!!पंचायतनामा डेस्क!!
रांची जिला के बुढ़मू प्रखंड के विजय प्रसाद की परेशानियां उस समय और बढ़ गई जब उनकी मां के मृत्यु होने पर उनकी पत्नी ने अपने मायके में ही रहने का दबाव बनाया. विजय उस समय यह जानकर अवाक रह गये जब उन्हें यह मालूम हुआ कि उनकी पत्नी अपने दोनों बच्चों के साथ अपने मायके चली गयी है. पिछले दो सालों से परेशान विजय की जब कोई सुनने वाला न रहा तो उन्होनें नारी अदालत का रुख किया. अब इस मामले को नारी अदालत देख रही है और उम्मीद है कि जल्द ही परिवार को बिखरने से बचा लिया जायेगा. सिमडेगा की गीता को शादी के बारह साल बाद भी जब अपने ससुराल मे सम्मान नहीं मिला तथा लगातार प्रताड़ना की शिकार हो रही थीं तब उसने नारी अदालत का दरवाजा खटखटाया जहां उसकी पूरी बात सुनी गई और वादी-प्रतिवादी की कॉउन्सिलिंग कर शर्तनामा के साथ सभी विवाद को सुलझा लिया गया.
पारिवारिक विवाद का होता है निबटारा
नारी अदालत के अस्तित्व मे आने के विषय में महिला समाख्या के जिला रिर्सोस पर्सन अंशु एक्का बताती हैं कि प्रारंभ मे जब ग्रामीण महिलाएं स्वयं सहायता समूह के माध्यम से जुड़ने लगीं तो वह आपस के पारिवारिक समस्याओं को भी बांटने लगी. बहुत सारे मामले घरेलू हिंसा से संबंधित होते थे. तब महिलाओं के इन छोटे-छोटे समूहों ने अपने स्तर से इन विवादों का हल निकालने लगीं. अन्य ग्रामीण महिलाओं के बीच कानूनी जानकारी देकर जागरूकता लाने का प्रयास करने लगीं. इस प्रकार समूह की महिलाओं के समस्या का समाधान होने लगा. तब समूह की सफलता को देखते हुए पारिवारिक विवाद तथा घरेलू हिंसा के और भी मामले सामने आये. इसी क्रम मे ग्रामीण महिलाओं ने एक बड़े मंच की जरूरत को महसूस किया गया जहां से अधिकाधिक पारिवारिक विवाद तथा घरेलू हिंसा के मामले निबटाये जा सकें. इसके तहत फेडरेशन का निर्माण किया गया और नारी अदालत इसी की एक कड़ी है. नारी अदालत संवैधानिक संस्था तो नहीं है लेकिन इस अदालत को कानूनी अधिकार प्राप्त है. वर्तमान में रांची जिला के चार प्रखंड चान्हो, मांडर, बुड़मू तथा रांची सदर मे नारी अदालत चलाये जा रहे हैं. नारी अदालत मे 11 सदस्य होते हैं जिनमें अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष तथा 9 अन्य सदस्य होते हैं. इसके साथ ही नारी अदालत की सलाहकार कमेटी में जिला विधिक सेवा प्राधिकार के एक पुरुष तथा एक महिला वकील, एक सरकारी डाक्टर, स्थानीय थाना के प्रभारी, प्रखंड विकास पदाधिकारी भी होते हैं.
मानव तस्करी के लिए विशेष अभियान
नारी अदालत में घरेलू हिंसा के अलावा बेमेल विवाह, पहली शादी के अलावा दूसरी पत्नी रखने संबंधी मामला, प्रेम विवाह आदि मामले की सुनवाई होती है. इसके अलावा नारी अदालत की मानव तस्करी पर भी नजर है. बुढ़मू प्रखंड मे मानव तस्करी को लेकर विशेष जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. साथ ही छेड़-छाड़, बाल विवाह, अंतरजातीय विवाह, बलात्कार तथा दहेज प्रताड़ना के मामलों पर भी सुनवाई होती है. हत्या, भूमि विवाद,अपहरण जैसे मामले चूंकि गंभीर होते हैं इसलिए ऐसे मामलों को नारी अदालत के कार्यक्षेत्र के दायरे से अलग रखा गया है.
पुरुष भी कर सकते हैं आवेदन
कोई भी पीड़ित चाहे वो महिला है या पुरुष नारी अदालत मे आवेदन कर अपनी समस्या रख सकता है. इसके बाद 11 सदस्यीय टीम इस बात का निर्धारण करती है कि टीम किस प्रकार से मामले की जांच करेगी. टीम के लोग पक्ष तथा विपक्ष की गहन छान-बीन कर पूरी सूचना जुटाते हैं तब जाकर इस बात का निर्णय लिया जाता है कि पक्ष-विपक्ष के विवाद को किस प्रकार निबटाया जाये. इसके बाद सामान्य कोर्ट की तरह ही कार्यवाही की जाती है तथा वादी-प्रतिवादी को सुनवाई के लिए बुलाया जाता है. यहां नारी अदालत में दोनों पक्ष को अपनी बात रखनी होती है तथा दोनों पक्षों को बांड पर हस्ताक्षर कर विवाद को निबटा लिया जाता है. नारी अदालत इसके बाद दोनों पक्षों का फॉलो-अप भी करती है अर्थात उनकी जांच करते हैं कि वो ठीक से रह रहे या नहीं.
थाना से भी आते है मामले
जूनियर रिर्सोस पर्सन सायरा खातून कहती हैं कि नारी अदालत को थाना का भी सहयोग मिलता है. थाना भी घरेलू विवाद के मामलों का नारी अदालत परामर्श हेतु भेज देते हैं. इससे समय तथा पैसा के व्यर्थ होने से बचा जा सकता है. महिला अदालत भी घरेलू विवाद के मामले नारी अदालत के जिम्मे देती है. नारी अदालत त्वरित कारवाई करते हुए परिवार को बचाने का हर संभव प्रयास करती है और अधिकांश मामलों मे सफलता ही प्राप्त हुई है. वो कहती हैं कि बहुत मामले ऐसे भी आते हैं जो काफी समय लेते है. ऐसे मे नारी अदालत दबाव समूह के माध्यम से मामलों का जल्द सुलझा लेने का प्रयास करती है. रांची सदर के नारी अदालत में झारखंड के अन्य जिलों से भी पारिवारिक विवाद के मामले आते हैं. सायरा यह भी बताती है कि मुसलिम महिलाओं को घरेलू हिंसा के मामले में इस्लामिक कानून (शरिया) के तहत तलाक भी दिलाया जाता है. नारी अदालत की उपलब्धि के विषय मे पूछे जाने पर वे कहती हैं कि अब पुरुष भी इस अदालत में अपने पारिवारिक विवाद को सुलझाने के लिए आते हैं. यह धारणा कि अत्याचार सिर्फ महिलाओं पर ही होता है गलत साबित हो रही है. पिछले तीन वर्षो से नारी अदालत के जरिये लगभग 400 पारिवारिक विवादों को सुलझाया गया है जिनमें पचास प्रतिशत आवेदन पुरुषों के द्वारा किये गये हैं. त्वरित कारवाई तथा पैसे की बचत को देखते हुए ग्रामीण महिला पुरुषों का रुझान घरेलू हिंसा के मामलों मे नारी अदालत की ओर हो रहा है.