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मलयेशिया चुनाव के बाद भारतवंशियों का भविष्य

।। डॉ गौरीशंकर राजहंस ।। (पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत) – मलयेशिया में पिछले दिनों संपन्न हुए आम चुनाव के नतीजे पर पूरी दुनिया की नजर थी. भारत की खास तौर पर, क्योंकि मलयेशिया की आबादी में करीब आठ फीसदी भारतवंशी हैं. फिलहाल चुनावी नतीजे से भारतवंशियों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है, क्योंकि […]

।। डॉ गौरीशंकर राजहंस ।।
(पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत)
– मलयेशिया में पिछले दिनों संपन्न हुए आम चुनाव के नतीजे पर पूरी दुनिया की नजर थी. भारत की खास तौर पर, क्योंकि मलयेशिया की आबादी में करीब आठ फीसदी भारतवंशी हैं. फिलहाल चुनावी नतीजे से भारतवंशियों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है, क्योंकि प्रधानमंत्री नजीब का सत्ताधारी गंठबंधन फिर से सत्ता में पहुंच गया है, जिनकी सरकार ने भारतीयों के साथ भेदभाव को कई स्तरों पर बढ़ावा दिया था. मलयेशिया के चुनावी नतीजों के बाद भारतवंशियों के भविष्य पर नजर डालता आज का नॉलेज.-

मलयेशिया में पिछले दिनों संपन्न हुए आम चुनाव पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई थीं. लोग बड़ी उम्मीद कर रहे थे कि प्रधानमंत्री नजीब रजाक की पार्टी इस बार संभवत: चुनाव हार जायेगी और पूर्व उप प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम की पार्टी सत्ता में आ जायेगी, जो देश में एक धर्मनिरपेक्ष सरकार की स्थापना करेगी. परंतु लोगों की आशाओं पर तब पानी फिर गया, जब नजीब की पार्टी मामूली बहुमत से चुनाव जीत गयी.

अनवर ने कहा कि चुनाव में धांधली हुई है और पड़ोसी देशों से 40 हजार से ज्यादा लोगों को चोरी छिपे बुला कर फर्जी मतदान कराया गया है, लेकिन नजीब ने इस आरोप को सरासर गलत बताया और व्यंग्य किया है कि पूरी दुनिया में जब कोई प्रत्याशी चुनाव हार जाता है तब वह सरकार पर इसी तरह का दोषारोपण करता है. अनवर इस मामले को कोर्ट में भी ले गये हैं, लेकिन मलयेशिया में न्यायालय भी सरकार से प्रभावित रहती है. इसलिए लोगों को यह उम्मीद नहीं है कि वहां अनवर की सुनी जायेगी. इसके अतिरिक्त भारत की तरह ही मलयेशिया में चुनाव के मुकदमे वर्षों चलते हैं और जब तक न्यायालय कोई निर्णय देगा, तब तक शायद दूसरा चुनाव आ जाये.

* मलयेशिया में भारतवंशी
पहले मलयेशिया और सिंगापुर एक ही देश थे और दोनों देश मिल कर ‘मलय’ देश कहलाते थे. बाद में वे अलग हो गये. ये दोनों देश भारत की तरह ही अंगरेजों के उपनिवेश थे. अंगरेज उद्यमी और परिश्रमी थे. ‘मलय’ देश के जंगलों में घूम कर अंगरेजों ने पाया कि वहां व्यापक पैमाने पर रबड़ की खेती हो सकती है. इसलिए इन खेतों में काम करने के लिए वे प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्व के बीच बड़ी संख्या में भारतीयों, खास कर दक्षिण भारत के लोगों, को मजदूर बना कर मलयेशिया और सिंगापुर ले गये. धीरे-धीरे ये भारतीय मजदूर वहीं बस गये. आज सिंगापुर में भारतीयों के वंशज संपन्न हैं और अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर तथा सरकार में काबिज हैं, परंतु मलयेशिया में उनकी हालत बहुत ही दयनीय है.

* भारतवंशियों से भेदभाव का इतिहास
मलयेशिया की जनता तीन भागों में बंटी हुई है. ‘मलय’, जो वहां के मूल निवासी हैं, तथा ‘भारतीय’ और ‘चीनी’. पिछले कई वर्षो में ‘मलय’ मूल के लोगों की झड़प भारतवंशियों और चीनी मूल के लोगों से हुई है. 1969 और 2007 में मलयेशिया में भयानक नस्ली दंगे हो चुके हैं, जिनमें भारतीय मूल के हजारों लोग मारे गये थे.

जब मलयेशिया के वर्तमान प्रधानमंत्री नजीब रजाक 2009 में सत्ता में आये, तब उन्होंने घोषणा की कि वे मलयेशिया को एक आदर्श धर्मनिरपेक्ष देश बनाएंगे, जहां नस्लभेद की कोई जगह नहीं होगी. लेकिन बात जब कार्यान्वयन की हुई, तब प्रधानमंत्री नजीब रजक की एक नहीं चली. उनके वरिष्ठ मंत्रियों ने खुल कर भेदभाव का रवैया अपनाया और भारतवंशियों को हर तरह से नीचा दिखाया.

2007 में मलयेशिया के मूल निवासी ‘मलय’ और भारतवंशियों के बीच एक भयानक दंगा हुआ, जिसमें हजारों भारतवंशी मारे गये. उसके बाद भारतवंशी युवकों को ऐसा लगने लगा कि मलयेशिया में उनके हित सुरक्षित नहीं हैं. एक अनुमान के मुताबिक उस समय करीब पांच लाख भारतवंशी मलयेशिया को सदा के लिए छोड़ कर उस देश से निकल गये. कुछ तो भारत आकर बस गये और कुछ अमेरिका चले गये.

कुछ भारतवंशी भारत लौटकर अपने पुरखों के गांव और शहरों में जाकर बिजनेस करने लगे. आज वे सफल उद्योगपति और व्यापारी हैं. उनके मलयेशिया से निकल जाने के कारण मलयेशिया की अर्थव्यवस्था को भारी धक्का लगा, क्योंकि ये सभी भारतवंशी व्यवसायी थे और वे मलयेशिया के आर्थिक उत्थान में भरपूर योगदान कर रहे थे.

* कट्टरपंथियों के आगे सरकार बेबस
मलयेशिया में भारतीय मूल के लोगों की आबादी मात्र आठ फीसदी है. नजीब की सरकार मलयेशिया के मूल निवासी ‘मलय’ लोगों को पिछले कई वर्षो से भड़काती रही है कि भारतवंशी उनकी नौकरियां खा रहे हैं तथा बिजनेस में भी भारतवंशियों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. इसलिए भारतवंशियों को इतना तंग किया जाये कि वे मलयेशिया छोड़ कर भारत चले जाएं. भारतीय मूल के लोगों ने, जो वर्षों से मलयेशिया में रह रहे हैं और जिन्होंने अपना खून पसीना बहा कर मलयेशिया की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है, सरकार से अपना विरोध दर्ज किया है और कहा है कि उनके साथ अमानवीय व्यवहार नहीं होना चाहिए, पर प्रधानमंत्री नजीब पूर्णत: निष्क्रिय रहे, कट्टरपंथियों के सामने उनकी नहीं चली.

* विपक्ष के मुखिया से उम्मीद
जब मलयेशिया में आम चुनाव हुआ, तब यह उम्मीद की जा रही थी कि अनवर सत्ता में आएंगे और देश में एक धर्मनिरपेक्ष सरकार की स्थापना करेंगे. अनवर विपक्षी पार्टी के मुखिया थे. उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद के समय में झूठे आरोपों में वर्षो तक जेल की सजा भुगतनी पड़ी थी. उनके साथ भारतवंशियों तथा चीनियों की भी सहानुभूति थी, परंतु चुनाव परिणाम के बाद सभी की आशाओं पर पानी फिर गया. नजीब दोबारा सत्ता में आ गये.

* जीत के बाद नजीब का वादा
हालांकि सत्ता में आने के बाद नजीब ने मलयेशिया के अल्पसंख्यकों से वादा किया है कि वे उनके साथ न्याय करेंगे और देश में एक धर्मनिरपेक्ष सरकार की स्थापना करेंगे. उन्होंने कहा है कि अब पहले की गलतियां दोहराई नहीं जाएगी. उनका पूरा ध्यान देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने में लगेगा. देश में 444 अरब डॉलर के निवेश की उनकी योजना है.

देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के वे पूरी दुनिया के उद्योगपतियों को मलयेशिया में निवेश करने के लिए आमंत्रित करेंगे. पर अनुभव बताता है कि पहले की तरह ही नजीब कट्टरपंथियों के हाथ का खिलौना बने रहेंगे और डर इस बात का है कि भारत के जो थोड़े से व्यवसायी मलयेशिया में बच गये हैं, देर-सवेर मलयेशिया से निकल जाएंगे. हालांकि इसका नुकसान मलयेशिया को ही होगा.

* मलयेशिया में भारतीय उद्यमी
भारत के अनेक उद्योगपति पिछले कई वर्षो में मलयेशिया में भारी निवेश कर रहे हैं. मलयेशिया की मुख्य टेक्सटाइल मिलें भारतीय उद्योगपतियों के हाथों में हैं. इन मिलों में बने कपड़े संसार के उम्दा किस्म के कपड़ों से भी अच्छे माने जाते हैं. वहां कई अन्य क्षेत्रों में भी भारतीय उद्योगपतियों ने निवेश किया है. परंतु मलयेशिया की सरकार और वहां के कट्टरपंथी जिस तरह भारतवंशियों के खिलाफ भेदभाव की नीति अपना रहे हैं, उससे लगता है कि तंग आकर भारत के उद्योगपति धीरे-धीरे मलयेशिया से अपनी पूंजी निकाल कर अन्यत्र निवेश करने का प्रयास करेंगे. इसका बड़ा नुकसान मलयेशिया और उसकी जनता को ही होगा. मूल प्रश्न यह है कि क्या समय रहते मलयेशिया की सरकार इस सत्य को स्वीकार करेगी?

* मलयेशिया के नतीजे पर एक नजर

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मलयेशिया चुनाव के बाद भारतवंशियों का भविष्य 2

प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर मलयेशिया में आम चुनाव 5 मई, 2013 को संपन्न हुए. इसमें देश के कुल 13.3 मिलियन पंजीकृत वोटरों में से करीब 80 फीसदी ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. भारत की तरह ही यहां भी सरकार का कार्यकाल पांच वर्षो का होता है, जिसके बाद प्रधानमंत्री की सिफारिश पर संघीय संसद को भंग कर दिया जाता है.

चुनावी नतीजे में प्रधानमंत्री नजीब रजाक के नेतृत्व वाला सत्ताधारी गंठबंधन बारीसन नेशनल के उम्मीदवार कुल 222 सीटों में से 133 पर विजयी रहे, जबकि बहुमत के लिए 112 सीटों की ही जरूरत थी. हालांकि यह सत्ताधारी गंठबंधन का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. 1957 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद से मलयेशिया में एक ही गंठबंधन सत्ता में है.

हालांकि उस पर सत्ता में बने रहने के लिए तरह -तरह के हथकंडे अपनाने के आरोप भी लगते रहे हैं, पर प्रधानमंत्री नजीब की लोकप्रियता बरकरार है. हालांकि इस आम चुनाव से पहले हुए एक जनमत सव्रेक्षण में केवल 41 फीसदी लोगों ने नजीब की सरकार के पक्ष में अपनी राय दी थी, जबकि 42 फीसदी लोगों ने कहा था कि विपक्षी गंठबंधन को भी एक बार सरकार चलाने का मौका मिलना ही चाहिए. विपक्षी गंठबंधन का प्रदर्शन 2008 के चुनावों में काफी बेहतर रहा था और उसे करीब 47 फीसदी मत मिले थे. विपक्षी नेता अनवर ने देश से भ्रष्टाचार खत्म करने और अधिक खुले लोकतंत्र की स्थापना का वादा किया था.

* पहली बार दो भारतीयों को प्रांतीय सरकार में जगह
मलयेशिया में पहली बार दो भारतीयों को प्रांतीय सरकार में जगह मिली है. डेमोक्रेटिक एक्शन पार्टी (डीएपी) के अध्यक्ष करपाल सिंह के बेटे जगदीप सिंह देव और डीएपी के ही पी रामासामी को पेनांग प्रांत के दस सदस्यीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. लिम गुआंग इंग के नेतृत्ववाले मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह पेनांग की राजधानी जॉर्जटाउन में शपथ ली. रामासामी उप मुख्यमंत्री का पद बरकरार रखने में कामयाब रहे, जबकि जगदीप को वोंग होन वेई की जगह स्टेट टाउन एंड कंट्री प्लानिंग हाउसिंग कमेटी विभाग का जिम्मा सौंपा गया है.

डीएपी मलयेशिया के पकतान रकयात गठबंधन का हिस्सा है. यह गठबंधन गत पांच मई को हुए आम चुनाव में सत्तारूढ़ बरीसन नेशनल गठबंधन से हार गया था, लेकिन पेनांग में उसने जीत दर्ज की थी.

– 222 सीटें हैं मलयेशिया की संसद में, जिसके लिए 5 मई, 2013 को हुए थे मतदान

– 133 सीटों पर विजयी रहा प्रधानमंत्री नजीब रजाक का सत्ताधारी गंठबंधन

– 13.3 मिलियन पंजीकृत मतदाताओं में से करीब 80 फीसदी ने किया मताधिकार का प्रयोग

– 2007 में मलयेशिया में भीषण नस्ली दंगे में हजारों भारतवंशियों की जान चली गयी थी

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