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प्याज का कारोबार

– कन्हैया झा – बिचौलिये तय करते हैं कीमत आम आदमी से लेकर खास परिवारों तक की रसोई में प्याज की खास अहमियत है. पिछले कुछ माह से इसकी कीमत इतनी बढ़ गयी है कि रसोई में रोजाना इस्तेमाल होनेवाला प्याज आम लोगों का बजट बिगाड़ रहा है. ऐसे में कहा तो यह भी जा […]

– कन्हैया झा

बिचौलिये तय करते हैं कीमत

आम आदमी से लेकर खास परिवारों तक की रसोई में प्याज की खास अहमियत है. पिछले कुछ माह से इसकी कीमत इतनी बढ़ गयी है कि रसोई में रोजाना इस्तेमाल होनेवाला प्याज आम लोगों का बजट बिगाड़ रहा है.

ऐसे में कहा तो यह भी जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनावों में प्याज की कीमत भी एक मुद्दा हो सकती है. हालांकि ऐसा नहीं है कि देश या दुनिया में प्याज की बेहद कमी हो गयी है. जानकारों का कहना है कि कीमत बढ़ने का मुख्य कारण इसका उत्पादन नहीं, बल्कि सरकारों की ढुलमुल बाजार नीति और व्यापार में बिचौलियों का शामिल होना जिम्मेवार है.

देशदुनिया में कितनी होती है प्याज की पैदावार और कौनकौन से देश हैं इसके प्रमुख आयातकनिर्यातक, इन तमाम तथ्यों की जानकारी दे रहा है आज का नॉलेज..

नयी दिल्ली : भोजन में प्याज का टुकड़ा कभी मजदूरों की थाली का हिस्सा माना जाता था. बॉलीवुड की कई पुरानी फिल्मों में दिखाया गया है कि मजदूरों को रोटी के साथ केवल नमक और प्याज खाने को दिया जाता था. लेकिन आज इस प्याज की हैसियत काफी बढ़ गयी है.

हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि व्यंग्य के तौर पर ही सही, कहा तो यहां तक जाने लगा है कि कुछ लोग इसे छोटी डलिया में सजा कर ड्राइंगरूम में रखते हैं और मेहमानों को अपनी ऊंची हैसियत दिखाते हैं. लब्बोलुआब यह कि पिछले कुछ दिनों से आम आदमी से प्याज दूर होता जा रहा है. हाल के महीनों में प्याज संकट पर सड़क से लेकर संसद तक में चरचा हो चुकी है.

जहां एक तरफ प्याज लोगों को रुला रहा है, वहीं दूसरी ओर इसकी बढ़ती कीमतों से व्यापारियों के वारेन्यारे हो रहे हैं. महज कुछ माह पहले देश में प्याज की सबसे बड़ी मंडी नासिक में यह थोक में 8 से 10 रुपये के करीब बिक रहा था. मुनाफाखोरी और गैरकानूनी तरीके से थोक कारोबारियों ने प्याज का भंडारण किया और बाजार में कृत्रिम अभाव की स्थिति पैदा कर दी.

दूसरी ओर, जानकारों का कहना है कि प्याज की पैदावार कुछ कम होने के साथ आयात और निर्यात की सही नीति होने के चलते घरेलू प्याज के भाव बढ़ने शुरू हो गये. इससे कारोबारियों को तो जबरदस्त मुनाफा हो रहा है, लेकिन इसकी खेती करनेवाले किसानों को बहुत कम कीमत हासिल हो पाती है, क्योंकि किसानों से पैदावार आने के समय ही कारोबारी कम कीमत पर ही प्याज खरीद लेते हैं.

तख्ता पलटने की कुव्वत

1970 और 1980 के दशक में केंद्र समेत कई राज्यों में चुनावों के दौरान सत्ता पक्ष को प्याज ने पटखनी दी थी. वर्ष 1998 में दिल्ली विधानसभा के चुनावों के दौरान भाजपा नेताओं के आंसू इस कदर निकाले थे कि वे दोबारा सत्ता में नहीं सके. जानकारों का कहना है कि अन्य कई कारणों के अलावा भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी का होना था. मामूली हैसियत वाला प्याज उस चुनाव में बेहद चर्चित रहा था.

क्या हैं मौजूदा हालात

देशभर में प्याज की लगातार बढ़ती कीमतों की वजह क्या है? यह सवाल हर किसी को मथ रहा है. पिछले तीन महीने के आंकड़ों के मुताबिक, प्याज की आवक में उतनी गिरावट नहीं आयी है, जितनी तेजी से उसकी कीमतें बढ़ी हैं.

नेशनल हॉर्टिकल्चर डेवलपमेंट एंड रिसर्च फाउंडेशन यानी एनएचआरडीएफ की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की 22 बड़ी प्याज मंडियों में नवंबर, 2012 में 10 फीसदी कम प्याज पहुंचा, लेकिन इस दौरान प्याज की कीमतें 22 फीसदी बढ़ीं. दिसंबर के महीने में पांच फीसदी कम प्याज आया, लेकिन दाम बढ़े 78 फीसदी. जनवरी में देखा गया कि प्याज की आवक महज तीन फीसदी कम हुई, लेकिन कीमतों में 166 फीसदी का इजाफा हो गया.

महाराष्ट्र का वर्चस्व

देश में प्याज का सबसे ज्यादा उत्पादन महाराष्ट्र में (तकरीबन एक तिहाई) होता है. इस राज्य की लासलगांव मंडी प्याज की सबसे बड़ी मंडियों में से है. कहा जाता है कि लासलगांव मंडी से ही पूरे देश में प्याज की कीमतें तय होती हैं. नवंबर, 2012 से जनवरी, 2013 के दौरान इस मंडी में वर्ष 2011-12 के इन्हीं महीनों के मुकाबले ज्यादा प्याज आया, लेकिन इसके बावजूद लासलगांव मंडी में प्याज की कीमत रोजाना बढ़ती गयी.

एनएचआरडीएफ के आंकड़ों के मुताबिक, देश में प्याज की बुआई का रकबा मौजूदा सीजन में करीब 18 फीसदी तक घटा है, लेकिन बेहतर मौसम के चलते उत्पादन इस बार भी पिछले सीजन की तरह ही होने की उम्मीद है.

भारत में प्याज का उत्पादन और बाजार

भारत में घरेलू खपत के लिए प्याज का भरपूर उत्पादन होता रहा है. नेशनल हॉर्टिकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के मुताबिक, देश में इसकी खपत ज्यादा होने के चलते पिछले दो दशकों से मिस्र से इसका आयात हो रहा है.

एनएचआरडीएफ के मुताबिक, भारत प्याज का एक बड़ा उत्पादक देश है, लेकिन महाराष्ट्र और कर्नाटक समेत प्याज उत्पादन के लिए मशहूर इलाकों में बारिश कम होने की वजह से इसकी पैदावार इस बार कम हुई है. हालांकि, उपभोक्ता को प्याज के लिए जो मूल्य चुकाना होता है, किसानों को महज उसका 20 से 25 फीसदी तक ही मिल पाता है. दूरदराज के इलाकों से स्थानीय बाजारों और शहरी बाजारों से होते हुए बड़े नगरों के अंतिम उपभोक्ता तक प्याज मुहैया कराये जाने के क्रम में तमाम बिचौलिये शामिल होते हैं. इसके चलते भी इसकी कीमत बढ़ जाती है.

वर्ष 2012 में बेंगलुरु की एक संस्था इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनोमिक चेंज की एक रिपोर्ट कंपीटीटिव एसेसमेंट ऑफ ओनियन मार्केट्स इन इंडिया में बताया गया है कि प्याज के कारोबार में कई स्तरों पर बिचौलिये शामिल होते हैं. बिचौलियों का इस कारोबार में इतना ज्यादा वर्चस्व है कि वे इसकी कीमत तय किये जाने में अहम भूमिका निभाते हैं.

इस अध्ययन में सरकार को एक महत्वपूर्ण सलाह दी गयी थी कि नेशनल एग्रीकल्चरल मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (एनएएमएफआइ) समेत अन्य सरकारी निकायों को कारोबारियों से प्याज खरीदने की बजाय सीधे किसानों से खरीदना चाहिए. एनएचआरडीएफ के मुताबिक, वर्ष 2013-14 में प्याज का उत्पादन 10 से 15 फीसदी बढ़ने की उम्मीद जतायी जा रही है, जो मौजूदा वर्ष में 16.3 मीलियन टन रही है.

देश के उत्तरी मैदानी इलाकों, केंद्रीय और दक्षिणी हिस्सों में ऊंचाईवाले इलाकों में प्याज की खेती की जाती है. इसका बीज ऐसे क्षेत्रों में तैयार किया जाता है, जहां दिन ज्यादा बड़े होते हैं. महाराष्ट्र का नासिक और पुणो के आसपास का इलाका प्याज की खेती के लिए देशभर में मशहूर है.

एनएचआरडीएफ के आंकड़ों के मुताबिक, देश के विभिन्न इलाकों में प्याज की दो से तीन फसलें ली जाती हैं. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में अगस्त, सितंबर और अक्तूबर के अलावा मार्चअप्रैल में भी इसकी फसल पैदा होती है. महाराष्ट्र में नासिक, अहमदनगर समेत पुणो से सितंबरअक्तूबर से बाजार में ताजा प्याज आना शुरू होता है और यह अप्रैलमई तक जारी रहता है.

गुजरात में भी प्याज की तीन फसल ली जाती है. नवंबर से जनवरी के बीच भावनगर इलाके में खरीफ और फिर फरवरीमार्च में पछेती खरीफ की फसल पैदा होती है. इसके बाद, अप्रैल में राजकोट, जूनागढ़ और जामनगर में रबी फसल की प्याज पैदा होती है. देश के उत्तरी इलाकों में भी खरीफ की प्याज उपजाई जाती है.

राजस्थान के अलवर, भरतपुर और अजमेर में, हरियाणा के रेवाड़ी, मेवात और गुड़गांव में तथा पंजाब के पटियाला में इस फसल की प्याज उगायी जाती है. इन इलाकों की फसल के बाजार में आने के बाद से ही महाराष्ट्र और कर्नाटक के प्याज का दबदबा बाजार में कुछ कम होता है. इसके अलावा, तमिलनाडु और ओड़िशा में भी इस मौसम की प्याज पैदा होती है.

नेफेड की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2011-12 में नेफेड ने 7,092 मीट्रिक टन प्याज खरीदा था, जिसकी कीमत 960.64 लाख रुपये थी. इसी वर्ष के दौरान, यानी 2011-12 में नेफेड ने 72.21 लाख रुपये में 772.15 मीट्रिक टन प्याज बाजार में बेचा था.

हालांकि, गत दो दशकों में देश में प्याज के उत्पादन और उत्पादकता, दोनों ही में बढ़ोतरी हुई है, पर नीदरलैंड, अमेरिका, चीन और कोरिया रिपब्लिक समेत अन्य कई देशों की तुलना में भारत में इसकी उत्पादकता कम है.

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