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उफ! बढ़ता ही जा रहा आबादी का बोझ
बिहार में बढ़ती आबादी के कारण कई समस्याएं खड़ी हो रही हैं. आनेवाले दिनों में चुनौतियां और बढ़ेंगी. खास तौर पर स्वास्थ्य, बढ़ी हुई आबादी के लिए खाद्यान्न और रोजगार की व्यवस्था बिहार के लिए बड़ी चुनौती होगी. यह सवाल उठना चाहिए कि क्या इतना कम संसाधन (खेती योग्य भूमि, राजस्व के संदर्भ में) के […]
बिहार में बढ़ती आबादी के कारण कई समस्याएं खड़ी हो रही हैं. आनेवाले दिनों में चुनौतियां और बढ़ेंगी. खास तौर पर स्वास्थ्य, बढ़ी हुई आबादी के लिए खाद्यान्न और रोजगार की व्यवस्था बिहार के लिए बड़ी चुनौती होगी.
यह सवाल उठना चाहिए कि क्या इतना कम संसाधन (खेती योग्य भूमि, राजस्व के संदर्भ में) के बूते बिहार आने वाले दिनो में इतनी बड़ी आबादी का बोझ उठा पायेगा? यह सवाल एक-एक बिहारी का है. सिर्फ सरकार या दलो या नौकरशाही का नहीं? क्या इस विधानसभा चुनाव में कोई राजनीतिक दल इस मुद्दे को लेकर जनता के बीच जाएंगे?
अजय कुमार
क्या आप जानते हैं कि अफ्रीकी देश स्वाजिलैंड और बिहार में क्या समानता है? स्वाजिलैंड और बिहार में बच्चों के जन्म लेने की दर समान है. दोनों जगहों पर टोटल फर्टिलिटी रेट (प्रजनन दर) 3.4 है. इसका मतलब है कि अपने जीवन काल में एक महिला कम से कम तीन और अधिकतम चार बच्चों को जन्म देती है.
अब जरा देश के दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार की तसवीर देखिए. बढ़ती आबादी और सिकुड़ती जमीन की हकीकत यह है कि आबादी घनत्व के मामले में बिहार महज दस साल में पश्चिम बंगाल से आगे निकल गया. 2001 में पश्चिम बंगाल में आबादी घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 903 लोगों का था और तब बिहार का 881 था. 2011 में वह बढ़कर 1106 लोगों का हो गया.
जबकि पश्चिम बंगाल में 1028 ही है. बिहार में आबादी घनत्व देश के किसी भी दूसरे राज्य की तुलना में सबसे ज्यादा है. पश्चिम बंगाल में एक महिला कम से कम एक और अधिकतम दो बच्चों को जन्म देती है. दूसरी ओर मेडिकल और तकनीकी शिक्षा के मामले में उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र की तुलना में बिहार काफी पीछे है. आबादी की रफ्तार के चलते जमीन लगातार कम होती जा रही है.
प्रजनन में बिहार सबसे आगे
बिहार देश का ऐसा इकलौता राज्य है जहां बच्चे सबसे अधिक पैदा हो रहे हैं और प्रजनन दर में कमी के बावजूद यह देश में उच्च स्तर पर कायम है. राज्य में क्रूड बर्थ रेट 26.7 है. गांवों में यह रेट 27.7 और शहरी इलाके में 21.2 है. नेशनल हेन्थ सव्रे के अनुसार राज्य में एक मिनट में चार और 24 घंटे में 5812बच्चे पैदा होते हैं.
इसी तरह टोटल फर्टिलिटी रेट के मामले में राज्य राष्ट्रीय औसत से काफी आगे है. राष्ट्रीय पैमाने पर यह 2.3 है तो बिहार में यह 3.4 है. इसका अर्थ हुआ कि एक महिला अपने जीवन में तीन से चार बच्चे पैदा करती हैं. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह तीन से कम ही बच्चों का है.
नेशनल हेल्थ सव्रे-3 में टोटल फर्टिलिटी रेट 4.0 था. एनुअल हेल्थ सव्रे में गौर करने वाला तथ्य सामने आया है कि राज्य की 55 फीसदी महिलाएं चाहती हैं कि उनके दो से ज्यादा संतान हों. तय है कि इसके पीछे परिवारों और खासकर मर्दो की बड़ी भूमिका रहती है.
इन तथ्यों के आधार पर जानकारों का अनुमान है कि बिहार की आबादी 2051 तक 20 करोड़ के आसपास पहुंच जायेगी. ये अनुमान तीन किस्म की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए लगाया गया है. इनमें विकसित समाज होने पर प्रजनन दर में कमी, जीवन स्तर में सुधार, शिक्षा का असर वजह माना गया है.
एक और बड़ी वजह कम उम्र में शादी होना और शिक्षा के प्रसार के बावजूद चिंतन में आये बदलाव को व्यवहार में नहीं उतारना भी है. हेल्थ सव्रे के अनुसार 20 से 24 साल की 52.4 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उनकी शादी 18 साल से पहले हो गयी थी. जबकि शादी की वैधानिक उम्र सीमा लड़कियों के लिए 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल निर्धारित है. यह भी महत्वपूर्ण है कि राज्य की ग्रामीण आबादी में मामूली कमी आयी है. 2001 में ग्रामीण जहां 89.54 थी वह 2011 में 88.70 पर आ गयी. यह गिरावट .84 की रही.
यानी एक प्रतिशत से भी कम. ऐसे में जानकारों का कहना है कि शहरीकरण की रफ्तार कम होना और गांवों से पलायन में तेजी के बीच गहरा नाता है. एक अनुमान के अनुसार 2001 की तुलना में 2011 में पलायन करने वालों की तादाद दोगुनी हो गयी. 2001 में इसकी तादाद करीब 57 लाख थी. हालांकि दशकीय आबादी में गिरावट के आंकड़े थोड़ी राहत दे सकते हैं.
आबादी के दशकीय ग्रोथ रेट में गिरावट के कई मायने हो सकते हैं.2001 में यह 28.62 प्रतिशत था जो 2011 में 25.01 पर पहुंच गया. इस हिसाब से ग्रोथ रेट में 3.51 प्रतिशत की गिरावट आयी है.
बढ़ती आबादी
इस तरह बिहार की आबादी की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही है और यह विकास व प्रगति के तमाम चिह्नें को खाने को तैयार बैठी है. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ ग्रोथ रेट 11.95 फीसदी का बहुत मतलब नहीं निकलेगा. लेकिन यह मुद्दा किसी भी राजनीतिक दल के लिए एजेंडे में नहीं है. न ही इन पार्टियों के पास इस समस्या से निबटने का कोई ब्लू प्रिंट ही है.
आबादी का दबाव बढ़ा, तो होगी मुश्किलें
प्रबंधन, अर्थशास्त्र समेत कई अन्य क्षेत्रों के जाने-माने जानकारों को मिलाकर 2009 में एक ग्रुप बना था. इस थिंक टैंक को केसरौली ग्रुप कहा गया. उन्होंने 2050 तक की भारत की स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की थी – इंडियास डेमोग्राफिक सूनामी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि यदि स्थिति नहीं संभाली गयी तो भारत के पूरब के राज्य अनियंत्रित हो जायेंगे.
इसकी एक बड़ी वजह होगी – जनसंख्या का दबाव. पूरब के राज्य से आशय है – बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा व छत्तीसगढ़ का कुछ हिस्सा.
इस थींक टैंक के अनुसार सिर्फ 2020 में, यानी लगभग पांच वर्षो बाद भारत की शहरी जनसंख्या करीब 40 फीसदी हो जायेगी. अगर अर्थव्यवस्था में विकास दर 10 फीसदी रहा, तब भी इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना, खाद्यान्न जुटाना ट्रैफिक को स्मूथ करना संभव नहीं होगा. 2050 तक पूरे भारत में बढ़ी जनसंख्या के अनुरूप 40 करोड़ टन खाद्यान्न चाहिए.
राजनीतिक दलों से
अफ्रीकी देश स्वाजिलैंड के बराबर पैदा हो रहे बिहार में बच्चे. क्या राजनीतिक दल इससे वाकिफ हैं?
बढ़ती आबादी के साथ ही खेती की जमीन घट रही है. क्या इससे उत्पादकता प्रभावित नहीं होगी?
यदि 15} विकास दर भी हुआ और आबादी बढ़ती रही तो क्या बढ़ा हुआ ग्रोथ बढ़ती आबादी के भोजन, पढ़ाई और स्वास्थ्य में ही चला नहीं जायेगा?
अपने घोषणा पत्र में आबादी का बोझ घटाने के लिए कोई कार्ययोजना क्यों नहीं पेश करते राजनीतिक दल?
जब बिहार में युवाओं की बड़ी फौज होगी तो उनके लिए शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था कहां से होगी? क्या कोई एजेंडा है राजनीतिक दलों के पास?
जहां साक्षरता ज्यादा
वहां प्रजनन दर कम
राज्य प्रजनन दर साक्षरता
पश्चिम बंगाल 1.6 71.16
दिल्ली 1.7 80.93
पंजाब 1.7 71.34
केरल 1.8 91.9
महाराष्ट्र 1.8 75.48
ओड़िसा 2.1 64.36
गुजरात 2.3 70.73
झारखंड 2.7 56.21
उत्तरप्रदेश 3.1 59.26
बिहार 3.4 53.33
2051 तक बिहार की आबादी होगी 20 करोड़
केसरौली ग्रुप की मान्यता के आधार पर यदि बिहार में आबादी का आकलन किया जाये, तो 2051 तक यहां की आबादी 18 से 20 करोड़ हो जायेगी. तब करीब तीन करोड़ टन अनाज की जरूरत होगी.
बिहार में अभी शहरी आबादी 1.17 करोड़ है. दस साल बाद इसमें 35 लाख का इजाफा होने का अनुमान है. तब शहरी आबादी डेढ़ करोड़ से ज्यादा हो जायेगी. क्या बिहार के शहर इस लायक हैं कि इतनी बड़ी आबादी को नागरिक सुविधा, पढ़ाई, स्वास्थ्य, स्वच्छ वायु, सिवरेज-ड्रेनेज की सुविधा मुहैय्या करा पायेंगी?
60 साल में घनत्व बढ़ा पांच गुना
60 साल पहले (1951 में) बिहार में जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर में रहने वाली आबादी) 223 था. आज यह बढ़ कर 1102 हो गया है. यानी 60 साल में जनसंख्या घनत्व करीब पांच गुना बढ़ा.
आखिर युवा आबादी कहां जायेगी?
आखिर बिहार की युवा आबादी कहां जायेगी? इस सवाल पर अभी से काम शुरू कर देना होगा ताकि आने वाली चुनौतियों का सामना किया जा सके. पर इसके लिए तैयारी है? पोपुलेशन प्रोजेक्शन रिपोर्ट के अनुसार 2026 तक देश की औसत आयु 31 साल होगी. इसमें बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान की युवा आबादी की उम्र 26 से 29 साल होगी.
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