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एशिया में चीन की बढ़ती फौजी ताकत

वर्ष 2009 में समाजवादी चीनी गणराज्य की 60वीं वर्षगांठ के बाद चीन ने पहली बार इतने बड़े पैमाने पर अपनी सैन्य क्षमता का सार्वजनिक प्रदर्शन किया है. द्वितीय महायुद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित इस परेड ने न सिर्फ चीन के आर्थिक और राजनीतिक विकास को रेखांकित […]

वर्ष 2009 में समाजवादी चीनी गणराज्य की 60वीं वर्षगांठ के बाद चीन ने पहली बार इतने बड़े पैमाने पर अपनी सैन्य क्षमता का सार्वजनिक प्रदर्शन किया है.
द्वितीय महायुद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित इस परेड ने न सिर्फ चीन के आर्थिक और राजनीतिक विकास को रेखांकित किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर, खासकर एशिया में अपनी बढ़त का संकेत भी दिया है. इस आयोजन के विभिन्न पहलुओं पर आधारित है आज की विशेष प्रस्तुति..
चीन का सैन्य शक्ति प्रदर्शन है यह परेड
सुशांत सरीन
रक्षा विशेषज्ञ
दुनिया के किसी भी देश द्वारा सैन्य परेड करना अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना होता ही है. इस ऐतबार से द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार की 70वीं बरसी पर चीन ने जिस सैन्य परेड का भव्य प्रदर्शन किया है, वह शक्ति प्रदर्शन ही है.
लेकिन, यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिर चीन ने 70वीं बरसी को ही क्यों चुना? जबकि द्वितीय विश्व युद्ध को बीते एक अरसा हो चुका है, और अब उसकी यादें भर रह गयी हैं.
दरअसल, हाल के कुछ वर्षो में जापान और चीन के बीच में जो तल्खी बढ़ी है, और बीते दो-तीन वर्षो में चीन की नयी सरकार ने इसे लेकर जो कोशिशें की हैं, दक्षिण एशिया के कुछ देशों के साथ उसके जो विवाद चल रहे हैं, इन सब के मद्देनजर इस सैन्य प्रदर्शन को देखा जा सकता है.
हाल के वर्षो में चीनी समाज में राष्ट्रवाद की भावना प्रभावी लहर नजर आयी है. और यह माना जा रहा है कि अगर आर्थिक स्थिति कुछ कमजोर पड़ रही है, तो इसके राजनीतिक बचाव के लिए चीनी सरकार सीमा विवाद का इस्तेमाल कर चीन के लोगों को अपने पीछे लगाये रखे.
इस तरह मेरे ख्याल से इन सभी मसलों के संदर्भ में ही इस सैन्य परेड को देखा जाना चाहिए. बाकी चीन की सैन्य शक्ति को तो पूरी दुनिया जान ही रही है और देख भी रही है.
ऐसा माना जाना कि इस सैन्य प्रदर्शन के बाद कुछ देश चीन से हथियार खरीदेंगे, सही तो है, लेकिन भारत के संदर्भ में सही नहीं है. हां यह जरूर है कि कुछ देशों को चीन से खतरा महसूस होता रहता है, फिर भी उन्होंने चीन से हथियार खरीदना शुरू कर दिया है- जैसे थाईलैंड.
थाईलैंड अब तक सारा हथियार और सैन्य साजो-सामान अमेरिका से खरीदता था, लेकिन हाल के वर्षो में वह चीन से खरीदने लगा है. दरअसल, इसके पीछे का तर्क यह है कि चीन से सैन्य साजो-सामान लेने में उसके साथ रिश्तों में कुछ मधुरता आयेगी. इसे देखते हुए कुछ लोग यह मान सकते हैं कि भारत भी चीन से हथियार खरीद सकता है.
और इस सैन्य परेड में भारत की ओर से भारत के विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह भी शामिल हैं, तो यह कयास लगाया जा सकता है.
लेकिन, गौर करें तो चीनी सैन्य परेड में जनरल वीके सिंह का जाना एक डिप्लोमेटिक प्रोटोकॉल के तहत है, न कि किसी प्रकार के रक्षा सौदे को अंजाम देने के तहत है.
चीन तो यह चाहता था कि भारत की ओर से एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल जायेगा, लेकिन भारत ने सिर्फ विदेश राज्य मंत्री को चीन भेज कर यह दिखाने की कोशिश की है कि हमें चीन से किसी तरह के सामरिक सौदे की अभी जरूरत नहीं है.
भारत के लिए चीन से सैन्य साजो-सामान खरीदने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. भारत-चीन के बीच चल रहे थोड़े-बहुत तनाव के चलते भी भारत उससे हथियार खरीदने नहीं जा सकता.
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चीन के हथियार अभी तक उस स्तर पर नहीं पहुंच पाये हैं, जिस स्तर पर या तो रूस के हथियार हैं या फिर पश्चिमी देशों के हैं.
अमेरिका के हथियार तो हर स्तर पर बहुत आगे हैं. दूसरी बात यह है कि बहुत सारे देशों को अमेरिका या रूस स्तर के हथियारों की जरूरत भी नहीं होती, इसलिए वे चीन से हथियार खरीदते हैं.
दूसरी बात यह है कि अगर किसी देश के पास कोई बड़ा हथियार नहीं है, ऐसे में अगर उसे अपने पड़ोस से 1950 मॉडल कोई हथियार मिल जाये, तो उसके लिए बहुत है, क्योंकि उसे बहुत बड़े हथियारों की कोई जरूरत भी नहीं है. अगर इस नजरिये से देखा जाये, तो चीनी साजो-सामान का बाजार बड़ा है, क्योंकि बहुत से छोटे-छोटे देश उसके खरीदार हैं.
पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका आदि के साथ चीन के अच्छे सामरिक संबंध हैं. लेकिन चीन के उस हथियार बाजार में भारत शायद अभी शामिल नहीं होगा, मुझे ऐसा लगता है.चीन और जापान के संबंधों में तनाव बरकरार है.
दक्षिण एशिया के कुछ देशों में थोड़ा सा ही सही अभी भी एक प्रकार का गुस्सा है, क्योंकि जिन देशों ने जापान की साम्राज्यवादी ताकत को झेला है, उनमें रंजिशें अभी खत्म नहीं हुई हैं. इसके बावजूद भी कई देशों ने जापान के साथ बहुत ही ठोस आर्थिक रिश्ते कायम कर लिये हैं, जहां पर चीन दाखिल होना चाहता है, और कुछ जगहों पर तो दाखिल हो भी चुका है.
चीन ने हाल के वर्षो में खुद को ताकतवर बनाया है और अपनी सामरिक शक्ति को और भी बढ़ाया है, जिससे कि वह एक मजबूत दखल रख सकता है.
एक दृश्य तो यह है. दूसरा दृश्य यह है कि जापान ने भी अपने संविधान में कुछ संशोधन किया है- पहले था कि सिर्फ आत्मरक्षा के लिए उसकी सेना रहेगी, लेकिन अब उसने एक प्रावधान जोड़ा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर कुछ होता है, तो दूसरे देशों को वह अपनी सेना भेजेगा. इन सबके बीच जीन और जापान के व्यापारिक रिश्ते गड्ड-मड्ड बने हुए हैं.
जहां तक दक्षिण एशिया में चीन के सैन्य दबदबे की नीति का सवाल है, तो हाल के वर्षो में चीन ने खुद को हर स्तर पर मजबूत किया है. सीमा विवाद के चलते तो सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि भारत भी हमेशा आक्रामक रहा है.
यहां सवाल इस बात का नहीं है कि दक्षिण एशिया में चीनी सैन्य दबदबे को भारत के संदर्भ में कैसे देखा जाये. यहां सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान जैसे देश के लिए चीन भारत से अपने रिश्ते खराब करेगा और भारत को अमेरिका की गोद में पूरी तरह से ढकेल देगा, या फिर भारत-चीन के बीच सीमा विवाद के अलावा बहुत से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मसलों पर कोई साझेदारी बनेगी? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब अभी तक हमारे पास नहीं है.
इसलिए हम यह सोच बैठते हैं कि चीनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भारत पर क्या असर डालेगा. दूसरी बात यह है कि हमें इस बात को तो मानना ही पड़ेगा कि सीमा पर समस्या है, जिसमें हमारी भी गलतियां हैं.
सीमा विवाद को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है. फिर भी, चीन की तरफ से कोई घुसपैठ होगी या फिर सीमा विवाद को लेकर जंग का ऐलान होगा, इसकी दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है. इसलिए चीन के इस सैन्य परेड से भारत पर कोई असर नहीं पड़नेवाला है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
द्वितीय चीन-जापान युद्ध
(7 जुलाई, 1937-9 सितंबर, 1945)
– यह 20वीं सदी का सबसे बड़ा एशियाई युद्ध था और प्रशांत क्षेत्र में हुई 90 फीसदी मौतें इसी युद्ध में हुई थीं.
क् यह युद्ध जापान के साम्राज्यवादी राजनीति का नतीजा था जिसे वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री हिदेकी तोजो ने जापानी सम्राट शोवा के अनुमोदन से गढ़ा था.
– 1937 के अंत तक जापान ने बड़े व्यापारिक शहर शंघाई के साथ चीन की राजधानी नानकिंग को जीत लिया था जिसकी वजह से चीन सरकार को अपनी राजधानी चीन के भीतरी इलाके चांगकिंग में ले जानी पड़ी थी.
– 1939 में चांग्शा और गुआंग्शी में चीनी जीतों ने युद्ध को अनिर्णय की स्थिति में ला दिया था. जापानी सेना शांक्सी में कम्यूनिस्ट छापामार दस्तों पर काबू करने में भी नाकाम रही थी.
– 7 दिसंबर, 1941 को जापान ने पर्ल हार्बर में अमेरिकी बेड़े पर भीषण हमला किया और उसके अगले दिन अमेरिका ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी.
– अमेरिका ने चीन को सक्रिय सहायता देनी शुरू कर दी, पर जापान ने 1944 में चीन के हेनान और चांग्शा में जीत हासिल कर ली. इसके बावजूद चीनी सेना ने आत्मसमर्पण नहीं किया.
– 1945 में चीन को बर्मा और साउथ चाइना क्षेत्र में बड़ी कामयाबियां मिली. इसी वर्ष दो सितंबर को जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने हथियार डाल दिये.
चीन के जीते हुए क्षेत्रों में जापानी सेनाओं ने नौ सितंबर को हथियार डाल दिये.
– विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद चीन के सभी हिस्से वापस कर दिये गये और जापान को कोरियाई पेनिंसुला से बाहर कर दिया गया.
चीन को मित्र राष्ट्रों ने ‘बिग फोर ऑफ एलाइज’ में युद्ध के दौरान ही शामिल कर लिया गया था और युद्ध के बाद बने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में उसे पांच स्थायी सदस्यों में जगह दी गयी.
– चीनी सूत्रों के मुताबिक, आठ साल चले चीन-जापान युद्ध में मरनेवाले सैनिकों और नागरिकों की संख्या 3.50 करोड़ थी.
अधिकतर पश्चिमी इतिहासकारों का आकलन है कि मृतकों की संख्या दो करोड़ से अधिक ही थी. चीनी सरकार के आंकड़ों के अनुसार दो करोड़ लोग मारे गये थे और डेढ़ करोड़ लोग घायल हुए थे.
– इस युद्ध के कारण 9.5 करोड़ लोग शरणार्थी बनने को मजबूर हुए थे.
क् माना जाता है कि करीब 4.47 लाख जापानी सैनिक चीनी युद्ध में मारे गये थे. यह संख्या पूरे विश्वयुद्ध में मारे गये 11.30 लाख जापानी सैनिकों का 39 फीसदी है.
हालांकि जापानी सूत्रों के अनुसार, चीन में मृतक सैनिकों की संख्या 1.85 के आसपास थी. मृतकों की संख्या में उन चीनी सैनिकों का उल्लेख नहीं है जिन्होंने युद्ध में जापान की मदद की थी. जानकारों के मुताबिक, ऐसे सैनिकों की बड़ी संख्या में मृत्यु हुई थी.
(विभिन्न स्नेतों के आधार पर)
चीन के 10 महत्वपूर्ण हथियार जिनका सैन्य परेड में हुआ प्रदर्शन
डीएफ-26 मिसाइल : चार हजार किलोमीटर दूर तक हमला करनेवाले इस मिसाइल को ‘गुआम किलर’ की संज्ञा दी जाती है क्योंकि गुआम में स्थित अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा इसके दायरे में है.
डीएफ-21डी मिसाइल : युद्धपोतों को नष्ट करने की क्षमता रखनेवाला यह बैलेस्टिक मिसाइल 1,450 किलोमीटर दूर तक जा सकता है.
डीएफ-5बी मिसाइल : द्रवीय ईंधन से चालित यह अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल तीन से अधिक परमाणु हथियार लेकर 15 हजार किलोमीटर दूर तक मार कर सकता है. इसे दुनिया के सबसे खतरनाक मिसाइलों की श्रेणी में गिना जाता है.
डब्ल्यूजेड-19 सशस्त्र हेलीकॉप्टर : यह टैंकों और अन्य भारी निशानों को तबाह कर सकता है. यह 4,500 किग्राम वजन लेकर 245 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है. एक बार ईंधन भरने के बाद दोबारा बिना ईंधन भरे यह तीन घंटे तक उड़ने की क्षमता रखता है.
वाइ-9 यातायात हवाई जहाज : मध्यम आकार और क्षमता वाला यह बहुपयोगी जहाज वायु सेना के चेतावनी जहाजों- केजे-200 और केजे-500- से विकसित किया गया है.
एच-6के स्ट्रेटेजिक बमवर्षक : यह युद्धक चीन को लंबे युद्ध में जोरदार क्षमता प्रदान करता है. इसमें अमेरिकी कैरियर युद्ध समूहों और एशिया में मुख्य निशानों पर हमले की क्षमता है. यह परमाणु हमला भी कर सकता है.
जेडटीएल-09 टैंक : थल युद्ध की स्थिति में 105एमएम तोप से लैस वाहन दो किलोमीटर से अधिक दूरी पर सशस्त्र निशानों पर अचूक हमला कर सकता है. इसे चीन में ही विकसित किया गया है.
जेडटीजेड-99ए टैंक : इस मुख्य युद्ध टैंक में 125एमएम स्मूथबोर तोप और ऑटोलोडर लगे हैं. यह वाहन 42 राउंड गोला एक बार में ढो सकता है तथा 22 अतिरिक्त राउंड एक अन्य ऑटोलोडर में रखे जा सकते हैं.
यह टैंक एक मिनट में आठ गोले दाग सकता है. अगर मैनुअली लोड किया जाए, तो एक मिनट में यह दो गोले दाग सकता है.
जेडबीडी-04 टैंक : इस टैंक को युद्ध क्षेत्र में सेना को सुरक्षित मदद और यातायात पहुंचाने के उद्देश्य से बनाया गया है.
एचक्यू-10/एफएल-3000एन मिसाइल : कम दूरी का हवाई सुरक्षा के लिए बना यह मिसाइल नौसेना की ताकत को बहुत बढ़ा देता है. इस हथियार को नौसेना के सबसे विकसित टाइप 052डी डिस्ट्रॉयर्स और टाइप 056 फ्रिगेट्स पर तैनात किया गया है.
(स्नेत : साउथ चाइना मॉर्निग पोस्ट)

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