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ये कहां आ गये हम यूं ही साथ चलते-चलते

।। हरीश्वर दयाल ।। (अर्थशास्त्री) झारखंड राज्य निर्माण का लोगों ने बहुत ही उत्साह के साथ स्वागत किया था. लेकिन, सारा उत्साह जल्द ही खत्म हो गया. जिस बिहार के बारे में कहा जाता था कि उसके पास सिर्फ बालू रह जायेगा, वह लगातार अपनी स्थिति सुधारता जा रहा है. 13 वर्ष का अनुभव बताता […]

।। हरीश्वर दयाल ।।

(अर्थशास्त्री)

झारखंड राज्य निर्माण का लोगों ने बहुत ही उत्साह के साथ स्वागत किया था. लेकिन, सारा उत्साह जल्द ही खत्म हो गया. जिस बिहार के बारे में कहा जाता था कि उसके पास सिर्फ बालू रह जायेगा, वह लगातार अपनी स्थिति सुधारता जा रहा है. 13 वर्ष का अनुभव बताता है कि गवर्नेस और डेवलपमेंट के मोरचे पर स्थिति अब तक अच्छी नहीं हो पायी है.

एक लंबे संघर्ष के बाद आज से तेरह साल पहले आज ही के दिन झारखंड बिहार से अलग हो कर एक अलग राज्य बना था. एक अलग राज्य की मांग का कारण यहां की जनता की यह शिकायत थी कि खनिज संपदा से संपन्न होने के बाद भी इस क्षेत्र और यहां के लोगों का समुचित विकास नही हुआ है. वे बहुत लंबे समय से अपने को विकास से वंचित एवं उपेक्षित महसूस करते रहे थे.

यहां के लोगों की शिकायत के पीछे कुछ आधार था. राज्य गठन के समय देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.4 प्रतिशत और कुल जनसंख्या का 2.6 प्रतिशत इसके हिस्से मे आया लेकिन इसकी सकल घरेलू आय देश की कुल सकल घरेलू आय का मात्र 1.6 प्रतिशत ही था. इसकी प्रति व्यक्ति वास्तविक आय देश के प्रति व्यक्ति वास्तविक आय से 37 प्रतिशत कम था.

यहां की साक्षरता दर और महिला साक्षरता दर देश की साक्षरता दर से 10 प्रतिशत से भी ज्यादा कम थी. जबकि देश मे 77 प्रतिशत परिवारों को सुरिक्षत पेयजल उपलब्ध था, इस नवनिर्मित राज्य में केवल 42 प्रतिशत परिवारों को ही यह सुविधा प्राप्त थी.

इन सभी कमियों का कारण यहां के लोग अविभाजित बिहार की सरकार को समझते थे. अविभाजित बिहार को इस प्रदेश से 75 प्रतिशत राजस्व प्राप्त होता था लेकिन सरकार अपने कुल राजस्व का केवल 25 प्रतिशत ही इस क्षेत्र मे खर्च कर रही थी.

इसी कारण यहां के बुद्धिजीवी इसे आंतरिक उपनिवेशवाद का एक उदाहरण मान रहे थे और अलग राज्य के मांग के वे भी एक प्रबल समर्थक थे. राज्य गठन का झारखंड के लोगों ने बहुत ही उत्साह और उल्लास से स्वागत किया. उन्हे उम्मीद थी कि यहां की संपदा का समुचित इस्तेमाल कर यहां की सरकार इस प्रदेश का पर्याप्त विकास कर पायगी. दूसरी तरफ विभाजित बिहार के लोगों मे भारी निराशा व्याप्त थी.

वे तो इस विभाजन के पहले से ही विरोधी थे. विभाजित बिहार नये बने झारखंड से केवल विकास के ज्यादातर मापदंडों में, बल्किज्यादातर प्राकृतिक एवं आर्थिक संसाधनों मे भी काफी पीछे था. अविभाजित राज्य के ज्यादातर खनिज संपदा एवं उद्योग झारखंड प्रदेश में ही थे. नीचे दी गयी तालिका राज्य गठन के समय झारखंड के विकास की तुलना विभाजित बिहार एवं भारत से कर रहा है.

पिछले तेरह सालों मे झारखंड और बिहार का विकास

संसाधनो के अभाव के बावजूद भी पिछले तेरह सालों मे बिहार ने झारखंड से ज्यादा तेज गति से प्रगति की है. 2001-02 से 11-12 के बीच झारखंड की आय मे केवल 4.6 प्रतिशत प्रति वर्ष के दर से वृद्धि हुई वहीं बिहार के आय मे 8.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

2004-05 से 2011-12 के बीच बिहार ने 11.3 प्रतिशत के दर से प्रगति की जबकि झारखंड का विकास दर इस अविध मे केवल 6.3 प्रतिशत रहा. बिहार का विकास दर केवल झारखंड से अधिक रहा है बल्कि झारखंड से ज्यादा स्थिर भी रहा है यह नीचे दिये चित्र से भी साफ होता है. झारखंड राज्य गठन के समय बिहार की प्रति व्यक्ति आय जहां झारखंड की प्रति व्यक्ति आय के करीब आधे के बराबर थी वह अब केवल उससे एक तिहाई ही कम रह गयी है.

विकास के अन्य मापदंडों में भी बिहार या तो झारखंड के बराबर पहुंच रहा है या उससे आगे निकल गया है. 2001 में जहां बिहार की साक्षरता दर झारखंड से 6 प्रतिशत कम थी 2011 में यह अंतर केवल 3 प्रतिशत ही रह गयी. महिला साक्षरता दर में भी बिहार ने झारखंड से ज्यादा तेज़ी से प्रगति किया है. घर के अंदर पीने के पानी और शौचालय की उपलब्धता में भी बिहार झारखंड से आगे निकल गया है.

सबसे ज्यादा विरोधास्पद है दोनों राज्यों की गरीबी दर. संसाधन की संपन्नता और अधिक आय होने के बाद भी झारखंड मे गरीबी दर बिहार से ना केवल अधिक है बल्कि इसकी गिरावट दर भी बिहार से कम रहा है.

2011-12 की गणना के अनुसार झारखंड में करीब 37 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे गुजरबसर कर रही है जबकि इससे एक तिहाई कम आय होने के बाद भी बिहार में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या झारखंड से 3 प्रतिशत से ज्यादा कम है. ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर और भी अधिक है. झारखंड के ग्रामीण इलाकों में बिहार से करीब 7 प्रतिशत गरीबी ज्यादा है.

2004-05 से 2011-12 के बीच बिहार मे गरीबी दर में करीब 8 प्रतिशत की कमी आयी, जबकि झारखंड में इस अवधि में इसमें केवल करीब 3 प्रतिशत की कमी आयी. इस अवधि में झारखंड में शहरी गरीबी तो करीब 4 प्रतिशत से बढ़ गयी.

इसलिए जरूरत है झारखंड मे विकास की रफ्तार को तेज करने का. अन्यथा यहां के लोग ठगे से महसूस करने लगेंगे. उन्हें यह अहसास होने लगेगा की अलग राज्य के लिए उनका संघर्ष व्यर्थ गया. अलग राज्य के लिए संघर्ष मे यहां के सभी लोगों का योगदान था. जरूरत है विकास को सर्वव्यापक करने का.

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