।। दक्षा वैदकर ।।
हम समझ चुके हैं कि सकारात्मक सोच रखना कितना जरूरी है, लेकिन अभी हमें इसे अपनाने में वक्त लग रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि बचपन से ही यह संस्कार हमारे अंदर डाले गये हैं, तो उन्हें बदलने में भी वक्त तो लगेगा ही.
अब जबकि हम यह जान गये हैं कि बचपन से अच्छी बातें सीखना, सुनना, देखना कितना जरूरी है, क्यों न हम अपने बच्चों को भी अभी से यह सिखाएं. एक परिवार को मैं जानती हूं, जिसमें पति–पत्नी में अकसर झगड़ा होता है. जब भी झगड़ा होता है, पति कहता है कि मैं आत्महत्या कर लूंगा. पति की बात सुन पत्नी सांस फूलने और सीने में दर्द होने की शिकायत करती है.
पति तुरंत उनकी सारी बातें मान जाते हैं. उनकी 10 साल की बेटी आभा ने यह सब सीख लिया है. अब जब भी कोई उसे डांटता है. वह पहले आत्महत्या की धमकी देती है, फिर सांस फूलने की एक्टिंग करती है. फिर उसके सीने में दर्द भी शुरू हो जाता है.
दूसरा उदाहरण, आप आधी रात को टीवी देख रहे हैं. आपका बच्चा भी टीवी देखने आ जाता है. आप उसे डांट कर भगा देते हैं, लेकिन खुद टीवी देखना जारी रखते हैं. वह बच्चा क्या सोचेगा? वह सोचेगा कि ‘पापा कितने गंदे हैं. खुद तो टीवी देखते हैं, लेकिन मुझे मना करते हैं.’
कई मम्मियां अपने बच्चे को खाना खिलाने के लिए कार्टून चैनल लगा देती हैं. अब जब वह बच्चा बड़ा हो जाता है और दिनभर टीवी देखने लगता है, तो वे उसे डांटती हैं. आखिर बच्चे को यह आदत किसने लगायी?
बच्चा गैस के पास जाता है, तो हम उसका हाथ झटके से अलग कर देते हैं. उस पर खूब चिल्लाते हैं. हम उसे यह ज्ञान नहीं देते कि गैस के पास जाने से आपने उसे क्यों रोका है? बच्चा दोबारा कोशिश करता है.
ऐसी परिस्थिति में माता–पिता को चाहिए कि बच्चे को पूरा ज्ञान दें. आप उसका हाथ अपने हाथ में ले कर बहुत धीमे–धीमे उसे गैस के नजदीक ले जायें. जब आप बहुत नजदीक ले जायेंगे, तो बच्चा खुद गरमाहट को महसूस करने लगेगा और अपना हाथ अलग कर लेगा. अब वह समझ चुका होगा कि आपने उसे क्यों रोका.
बात पते की..
– बच्चों की परवरिश बड़ी जिम्मेवारी है. यदि आप चाहते हैं कि वह बड़ा होकर सकारात्मक सोच रखे, तो आपको बचपन से ही उसे सिखाना होगा.
– बच्चे को कभी भी डांट कर चुप न करायें. न ही उसे टालने के लिए आधा–अधूरा ज्ञान दें. उसे हर बात, सही–गलत चीज प्यार से समझायें.