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युवाओं को केंद्र में रखें राजनीतिक दल
उज्जवल शुक्ला कैलिफोर्निया से बाहर देश में रह कर भी मुङो अपनी राज्य की चिंता सताती है. पूरी दुनिया में चाहे जो भी चल रहा हो, लेकिन मेरी चिंता के केंद्र में तो मेरा राज्य ही है, क्योंकि मैं मूल रूप से उसी से नाता रखता हूं. यही वजह है कि अब जब विधान सभा […]
उज्जवल शुक्ला
कैलिफोर्निया से
बाहर देश में रह कर भी मुङो अपनी राज्य की चिंता सताती है. पूरी दुनिया में चाहे जो भी चल रहा हो, लेकिन मेरी चिंता के केंद्र में तो मेरा राज्य ही है, क्योंकि मैं मूल रूप से उसी से नाता रखता हूं. यही वजह है कि अब जब विधान सभा चुनाव की घड़ी नजदीक आयी है, तो बिहार में रह रहे अन्य लोगों की तरह मैं भी यहां सोचने-विचारने में लगा हूं कि राज्य की राजनीतिक व्यवस्था में इस बार क्या बदलाव होने जा रहे हैं.
कुछ बदले या न बदले, लेकिन एक बात तो है कि इस बार का चुनाव अब तक सभी चुनावों से अलग होगा. वह इसलिए कि इस बार के चुनाव में सोशल मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
इंटरनेट पर मैं राज्य की खबरें और फोटो देख रहा हूं. इनमें यह दिख रहा है कि किस प्रकार से सभी राजनीतिक दल इस बार अपने होर्डिग और पोस्टर में सोशल मीडिया का भी लिंक दे रहे हैं. मिस्ड कॉल के माध्यम से लोगों को अपनी पार्टी से जोड़ने में लगे हैं. उसी प्रकार से सभी दलों के नेता बयान भी ट्विटर और फेसबुक पोस्ट के माध्यम से दे रहे हैं.
बिहार की राजनीति में आया यह बदलाव सुखद संकेत है कि हमारा राज्य भी अब हाइटेक होने की राह पर चल पड़ा है. ऐसे में मेरा यह मानना है कि इस बार के चुनाव में युवाओं की समस्याएं और उनके लिए संभावनाएं एक प्रमुख मुद्दे के रूप में उभर कर सामने आना चाहिए. सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे इस बार युवाओं को भी केंद्र में रख कर अपना चुनावी घोषणा पत्र तैयार करें और चुनावी भाषणों में भी उन बातों का जिक्र करें, जो युवाओं से सरोकार रखते हैं. राज्य के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग युवाओं का है और यह वर्ग चुनाव के परिणाम निर्धारित करने में इस बार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
बिहार के युवाओं के सामने इस समय सबसे बड़ी समस्या बेहतर उच्चतर शिक्षा और रोजगार की है. राज्य में अब भी उस स्तर के शैक्षणिक संस्थान नहीं खुल पाये हैं, जो युवाओं की जरूरतों को पूरा कर सकें. जो संस्थान खुले भी हैं, उनमें इतनी सीटें नहीं हैं कि वहां सभी का नामांकन हो सके. साथ ही केवल अच्छी मेरिट वाले छात्रों को ही इनका फायदा मिल पा रहा है. उसी प्रकार से पढ़ाई में कमजोर युवाओं के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि वे अपने कौशल का प्रयोग करके कुछ कमा सकें और परिवार का भरण-पोषण कर सकें.
ऐसी परिस्थिति में उनके पास राज्य से पलायन करने के सिवा और कोई विकल्प शेष नहीं रह जाता है. इसलिए यह वक्त की दरकार है कि चुनाव से पहले ही सभी राजनीतिक दल युवाओं को रिझाने का एजेंडा तैयार कर लें और युवाओं से ऐसे वादे करें, जिन्हें वे पूरा कर सकते हैं. क्योंकि यदि उन्होंने घोषणा की, चुनाव जीत गये और उसके बाद वादाखिलाफी की, तो युवाओं के बीच कुंठा और आक्रोश पनपेगा.
मेरे आसपास अपने देश से आये जो भी लोग हैं, वे भी बिहार की राजनीति में रुचि ले रहे हैं. चुनाव बिहार में हो रहा है, लेकिन इसकी चर्चा यहां अमेरिका और अन्य जगहों पर भी हो रही है.
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