पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित 64 फाइलों को सार्वजनि क कर केंद्र सरकार पर उनसे जुड़े तमाम गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक करने का दबाव बढ़ा दि या है. आजादी के 68 साल बाद भी नेताजी को लेकर कई तरह की अफवाहें उठती रहीं, लेकिन कोई भी सरकार इन फाइलों को सार्वजनिक करने का फैसला नहीं कर सकी. नेहरू, कांग्रेस और नेताजी से जुड़ी कई खबरें सामने आयीं, जो देश की सबसे पुरानी राजनीति क पार्टी के लि ए कि सी संकट से कम नहीं थी. इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस नेताजी से जुड़े राज खुलने से क्यों डरती रही? बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू- महात्मा गांधी के राजनीति क टकराव को लेकर सियासी बहस होती रही है. जनभावना पर इसका गहरा असर है. नेताजी के समर्थक कहते हैं कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अगस्त, 1945 में किसी विमान हादसे में सुभाष चंद्र बोस की मौत हुई. अगर वे बच गये होंगे, तो हो सकता है कि नेहरू-गांधी और बोस के विरोधियों ने उन्हें भारत आने से रोका हो. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इस बात की एक झलक देने की कोशिश की है कि इन फाइलों में क्या है. उन्होंने कहा है कि उन्होंने पूरी फाइलें नहीं देखी.
है, लेकि न इनमें इस बात का जि क्र है कि नेताजी के परिवार की जासूसी होती रही कि वह कहां-कहां घूमते थे. यह सवाल पहले भी उठते रहे हैं कि कांग्रेस सरकार ने नेताजी के परिवारवालों की जासूसी करवायी है. ममता ने कहा, ‘इतने साल हो गये. इस इनसान के बारे में कोई नहीं जानता, जि सने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया. आप लोग पढ़ि ए और जानि ए इनके बारे में. ये म्यूजियम एक नयी शुरुआत है.’
पश्चिम बंगाल सरकार ने जो 64 फाइलें सार्वजनि क की हैं, उनमें से एक फाइल नंबर -167Y/22, सीरियल नंबर -3 और तारीख 29 अप्रैल, 1949 बताता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत 1945 के वि मान हादसे में नहीं हुई थी. नेता जी की 1945 में कथि त मौत के दो साल बाद भेजी गयी खुफि या वि भाग की ये रिपोर्ट वि मान हादसे में नेताजी की मौत न होने के शक पर पहली सरकारी मुहर है. रिपोर्ट से साफ है कि भारतीय एजेंसि यां जानतीं थीं कि ब्रिटि श खुफि या एजेंसी को वि मान हादसे में नेता जी की मौत पर भरोसा नहीं था. नेताजी की मौत की जांच करनेवाले मुखर्जी कमीशन ने भी ताइवान से बात करने के बाद वि मान हादसे की कहानी को गलत बताया था. इस रिपोर्ट को तत्का लीन मनमोहन सि ंह सरकार ने खारिज कर दि या था. सवाल है कि अगर अमेरिकी और ब्रिटिश एजेंसि यां मानतीं थीं कि सुभाष चंद्र बोस 1945 के बाद भी जीवि त थे, तो क्या उन्हें यह भी पता था कि वो कहां हैं? गुप्त रिपोर्ट में साफ-साफ लि खा गया है कि ‘एंग्लो अमेरिकी सूत्र ये लगभग तय कर चुके हैं कि भारतीय नेता फि लहाल रूस में हैं. भारत में जब मार्क्सव ादि यों का वक्त आयेगा, उन दि नों के लि ए वे दूसरे टीटो, दिमित्रोव या माओ बनने के लि ए ट्रेनि ंग ले रहे हैं. वि मान हादसे में नेताजी की कथि त मौत के चार साल बाद भी एंग्लो -अमेरिकी खुफि या एजेंसी मानतीं हैं कि पूर्वी एशि या और सुदूर पूर्व में हो रहे हर कम्युनि स्ट विद्रो ह
के पीछे नेता जी सुभाष चंद्र हैं.’ इस खुलासे के बाद नेताजी के रहस्य पर रिसर्च करनेवाले मानते हैं कि केंद्र सरकार के पास मौजूद सीक्रेट फाइल्स को सार्वजनि क करने का वक्त भी आ गया है. सीक्रेट फाइल में भारतीय खुफि या एजेंसी ने यह भी लि खा है कि ‘बोस जीवित हैं और उनके लाल चीन या सोवि यत रूस में होने का शक है’. एजेंसी ने यह नि ष्कर्ष हादसे के वक्त नेताजी के साथ रहनेवाले आजाद हिंद फौज के जनरल हबीब उर रहमान के बयानों के आधार पर नि काला था. रिपोर्ट के मुताबि क, हबीब उर रहमान के बयान बाद में वि रोधाभासी होते गये. अंत में जनरल रहमान ने भी कहा था कि उन्हें वि श्वास है कि नेताजी जि ंदा हैं और वो सही वक्त पर लौट आयेंगे. एंग्लो -अमेरिकी खुफि या एजेंसि यों को जब इतनी बातें पता
थीं, तो क्या भारत की तमाम सरकारों को भी यह सच पता था कि नेताजी जीवि त हैं. यदि नहीं, तो अब तक की सरकारों ने वि मान हादसे की थ्यो री का समर्थ न करने के बावजूद जापान की राजधानी तोक्यो के मंदि र में रखे नेताजी के कथि त अस्थि कलश को लाने की कोशि श क्यों नहीं की. खुफि या एजेंसी (आइबी) की ज्या दा दि लचस्पी नेताजी के भतीजों शिशिर कुमार बोस और अमि य नाथ बोस के बारे में क्यों थी, जो एक वक्त नेताजी के बेहद करीब थे. ब्रिटि शराज में शुरू हुई नेताजी की जासूसी को दो दशक तक नेहरू सरकार ने क्यों जारी रखा? इधर, मई, 2015 में नेताजी की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी ने
कहा था कि देश के प्रधानमंत्री नेहरू ने कुरसी के लि ए रूसी तानाशाह स्टालि न के जरिये अमानवीय यातनाएं देकर साइबेरिया में नेताजी को मरवाया था. उन्होंने कहा कि यह बात तथ्यों पर आधारित है. उनके मुताबि क, संसद में मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट बिना संपादि त कि ये रख दी जाये, तो दूध का दूध, पानी का पानी हो जायेगा. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे क्लि मेंट एटली और जवाहर लाल नेहरू के बीच हुए एक पत्राचार से भी राज्यश्री के दावे की तस्दी क होती है.
छोटा खत, बड़े सवाल
भारत की आजादी के वक्त ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे क्लिमेंट एटली (जुलाई, 1945- अक्तूबर, 1951) को कथित तौर पर नेहरू ने एक पत्र लिखा था. शायद यह पत्र नयी दिल्ली से 26 दि संबर, 1945 को लिखा गया (कथित प्ले न क्रैश के चार महीने बाद). इसमें लिखा गया है, ‘हम मानते हैं कि आपके युद्ध अपराधी सुभाष चंद्र बोस को स्टालि न ने रूस की सीमा में प्रवेश की इजाजत दी है. यह सीधे तौर पर रूस का धोखा है, क्योंकि वह अमेरिका-ब्रिटेन का साथी है. कृपया इसपर संज्ञान लें.’ ऐसा समझा जा सकता है कि पत्र को बेहद ही जल्दबाजी में लिखा गया होगा. फोटोकॉपी देखकर मालूम चलता है कि इसमें आधा दर्जन टाइपिंग की गलतियां हैं, लेकिन व्याकरण सही है. मेरठ के श्याम लाल जैन ने जीडी खोसला कमीशन के सामने माना कि यह पत्र उन्होंने ही नेहरू के लिए लिखा था. यह छोटा खत कई बड़े सवाल खड़े करता है. आखिर यह जानकारी नेहरूको कि सने दी? क्यों सिर्फ नेहरू तक ही जानकारी पहुंची? क्या उन्होंने कांग्रेस के अन्य नेताओं गांधी और पटेल से इसे साझा कि या? अगर उन्होंने कि या, तो क्यों इसे दबाकर रखा गया? अगर उन्होंने नहीं कि या, तो क्यों?
छोटा खत, बड़े सवाल
भारत की आजादी के वक्त ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे क्लिमेंट एटली (जुलाई, 1945- अक्तूबर, 1951) को कथित तौर पर नेहरू ने एक पत्र लिखा था. शायद यह पत्र नयी दिल्ली से 26 दि संबर, 1945 को लिखा गया (कथित प्ले न क्रैश के चार महीने बाद). इसमें लिखा गया है, ‘हम मानते हैं कि आपके युद्ध अपराधी सुभाष चंद्र बोस को स्टालि न ने रूस की सीमा में प्रवेश की इजाजत दी है. यह सीधे तौर पर रूस का धोखा है, क्योंकि वह अमेरिका-ब्रिटेन का साथी है. कृपया इसपर संज्ञान लें.’ ऐसा समझा जा सकता है कि पत्र को बेहद ही जल्दबाजी में लिखा गया होगा. फोटोकॉपी देखकर मालूम चलता है कि इसमें आधा दर्जन टाइपिंग की गलति यां हैं, लेकि न व्या करण सही है. मेरठ के श्याम लाल जैन ने जीडी खोसला कमीशन के सामने माना कि यह पत्र उन्होंने ही नेहरू के लिए लिखा था. यह छोटा खत कई बड़े सवाल खड़े करता है. आखि र यह जानकारी नेहरू को कि सने दी? क्यों सिर्फ नेहरू तक ही जानकारी पहुंची? क्या उन्होंने कांग्रेस के अन्य नेताओं गांधी और पटेल से इसे साझा कि या? अगर उन्होंने कि या, तो क्यों इसे दबाकर रखा गया? अगर उन्होंने नहीं कि या, तो क्यों?
ममता की राजनीतिक सोच!
नेताजी की जिंदगी के रहस्य से बड़ा इससे जुड़ी राजनीति है. नेताजी की जिंदगी से जुड़ी फाइलें सार्वजनि क करते हुए पश्चिम
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, ‘हम सच को क्यों न उजागर करें. सच की जीत होनी चाहि ए और सच की जीत होगी. हम सच को नहीं दबा सकते. आज सच उजागर होने की शुरुआत हुई है. अब केंद्र सरकार को भी सच को उजागर करना चाहि ए.’ केंद्रीय गृहराज्य मंत्री कि रण रिजीजू ने इससे पहले कहा था, ‘लोगों को नेताजी के बारे में सच्चाई जानने का हक है. हम फाइलों को सार्वजनि क करने के पक्ष में हैं, लेकि न कुछ फाइलों का संबंध वि देश मंत्रालय से है और इस बारे में जनहि त को ध्या न में रखा जा रहा है.’ माना जा रहा है कि ममता बनर्जी एक साल बाद होनेवाले चुनाव के मद्देनजर नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बंगाल के लोगों की जुड़ी भावनाओं का इस्ते माल करना चाहती हैं.
महात्मा गांधी ने बोस का श्राद्ध करने से रोका था
नेताजी से जुड़ी फाइलों में कुछ ऐसी सूचनाएं हैं, जो दि ल्ली के राष्ट्रीय अभि लेखागार की गुप्त सूची से पहले ही हटा दी गयी हैं. वर्ष 1997 की रिपोर्ट से ऐसी ही एक फाइल सामने आयी है. इसके अनुसार 18 अगस्त, 1945 को ताइहोकू के वि मान हादसे में बोस की कथि त मृत्यु के बाद महात्मा गांधी ने सार्वजनि क रूप से कहा था कि उन्हें लगता है कि नेताजी जिंदा हैं. बंगाल में एक प्रार्थ ना सभा में दि ये इस वक्तव्य के चार महीने बाद एक लेख छपा था, जि समें गांधीजी ने माना था कि ‘इस तरह की नि राधार भावना के ऊपर भरोसा कोई नहीं कि या जा सकता.’वर्ष 1946 की एक गुप्त फाइल के अनुसार, गांधीजी ने
अपनी इस भावना को ‘अंतर्म न’ की आवाज़ कहा था. लेकि न कांग्रेसि यों को लगता था कि उनके पास हो न हो कुछ गुप्त सूचना है. फाइल में यह भी लि खा गया था कि एक गुप्त रिपोर्ट कहती है कि नेहरू को बोस की एक चि ट्ठी मिली है, जि समें उन्होंने बताया है कि वह रूस में हैं और भारत लौटना चाहते हैं. हो सकता है कि जब गांधी ने सार्वजनि क तौर पर बोस के
जिंदा होने की बात कही थी, उसी दौरान यह चिट्ठी भेजी गयी हो. नेताजी के परिवार के चंद्र बोस का कहना है कि महात्मा गांधी को जरूर कुछ पता था. गांधी ने कहा था कि बोस परिवार को उनका श्राद्ध नहीं करना चाहि ए, क्योंकि उनकी मौत को लेकर एक प्रश्नचिह्न लगा हुआ है. नेताजी के भतीजे डॉ शिशिर बोस की पत्नी और नेताजी रिसर्च ब्यूरो की प्रमुख कृष्णा बोस ने बताया कि गांधीजी ने पूरा मामला अप्रैल, 1946 के हरिजन जर्नल में समझाया था. इस अंक में गांधी ने लिखा था, ‘कुछ साल पहले अखबारों में नेताजी के मरने की खबर छापी गयी थी. मैंने इस रिपोर्ट पर भरोसा कर लि या था. लेकिन, बाद में खबर गलत साबि त हुई. इसके बाद मुझे ऐसा लगता रहा है कि जब तक नेताजी का स्वराज का सपना पूरा नहीं हो जाता, वह हमें छोड़कर नहीं जा सकते. इस भावना के पीछे की वजह नेताजी की अपने दुश्मनों को चकमा देने की काबलि यत भी है. बस यही सब बातें हैं, जिससे मुझे लगता रहा कि वह अभी भी जिंदा हैं.’
साल के अंत तक केंद्र ने फाइलें जारी नहीं की, तो कोर्ट जाऊंगा
इस बीच, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वा मी ने धमकी दी है कि यदि केंद्र सरकार ने इस वर्ष के अंत तक नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनि क नहीं कि या, तो वह कोर्ट जायेंगे. भाजपा नेता ने कहा कि केंद्र के पास यह अधिकार नहीं है कि वह नेताजी से जुड़ी फाइलों को गोपनीय रखे. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने
साहस का परिचय देते हुए नेताजी से जुड़ी 64 फाइलें सार्वजनिक कर दी हैं. अब केंद्र को भी ऐसा करना चाह ए. स्वा मी ने कहा कि नौकरशाही तर्क देती है कि फाइलें सार्वजनिक हुईं, तो अन्य देशों से संबंध प्रभावित होंगे. उनके ये तर्क नि राधार हैं. स्वामी ने कहा कि सोवियत संघ अब बचा नहीं और इंगलैंड में लेबर पार्टी सत्ता से बाहर है. सो दूसरे देशों से संबंध प्रभावित होने का सवाल ही नहीं उठता. उन्होंने कहा कि फाइलों को सार्वजनि क करने से कांग्रेस और नेहरू की बदनामी होगी.
दस्ता वेजों से सामने नहीं आया कोई बड़ा सच
पश्चिम बंगाल सरकार ने जब नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनि क करने का एलान कि या, तो लोगों में बड़ी उत्सु कता थी. कौन-कौन से तथ्य उजागर होंगे? क्या नेताजी की मृत्यु से जुड़ा सच सामने आयेगा? सबयही जानना चाहते थे कि नेताजी की मौत कैसे हुई? शायद 64 में से किसी एक फाइल में यह तथ्य हो. फाइलें शुक्रवार को नेताजी के परिवार को सौंप दी गयीं. ये फाइलें 1937 से 1947 के बीच की हैं. ये फाइलें अब तक पश्चिम बंगाल पुलिस के पास थीं और अब इन्हें कोलकाता पुलिस म्यूजियम में जनता को देखने के लिए रखा जायेगा. इन फाइलों के सार्वजनि क होने से शायद उस रहस्य से पर्दा
उठा सके कि क्या कम से कम 1964 तक नेताजी जिंदा थे? 300 पेज तक की इन फाइलों में सीक्रेट लेटर्स से लेकर हाथों से लिखें ऐसे कई कागजात भी हैं, जो उनके भाई शरत चंद्र बोस और सुभाष चंद्र बोस ने एक-दूसरे को लिखे थे. एक अंगरेजी अखबार में छपी खबरों के मुताबिक, इनमें से कुछ डॉक्यूमेंट्स ऐसे हैं, जो नेताजी की मौत पर गंभीर सवाल खड़े कर सकते है. अखबार ने दावा किया है कि इन फाइलों में ऐसे सबूत हैं, जिनसे यह पता चलता है कि नेताजी कम से कम 1964 तक तो जीवित थे. फाइलों में 1960 के दशक में तैयार की गयी एक अमेरिकी रिपोर्ट में भी है. इसमें बताया गया है कि नेताजी फरवरी 1964 में भारत लौटे थे.
30 साल बाद गोपनीय फाइलों को किया जायेगा सार्वजनिक
ब्रिटेन में 30 साल बाद गोपनीय फाइलों को सार्वजनि क करने का नि यम है. लेकि न, भारत में ऐसा कोई नि यम नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी इसी तर्ज पर पुरानी गोपनीय फाइलों को सार्वजनि क करने का वि चार है. इस मुद्दे पर वि चार-वि मर्श के लि ए छह सदस्यी य समिति बनायी गयी है. अब जबकि ममता बनर्जी ने नेताजी से जुड़ी गोपनीय 64 फाइलों को सार्वजनि क कर दि या है, केंद्र पर इस मामले में जल्द कोई नियम बनाने का दबाव बढ़ गया है.
विमान हादसे का सच
आधिकारिक रूप से कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस का निधन 18 अगस्त, 1945 को एक वि मान हादसे में हुलाइहोकू एयरपोर्ट (अब ताइपेई) में हुआ था. हालांकि , नेताजी का परिवार, उनके करीबी और शोधकर्ता इस थ्योरी को नकारते हैं. नेताजी की वि धवा एमिली और उनके करीबी लेफ्टिनेंट कर्नल हबीब उर रहमान भी इससे इनकार करते रहे. जंग-ए-आजादी के महानायक रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निजी गनर वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी जगराम ने दावा कि या कि नेता जी की विमान दुर्घटना में मौत नहीं हुई थी, उनकी हत्या करायी गयी होगी. उनका कहना था कि अगर वि मान हादसे में उनकी मौत होती, तो कर्नल हबीब उर रहमान जिंदा कैसे बचते? वह दि न-रात साये की तरह नेताजी के साथ रहते थे. साथ ही ताईवान सरकार ने भी उस दि न कि सी विमान हादसे की घटना से इनकार किया है. मुखर्जी आयोग के साथ वरिष्ठ पत्रकार एमडी नलपत ने भी इस बात को अपनी रिपोर्ट में लिखा है.