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शाह के साथ प्रेम कुमार की मौजूदगी के क्या हैं मायने?

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के लगभग मध्य बिंदु परपहुंचकर अमित शाह ने कल पटना मेंलंबीप्रेस कान्फ्रेंस की. अमित शाहनेसामान्य तौर परचुनिंदासवालों काजवाबदेने वाले राजनेता माने जाते हैं, लेकिन कल उन्होंनेपत्रकारों के ज्यादातर सवालों के जवाबदिये,जिससे कई बिंदुओं पर पार्टी का स्टैंड सामने आया और वेमीडियासे लेकर लोगों के दिमाग मेंताजाहो गये. शायदयह भाजपा का […]

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के लगभग मध्य बिंदु परपहुंचकर अमित शाह ने कल पटना मेंलंबीप्रेस कान्फ्रेंस की. अमित शाहनेसामान्य तौर परचुनिंदासवालों काजवाबदेने वाले राजनेता माने जाते हैं, लेकिन कल उन्होंनेपत्रकारों के ज्यादातर सवालों के जवाबदिये,जिससे कई बिंदुओं पर पार्टी का स्टैंड सामने आया और वेमीडियासे लेकर लोगों के दिमाग मेंताजाहो गये. शायदयह भाजपा का सुनियोजित मीडिया मैनेजमेंट हो, पर उस दौरानएकखासदृश्य यह था किअमितशाह के ठीक बगलमेंगया से सातवीं बार विधायक बनने के लिए चुनाव समर में कूदे डॉ प्रेम कुमार बैठे हुए थे. शाह के बगल में प्रेम कुमार की मौजूदगी ने कई राजनीतिक कयासों को जन्म दे दिया है.

कौन हैं डॉ प्रेम कुमार?

प्रेम कुमार इतिहास में पीएचडी हैं अौर गया से लगातार छह बार विधायक चुने गये हैं. वे सातवीं बार भी विधायकी चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले दिनों उनके क्षेत्र में जब शहनवाज हुसैन जनसभा करने गये थे तो मंच से अचानक प्रेम कुमार का नाम भावी सीएम के तौर पर उभरा. अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले प्रेम कुमार चंद्रवंशी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके पास संसदीय जीवन का लंबा और बेहतर अनुभव है. वे नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री थे. यह चीज उन्हें पार्टी के कई दूसरे नेताओं से बढत दिलाती है. उनके समर्थक का भी यही तर्क है. ध्यान रहे कि गया में मतदान के दिन भी प्रेम कुमार वोट करने के बाद चुनाव उपरांत बड़ी जिम्मेवारी की उम्मीद जता चुके हैं.

पर, सीमाएं भी हैं

नि:संदेह प्रेम कुमार सशक्त दावेदार हैं और उनका वर्गीय आधार भी उनके पक्ष में जाता है, लेकिन वे बीजेपी की राज्य इकाई के बहुत जाना पहचाना चेहरा कभी नहीं बन सके. भाजपा के प्रदेश नेतृत्व का चेहरा तो सुशील कुमार मोदी, नंदकिशोर यादव व अश्विनी चौबे जैसे लोग हीरहे. उन्होंने बयानों से गिरिराज सिंह जैसा ध्यान भी लोगों का नहीं खींचा.मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य मेंआमतौर पर इसेकमजोरीमाना जाता है, लेकिन कई अवसर पर यह कमजोरी ही ताकत भी बन जाती है.

अति पिछड़ों का वोट सबसे अहम

इस विधानसभा चुनाव में अति पिछड़ों का वोट सबसे अहम है. कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि अति पिछड़ा वोट जिस ओर जायेगा, सरकार उसी की बनेगी. ऐसे में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला एनडीए हो या नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला महागंठबंधन दोनों इस वर्ग को लुभाने की भरपूर कवायद कर रहा है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी कल पिछड़े वर्ग का सीएम और पीएम देने की बात कही. भाजपा नेताओं की जुबान पर अतिपिछड़ा शब्द भी चढा हुआ है. ऐसे में चुनाव परिणाम और उसके बाद भाजपा के फैसले पर तब तक लोगों के मन में सवाल तो उमड़ते घुमड़ते ही रहेेंगे.

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