14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

श्रावण में शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं शिव

भगवान शिव करोड़ों सूर्य के समान दीप्तिमान हैं. इनके ललाट पर चन्द्रमा शोभायमान है. नीले कण्ठ वाले, अभिष्ट वस्तु देने वाले देव हैं भगवान शिव. तीन नेत्रों वाले शिव, काल के भी काल महाकाल हैं. कमल के समान सुंदर नयनों वाले अक्षमाला और त्रिशूल धारण करने वाले अक्षर-पुरुष शिव ही हैं. यदि क्रोधित हो जाएं […]

भगवान शिव करोड़ों सूर्य के समान दीप्तिमान हैं. इनके ललाट पर चन्द्रमा शोभायमान है. नीले कण्ठ वाले, अभिष्ट वस्तु देने वाले देव हैं भगवान शिव. तीन नेत्रों वाले शिव, काल के भी काल महाकाल हैं.

कमल के समान सुंदर नयनों वाले अक्षमाला और त्रिशूल धारण करने वाले अक्षर-पुरुष शिव ही हैं. यदि क्रोधित हो जाएं तो त्रिलोक को भस्म करने की शक्ति रखते हैं और यदि किसी पर दया कर दें तो त्रिलोक का स्वामी भी बना सकते हैं. यह भयावह भवसागर पार कराने वाले समर्थ प्रभु हैं. भोलेनाथ बहुत ही सरल स्वभाव, सर्वव्यापी और भक्तों से शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव हैं. उनके सामने मानव क्या दानव भी वरदान मांगने आये तो वे उन्हें भी मुंह मांगा वरदान देने में पीछे नहीं हटते हैं. इस संदर्भ में एक कथा है. एक बार असुर राज भस्मासुर भोले शंकर की भक्ति करके उन्हें प्रसन्न कर किया और भोलेनाथ ने माता पार्वती के साथ उसे दर्शन देते हैं. भस्मासुर को वरदान मांगने को कहते हैं.

शिव के साथ मां पार्वती को देखकर वह उन पर मोहित हो जाता है. लेकिन उनको कैसे मांगे! यह विचार करके एक वरदान मांगता है कि जिस किसी के सिर पर मैं हाथ रख दूं, वह तुरन्त भस्म हो जाए और भगवान शिव तो ठहरे ही निपट भोले. प्रसन्नता में बोल दिया- तथास्तु!

भोले शंकर तथास्तु कहकर जाने लगते हैं. उसी समय भस्मासुर उनके पीछे शिव पर हाथ रखकर भस्म करने आ जाता है. आ भोलेनाथ की समझ में आ गया कि यह मेरा ही वरदान मुझ पर आजमाना चाहता है. भोलेनाथ अपने प्राण बचाने के लिए भागते हैं और एक गुफा के अंदर जाकर छिप जाते हैं. भस्मासुर गुफा के द्वार पर बैठ भगवान शिव के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगता है.

यह सा लीला भगवान नारायण देख रहे थे. भगवान विष्णु नारायण तुरंत मोहिनी का रूप बना कर भस्मासुर को रिझाने आ जाते हैं. मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु भस्मासुर को रिझाने के लिए नाचने लगते हैं और भस्मासुर को भी नाचने को उकसाते हैं. भस्मासुर मोहिनी पर इतना मोहित होता है कि अपना सुध-बुध खो उनके साथ नाचने लगता है. मोहिनी नाच-नाच में अपना हाथ सिर पर रख नृत्य की मुद्रा बनाती है. उसे देख मग्न होकर भस्मासुर भी अपना हाथ अपने सिर पर रख लेता है और भस्म हो जाता है.

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र मास के शुरू होने के बाद पांचवां मास श्रावण का है. देव शयन का यह प्रथम चातुर्मास है. इस मास मे कथा भागवत और अनगिनत उत्सव मनाये जाते हैं. श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को श्रवन सोमवार कहा जाता है. श्रद्धालु पवित्र जल से शिवलिंग को स्नान कराते हैं. फूल, मालाओं से मूर्ति या शिवलिंग को पूजते हैं. मंदिर में 24 घंटे दीप जलते रहते हैं.

उत्तर भारत के विभिन्न प्रान्तों से इस महीने शिवभक्त गंगाजल लेने. यानी कांवर का पवित्र जल लेने हरिद्वार, ऋ षिकेश, काशी, सुल्तानगंज और गंगासागर की यात्रा पैदल करके श्रावण कृष्ण चतुर्दशी को अपने क्षेत्र के शिव मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक करके पुण्य अजिर्त करते हैं. कांवर यात्रा कर रुद्राभिषेक करना बहुत ही कष्टसाध्य तप है जिसे देवगण, मानव, दानव सहित यक्ष किन्नर और साधुगण आदिकाल से करते आ रहे हैं. शिव सभी के लिए वरदाता है जो जैसा मांगें उसे वैसी ही संपदा दे देते हैं.

श्रावण मास में आशुतोष भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है. जो प्रतिदिन पूजन न कर सकें उन्हें सोमवार को शिव पूजा अवश्य करनी चाहिए और व्रत रखना चाहिए. सोमवार भगवान शंकर का प्रिय दिन है, अत: सोमवार को शिवाराधना करनी चाहिए. इसी प्रकार मासों में श्रावण मास भगवान शंकर को विशेष प्रिय है.

अत: श्रावण मास में प्रतिदिन शिवोपासना का विधान है. श्रावण में पार्थिव शिवपूजा का विशेष महत्व है. अत: इस महीने शिव पूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करनी चाहिए. इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ कराने का भी विधान है. श्रावण मास में जितने भी सोमवार होते हैं, उन सा में शिवजी का व्रत किया जाता है.

इस व्रत में प्रात: गंगा स्नान अथवा किसी पवित्र नदी या सरोवर में अथवा विधिपूर्वक घर पर ही स्नान करके शिव मंदिर में जाकर स्थापित शिवलिंग या अपने घर में पार्थिव मूर्ति बनाकर यथाविधि पूजन किया जाता है.

यथा संभव विद्वान ब्राह्मण से रुद्राभिषेक भी कराना चाहिए. इस व्रत में श्रावण माहात्म्य और श्रीशिवमहापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्त्व है. पूजन के पश्चात ब्राह्म ण-भोजन कराकर एक बार ही भोजन करने का विधान है.भगवान शिव का यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है.

श्रावण मास भगवान शिव का प्रिय मास है. इसलिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कुछ जरुरी विधान अपनाये जाने चाहिए ..

– श्रावण मास में रुद्राक्ष पहनना बहुत ही शुभ माना गया है. इसलिए पूरे मास रुद्राक्ष की माला धारण करें व रुद्राक्ष माला का जाप करें.

– शिव को भभूती लगावें.

– शिव चालीसा और आरती का गायन करें.

– महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें.

– सोमवार को श्रद्धापूर्वक व्रत धारण करें. यदि पूरे दिन का व्रत संभव न हो तो सूर्यास्त तक भी व्रत धारण किया जा सकता है.

– बेलपत्र, दूध, शहद और पानी से शिवलिंग का अभिषेक करें.

-ओम नम: शिवाय का जप करते रहना चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें