।।अनुजकुमारसिन्हा ।।
– 27 सितंबर : सरकार से जनता मायूस है. हम जनता का विश्वास जीत नहीं पाये हैं. सिर्फ पुलिस ही नहीं, सभी विभागों की स्थिति एक जैसी है.
– 19 अक्तूबर : रिश्वत लिये बगैर रजिस्ट्री नहीं होती. बिना पैसे दिये दाखिल खारिज नहीं होता.
– 28 अक्तूबर : झारखंड आतंकियों का सेफ जोन बन चुका है.
ये तीनों बयान झारखंड के विपक्ष के नेता का नहीं बल्कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का है. मुख्यमंत्री का पद संभालते ही जब हेमंत सोरेन ने कहा था कि झारखंड की पुलिस सिर्फ वसूली में लगी रहती है तो उनके बयान की यह कहते हुए प्रशंसा हुई थी कि मुख्यमंत्री ने सच कहने का साहस किया. अभी भी उनका लगभग ऐसा ही बयान आते रहता है.
कहने को कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री अपनी सरकार रहने के बावजूद कमियों को स्वीकार करते हैं, अमूमन ऐसा नहीं होता. लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि सिर्फ बोलने से कुछ नहीं होता. हेमंत सोरेन को यह अहसास रहना चाहिए कि वे राज्य के मुख्यमंत्री हैं. चीजों को ठीक करने की जिम्मेवारी उनकी, उनकी सरकार, उनके प्रशासन की है. पल्ला झाड़ने से कुछ नहीं होगा.
ठीक है कि झारखंड रातो-रात आतंकियों का सेफ जोन नहीं बना है. आतंकियों ने लंबे समय से इसका प्रयास किया होगा. पहले की सरकार में भी इसका फैलाव हुआ है. पर अब हेमंत सोरेन की सरकार है, इसलिए कैसे आतंकियों के लिए सेफ जोन झारखंड को उनके लिए अनसेफ और आम जनता के लिए सेफ किया जाये, यह काम मुख्यमंत्री को ही करना है.
हेमंत सोरेन विपक्ष में नहीं हैं कि सिर्फ बयान देकर अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो जायेंगे. अगर जनता सरकार से मायूस है, विभागों में अफसर काम नहीं करते, पुलिस वसूली करती है और बिना पैसे दिये रजिस्ट्री नहीं होते, तो इसके लिए दोषियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेवारी सरकार/मुख्यमंत्री की है. सिस्टम को ठीक करना होगा. हो सकता है कि मुख्यमंत्री को पूरी वस्तुस्थिति की जानकारी न मिलती हो.
सच यह है कि मृदुला सिन्हा जैसी कर्मठ आइएएस अधिकारी को उस जगह डंप कर देंगे जो महत्वहीन जगह, बैठने के लिए कुरसी तक नहीं हो तो अच्छे अधिकारियों का मनोबल गिरेगा ही. जो अफसर कुंडली मार कर एक ही जगह पर बैठे हैं, उन्हें कोई हटाता नहीं. मोबाइल दारोगा का हर माह तबादला करने की नीति इसलिए बनी थी ताकि इनका काकस नहीं बने.
जब से नयी सरकार बनी है, यह नीति खत्म हो गयी. मोबाइल दारोगा का तबादला (रोटेशन) बंद हो गया. किसने नियम तोड़ा, क्यों नहीं होता है तबादला, यह देखना भी मुख्यमंत्री का काम है. ठीक है दबाव है. खास तौर पर कांग्रेस के मंत्रियों का. मंत्रियों के अनर्गल बयान से यह परेशानी और बढ़ रही है. काम नहीं हो रहे हैं. एक भी बहाली नहीं हो रही है. सिर्फ बयानबाजी हो रही है. काम छोड़ कर सभी कुछ हो रहा है.
सवाल है कौन इन चीजों को ठीक करेगा? झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन कहते हैं-सरकार किसानों को बरगला रही है. यानी पार्टी भी खुश नहीं. जनता खुश नहीं, पार्टी खुश नहीं, काम नहीं हो रहे, भ्रष्टाचार चरम पर. ऐसे में कैसे चलेगा राज्य. बेहतर होगा मुख्यमंत्री बोलने (स्वीकारते रहने) के बजाय राज्यहित में कड़े फैसले लें. अगर भ्रष्टाचार-घुसखोरी, कुशासन को मानते हैं, स्वीकारते हैं तो कार्रवाई करें और यह दिखा दें कि बेहतर प्रशासनिक क्षमता उनमें है.