Advertisement
ब्रिटेन में फिर कैमरून सरकार
ब्रिटेन में संसदीय चुनाव के नतीजे पूर्वानुमानों के विपरीत रहने को लेकर अलग-अलग विश्लेषण हो रहे हैं, पर दो बातों पर आम सहमति है. एक, टोरी पार्टी को मिला बहुमत और स्कॉटलैंड में स्कॉटिश राष्ट्रवादियों की भारी जीत ने ब्रिटिश राजनीतिक नक्शे को बदल दिया है, और दूसरा यह कि प्रधानमंत्री कैमरून पर यूनाइटेड किंगडम […]
ब्रिटेन में संसदीय चुनाव के नतीजे पूर्वानुमानों के विपरीत रहने को लेकर अलग-अलग विश्लेषण हो रहे हैं, पर दो बातों पर आम सहमति है. एक, टोरी पार्टी को मिला बहुमत और स्कॉटलैंड में स्कॉटिश राष्ट्रवादियों की भारी जीत ने ब्रिटिश राजनीतिक नक्शे को बदल दिया है, और दूसरा यह कि प्रधानमंत्री कैमरून पर यूनाइटेड किंगडम के विभिन्न हिस्सों- उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और इंग्लैंड-के बीच अविश्वास की बढ़ती खाई को पाटने की जिम्मेवारी है.
इंग्लैंड में संतोषजनक प्रदर्शन करनेवाली लेबर पार्टी के सामने स्कॉटलैंड में खोयी साख को फिर से हासिल करने की चुनौती है. यह सब नहीं हुआ तो कैमरून की पिछली सरकार में उप-प्रधानमंत्री और लिब-डेम नेता निक क्लेग की यह बात सही साबित हो सकती है कि इस चुनाव में भय और शिकायतों की जीत हुई है तथा उदारवाद को पराजय मिली है. चुनाव-परिणामों के विभिन्न आयामों और आसन्न प्रभावों पर समय की प्रस्तुति..
डेविड विलियम डोनाल्ड कैमरून
जन्म : 9 अक्तूबर, 1966. लंदन
माता-पिता : इंग्लैंड के पूर्व सम्राट विलियम चतुर्थ के वंशज कैमरून के पिता इयान कैमरून शेयर के कारोबार में थे और माता मैरी फ्लेअर सेवानिवृत्त जज हैं.
शिक्षा : हीथरडाउन प्रेप स्कूल और एटन कॉलेज से शुरुआती शिक्षा प्राप्त कर कैमरून को ऑक्सफोर्ड के ब्रासेनोज कॉलेज से दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में 1988 में स्नातक की उपाधि मिली.
पारिवारिक जीवन : वर्ष 1996 में सामंथा शेफील्ड से शादी. दो बेटियों और एक बेटा के पिता. पहली संतान जन्म के कुछ वर्ष बाद गंभीर बीमारी से चल बसी.
राजनीति : कैमरून की राजनीतिक यात्र कंजरवेटिव पार्टी के रिसर्च विभाग से शुरू हुई थी. ‘डेली मेल’ में मार्च, 2007 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें यह अवसर परिवार और परिचितों की पैरवी के कारण मिला था. 1991 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जॉन मेजर की सलाहकार मंडली में प्रवेश किया और अगले वर्ष राजकोष के चांसलर नॉरमैन लामोंट के विशेष सलाहकार बने. फिर वे होम सेक्रेटरी माइकल हॉवर्ड के मीडिया प्रभारी बने.
पेशेवर जीवन : वर्ष 1994 में कैमरून ने राजनीति छोड़ ब्रिटिश मीडिया कंपनी कार्लटन कम्युनिकेशंस के कॉरपोरेशन अफेयर्स के निदेशक का कार्यभार संभाला.
पुन: राजनीति : वर्ष 2001 में उन्होंने वापस राजनीति में कदम रखा और विट्नी शहर से सांसद बने.कंजरवेटिव पार्टी का नेतृत्व : दिसंबर, 2005 के चुनाव में पार्टी की हार हुई, पर कैमरून अपनी सीट जीत गये. इसके बाद उन्हें पार्टी की कमान सौंपी गयी. उन्होंने पार्टी की दक्षिणपंथी छवि को अपनी भाषण क्षमता और उदारवादी दृष्टिकोण से सुधारा और 2010 के चुनाव में पार्टी को शानदार कामयाबी हासिल हुई.
प्रधानमंत्री कैमरून : वर्ष 2010 में महज 43 साल की उम्र में कैमरून ने प्रधानमंत्री का पद संभाला. वे 1812 के बाद ब्रिटेन के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने थे. उस चुनाव में कंजरवेटिव पार्टी को बहुमत न मिल सकने के कारण लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ साझा सरकार बनानी पड़ी थी. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की यह पहली गंठबंधन सरकार थी.
भारी चुनावी जीत : तमाम चुनाव पूर्व अनुमानों को झुठलाते हुए प्रधानमंत्री डेविड कैमरून की कंजरवेटिव पार्टी ने इस सप्ताह के चुनाव में अकेले अपने दम पर बहुमत प्राप्त किया है और अब कैमरून दोबारा सरकार बना रहे हैं.
भारत के लिहाज से कई शुभ संकेत हैं
एसडी मुनि
विदेश मामलों के जानकार
पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर कैमरून ने सबसे पहले भारत का ही दौरा किया था. कैमरून की तरह मोदी सरकार भी निवेश को आकर्षित करने पर जोर दे रही है. इसलिए अब दोनों देशों के बीच निवेश और व्यापार बढ़ाने की काफी संभावना है. दूसरी ओर, स्कॉटिश नेशनलिस्ट पार्टी की जीत भारतीय छात्रों के लिए अच्छी खबर है.
ब्रिटेन के चुनाव नतीजे हैरान करनेवाले हैं. अनुमानों को गलत साबित करते हुए कंजरवेटिव पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल गया है. चुनाव पूर्व अनुमानों में कहा जा रहा था कि लेबर पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी के बीच कांटे की टक्कर होगी और ब्रिटेन में एक बार फिर गंठबंधन की सरकार बनेगी.
ब्रिटेन की राजनीति लेबर और कंजरवेटिव पार्टी के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है, लेकिन इस बार के चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभाव बढ़ रहा है. लेबर पार्टी के उम्मीद से कम प्रदर्शन करने की वजह स्कॉटलैंड में स्कॉटिश नेशनलिस्ट पार्टी की एकतरफा जीत रही है. वहां की कुल 59 सीटों में 56 सीटें स्थानीय पार्टी ने जीत ली है. लेबर पार्टी का गढ़ रहा यह इलाका पूरी तरह बिखर गया और पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को हार का सामना करना पड़ा.
लेबर पार्टी की हार में कंजरवेटिव पार्टी के नकारात्मक प्रचार अभियान का भी योगदान है. पार्टी लोगों को यह समझाने में कामयाब रही है कि अगर लेबर पार्टी की सरकार बनती है, तो देश में आर्थिक संकट का दौर फिर शुरू हो सकता है और अर्थव्यवस्था की खराब सेहत की वजह पूर्व की लेबर सरकार की नीतियां रही हैं. यही वजह है कि लोकलुभावन वादों के बावजूद लोगों ने लेबर पार्टी को नकार दिया.
उसी प्रकार गंठबंधन में शामिल लिबरल कंजरवेटिव पार्टी को भी लोगों ने जमीन पर ला दिया. पार्टी दावा कर रही थी कि बिना उसके सहयोग से कोई भी सरकार नहीं बन सकती है. ब्रिटिश मतदाताओं ने भारत की तरह ही एक पार्टी की सरकार को चुनना पसंद किया.
प्रधानमंत्री कैमरून ने भारतीय मूल के लोगों को लुभाने के लिए ‘अबकी बार कैमरून सरकार’ का नारा भी दिया. ब्रिटेन के साथ रहने के पक्ष में जनमत संग्रह के बाद वहां स्थानीय पार्टी की मजबूती दर्शाती है कि वहां राष्ट्रवाद की भावना मजबूत हो रही है. इससे सरकार के सामने आनेवाले समय में समस्या पैदा हो सकती है.
प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने चुनाव के दौरान वादा किया था कि यूरोपीय संघ में रहने या बाहर होने को लेकर जनमत संग्रह करवायेंगे. लेकिन स्कॉटलैंड के लोग यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधर हैं. स्कॉटलैंड के लोग वहां मौजूद न्यूक्लियर हथियारों को हटाये जाने की मांग भी कर रहे हैं. कैमरून ने स्कॉटलैंड को अधिक स्वायत्तता देने की बात भी कही है. अब नयी सरकार को देश की एकता को बनाये रखने के साथ ही आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ करना है. देश में गरीबी पहले की तुलना में बढ़ी है और फूड कूपन के कारण सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ा है.
जहां तक भारत के साथ रिश्ते की बात है, दोनों देशों के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखा गया है. 1998 में परमाणु परीक्षण की बात हो या फिर कारगिल युद्ध, ब्रिटेन का रवैया भारत के प्रति अच्छा नहीं रहा है. कश्मीर मुद्दे पर भी ब्रिटेन का रुख भारत के लिए परेशानी का कारण रहा है. प्रधानमंत्री मोदी जर्मनी, फ्रांस का दौरा कर चुके हैं, लेकिन अभी तक ब्रिटेन नहीं गये हैं.
लेकिन उम्मीद है कि वे जल्द ही ब्रिटेन का भी दौरा करेंगे. वैसे दोनों नेताओं के बीच रिश्ते अच्छे हैं. साल 2002 के गुजरात दंगे के बाद पश्चिमी देशों ने मोदी से दूरी बना ली थी, लेकिन आम चुनाव से पहले ब्रिटिश उच्चयुक्त ने मोदी से मुलाकात कर रिश्तों को बेहतर करने का प्रयास किया. पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर कैमरून ने सबसे पहले भारत का ही दौरा किया था. कैमरून की तरह मोदी सरकार भी निवेश को आकर्षित करने पर जोर दे रही है. अब दोनों देशों के बीच निवेश और व्यापार बढ़ाने की काफी संभावना है.
दूसरी ओर, स्कॉटिश नेशनलिस्ट पार्टी की जीत भारतीय छात्रों के लिए अच्छी खबर है. पार्टी ने भारतीय छात्रों को वर्क वीजा देने की बात कही है. भारत और ब्रिटेन के बीच विज्ञान, तकनीक, ऊर्जा, शिक्षा, रक्षा जैसे क्षेत्र में सहयोग बढ़ने की काफी संभावना है. हाल ही में भारत ने रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ की सीमा को 49 फीसदी बढ़ा दिया है. रक्षा क्षेत्र में कई देशों के साथ अरबों रुपये के करार किये गये हैं.
पिछले कुछ वर्षो में ब्रिटेन का भारत में निवेश कम हुआ है और दोनों देशों के बीच व्यापार में भी कमी आयी है. कभी ब्रिटेन निवेश और व्यापार के मामले में भारत का दूसरा सबसे बड़ा सहयोगी था, लेकिन अब वह 22वें स्थान पर है. प्रधानमंत्री कैमरून इस कमी को दूर करने की पहल कर रहे हैं.
पूर्ण बहुमत मिलने के बाद दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ना तय है. मोदी की तरह कैमरून भी आर्थिक सुधार के पक्षधर हैं. ब्रिटेन ने भारत में निवेश करने और तकनीक हस्तांतरण पर कई तरह के रोक लगा रखे हैं. रिश्तों को बेहतर करने के लिए इस रोक को भी हटाना होगा.
वैसे भारत में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ब्रिटेन ने व्यापार और निवेश को लेकर सकारात्मक रवैया दिखाया है. उम्मीद है कि आनेवाले समय में भारत-ब्रिटेन के बीच आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक स्तर पर सहयोग बढ़ेगा.
(विनय तिवारी से बातचीत पर आधारित)
आप्रवासी भारतीयों का अहम योगदान
चंद्रचूड़ सिंह
(यूनिवर्सिटी ऑफ वर्मिघम में पढ़ाते हैं)
कंजरवेटिव पार्टी को मिली जीत में भारतीयों के योगदान की झलक आप इस तथ्य से भी समझ सकते हैं कि उन्होंने अपने घोषणापत्र में भी भारत से जुड़े कई मसलों को शामिल किया था. घोषणापत्र में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता, भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते को समर्थन देने को भी स्थान दिया था.
ब्रिटेन में संसदीय लोकतंत्र है और संसदीय लोकतंत्र में चुनाव का अहम योगदान होता है. हमारे देश में भी जो संसदीय लोकतंत्र की प्रक्रिया अपनायी गयी है, वह थोड़ा-बहुत परिवर्तन के साथ ब्रिटेन से ही ली गयी है. ऐतिहासिक व सांस्कृतिक कारणों से भी हमारे संबंध काफी प्रगाढ़ रहे हैं.
ब्रिटेन के चुनाव में कंजरवेटिव पार्टी के डेविड कैमरून को मिली बहुमत से यह साफ हो गया है कि भारत के साथ संबंध आगे भी समय के साथ और भी प्रगाढ़ होंगे. उनकी इस जीत में निश्चित रूप से ब्रिटेन में बसे 14 लाख भारतीयों का अहम योगदान रहा है, तभी उन्हें ऐसी जीत मिली है. पूरी चुनावी प्रक्रिया के दौरान आप्रवासी भारतीयों ने खुल कर कंजरवेटिव पार्टी के साथ खड़ा होना स्वीकार किया है.
कंजरवेटिव पार्टी ने देश के आम चुनाव में अप्रत्याशित रूप से पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल की है और पार्टी को किसी और दल पर निर्भर नहीं रहना होगा. कैमरून ने यह नारा दिया था कि ‘एक बार फिर कैमरून सरकार’ और चुनावी नतीजे भी यही बता रहे हैं कि वह चुनावी नारा सही मायने में चरितार्थ हुआ है.
यह तथ्य सर्वविदित है कि ब्रिटेन की राजनीति के दो प्रमुख दलों कंजरवेटिव पार्टी और लेबर पार्टी की तुलना करें, तो कंजरवेटिव भारत के ज्यादा करीब है.
इस जीत का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि भारत में भी पूर्ण बहुमत की सरकार है, और इस सरकार में भाजपा की सर्वोच्च भूमिका है, जो कि वैचारिक दृष्टि से कंजरवेटिव से ज्यादा साम्य रखते हैं. जबकि लेबर पार्टी को ब्रिटेन में बसे पाकिस्तानियों का सर्मथन ज्यादा हासिल है, इसलिए वह पाकिस्तान के ज्यादा करीब है.
कंजरवेटिव पार्टी को मिली जीत में भारतीयों के योगदान की झलक आप इस तथ्य से भी समझ सकते हैं कि उन्होंने अपने घोषणापत्र में भी भारत से जुड़े कई मसलों को शामिल किया था. कैमरून ने अपने चुनावी घोषणापत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता, भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते को समर्थन देने को भी स्थान दिया था.
इससे साफ है कि कैमरून बड़े मसलों पर भारत के साथ खड़े हैं. इसका व्यापक असर भी है. इसकी वजह से अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस जैसे देश कई मसलों पर भारत के साथ आयेंगे. गौरतलब है कि ये सारे देश ब्रिटेन के निकटतम सहयोगी समङो जाते हैं.
बिट्रेन में न सिर्फ अप्रवासी संख्याबल की दृष्टि से मजबूत हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी वे काफी सशक्त हैं. न सिर्फ सांस्कृतिक दृष्टि से, बल्कि राजनीतिक व्यवस्थापन की दृष्टि से भी उनका अहम योगदान है, और कंजरवेटिव पार्टी की ओर उनका झुकाव बढ़ता जा रहा है.
लक्ष्मी मित्तल, स्वराज पॉल या यूं कहें तो ब्रिटेन के दस बड़े धनाढ्यों में दो-तीन भारतीय हैं. नृजातिय रूप से भारत से जुड़े होने के साथ ब्रिटेन में जो 14 लाख भारतीय रह रहे हैं, उनमें 90 फीसदी लोग मध्य वर्ग में आ चुके हैं. इसलिए न सिर्फ सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी ये लोग काफी प्रभावी हैं. इतना ही नहीं, ब्रिटेन में ब्रिटिश पार्लियामेंट्री कमिटी ऑफ इंडियन अफेयर्स है, जो कि भारतीयों के हित को ब्रिटन में बहुत मजबूती से उठाता है.
इस संस्था ने ब्रिटेन में भारतीय छात्रों के लिए मुहिम भी चलायी थी, जिसके तहत जो भारतीय छात्र वहां पढ़ने जाते हैं, उनको पढ़ाई खत्म करने के बाद दो साल वहां रह कर काम करने का मौका मिले, ताकि वैश्वीकरण के इस युग में वे अवसर का बेहतर लाभ ले सकें.
भारत में जब से नरेंद्र मोदी की सरकार आयी है, सत्ता में आने के बाद से ही मोदी दुनिया के अलग-अलग देशों में अपनी यात्रओं के दौरान प्रवासी भारतीयों को काफी प्रभावित कर रहे हैं. इसलिए भारत की तरफ उनका झुकाव बढ़ा है.
अब निश्चित तौर पर नरेंद्र मोदी की सरकार से कैमरून का नजदीकी रिश्ता बनेगा और इस रिश्ते का प्रभाव दोनों देशों के बीच आर्थिक नजदीकी और निवेश पर होगा. विगत दिनों में भारत के गुजरात में अप्रवासी भारतीय समिट का आयोजन हुआ था, उसमें ब्रिटेन से वाणिज्य सेक्रेटरी आये थे, और ब्रिटेन का इस समिट में अहम भागीदारी थी. मोदी सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम में ब्रिटेन की अहम भागीदारी हो सकती है.
बर्मिघम, मेनचेस्टर, नॉर्टिघम ब्रिटेन के ये तीन शहर हैं, जो कि औद्योगिक हॉर्ट माने जाते हैं और ये मेक इन इंडिया कैंपेन में काफी सहयोगी हो सकते हैं. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे भारत से जुड़े अहम मुद्दों में ब्रिटेन भारत के साथ खड़ा हो सकता है.
आगामी नवंबर-दिसंबर में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ब्रिटेन दौरा होनेवाला है. इस दौरे के बाद भारत और ब्रिटेन के बीच आगे के संबंधों की रूपरेखा तैयार होगी और कई स्तर पर दोनों देशों के बीच संबंध बढ़ेंगे. संबंधों की इस प्रगाढ़ता को कंजरवेटिव पार्टी की जीत ने काफी आसान बना दिया है, जिसकी झलक हमें आगे मिल सकती है.
बिहार व झारखंड जैसे राज्यों के विकास में भी बड़ी संख्या में ब्रिटेन में बसे प्रवासी योगदान दे सकते हैं. इनमें बिहार और झारखंड से गये बड़ी संख्या में प्रवासी डॉक्टरों की अहम भूमिका हो सकती है. इसलिए इन राज्यों को भी इस दिशा में प्रयास करने की दरकार है.
(संतोष कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)
कंजरवेटिव पार्टी के घोषणा-पत्र में खास
1. स्वास्थ्य योजनाएं
– नेशनल हेल्थ स्कीम के बजट को 2020 तक आठ बिलियन पाउंड करना.
– पूरे सप्ताह नेशनल हेल्थ स्कीम की सेवाओं तक लोगों की पहुंच सुनिश्चित करना.
– 75 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को जरूरत पड़ने पर उसी दिन चिकित्सक की उपलब्धता सुनिश्चित करना.
2. शिक्षा एवं परीक्षा
– विश्वविद्यालय में सीटों की सीमा खत्म करना
– असफल माध्यमिक विद्यालयों को बंद करना और जरूरतमंदों के लिए फ्री स्कूलों की स्थापना.
– जरूरत से कम अंक आने पर छात्रों को परीक्षा में दोबारा बैठने की अनुमति देना.
– माध्यमिक स्तर पर अंगरेजी, गणित, विज्ञान, एक अन्य भाषा और इतिहास या भूगोल का पढ़ना अनिवार्य करना.
– परास्नातक और पीएचडी पाठ्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय परास्नातक ¬ण तंत्र की स्थापना.
3. कार्य अवधि और वेतन
– आयकर की न्यूनतम सीमा बढ़ा कर 12,500 पाउंड करना.
– न्यूनतम वेतन पर हर सप्ताह 30 घंटे काम करनेवालों को आयकर न देने की छूट के लिए कानून बनाना
– छूट की सीमा को कम कर 23,000 पाउंड तक लाना
4. आवास की व्यवस्था
– हाउसिंग एसोसिएशन के किरायेदारों को आवास खरीद अधिकार योजना में शामिल करना
– पहली बार घर खरीद रहे 40 वर्ष से कम आयु के लोगों के लिए दो लाख आवास बनाना, जिसकी कीमत बाजार दर से 20 फीसदी कम होगी.
– युवाओं को अपनी पहली आवासीय खरीद पर बचत में मदद की व्यवस्था.
5. बच्चों की देखभाल
– कामकाजी माता-पिता के तीन-चार साल उम्र के बच्चों को सप्ताह में 30 घंटे की मुफ्त देखभाल की व्यवस्था.
6. कर ढांचे में परिवर्तन
– वैट, राष्ट्रीय बीमा या आयकर में बढ़ोतरी नहीं, आयकर की सीमा में 40 फीसदी वृद्धि कर 50,000 पाउंड करना.
– घरों पर विरासत कर की सीमा को बढ़ाकर एक मिलियन पाउंड करना.
– राजकीय पेंशन में कम-से-कम 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी.
7. आप्रवासन संबंधी नीति
– आप्रवासन की संख्या को लाखों से घटा कर हजारों में करना.
– यूरोपीय संघ के साथ नये नियमों पर सहमति बना कर यह व्यवस्था करना कि अन्य देशों के लोगों को विभिन्न लाभों की मांग करने से पहले एक निर्धारित अवधि तक ब्रिटेन में काम करना होगा.
8. यूरोपीय संघ
– मानवाधिकार कानून खत्म कर ब्रिटिश अधिकार कानून लाना.
– संघ में ब्रिटेन की सदस्यता के मसले पर 2017 तक जनमत संग्रह कराना.
9. राष्ट्रीय सुरक्षा के कदम
– नियमित सैन्य सेवा के आकार को बहाल रखना और सैनिकों की संख्या 82 हजार से कम नहीं करना.
– ट्राइडेंट परमाणु हथियार कार्यक्रम जारी रखना और चार नये बैलेस्टिक मिसाइल पनडुब्बी बनाना
– अतिवादी संगठनों को प्रतिबंधित करने के नियम बनाना.
कैमरून के सामने ब्रिटेन को बचाने की चुनौती
अगर प्रधानमंत्री अपने संघवाद के प्रति ईमानदार हैं, तो उन्हें संघ में पड़ी दरार को पाटने का प्रयास करना होगा. कुछ कोशिशें बहुत आसान हैं. एक, उन्हें अपना सुर बदलकर स्कॉटिश नेशनल पार्टी के सदस्यों के प्रति आदर के साथ पेश आना होगा तथा उनकी बातें सुननी होंगी. उन्हें वहां रहने का पूरा अधिकार है और उनकी रचनात्मक भूमिका को रेकांकित किया जाना चाहिए.
दूसरा, कैमरून को स्कॉटलैंड की आवाज सुननी चाहिए और उसके अनुरूप नीतियों में बदलाव करना चाहिए. इसके लिए अगर कटौती संबंधित नीतियों में संशोधन करना हो, तो उन्हें यह भी करना चाहिए. टोरी-विरोधी इंग्लैंड का उत्तरी क्षेत्र भी इसे सकारात्मक तौर पर लेगा. तीसरी, उनकी अपनी पार्टी की दिलचस्पी कम होने के बावजूद कैमरून को यूरोपीय यूनियन में शामिल होने संबंधी जनमत-संग्रह पर यथाशीघ्र काम शुरू कर देना चाहिए.
अगर कैमरून देश में विभाजन की दरारों को नहीं पाट सकेंगे, तो वे यूनाइटेड किंगडम को तोड़नेवाले प्रधानमंत्री के रूप में जाने जायेंगे. पर, यदि वे इसे बचा लेंगे और मजबूत करेंगे, तो वे एक महान प्रधानमंत्री और राजनेता के रूप में इतिहास में दर्ज किये जायेंगे.
– एलन मैसी, द टेलीग्राफ
एक विभाजित देश की लगाम मिली है कैमरून को
बहरहाल, अगर संघ एकजुट रहता है, तब भी एक-दूसरे से बिल्कुल अलग-थलग हो चुके ब्रिटिश राष्ट्रों को साथ रखने के लिए बहुत कोशिश करनी होगी. उत्तरी आयरलैंड की तो हमेशा से अपनी कहानी रही है, परंतु स्कॉटलैंड और इंग्लैंड के बीच, वेल्स के साथ, खाई बहुत अधिक बढ़ गयी है. स्कॉटिश नेशनल पार्टी ने स्कॉटलैंड के नक्शे को पूरी तरह पीले रंग में रंगते हुए सरकारी खर्च में कटौती के खिलाफ एक ठोस संदेश दिया है. लेकिन इंग्लैंड में वित्तीय कटौती के टोरी वायदे को समर्थन मिला है.
नये नेता की तलाश में लगे लेबर पार्टी के लिए यह खाई एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी. क्या पार्टी सामाजिक लोकतंत्र के प्रति झुकाव रखनेवाले स्कॉटिश मतदाताओं तथा अंगरेजी राष्ट्रवाद, वित्तीय आकांक्षा और आशाओं को लिए इंग्लैंड के मतदाताओं, जिनका एक बड़ा हिस्सा स्कॉटिश लोगों के प्रति बैर भी रखता है, को एक साथ आकर्षित कर सकेगी?
– जोनाथन फ्रीडलैंड, द गाजिर्यन
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement