।।दक्षा वैदकर।।
हम सभी के पास सही और गलत की अपनी अलग परिभाषा है. जब बच्चा छोटा होता है, तो हम उसकी हर बात को बड़े प्यार से देखते हैं. उसकी गलती को स्वीकारते हैं, उस पर मुस्कुराते हैं. लेकिन जैसे–जैसे वह बड़ा होता जाता है, हम उसकी बातों को गलत कहने लग जाते हैं, उसे टोकते हैं, डांटते हैं. हम बच्चे को कहते हैं कि तुम गलत हो. बच्च कहता है कि आप गलत हो. इस तरह बीच में गैप आ जाता है. तिरस्कार की भावना आ जाती है.
जब बच्चा छोटा होता है, तो वह स्कूल से आकर हर चीज आपके आगे-पीछे घूम-घूम कर आपको बताता है. आप उसकी बात सुनते हैं और बदले में मुस्कुराते हैं, लेकिन जब बच्चा बड़ा हो जाता है और आपको बताता है कि ‘आज मैंने क्लास बंक की और दोस्तों के साथ फिल्म देखी’, तो आप उस पर भड़क उठते हैं. उसे खूब डांटते हैं. तब बच्चा सोचता है कि मेरी हर बात को प्यार से सुननेवाले पैरेंट्स को क्या हो गया. अगली बार वह बताता है कि ‘आज मैंने दोस्त के साथ सिगरेट पी.’ आप फिर उसे डांटते हैं. बच्चा समझ जाता है कि पैरेंट्स को कौन सी बातें नहीं बताना है. इस समस्या को हल नहीं किया, तो मामला बिगड़ सकता है.
पैरेंट्स को चाहिए कि वे सबसे पहले एक अच्छा श्रोता बनें. उनका पहला कर्तव्य होता है कि वे अपने बच्चे को प्यार दें. उस कर्तव्य को न भूलें. बच्चा कुछ भी करे, कुछ भी आपको बताये, उसे तुरंत डांटना शुरू न करें. उसकी बात को गलत न कहें. ये कहें कि तुम्हारे नजरिये से तुम सही हो. आप भले ही बाद में उसे सुझाव दे सकते हैं. बस हर चीज प्यार से ही दें. कभी भी आपके चेहरे पर उसके प्रति तिरस्कार के भाव नहीं आने चाहिए.
सोचने वाली बात है कि बच्चा काउंसेलर यानी एक अजनबी को अपने सारे दुख-दर्द बता देता है, लेकिन पैरेंट्स को नहीं. काउंसेलर आखिर क्या करता है? वह बच्चे की बात को बड़े ध्यान से सुनता है. उसे तिरस्कार भरी नजरों से नहीं देखता. आज की तारीख में हर इनसान क्या चाहता है? यही न कि कोई उसकी बात कम-से-कम सुन तो ले. आपको बस वही करना है, लेकिन प्यार से.
बात पते की..
बच्चे ने यदि कोई गलती कर दी और आपको बता रहा है, तो उसे कभी न डांटें. उसके घावों को प्यार से भरें, उसके बाद उसे सुझाव दें. गाइड करें.
यदि आप घर पर उसकी बातों को सुनेंगे नहीं, डांटेंगे, तो बच्च बाहर दोस्तों के बीच अपनापन व प्यार तलाशेगा. बाहरी लोग उसके करीब हो जायेंगे.