11.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पतली होती जा रही है धरती की छतरी

16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस अगर बारिश के समय छतरी में छेद हो जाये, तो आपका भीगना तय है. इसी तरह एक छतरी हमारी धरती के पास भी है-ओजोन की छतरी. जो हमें सूर्य की पराबैगनी किरणों से बचाती है. मगर यह छतरी या परत धीरे-धीरे पतली होती जा रही है. इससे हमारे स्वास्थ्य […]

16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस

अगर बारिश के समय छतरी में छेद हो जाये, तो आपका भीगना तय है. इसी तरह एक छतरी हमारी धरती के पास भी है-ओजोन की छतरी. जो हमें सूर्य की पराबैगनी किरणों से बचाती है. मगर यह छतरी या परत धीरे-धीरे पतली होती जा रही है. इससे हमारे स्वास्थ्य व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. ओजोन परत के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 16 सितम्बर 1995 को यूएन (संयुक्त राष्ट्र महासंघ) की पहल पर अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है.

क्या है ओजोन परत

पृथ्वी से 30 मील ऊपर तक का क्षेत्र वायुमंडल कहलाता है. ओजोन वायुमंडल के सबसे ऊपरी हिस्से में स्थित होती है. ओजोन नीले रंग की गैस होती है. ओजोन की चादर की खोज वर्ष 1913 में फ्रेंच वैज्ञानिकों, चाल्र्स फैब्री और हेनरी बूइसॉ ने की थी. अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र का पता 1985 में ब्रिटिश वैज्ञानिकों जोसेफ फारमैन, ब्रायन गार्डनर और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के जोनाथन शंकलिन ने लगाया था.

ऐसे पहुंचता है नुकसान

रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर जैसे आधुनिक उपकरणों में क्लोरो-फ्लोरा कार्बन (सीएफसी) का उपयोग किया जाता है. यही गैस ओजोन परत को सबसे अधिक हानि पहुंचाती है. ओजोन में ऑक्सीजन के तीन परमाणु मिले हुए होते हैं. सीएफसी से निकलनेवाली क्लोरीन गैस ओजोन के तीन ऑक्सीजन परमाणुओं में से एक से अभिक्रिया कर जाती है. यह प्रक्रिया जारी रहती है, और इस तरह क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के 100,000 अणुओं को नष्ट कर देता है. इससे ओजोन परत पतली होती जाती है.

खतरनाक है ओजोन का छिद्र

नासा के अनुसार ओजोन छिद्र का आकार 13 सितंबर, 2007 को करीब 97 लाख वर्ग मील क्षेत्र के बराबर हो गया था. यह क्षेत्रफल उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रफल से भी बड़ा है. धीरे-धीरे छिद्र का आकार बढ़ता ही चला गया. ओजोन क्षरण से अमेरिका सबसे पहले पीड़ित हुआ है, क्योंकि ओजोन की चादर में पहला छेद अंटार्कटिका के ठीक ऊपर बना है. इससे कई अन्य महाद्वीपों पर भी खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने के कारण कई सारे देशों के जलमग्न होने का खतरा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि ओजोन में छेद के लिए जिम्मेदार वैज्ञानिकों की मानें, तो क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) के उत्पादन और इस्तेमाल पर आज से पूर्ण प्रतिबंध भी लगा दिया जाए, तो भी समस्या बनी रहेगी, क्योंकि वातावरण में मौजूद सीएफसी को समाप्त करने का कोई तरीका अभी तक नहीं ढूंढ़ा जा सका है.

नहीं हुआ ठोस उपाय

संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहल पर मॉट्रियल प्रोटोकॉल को 191 देशों ने स्वीकृति दी थी. इसके तहत 30 देशों ने सीएफसी के इस्तेमाल में कमी लाने पर सहमति जतायी थी. यही नहीं वर्ष 2000 तक अमेरिका तथा यूरोप के 12 देश सीएफएस के इस्तेमाल और उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर सहमत हो गये थे. इसे एक बड़ी उपलब्धि मानी गयी थी, क्योंकि ये देश दुनिया में उत्पादित होनेवाले सीएफसी का तीन चौथाई हिस्सा पैदा करते हैं. मगर इनपर अनुसरण नहीं हो सका. फिलहाल ओजोन दिवस के मौके पर हर साल स्कूल, कॉलेज व अन्य संस्थानों में सेमिनार का आयोजन होता है.

बढ़ेगा कैंसर का खतरा

जलवायु परिवर्तन की अंतरराष्ट्रीय समिति (आइपीसीसी) की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती का तापमान पिछले 100 सालों में लगभग एक प्रतिशत बढ़ गया है. कुछ रिसर्च में कहा गया है, कि कैंसर के साथ मलेरिया और अन्य संक्रामक बीमारियों का खतरा भी बढ़ जायेगा. मोतियाबिंद के 1.70 करोड़ नये मामले सामने आ सकते हैं. वनस्पतियों का जीवन चक्र बदल सकता है. खाद्य श्रृंखला बिगड़ सकती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें