ऐसी खबरें हैं कि पश्चिम में स्कूल जाते समय कई बच्चे अपने साथ बंदूकें ले जाते हैं. ये बच्चे अकारण किसी को भी गोली मार सकते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि बच्चे क्यों ऐसा बर्बरतापूर्ण व्यवहार करते हैं. इसका कारण यह है कि उन्हें कभी उचित व्यवहार सिखाया ही नहीं गया. उन्हें कभी सच्च प्यार व करुणा नहीं मिली. कई बालक व बालिकाओं ने मुझसे कहा ‘हमारी मां ने हमें प्यार नहीं किया. हमें माता-पिता ने कभी उचित व्यवहार नहीं सिखाया. हमने अपने सामने माता-पिता को लड़ते-झगड़ते देखा है. इन झगड़ों को देखते-देखते हमें सारे संसार से घृणा हो गयी है. हम स्वार्थी बन गये हैं, हम अब किसी की बात नहीं मानते. इन बच्चों के माता-पिता जिनसे उन्हें सर्वप्रथम प्रेम एवं धैर्य की शिक्षा मिलनी चाहिए थी, इस कर्तव्य के पालन में असमर्थ रहे.
मेरा आग्रह है कि माता-पिता बच्चों को प्रारंभ के वर्षो में ढेर सारा प्यार एवं स्नेह दें. बच्चे अपने पालने में लेटे हुए कभी यह अनुभव न करें कि उनकी देख-रेख कोई नहीं कर रहा. माताओं को उन्हें स्नेहालिंगन में लेकर बहुत प्यार से स्तनपान कराना चाहिए. बच्चों को इन प्राथमिक वर्षो में नैतिक व धार्मिक मूल्यों से परिचित कराया जाना चाहिए. अगर वे ऐसा नहीं करेंगे, तो बच्च कैसे धैर्य एवं प्रेम सीखेगा.
अगर आप लंबी-हरी घास के मैदान होकर जाते हैं, तो यह सहज ही आपके लिए रास्ता बना देगी, लेकिन किसी पथरीले-पहाड़ी इलाके में बारंबार चलने पर भी रास्ता नहीं बनता. इसी प्रकार बच्चों का चरित्र-निर्माण सरलता से किया जा सकता है. बच्चों को प्रेमपूर्ण देखभाल की आवश्यकता है, लेकिन साथ ही हमें उन्हें अनुशासन भी सिखाना है.
हमें उनमें ईश्वर में विश्वास एवं समस्त सृष्टि के प्रति प्रेम की भावना भरनी चाहिए. यह सब धार्मिक शिक्षा द्वारा संभव है.बच्चों, हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है कि हम मानवमात्र की सहायता करें. परमेश्वर को हमसे कुछ नहीं चाहिए. वे सदा पूर्ण हैं. यह सोचना कि ईश्वर को हम कुछ दे सकते हैं. ऐसा ही है, जैसे सूर्य के पथ में प्रकाश करने के लिए मोमबत्ती दिखाना. परमेश्वर हमारे रक्षक है, उन्हें हमारे संरक्षण की आवश्यकता नहीं होती है. आज हमारी बुद्धि कलुषित हो गयी है. इसे शुद्ध करने के लिए हमें परमेश्वर की अनुकंपा की आवश्यकता है, तभी हमारा उत्थान होगा और हम नि:स्वार्थ भाव से सबसे प्रेम कर सकेंगे. सबकी सेवा कर सकेंगे.
श्री माता
अमृतानंदमयी देवी