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अमेरिकी मनोदशा का पर्याय बन रहा गन कल्चर
ओरेगन की घटना ने अमेरिकी समाज और व्यवस्था में बंदूक संस्कृति के आतंक को एक बार फिर रेखांकित किया है. इसी साल गोलीबारी की 40 हजार घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें 10 हजार से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हथियारों की खुलेआम खरीद-बिक्री और बंदूकों को बहादुरी से जोड़ कर देखने की प्रवृत्ति […]
ओरेगन की घटना ने अमेरिकी समाज और व्यवस्था में बंदूक संस्कृति के आतंक को एक बार फिर रेखांकित किया है. इसी साल गोलीबारी की 40 हजार घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें 10 हजार से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हथियारों की खुलेआम खरीद-बिक्री और बंदूकों को बहादुरी से जोड़ कर देखने की प्रवृत्ति पर रोकथाम की कोई गंभीर कोशिश सरकार या समाज की ओर से नहीं हो रही है. इस भयावह परिस्थिति को विश्लेषित करती आज की विशेष प्रस्तुति…
गोलीबारी की कुछ हालिया घटनाएं
– 1, अक्तूबर 2015
ओरेगन के एक कम्युनिटी कॉलेज में एक 26 वर्षीय युवा ने गोली चलाकर नौ लोगों की हत्या कर दी. मरनेवालों की उम्र सात से 67 वर्ष के बीच थी. पुलिस की गोली से हमलावर भी मारा गया.
– अगस्त 26, 2015
वर्जीनिया के एक शॉपिंग सेंटर में हुई गोलीबारी में एक पत्रकार ने दो टीवी पत्रकारों को लाइव रिपोर्टिंग करते हुए मार दी थी. हमलावर ने खुद को भी गोली मार लिया था, जिसके कारण बाद में उसकी मृत्यु हो गयी. हमलावर पत्रकार भी उसी चैनल में कुछ समय पहले तक कार्यरत था.
– जुलाई 5, 2015
लुसियाना में 17, 19 और 20 साल उम्र के तीन युवाओं ने अंधाधुंध फायरिंग कर आठ लोगों को घायल कर दिया था. इस घटना में किसी की मृत्यु नहीं हुई थी.
डॉ रहीस सिंह
विदेश मामलों के जानकार
‘जब अमेरिकी नागरिक खदान आपदा (माइन डिजास्टर) में मारे गये, तब हमने माइन्स को सुरक्षित करने के लिए कार्य किया. जब अमेरिकी बाढ़ और हरीकेन से मारे गये, हमने समुदायों को इनसे सुरक्षा प्रदान की. जब सड़कें असुरक्षित हुईं, हमने ऑटो फैटलिटीज को रोका. हमने सीटबेल्ट के लिए कानून बनाये, क्योंकि हमें मालूम था कि यह हमारी जिंदगियों को बचा सकता है. बंदूक से हो रही हिंसा इन सभी से पूरी तरह भिन्न है, लिहाजा अब इसमें प्रार्थनाएं और विचार करनेभर से ही काम चलनेवाला नहीं है. इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए अब सख्त कार्रवाई करनी होगी, तभी यह काबू में आयेगी.’ ओरेगन की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिका में गन कल्चर और ‘गन होमोसाइड डेथ’ पर यह वेदना जाहिर की.
लेकिन यहां पर तीन सवाल उठते हैं- आखिर यह गन कल्चर इस स्थिति तक पहुंच कैसे गयी? इसके मूल कारण क्या रहे? अमेरिकी प्रशासन इसे रोकने में असफल क्यों रहा? ये सवाल तब और प्रासंगिक हो जाते हैं, जब अमेरिकी प्रशासन ने वर्ल्ड ट्रेड टॉवर पर हुए हमले का बदला लेने के लिए आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध छेड़ दिया, जबकि गन कल्चर का शिकार उससे कई गुना अमेरिकी हो रहे हैं, लेकिन अमेरिका इस संस्कृति के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठा पा रहा है, आखिर क्यों?
ओरेगन कॉलेज में मासूम लोगों की हत्या के बाद अमेरिका में इस तरह की हत्याओं और हिंसा को लेकर एक बार फिर से बहस तेज हो गयी है. कारण यह है कि वहां इस तरह की हत्याओं में करीब दस हजार लोग प्रतिवर्ष वर्ष मारे जा रहे हैं. 9/11 की घटना को अमेरिका ने एक वैश्विक घटना बना कर पेश किया था और जिस तरह से उसे लेकर कार्रवाई हुई, उसे दुनिया जानती है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि 9/11 के आतंकी हमले में करीब तीन हजार लोग मारे गये थे और छह हजार से अधिक लोग घायल हुए थे, जबकि गन कल्चर से मरनेवालों की संख्या इससे कहीं अधिक है.
यदि अमेरिकी सरकार के आंकड़ों पर ध्यान दें तो 2001 से 2011 तक अमेरिकी आतंकी हमलों के कम और गन हिंसा के शिकार अधिक हुए हैं. इसके बाद भी राष्ट्रपति ओबामा अमेरिका में गन कल्चर को नियंत्रित करने के लिए कानूनों में बदलाव नहीं ला पा रहे हैं, जबकि एक सर्वे का हवाला देते हुए राष्ट्रपति ओबामा ने स्वयं स्वीकार किया है कि अमेरिका का एक बहुत बड़ा वर्ग गन कल्चर कानून में बदलाव चाहता है.
इस साल जुलाई के मध्य में ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के इस सर्वे के अनुसार, 80 प्रतिशत लोगों का मानना है कि ऐसे कानून की जरूरत है, जिससे मानसिक रूप से बीमार/ विकृत लोगों द्वारा गन खरीदे जाने पर पाबंदी लगायी जा सके.
सर्वे में हिस्सा लेनेवाले लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने कहा कि गन बिक्री पर डाटाबेस तैयार किया जाना चाहिए. लेकिन इस तरह के आंकड़े ज्यादा मायने नहीं रखते हैं. जो बात मायने रखती है वो है अमेरिकी कांग्रेस के सांसदों की राय, मंशा और अमेरिकी समाज की मनोदशा, जिसमें अधिकांश पक्ष हथियारों के बनाये रखने की है.
प्यू सर्वे से पता चलता है कि हथियारों पर रोक लगाने का समर्थन अधिकांश डेमोक्रेट्स (70 प्रतिशत) तो करते हैं, लेकिन ऐसे रिपब्लिकनों की संख्या 48 प्रतिशत ही है. यानी वर्तमान समय में अमेरिकी कांग्रेस हथियारों पर रोक लगाने का समर्थन नहीं करती. अमेरिका के विभिन्न राज्यों ने भी अभी तक इस मामले में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखायी है.
इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि अभी तक कैलिफोर्निया समेत महज सात राज्यों ने अपने अधिकार क्षेत्र में हथियार खरीद संबंधी कानून बनाये हैं. इलिनायस राज्य में अधिकतर लोग हथियार कानून नियंत्रण के समर्थन में है, जबकि अलास्का, नेबरास्का और अलबामा के ज्यादातर लोग हथियारों के पक्ष में हैं.
क्या यह अमेरिकी लोगों की मनोदशा की राजनीतिक अभिव्यक्ति है अथवा अमेरिकी गन इंडस्ट्री का दबाव?
‘एवरीटाउन फॉर गन सेफ्टी’ अभियान के आंकड़ों को यदि सही माना जाये, तो 2002-2013 के बीच दुनियाभर में आतंकवादी घटनाओं मारे गये अमेरिकियों के मुकाबले करीब 1400 गुना अमेरिकी गन कल्चर का शिकार हुए हैं. विशेष बात यह है कि गन कल्चर का शिकार हुए लोगों की संख्या आतंक, युद्ध, एड्स, ड्रग्स आदि से मरनेवालों की कुल संख्या से भी काफी ज्यादा है.
सवाल यह उठता है कि आखिर इसकी वजह क्या है? क्या अमेरिकी समाज में बढ़ती उन्मादी मानसिकताओं को परिणाम है अथवा कुछ और? सवाल यह भी उठता है कि आखिर एक विकसित देश में जहां समृद्धि व रोजगार के खासे साधन हैं, वहां के युवाओं में ऐसी विकृति कहां से आयी और क्यों आयी?
1960 के दशक में जब अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर अपने पद से विदाई ले रहे थे, तो उन्होंने परदे के पीछे की शक्तियों की ओर इशारा किया था और उन्हें अमेरिकी मूल्यों व लोकतंत्र के लिए खतरा बताया था. वास्तव में ये शक्तियां कौन थीं? यदि सरल उत्तर दिया जाये, तो हथियार निर्माता कंपनियां. अब इनके साथ यदि बाजार को जोड़ दिया जाये, तो स्थिति और भी स्पष्ट हो जायेगी और निष्कर्ष निकालने से पहले आप वहां तक पहुंच जायेंगे कि 9/11 की घटना के पीछे असली गुनहगार कौन थे.
दरअसल इन कंपनियों को हर हाल में अपने हथियार बेचने हैं, फिर चाहे उन्हें विश्व बाजार खरीदे अथवा घरेलू बाजार के सामान्य उपभोक्ता. इनकी यही मानसिकता अमेरिका वासियों में असुरक्षा का भाव पैदा कराती है और फिर उसके लिए हथियार की अनिवार्यता का सिद्धांत प्रतिपादित कर देती है.
इन सिद्धांतों को बाजार प्रसारित करता है और अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य उसकी वकालत करते हैं. उदाहरण के तौर पर बाजार का एक विज्ञापन कहता है- मोर फन, विद योर गन, द इयर एराउंड! इसका क्या मतलब हुआ? यही फन गन इंडस्ट्री की कमाई का जरिया बना हुआ है. चूंकि यह मानसिकता का हिस्सा बन गया है. चूंकि गन कल्चर से जुड़ी कंपनियां राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों को भारी चंदा देती हैं, इसलिए अमेरिकी कांग्रेस में इनका पक्ष मजबूत रहता है.
ऐसी तमाम सूचनाएं हैं, जो यह बताती हैं कि नेशनल राइफल एसोसिएशन यानी एनआरए अब रिपब्लिकन पार्टी के पाले में है और चुनाव में वोट भी जुटाती है. अमेरिका की राजनीति में गन लॉबी का दबदबा कितनी तेजी से बढ़ रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सीनेट के चुनावों में यह खुल कर विज्ञापन दे रही है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, 13 अक्तूबर तक गन लॉबी सीनेट के चुनावों में 17 मिलियन डॉलर खर्च कर चुकी है और इसका ज्यादातर हिस्सा रिपब्लिकन उम्मीदवारों को मिला है.
खास बात यह है कि 2016 में राष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं और गन लॉबी ऐन मौके पर अपना बाहुबल दिखाने के लिए कमर कस रही है. इसलिए यह उम्मीद करना बेमानी लगता है कि राष्ट्रपति ओबामा अपने बचे हुए कार्यकाल में इसके खिलाफ कोई सख्त कानून बनाने में सफल हो पायेंगे.
गन पॉलिटिक्स और ओबामा प्रशासन
अमेरिका में गन कल्चर पर नियंत्रण स्थापित करने की लगातार मांग की जा रही है. यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ब्लैक फ्राइडे घटना के बाद से ही ऐसे प्रयास शुरू किये थे़ लेकिन अब तक असफलता ही दिख रही है. इस गन कल्चर का कारण यह है कि कई अमेरिकी राज्यों में हथियार खरीदना एवं लोडेड गन लेकर घूमना वैध है.
अब ओबामा प्रशासन देश में असाॅल्ट वैपन पर पाबंदी के साथ ही कारतूस की बिक्री की राशनिंग चाहता है. राष्ट्रपति ओबामा ने हथियारों पर नियंत्रण के लिए 23 कदमों की भी घोषणा की है, जिसके लिए उन्हें कांग्रेस की अनुमति की जरूरत नहीं है. इन कदमों में प्रमुख रूप से पृष्ठभूमि की जांच की मौजूदा प्रक्रिया को बेहतर बनाना, हथियारों के साथ होनेवाली हिंसा पर संघीय रिसर्च पर प्रतिबंध हटाना, स्कूलों में अधिक सलाहकारों को नियुक्त करना और मानसिक स्वास्थ्य सेवा की पहुंच बढ़ाना शामिल हैं.
राष्ट्रपति का दूसरा प्रयास सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किये जानेवाले सेमी अॉटोमैटिक गनों पर फिर से प्रतिबंध लगाना है, लेकिन इसके लिए रिपब्लिकन सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. हालांकि, रिपब्लिकन इससे संबंधित प्रस्ताव का विरोध करेंगे, क्योंकि राष्ट्रीय राइफल एसोसिएशन और कांग्रेस में उनके समर्थक राष्ट्रपति के कदमों को हथियार रखने के अपने संवैधानिक अधिकार में हस्तक्षेप मानते हैं.
गन कल्चर की वजह क्या है?
दरअसल, आधुनिक अमेरिका का निर्माण हिंसा की संस्कृति पर हुआ. यह बात केवल उन साम्राज्यवादियों पर लागू नहीं होती, जिन्होंने 1776 से पहले अमेरिका पर राज किया, बल्कि उन पर भी लागू होती है, जिन्होंने नये अमेरिका के निर्माण में एक अमेरिकी नस्ल को ही खपा दिया.
अमेरिकी गृहयुद्ध और उसके बाद पूंजीवाद में उसके रूपांतरण काल में अमेरिका में आत्मरक्षा का जो विचार या सिद्धांत पनपा, उसमें बंदूक अनिवार्य लगने लगी. अमेरिकी हथियार उद्योग ने इस नब्ज को पकड़ा ही नहीं, बल्कि उसे और उभारा भी और फिर इसे अपनी आय का मुख्य जरिया बना लिया. इसी दौर में पूंजीवाद के संरचनात्मक संकट तथा उससे उत्पन्न युद्धों ने इस उद्योग को समृद्ध बनने के स्वर्णिम अवसर प्रदान कर दिये.
इन्हीं युद्धों के दौर में यूरोप और अमेरिका में भारी मात्रा में हथियारों का संग्रह हुआ. चूंकि विश्व युद्धों के बाद यूरोप की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी थी, इसलिए यूरोपीय हथियार निर्माताओं ने अमेरिका की ओर रुख किया. अमेरिकी कंपनियां और उनके लॉबीस्ट पहले से ही अमेरिका में हिंसक संस्कृति को प्रोत्साहित कर रहे थे, इसलिए यूरोपीय कंपनियों के लिए वहां स्पेस मिल गया. आज के अमेरिकी समाज का बड़ा हिस्सा इन्हीं हथियार कंपनियों और लॉबीस्टों द्वारा निर्मित बारुदी व्यवस्था पर बैठा हुआ है, जिसके लिए कहीं धर्म, कहीं नस्ल, कहीं बाहरी तो कहीं अन्य कारण हिंसा का बहाना बनने के लिए मौजूद हैं.
यूरोपीय देश बढ़ा रहे हथियारों का निर्यात
कुछ रिपोर्टों एवं अध्ययनों से पता चलता है कि कई यूरोपीय देश अपने हथियारों का निर्यात अमेरिका की ओर तेजी से बढ़ा रहे हैं, जिनमें ऑस्ट्रिया, इटली, जर्मनी, क्रोएशिया, बेल्जियम, ब्रुसेल्स आदि प्रमुख देश हैं, जो अमेरिकी बाजार में एक वर्ष में कई लाख हथियारों की आपूर्ति करते हैं.
कुछ यूरोपीय कंपनियां जैसे–ग्लॉक, बेरेटा और सिग जावर अमेरिका में ही अपने हथियारों का निर्माण करके बेचती हैं. दरअसल इनके लिए अमेरिकी बाजार बहुत लाभदायक है. नेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी नागरिक हथियार बाजार सालाना तीन अरब डॉलर से अधिक का है. अब यहां पर दो बातें प्रमुख हैं– प्रथम यह कि यूरोपीय देश अमेरिकी हथियार बाजार से खासा धन कमाते हैं, जो इयू आर्थिक संकट के दौर में उनके लिए आय का एक बड़ा जरिया बना हुआ है.
ऐसे में यदि अमेरिका में गन कल्चर को नियंत्रित करनेवाला कानून बनता है, तो अधिकांश यूरोपीय कंपनियां वित्तीय संकट का शिकार हो जायेंगी. अमेरिका इन्हें रोकने में इसलिए हिचकिचा रहा है, क्योंकि अमेरिका के साम्राज्यवादी उद्देश्यों अथवा वैश्विक युद्धों में ये देश उसके बेहतर सिपहसालार होते हैं. यानी वैश्विक बाजार और अमेरिकी महत्वाकांक्षाएं ही अमेरिकियों को निगल रही हैं.
समाधान क्या हो?
हॉलीवुड की उदासीनता
अब इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि जो हॉलीवुड तमाम ऐसे मुद्दों पर बेहद संवेदनशील नजर आता है, जो मानव अधिकारों के सरोकारों से जुड़े होते हैं. चाहे वह प्रवासन का मामला हो, पर्यावरण का मामला हो, गरीबी व भुखमरी का मामला हो, यहां तक कि नव साम्राज्यवाद का मामला हो उस पर भी, लेकिन गन कल्चर पर वह संवेदनशून्य क्यों है? फिल्मों में काम करनेवाले कलाकार समाज के बड़े वर्ग के नायक होते हैं, इसलिए यदि वे शांतिप्रियता का संदेश देंगे और गन कल्चर को समाज के लिए खतरनाक बताने के अपने तरीके अपनायेंगे, तो निश्चित तौर पर अमेरिकी समाज का मनोविज्ञान बदलेगा.
हालांकि अॉरनॉल्ड श्वार्जनेगर, ब्रूस विलीस, डेन्सेल वाशिंगटन, पिट और क्लूनी जैसे कलाकार अभी तक इस विषय पर उदासीन बने हुए हैं. अब यह तर्क देना बंद करना चाहिए कि हथियार ही आत्मरक्षा का सबसे बेहतर उपकरण है और हथियार निर्माता कंपनियां अपनी आय पर कर देती हैं.
सरकार निर्यात की अनुमति देगी, तभी हिंसक गन कल्चर रुकने की उम्मीद की जा सकती है, अन्यथा नहीं. इसके साथ ही अमेरिकी समाज का बदलने का प्रयास भी करना होगा, जिसका संवेदनाओं और सामाजिक मूल्यों का आधार लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है.
अमेरिका में हिंसा की संस्कृति
प्रकाश कुमार रे
एवरी टाउन फॉर गन सेफ्टी अभियान के आंकड़ों के अनुसार 2002-2013 के बीच दुनियाभर में आतंकवादी घटनाओं में 263 अमेरिकी नागरिकों मरे. इसी अवधि में बंदूक से अमेरिका में 1,41,796 लोग मारे गये. यह संख्या आतंक, युद्ध, एड्स, ड्रग्स आदि से मरनेवाले अमेरिकियों की कुल संख्या से बहुत अधिक है. इस वर्ष अभी तक वहां 40 हजार से अधिक गोलीबारी की घटनाओं में 10 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. इसका सीधा संबंध अमेरिकी समाज की हिंसक संस्कृति से है.
जाने-माने ऑस्ट्रेलियाई टिप्पणीकार माइकल पास्को का कहना है कि ‘अमेरिका इस हद तक अपरिपक्व समाज है, जिसे बंदूकों से खेलने की अनुमति नहीं होनी चाहिए. उसने अपनी पाशविक पश्चिम की पौराणिकता को कभी नहीं छोड़ा है.’ वर्ष 2013 में बंदूकों पर कुछ नियंत्रण के ओबामा के प्रस्ताव को रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के विधायी सदस्यों ने नकार दिया था.
तब भी, और उससे पहले ऐसी घटनाओं के समय ओबामा के भाषणों, और उससे पहले राष्ट्रपति चुनाव में उनके भाषणों, और अब, ओरेगन पर भाषण को अमेरिका के स्तर से ‘क्रांतिकारी’ भले माना जाये, पर, जैसा कि एक प्रतिष्ठित अमेरिकी विश्वविद्यालय में इतिहास के वरिष्ठ प्रोफेसर विनय लाल कहते हैं, यह सब एक अगंभीर प्रयास हैं जिन्हें बंदूक संस्कृति पर कथित बहस के रूप में पेश किया जाता है. यह बार-बार कहा गया है कि अमेरिका की नींव में हिंसा की मानसिकता है.
हिंसा के बिना अमेरिका की कल्पना संभव नहीं है. ओरेगन की घटना के दो दिन बाद अफगानिस्तान में एक अस्पताल पर अमेरिकी हमले में 19 लोग मारे गये थे जिनमें कई डॉक्टर थे. बंदूकों से होनेवाली घटनाओं पर दिये जानेवाले शोक-संदेशों को अपर्याप्त बतानेवाले राष्ट्रपति इस हत्याकांड को ‘त्रासद घटना’ कह कर अपना औपचारिक दायित्व पूरा कर रहे थे. अमेरिका के वैश्विक सैन्य अभियान का दायरा बहुत बड़ा है.
पिछले साल अफ्रीका में अमेरिका ने 674 सैनिक कार्रवाई की थी. दुनियाभर में 800 से अधिक परमाणु शक्ति से लैस अमेरिकी सैन्य अड्डे हैं. अमेरिकी सेना की उपस्थिति 135 से अधिक देशों में है. विभिन्न देशों में सिर्फ अमेरिकी ड्रोन हमलों में हजारों लोग ओबामा के कार्यकाल में मारे जा चुके हैं.
अमेरिकी संस्कृति, अर्थव्यवस्था और उसके सैन्य वर्चस्व के अंतर्संबंध इतने गहरे हैं कि एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता है. हाल ही में ओबामा संयुक्त राष्ट्र में कह रहे थे कि अमेरिका अकेले दुनिया की समस्याओं को हल नहीं कर सकता है. यह उनकी सीमा का आत्म-बोध नहीं था, बल्कि अहंकार था. समस्याओं का समाधान बहुत हद तक सिर्फ इतने भर से हो जायेगा कि अमेरिका सबके फटे में नाक घुसाना बंद कर दे. यही उसकी परेशानियों का भी हल है. हिंसक और संवेदनहीन जीवन और राजनीति का परिणाम विश्व भी भुगत रहा है और उसका अपना समाज भी.
वर्ष 1999 में एक स्कूल में हुई गोलीबारी पर आधारित माइकल मूर की फिल्म बॉउलिंग फ़ॉर कोलंबाइन के एक दृश्य में मशहूर अमेरिकी कलाकार मेरिलीन मैंसन से निर्देशक पूछता है कि क्या वह उन आरोपों से सहमत है कि उसके या उसके जैसे अन्य कलाकारों के प्रदर्शनों में हिंसा के बखान का असर युवाओं को हिंसक बना रहा है. इस पर मैंसन का जवाब है कि जब राष्ट्रपति दूसरे देशों पर मिसायल दागता है, तब युवाओं-किशोरों पर उसकी हिंसा के प्रभाव की चर्चा क्यों नहीं होती!
संभावना तो यह है कि बंदूक पहले से अधिक सहजता से उपलब्ध होंगे. और, इस उम्मीद की चर्चा भी क्या करना कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका अपनी भयानक गुंडागर्दी से परहेज करेगा! इस बारे में कोई संदेह हो, तो राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेट और रिपब्लिकन उम्मीदवारों में चल रही मौजूदा बहस को देखा जा सकता है.
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