा(आइबी) है. राज्य विभाग के पांच प्रमंडलों में अधिकारियों का पदस्थापन भी होता रहा है. पर, कर चोरी रोकने के मामले में आइबी का योगदान नहीं के बराबर रहा है. इसका मुख्य कारण आइबी का निष्क्रिय होना है.

आइबी के निष्क्रिय होने का प्रमुख कारण राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छा शक्ति का नहीं होना है. वाणिज्यकर आइबी ने जब भी सक्रियता दिखायी, उस पर आरोप लगे. इन आरोपों में पैसा नहीं देने पर छापा मारने का आरोप प्रमुख है. इन आरोपों के सही या गलत होने की जांच किये बिना ही राजनीतिक स्तर पर फैसला करने से अधिकारियों का मनोबल गिरा और आइबी निष्क्रिय हुआ.

* खनन क्षेत्र से राजस्व

खनिज संपन्न इस राज्य को रॉयल्टी के रुप में सालाना औसतन करीब 3500 करोड़ रुपये ही मिलते हैं. राज्य सरकार रॉयल्टी दर में बढ़ोतरी कर अपना राजस्व बढ़ाने की कोशिश करती रही है. रॉयल्टी दर बढ़ाने का अधिकार केंद्र के पास है. इसलिए इस मामले में सरकार की सारी कोशिशें बेकार साबित हुई हैं. ऐसी स्थिति में खनिजों से रॉयल्टी बढ़ाने का दूसरा तरीका यह है कि अवैध खनन रोका जाये या नये खदान शुरू किये जायें. राज्य में अवैध खनन को रोकने की कोशिशें भी बेकार साबित हुई हैं.

सरकारी अधिकारियों की मिली भगत से कोयला, लोहा सहित अन्य कीमती खनिजों का खनन और व्यापार होता रहा है. अवैध खनन रोकने से विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे वास्तविक खनन की गणना होगी और उसी के अनुरूप रॉयल्टी में बढ़ोतरी होगी. रॉयल्टी के सहारे राजस्व बढ़ाने का दूसरा तरीका यह है कि राज्य में माइनिंग क्षेत्र में बढ़ोतरी हो. पर, इस मामले में राज्य को अपने वन क्षेत्र की कीमत चुकानी पड़ती है. फारेस्ट क्लियरेंस के नाम पर नयी परियोजनाएं वर्षों से लटकी रहती हैं. सीसीएल का मगध और आम्रपाली योजना इसका उदाहरण है.

* क्रास चेक करने की कोई व्यवस्था नहीं

राज्य सरकार ने अब तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनायी है जिससे किसी व्यापारी द्वारा दाखिल किये गये र्टिन में वर्णित तथ्यों को क्रास चेक किया जा सके. राज्य गठन के बाद से ही महालेखाकार अपनी रिपोर्ट में टैक्स चोरी रोकने के लिए विभागीय और अंतरराज्यीय स्तर पर आंकड़ों के क्रास चेकिंग की व्यवस्था करने की अनुशंसा करता रहा है. पर, विभागीय स्तर पर क्रास चेकिंग की अब तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गयी है जिससे यह पता लगाया जा सके कि किसी विभाग में काम करनेवाले ठेकेदार या व्यापारी ने वाणिज्यकर के र्टिन में जो आंकड़ा दिया है वह सही है या नहीं. अंतरराज्यीय स्तर पर व्यापारिक आंकड़ों की जांच के लिए सॉफ्टवेयर बनाया गया है, जिसका पूरा उपयोग नहीं किया जा रहा है.

* विकास के लिए राजनीतिक स्थिरता जरूरी

।। अंजन रॉय ।।

(अर्थशास्त्री)

15 नवंबर 2000 को नये राज्य के तौर पर झारखंड के गठन से लोगों को उम्मीद थी कि राज्य विकास के मामले में काफी आगे जायेगा. लेकिन समय बीतने के साथ ही लोगों की उम्मीदें टूटने लगी. इसकी वजहें भी हैं. राज्य भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता के कारण ही सुर्खियों में बना रहा. राज्य में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता को देखते हुए ऐसी आशा थी कि उद्योगों का तेजी से विकास होगा. ऐसा होना स्वभाविक भी था, क्योंकि देश का 40 फीसदी खनिज पदार्थ झारखंड में ही है.

प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद झारखंड़ औद्योगिक विकास में दूसरे राज्यों से पिछड़ा हुआ है. इस पिछड़ेपन के लिए राज्य सरकार की नीतियां जिम्मेदार है. औद्योगिक विकास के लिए राज्य के पास कोई दृष्टि नहीं है. राज्य सरकार सिर्फ बड़ी परियोजनाओं को ही विकास के लिए जरूरी मानती रही, जबकि छोटे उद्योगों के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया. ऐसे हालात में न बड़ी परियोजनाएं जमीन पर उतर पायी और न ही छोटे उद्योगों का विकास हो पाया.

आज हालत यह है कि सैकड़ों विकास परियोजनाएं पर्यावरण मंत्रलय की अनुमति नहीं मिलने के कारण लटकी पड़ी हैं. झारखंड में वनक्षेत्र भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है. राज्य के जिन क्षेत्रों में विकास योजनाएं अटकी पड़ी हैं, वहां पर वनक्षेत्र 50 प्रतिशत से भी अधिक है. मौजूदा समय में पर्यावरण को बचाना भी बेहद जरूरी है. विकास के नाम पर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

पर्यावरण असंतुलन का सबसे अधिक खामियाजा स्थानीय लोगों को ही उठाना पड़ता है. ऐसे में संतुलित विकास की नीति अपनाने की जरूरत है. देश में अधिकांश खनिज वन क्षेत्र में मौजूद हैं. झारखंड को खनिजों के बदले रॉयल्टी भी सही नहीं मिल पा रही है. रॉयल्टी की नीति में बदलाव किया जाना चाहिए.

अगर झारखंड को उसके हिस्से की उचित रॉयल्टी मिले, तो राज्य को काफी राजस्व प्राप्त होगा. मेरा मानना है कि राज्य के विकास में राजनीतिक नेतृत्व की दूरदर्शिता सबसे महत्वपूर्ण होती है. लेकिन दुर्भाग्य से झारखंड गठन के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता रही है. राजनीतिक अस्थिरता से गवर्नेस प्रभावित होता है. बिना गवर्नेंस के कोई भी राज्य विकास नहीं कर सकता है.

आज झारखंड में केवल खनन आधारित उद्योग ही सक्रिय हैं. राज्य में उद्योग स्थापित करने के लिए कई बड़ी निजी कंपनियों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर हुए, लेकिन ये कागजों में ही सिमटे रह गये. सरकार की बेरुखी के कारण आर्सेलर मित्तल जैसी कंपनियों ने अपनी योजना से हाथ खींच लिया. कई निजी परियोजनाएं भूमि अधिग्रहण विवाद के कारण लटकी पड़ी है. इन वजहों से निजी कंपनियों का राज्य से मोहभंग होता दिख रहा है. राज्य सरकार को अपनी औद्योगिक नीति में बदलाव करना चाहिए.

* टैक्स चोरी रोकने से बढ़ेगा राजस्व

।। एमआर मीणा ।।

(वाणिज्यकर सचिव, झारखंड)

टैक्स चोरी रोक कर राजस्व बढ़ाना बेहतर तरीका है. इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. चेक पोस्ट निर्माण और उसे चालू करने की प्रक्रिया को जल्द पूरा करने की कोशिश की जा रही है. वाणिज्यकर सचिव एमआर मीणा ने राज्य का राजस्व बढ़ाने के मुद्दे पर यह बात कही. उन्होंने कहा कि टैक्स का मामला पूरी तरह आबादी और खपत पर निर्भर करता है.

राज्य की आबादी 3.29 करोड़ है. इसी आबादी द्वारा खरीदी-बेची जानेवाली चीजों पर लगनेवाले टैक्स से सरकार को राजस्व मिलता है. इसलिए टैक्स के मामले में ज्यादा आबादीवाले बड़े राज्यों से झारखंड की तुलना करना सही नहीं होगा. राज्य की आबादी और प्रति व्यक्ति खपत आदि के आंकड़ों के हिसाब से वाणिज्यकर विभाग के राजस्व की स्थिति ठीक ही है. जुलाई माह तक वाणिज्यकर से मिलनेवाले राजस्व का ग्रोथ रेट 16-17 प्रतिशत रहा.

इसी अवधि में गुजरात, महाराष्ट्र आदि का ग्रोथ रेट 5-8 प्रतिशत रहा. इन राज्यों ने इलेक्ट्रॉनिक पद्धति का इस्तेमाल कर अपना राजस्व करीब उच्चतम स्तर तक पहुंचा लिया है. इसलिए ग्रोथ रेट कम नजर आता है. झारखंड में वाणिज्यकर विभाग द्वारा इलेक्ट्रॉनिक पद्धति (आन लाइन सिस्टम) अपनायी जा रही है. इससे ग्रोथ रेट थोड़ा ज्यादा दिख रहा है. इलेक्ट्रॉनिक पद्धति के इस्तेमाल से टैक्स लीकेज (चोरी) में कमी हो रही है.

राजस्व बढ़ाने के लिए यह भी जरूरी है कि सरकार को हर उस सामान पर उतना टैक्स मिले जितना उस पर टैक्स लगाया गया है. इसके लिए सबसे पहले यह जरूरी है कि राज्य का वैट एक्ट के दायरे में आनेवाला हर व्यापारी निबंधित हो. वैट एक्ट में पांच लाख रुपये तक के टर्नओवरवाले व्यापारियों को निबंधन से छूट है. पर, यह छूट सिर्फ ऐसे व्यापारियों के लिए है जो राज्य में ही सामान खरीदते हैं और राज्य में ही बेचते हैं. दूसरे राज्य से सामान खरीद कर राज्य में बेचनेवाले हर व्यापारी को निबंधन कराना है, चाहे उसका टर्नओवर 50 हजार रुपये ही क्यों नहीं हो. हालांकि राज्य में यह आम धारणा है कि पांच लाख तक टर्नओवरवाले व्यापारियों को निबंधन की जरूरत ही नहीं है.

इसलिए विभाग ने हर क्षेत्र में कैंप लगा कर व्यापारियों का निबंधन करना शुरू किया है. इससे राजस्व बढ़ेगा. राज्य में फिलहाल 84000 निबंधित व्यापारी है. राज्य में कितने राजस्व की चोरी होती है यह बता पाना संभव नहीं है. महालेखाकार द्वारा टैक्स चोरी, लीकेज के जो आंकड़े पेश किये जाते हैं, वह 100 प्रतिशत सही नहीं होते हैं. सरकार के साथ विचार-विमर्श और कानूनी बिंदुओं पर तर्क-वितर्क के बाद इन आंकड़ों में बदलाव आता है. महालेखाकार द्वारा पेश आंकड़ों में 10-20 प्रतिशत तक बदलाव होता है.

* समावेशी आर्थिक विकास की चुनौतियां

।। अनिंदो बनर्जी ।।

(कार्यक्रम प्रभाग के निदेशक, प्रैक्सिस)

झारखंड अपने निर्माण के बाद से लगातार कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. इनमें सबसे बड़ी चुनौती विकास के ऐसे मॉडल के चयन की है जो क्षेत्रीय विषमताओं को पाटने में सक्षम हो तथा राज्य में रहने वाले विविध समुदायों के दूरगामी हितों की रक्षा में प्रभावी हो.

यूं तो झारखंड की अर्थव्यवस्था ने 9वीं और 11 वीं योजना योजना के दौरान ठीक-ठाक विकास दर हासिल किया है, पर राज्य में अनुसूचित जनजातियों की बहुलता तथा लगभग 37 प्रतिशत की विशाल बीपीएल जनसंख्या को देखते हुए आर्थिक नीतियों का अधिक से अधिक समावेशी और समतामूलक बनाना होगा. ताकि राज्य में अंतक्ष्रेत्रीय विकास की अवधारणा पर काम करना होगा.

आंकड़ों के अनुसार, पूर्वी सिंहभूम, धनबाद, बोकारो व हजारीबाग जैसे जिले विकास के अधिकांश पैमानों पर गोड्डा, पाकुड़, गिरिडीह व साहिबगंज जैसे पिछड़े जिलों की तुलना में कई गुना बेहतर स्थिति में हैं. हालांकि इस असमानता को पाटने के उपाय किये जा रहे हैं. उल्लेखनीय है कि राज्य में हंसडीहा-गोड्डा तथा जसीडीह-पीरपैंती के बीच रेलवे लाइन तथा साहिबगंज में गंगा नदी पर सेतु निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल किये जा रहे हैं, जिनके जरिये राज्य के अल्पविकसित उत्तर-पूर्वी हिस्से में विकास को गति दी जा सकती है.

राज्य के समावेशी विकास के लिए मानव विकास सूचकों की बेहतरी पर पर्याप्त निवेश जरूरी है. मौजूदा समय में झारखंड में पुरुष-स्त्री साक्षरता में 22 प्रतिशत का अंतर है, तो राष्ट्रीय अंतर से भी अधिक है. राष्ट्रीय औसत की तुलना में मातृ मृत्यु दर भी काफी ज्यादा है, जिससे पता चलता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश किया जाना चाहिए. झारखंड में समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि कृषि क्षेत्र को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया जाये.

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस क्षेत्र का विकास दर पिछले दशक के दौरान नगण्य या ऋणात्मक रहा है, जबकि राज्य की लगभग 77 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित है. राज्य में खेती के उपयोग में लाये जाने लायक कुल भूभाग के सिर्फ 24 प्रतिशत हिस्से में ही सिंचाई सुविधा का लाभ पहुंच सका है. असंगठित क्षेत्र के उद्यमों के राष्ट्रीय आयोग के अनुसार झारखंड के एक औसत खेतिहर परिवार की मासिक आमदनी पंजाब के कृषक परिवार के तिगुने से भी कम है. न केवल कृषि क्षेत्र पर ध्यान देने की जरूरत है, बल्कि कौशल विकास पर भी काम किया जाना चाहिए.

लगभग 26 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या वाले झारखंड में जनजातीय उपयोजना के अधीन किये जाने वाले बजट प्रावधानों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, ताकि राज्य में अनुसूचित जनजाति के समुदायों का विकास हो सके. राज्य योजना का आकार नियमित रूप से बढ़ा है. अनुसूचित जनजातियों के हित में बुनियादी सेवाओं और विकास के अवसरों को सुनिश्चित करने के लिए प्रति वर्ष चार हजार करोड़ से अधिक का आवंटन होना चाहिए.

आवश्यकता इस बात की है कि जनजातीय उपयोजना के प्रावधानों का इस्तेमाल ऐसे ही कार्यो में किया जाये, जिससे आदिवासी समुदायों का प्रत्यक्ष व सुनिश्चित विकास हो सके. झारखंड की अर्थव्यवस्था की सेहत के समक्ष एक बड़ी चुनौती है राज्य में कर्ज के बोझ को कम करना. साथ ही जरूरी प्रशासनिक सुधारों के साथ राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत कई निगमों की दक्षता बढ़ाये जाने की आवश्यकता है. झारखंड में बड़ी औद्योगिक परियोजनाओं की जगह छोटे या मध्यम पैमाने के उद्योग विकसित करने की जरूरत है. विकास का ऐसा मॉडल ही झारखंड के लिए उपयुक्त होगा.

* ऊर्जा क्षेत्र की बेहतरी से राज्य का भला

– देश में कुल कोयला भंडार का 28 फीसदी झारंखड में मौजूद लेकिन इससे केवल 2 फीसदी बिजली का उत्पादन

।। कन्हैया सिंह ।।

(सीनियर फेलो, नेशनल कांउसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएइआर)

झारखंड प्राकृतिक संसाधनों के मामले में काफी समृद्ध है. लेकिन सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों की समृद्धि से ही राज्य का विकास संभव नहीं है. प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग से ही राज्य विकास कर सकता है. जैसे किसी किसान के पास काफी जमीन है और वह उस जमीन पर खुद मेहनत करता है तो उसे लाभ मिलता है, लेकिन अगर वह अपनी जमीन किसी को ठेके पर दे तो उसे तय सीमा में ही लाभ मिलेगा.

झारखंड की स्थिति भी ठेके वाले किसान की तरह है. राज्य में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों से दूसरे राज्यों का विकास हो रहा है, लेकिन संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद वह काफी पीछे है. हालत यह है कि देश में कुल कोयले भंडार का 28 फीसदी झारंखड में मौजूद है. लेकिन इससे केवल 2 फीसदी बिजली का उत्पादन होता है. उसी तरह महाराष्ट्र में देश के कुल कोयला भंडार का महज 4 फीसदी मौजूद है, लेकिन वहां कोयले से 15 फीसदी बिजली का उत्पादन होता है.

झारखंड के साथ बने छत्तीसगढ़ में हिस्सेदारी 17 फीसदी है और कोयले से बिजली उत्पादन 5 फीसदी होता है. यानी झारखंड में कोयले की प्रचुर उपलब्धता के बावजूद कोयले से बिजली उत्पादन काफी कम है. मौजूदा समय में बिना बिजली उपलब्धता के औद्योगिक विकास संभव नहीं है. किसी भी क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने के लिए बिजली, सड़क और पानी जैसी मूलभूत चीजों का होना काफी आवश्यक है. उद्योग वहीं जायेगा, जहां तीनों चीजें उपलब्ध और सस्ती हो. सस्ती बिजली वही मुहैया करा सकता है, जो उसका उत्पादन करेगा.

छत्तीसगढ़ का विकास दर झारखंड से अधिक है, क्योंकि वहां बिजली उत्पादन अधिक है. यही नहीं छत्तीसगढ़ दूसरे राज्यों को बिजली बेचकर कमाई भी कर रहा है. मेरा मानना है कि अगर झारखंड सिर्फ ऊर्जा उत्पादन पर ही फोकस करे तो वह देश का अव्वल राज्य बन जायेगा. झारखंड सरकार को ऊर्जा क्षेत्र के विकास के लिए पेशेवर लोगों को भागीदार बनाना चाहिए ताकि निवेश के लिए बेहतर माहौल बन सके. बिना छवि निर्माण के निवेश को आकर्षित करना मुश्किल है.

उद्योगों के विकास से आदिवासियों को भी रोजगार मिलेगा. रोजगार से नक्सलवाद जैसी समस्या भी कम होगी. लेकिन झारखंड की सबसे बड़ी समस्या राजनीतिक अस्थिरता रही है. राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के कारण आर्थिक नीतियां प्रभावी नहीं हो पायी है. राजस्व के संसाधनों को बढ़ाने के लिए उद्योग का लगना जरूरी है. झारखंड के नताओं को यह तय करना होगा कि चाहे किसी की सरकार रहे, ऊर्जा क्षेत्र के विकास के मामले में वे कोई समझौता नहीं करेंगे. उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ ने ऊर्जा क्षेत्र के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है. लेकिन संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद झारखंड काफी पिछड़ गया है. राज्य के विकास के लिए दूरदृष्टि का होना आवश्यक है.

झारखंड का आर्थिक विकास नीतियों के बेहतर क्रियान्वयन पर निर्भर करता है. साल दर साल बजट का आकार बढ़ने के बावजूद राज्य अपेक्षित विकास नहीं कर पा रहा है. सरकार के पैसे के सही खर्च के लिए निगरानी तंत्र के अलावा ऑडिट प्रणाली को मजबूत करना होगा. साथ ही लोगों की जबावदेही तय होनी चाहिए. जिस प्रकार बिहार ने बेहतर शासन और विकास की नीति अपनाकर प्रगति की है, झारखंड को भी उसी राह परचलना होगा.

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